इस्लामी हमलावरों का सामना किया
किताब में मध्यकाल के ढेरों साक्ष्य दिए गए हैं, जब इस्लामी हमलावरों ने मंदिरों पर हमला किया तो उन्हें सबसे पहले खटिटक ब्राह्मणों का सामना करना पड़ा। राजा और उनकी सेना तो बाद में आती थीं। खटिटक ब्राह्मण आम तौर पर मंदिर परिसरों के अंदर या उनके आसपास रहा करते थे। तैमूर लंग को दीपालपुर और अजोधन में खटीक योद्धाओं ने ही रोका था। सिकंदर को भारत में प्रवेश से रोकने वाली सेनाओं में भी सबसे अधिक खटीक जाति के ही योद्धा थे। तैमूर लंग खटीकों की बहादुरी से इतना डर गया था कि उसने आमने-सामने की लड़ाई के बजाय छल का रास्ता अपनाया और सोते हुए हजारों खटीक सैनिकों की हत्या करवा दी। कहते हैं कि तैमूर ने सैनिकों के सिरों का ढेर लगवाकर उस पर रमजान की तेरहवीं तारीख पर नमाज अदा की |
हर तरह के युद्ध कौशल में माहिर
दिल्ली सल्तनत के दौर में गुलाम, तुर्क, लोदी वंश और मुगल शासनकाल में जब अत्याचारों की मारे हिंदू मौत या इस्लाम में से कोई एक विकल्प चुन रहे थे तो खटीक उन कुछ जातियों में थे जिन्होंने हर संभव प्रतिरोध किया। मुगलों की ताकत के आगे उनकी शक्ति बहुत कम थी, फिर भी हार नहीं मानी। इस बात का वर्णन मिलता है कि खटीकों ने ही सबसे पहले धर्म की रक्षा और बहू-बेटियों को मुगलों की गंदी नजर से बचाने के लिए अपने घर के आसपास सुअर बांधना शुरू किया था। इस्लाम में सुअर को हराम माना गया है। मुगल तो इसे देखना भी हराम समझते थे। जब भी मुगल हमला करते तो खटीक सेनाएं सुअर आगे कर देतीं, जिससे मुगलों में भगदड़ मच जाती थी। ठीक वैसे ही जैसे मुगल हमलावरों ने गायों का इस्तेमाल किया। मुस्लिमों की गोहत्या के जवाब में खटीकों ने सुअर का मांस बेचना शुरू कर दिया। ऐसा करके उन्होंने मुगलों से अपनी और मंदिरों रक्षा तो कर ली, लेकिन हिंदू समाज में ही पददलित होते चले गए। सोलहवीं शताब्दी के आसपास खटिटक शब्द खटीक बन गया। ये लोग अब सुअर पालकर उनका मांस बेचकर पेट पालने लगे। नतीजा यह हुआ कि हिंदुओं की ये शूरवीर ब्राह्मण जाति आज दलित श्रेणी में है। उनके हथियार कौशल और वीरता का ही नतीजा था कि अक्सर खटीकों को लोग क्षत्रिय समझते हैं।
आजादी की लड़ाई में भी योगदान
सामाजिक और आर्थिक रूप से खटीक भले ही पिछड़ते चले गए, लेकिन उनकी वीरता और दिलेरी कभी कम नहीं हुई। 1857 की आजादी की लड़ाई में मेरठ से कानपुर तक अंग्रेजों से लोहा लेने वालों में खटीक सबसे आगे थे। कहते हैं कि काशी में खटीकों के कारण ही कभी अंग्रेज अपने पांव ठीक से नहीं जमा पाए। इलाहाबाद में खटीकों के हमलों से अंग्रेजी अफसर परेशान रहा करते थे। क्रांति को कुचलने के बाद अंग्रेजों ने खटीकों के गाँव के गाँव को सामूहिक रूप से पेड़ों पर लटकाकर फांसी दे दिया। नेहरू ने अपनी किताब ‘भारत एक खोज’ में भी इसका जिक्र किया है, लेकिन उन्होंने यह नहीं लिखा है कि वो लोग खटीक जाति के थे। 1891 में अंग्रेजों ने पूरी खटीक जाति को ‘अपराधी जाति’ घोषित कर दिया।
