सनातन धर्म नित्य -नूतन अत्याधुनिक बना रहता है यह कोई रुढी-बादी धर्म न होकर वैज्ञानिक आधार को समेटे हुए विश्व कल्याण पुरे समाज को अपना परिवार मानने की परंपरा ही हमारे हिन्दू धर्म की विशेषता है, यह रंगों का त्यौहार न होकर यह समरसता का राष्ट्रीय पर्व है जिस प्रकार बहुत सारे रंगों को मिलाकर होली खेली जाती है उसी प्रकार इस पर्व में जिस दिन होली जलायी जाती है बुराई पर अच्छाई की विजय का पर्व के रूप में हम देखते हैं, रात्रि को उत्तर प्रदेश में कई प्रकार का कर्म-कांड होता है एक तो कुछ स्थानों पर सूप पिटते हैं और लक्ष्मी का आवाहन करना प्रत्येक घर में जाकर यह बोलना की ''लक्ष्मी आवे दलिद्दर जाय'', दूसरा कुछ लकड़ी जलाकर ''अलाय-बलाय जात है'' का उद्घोष करना बिहार में लक्ष्मी का आवाहन करना.
यह होली नए वर्ष की अगवानी करती है पेड़ों में नयी कोपलें, प्रकृति अपना श्रृंगार करना शुरू करती है जब रात्रि में होलिका जलाई जाती है तो जौ, गेहूं की बालियों को उसी भूना जाता है उसे खाने से दात मजबूत होता है ऐसी किबदंती है, कुल मिलकर हमारे त्यौहार कोई ढोंग, रुद्ध न होकर ये प्रकृति के अनुकूल और वैज्ञानिक है इसलिए हमारा धर्म आदि काल से है अनादि काल तक रहेगा हमारे अन्दर आ रही कुरीतियों को समाप्त करने के यही सब वैज्ञानिक उपाय है त्योहारों के माध्यम से हम अपने मनो- मालिन्य को समाप्त कर लेते हैं.
होली में जितने भी गीत, फाग गाये जाते हैं सभी सात्विक भगवत भक्ति से ओत- प्रोत समरस समाज निर्माण हेतु रचना की जाती है, जैसा हम सभी जानते हैं की भारतीय परिदृश्य से यदि दो नाम हटा दिए जायं (श्री राम, श्री कृष्ण) तो भारत व भारतीय संस्कृति, हिन्दू धर्म अथवा हिन्दू संस्कृति रहेगी या नहीं कुछ नहीं कहा जा सकता ये दो भारतीय हीरो भारत के पर्यायवाची हो गए हैं यही भारत हैं और उन्हें मानने वाले ही भारतीय हैं, हमारे त्योहारों में इन महापुरुषों को आधार बनाकर ही गीतों की रचना की गयी है यहाँ तक की पूरे भारत वर्ष में इन्ही के गीतों को बिभिन्न प्रकार से गया जाता है, यानी हमारे राष्ट्रीयता, भारतीयता, मानवता और समरसता के प्रतीक हैं ये महापुरुष इसलिए सभी पंथ, भाषा और जाती -बिरादरी के लोग सामान रूप से श्रद्धा रखते हैं.
यह होली नए वर्ष की अगवानी करती है पेड़ों में नयी कोपलें, प्रकृति अपना श्रृंगार करना शुरू करती है जब रात्रि में होलिका जलाई जाती है तो जौ, गेहूं की बालियों को उसी भूना जाता है उसे खाने से दात मजबूत होता है ऐसी किबदंती है, कुल मिलकर हमारे त्यौहार कोई ढोंग, रुद्ध न होकर ये प्रकृति के अनुकूल और वैज्ञानिक है इसलिए हमारा धर्म आदि काल से है अनादि काल तक रहेगा हमारे अन्दर आ रही कुरीतियों को समाप्त करने के यही सब वैज्ञानिक उपाय है त्योहारों के माध्यम से हम अपने मनो- मालिन्य को समाप्त कर लेते हैं.
होली में जितने भी गीत, फाग गाये जाते हैं सभी सात्विक भगवत भक्ति से ओत- प्रोत समरस समाज निर्माण हेतु रचना की जाती है, जैसा हम सभी जानते हैं की भारतीय परिदृश्य से यदि दो नाम हटा दिए जायं (श्री राम, श्री कृष्ण) तो भारत व भारतीय संस्कृति, हिन्दू धर्म अथवा हिन्दू संस्कृति रहेगी या नहीं कुछ नहीं कहा जा सकता ये दो भारतीय हीरो भारत के पर्यायवाची हो गए हैं यही भारत हैं और उन्हें मानने वाले ही भारतीय हैं, हमारे त्योहारों में इन महापुरुषों को आधार बनाकर ही गीतों की रचना की गयी है यहाँ तक की पूरे भारत वर्ष में इन्ही के गीतों को बिभिन्न प्रकार से गया जाता है, यानी हमारे राष्ट्रीयता, भारतीयता, मानवता और समरसता के प्रतीक हैं ये महापुरुष इसलिए सभी पंथ, भाषा और जाती -बिरादरी के लोग सामान रूप से श्रद्धा रखते हैं.
भारत के विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग प्रकार से होली मनाई जाती है बर्षाना की लट्ठमार होली विशेष प्रसिद्द है यह पर्व भगवान कृष्ण को समर्पित है, जाती, पंथ, भाषा से ऊपर उठकर यह त्यौहार जहाँ कोई किसी से जाती नहीं पूछता एक-दूसरे को गले लगाकर अबीर-गुलाल लगा समानता और समरसता के सन्देश सारा का सारा समाज नित्य नूतन बना रहे इस नाते इन पर्वो की रचना की, अच्छे-अच्छे पकवान बनाना अपने सगे-संबंधियों को निमंत्रण देकर भोजन पर बुलाना यह बात ठीक है की इस समय कुछ विदेशी धर्मो अथवा संस्कृति के प्रभाव के कारन कुछ बिकृति आना स्वाभाविक है लेकिन इन्ही त्योहारों के माध्यम से हमारा समाज अपने को अत्याधुनिक बनाये रखेगा और भारतीय हिन्दू संस्कृति सुरक्षित रहेगी.