देश आज़ादी के पश्चात् देश में मदरसों की संख्या नगण्य थी १९७७-७८ में यह संख्या बढ़कर ५८ से सौ तक थी यह सरकारी आकड़ा है ९० के दसक में यह संख्या बढ़कर २० हज़ार हो गयी जब हम इसका विश्लेषण करते है कि इन सबका बढ़ाना भारतीय परिवेश में कितना महगा पडेगा इसका विचार तो करना चाहिए, क्या भारतीय संस्कृति समाप्त करने पर तुले है ये मदरसे-! फिर राष्ट्रीयता पर इसका क्या प्रभाव पड़ रहा है! भारतीय मीमाशंकों के लिए यह विचारणीय विषय है।
क्या है भारतीय संस्कृति-? सनातन काल से चली आयी ऋषियों-मुनियों द्वारा हजारों-लाखों वर्षो की तपश्चर्या के पश्चात यह मानववादी संस्कृति का निर्माण हुआ जिसे हम हिन्दू संस्कृति, हिन्दू धर्म अथवा सनातन धर्म कहते हैं जो भारतीय नदियों के किनारे जंगलों व हिमालय की कंदरावों मे हमारे ऋषियों ने बड़ी योजना पूर्वक इसका निर्माण किया, एक अरब सत्तानवे वर्ष पहले हमारे वेदों को भगवान ने हमे दिया जो ऋषि विश्वामित्र, अगस्त, लोमहर्षिनी, लोपमुद्रा, दीर्घतमा, ऐलुष, जमदग्नि, रिचिक और पारसुराम जैसे ऋषियों के कंठो मे आकर इनहोने इसके दर्शन किए यानी इस पर सोध किया भगवान राम, श्रीक़ृष्ण जैसे महापुरुषों ने इन आदर्शों पर चलकर हमारा मार्गदर्शन किया, चाणक्य व आदि शंकराचार्य ने इस संस्कृति के आधार पर राष्ट्र निर्माण किया, चन्द्रगुप्त और पुष्यमित्र शुंग जैसे प्रतापी राजाओं ने इस महान राष्ट्र को आधार बना सम्पूर्ण आर्यावर्त का राजनैतिक स्वरूप का निर्माण किया जिनकी महान गाथाओं के आधार पर हम गौरवान्वित होते रहते हैं।
आज की स्थित पर जब हम विचार करते है तो क्या पाते है ? जहां प्रातः-काल मंदिरों पर आरती व पूजा, घंटी -घरियाल के आवाज़ सुनाई देती थी मठ,मंदिरों मे वेद मंत्रो को ध्वनि सुनाई देती थी वहाँ मस्जिदों पर मक्का-मदीना की आवाज सुनाई दे रहा है खेत-खलिहानों मे धोती कुर्ता दिखाई देता था वहाँ लूँगी दिखाई दे रहा है, परिस्थितियों मे बहुत-कुछ बदल चुका है यदि समय रहते हिन्दू समाज नहीं सचेत हुआ तो परिणाम यह होगा की भारतीय संस्कृति कहानियों मे ही सुनने को मिलेगा, जहां 70 के दशक के पहले मस्जिदों पर ध्वनि विस्तारक की आवाज सुनाई नहीं देती थी वहीं बिना किसी परमिसन किसी सूचना के इतनी तेज आवाज़ कि बच्चो की पढ़ाई मे ब्यवधान हो रहा है कोई सुनने वाला नहीं स्थिति यहाँ तक बिगड़ गयी है कि एक सर्वे के अनुसार 77-78 तक मदरसों की कुल संख्या 88 थी जो सन2000 तक बढ़कर 20000 हो गयी उसका परिणाम क्या हुआ ? आज इस्लामी टोपी लगाने वाले, अध-कटा पैजमा पहनने वाले, कठमुल्ला दाढ़ी रखने वाले तो हर गली मुहल्ले मे दिखाई ही नहीं दे रहे हिन्दू समाज के प्रति घृणा भी फैला रहे हैं सरस्वती जी की पूजा हो अथवा दुर्गा जी की मूर्ति का विसर्जन का विषय हो हर स्थानो पर विबाद खड़ा करने का प्रयास, सरकारी जमिनो पर मज़ारों के नाम पर कब्जा जहां बड़े पुल, हास्पिटल, सैनिक छवानी, रेलवे स्टेशन अथवा कोई महत्वपूर्ण सरकारी संस्थान सभी स्थानों पर मज़ार बना एक आईएसआई का एजेंट मुल्ला के रूप मे बैठा दिया जा रहा है, बग्लादेशियों की घुसपैठ इतनी हो गयी है की बिहार के किशनगंज, पूर्णिया, अररिया, कटिहार, भागलपुर, झारखंड का पाकुड़, सहबगंज, देवघर इत्यादि जिलों मे हिन्दुओ का रहना दूभर हो गया है उसकी बहन-बेटी सुरक्षित नहीं इतना ही नहीं सामान्य हिन्दू यदि मर जाता है तो उसे फुकने नहीं देते जबर्दस्ती उसे दफनवा देते हैं सभी हिन्दुओ को दबाव पूर्बक इस्लामी पद्धति से लूँगी लगाना पड़ता है प्रत्येक हिन्दू भय के कारण लोटा न रखकर इस्लामी बधना रखता है धीरे-धीरे ये इस्लामी अरबी संस्कृति की ओर बढ़ता देश दिखाई देता है इन मदरसों मे लव जेहाद का बकायदे प्रशिक्षण दिया जाता है यह परिणाम सन2000 के 20000 मदरसों का है।
वर्तमान मे मदरसों की संख्या 35 हज़ार है कुछ लोगो का मानना है की ये संख्या एक लाख है इस समय दस लाख मुल्ला -मौलबी एक करोण इस्लामी क्षात्र, दस साल बाद ये जब भारतीय नगरों, गावों मे आएगे तो उनके स्वच्छंद स्वभाव को कौन रोकेगा ? कौन सेना लड़ेगी इनसे ? क्यों की ये तो इस्लामिक सैनिक है जिसे यह आदेश हैं हिंदुओं की बहन बेटियो को उठा लाओ, मंदिरो को तोड़ो, मूर्तियों को नष्ट करो, प्रत्येक हिन्दू पहचान से घृणा करो इसलिए हिन्दुओ सोचो-समझो और विचार करो, भारतीय राष्ट्र मठ, मंदिर और गुरुद्वारों के रास्ते से होकर गुजरता है न की मखतब, मदरसों के रास्ते इसलिए हे हिन्दुओ आगे आओ भारतीय संस्कृति और राष्ट्र को बचाओ नहीं तो यह स्मृति ही रह जाएगी।