खटीकों ने जिन्ना से भी बदला लिया
आजादी से ठीक पहले 16 अगस्त 1946 को जब मोहम्मद अली जिन्ना ने डायरेक्ट एक्शन की घोषणा की थी तो मुस्लिमों ने कोलकाता शहर में हिंदुओं का नरसंहार शुरू कर दिया था। लेकिन एक-दो दिन में ही पासा पलट गया और खटीकों ने मुस्लिमों का इतना भयंकर नरसंहार किया कि बंगाल में उस वक्त मुस्लिम लीग सरकार के मंत्री ने सार्वजनिक रूप से कहा कि हमसे भूल हो गई। बाद में इसी का बदला मुसलमानों ने बांग्लादेश के नोआखाली में हिंदुओं का नरसंहार करके लिया। आज हम आप खटीकों को अछूत मानते हैं, क्योंकि हमें उनका सही इतिहास नहीं बताया गया है। दलित शब्द का सबसे पहले प्रयोग अंग्रेजों ने 1931 की जनगणना में ‘डिप्रेस्ड क्लास’ के रूप में किया था। उसे ही बाबा साहब अंबेडकर ने अछूत के स्थान पर दलित शब्द में तब्दील कर दिया। इससे पूर्व पूरे भारतीय इतिहास और साहित्य में ‘दलित’ शब्द का उल्लेख कहीं नहीं मिलता है। मुसलमानों के डर से अपना धर्म नहीं छोड़ने वाले, हिंसा और सुअर पालन के जरिए इस्लामी हमलावरों का मजबूती से मुकाबला करने वाले खटीक ब्राह्मणों को भी दलित जाति की श्रेणी में डाल दिया गया।
मुगलों के अत्याचार से बने ‘दलित’
भारत में 1000 ईस्वी में सिर्फ एक फीसदी अछूत जातियां थीं। लेकिन मुगल वंश का खात्मा होते-होते इनकी संख्या चौदह फीसदी तक हो गई। आखिर कैसे? अनुसूचित जातियों के लोग सबसे ज्यादा आज के उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, मध्य भारत में है, जहाँ मुगल सबसे अधिक ताकतवर थे। डॉ सुब्रह्मण्यम स्वामी ने भी खटीक जाति को ब्राह्मण माना है। स्वामी के मुताबिक आज अनुसूचित और ओबीसी कैटेगरी की ज्यादातर जातियां ऐतिहासिक रूप से ब्राह्मण या क्षत्रिय हैं। इन्होंने जाति से बाहर होना स्वीकार किया, लेकिन मुगलों के जबरन धर्म परिवर्तन के आगे नहीं झुके। प्रोफेसर मैथ्यू एटमोर शेरिंग की मशहूर किताब ‘हिंदू कास्ट एंड ट्राइब्स’ में भी लिखा है कि भारत के निम्न जाति के लोग कोई और नहीं, बल्कि ब्राहमण और क्षत्रिय ही हैं। ये जातियां मुगलों के आने के पहले सामाजिक रूप से ऊपरी पायदान पर हुआ करती थीं। स्टेनले राइस ने अपनी पुस्तक ‘हिन्दू कस्टम्स एंड देयर ओरिजिन्स’ में यह भी लिखा है कि अछूत मानी जाने वाली जातियों में अधिकतर वो बहादुर जातियां हैं, जो मुगलों से युद्ध में हार गईं और उन्हें अपमानित करने के लिए मुसलमानों ने अपने मनमाने काम किये और अपमानित करने के लिए अछूत बनाया।
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