भारतीय समाज मे रक्षाबंधन का इतना महत्व क्यों है क्या ये भाई-बहनों का त्योहार है फिर इस देशके मनीषी इसे राष्ट्रीय पर्व मानते हैं कुछ विद्वान इसे भारतीय समाज के चिति धार्मिक ऐतिहासिक महत्व बताते हैं आखिर इस पर्व का क्यों और कैसे इतना माहत्व है-?
''येन वद्धों
बली राजा----------''
हमे प्रहलाद पौत्र महाराजा बली की कथा ध्यान मे है जब सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए की यह देवताओं के राज्य पर राज़ा बली का शासन है इसे हमे वापस दिलाएँ विष्णु ने बताया की राज़ा बली तो बड़े धार्मिक राज़ा हैं इसलिए उनसे युद्ध करना अधार्मिक होगा और अपने मर्यादा के बिरुद्ध होगा लेकिन भगवान विष्णु ने देवताओं की बात मान बामन रूप धारण कर वे ठीक राजाबली के यज्ञ के समय पहुचे, राजाबली बामन भगवान के सुंदर स्वरूप को देख मोहित हो गया भगवान ने राजा से दान मांगा राजाबली तो उस समय के सबसे बड़े दानी थे और उस समय तो यज्ञ कर रहे थे, राजा ने उस बालक से कहा मांगो, लेकिन उनके गुरु शुक्राचार्य ने दान देने से माना किया कहा की ये सामान्य बालक नहीं ये साक्षात विष्णु हैं ये तुम्हें ठगने आए हैं लेकिन राजा ने कहा यदि ये तो और भी सौभाग्य की बात है कि विष्णु स्वयं ही मुझसे कुछ मागने आए हैं वे नहीं माने तो बामन भगवान ने उनसे कहा कि हे राजन आप रक्षा सूत्र बधवाकर पहले संकल्प ले फिर मै कुछ मगूगा राजा को भगवान बामन ने रक्षासूत्र बांध दान मांगा, मुझे केवल ढाई कदम जमीन अपने आसान के लिए चाहिए, राजा ने जैसे ही स्वीकार किया देखते ही देखते वह छोटा सा बालक महाआकार लेता दिखाई दिया और दो कदम मे ही सारी धरती नाप ली फिर कहा राजन अब मै अपना कदम कहाँ रखू राजा ने आफ्ना सिर झुका दिया, भगवान ने वर मागने के लिए कहा तो महादानी राजाबली के भगवान से अपने साथ रहने के लिए काहा उसी समय राजबली पाताल लीक चले गए और भगवान उनके दरवान बन वही रहने लगे, देवताओं ने प्रथम बार रक्षाबंधन का महत्व जाना।
''येन बद्धों बली राजा --------''
अब देवलोक मे भगवती लक्ष्मी अकेले रहने लगी भगवान तो पाताल लोक मे राजाबली की चाकरी कर रहे हैं उन्होने पाताल लोक जाकर राजाबली से भेटकर उनको भाई बना रक्षासूत्र बांधा राजबली ने लक्ष्मी से वर मागने को कहा लक्ष्मी ने उनसे उनके दरवान को ही मांगा राजबली तो सब समझ ही रहे थे उन्होने रक्षासूत्र बधवाने के पश्चात भगवान विष्णु को लक्ष्मी को सौप दिया वे देवलोक चले गए, धीरे-धीरे देवता फिर मानव समाज मे यह परंपरा पड़ गयी।
''येन वद्धों बली राजा ----------''
देवासुर संग्राम हो रहा था बार-बार असुर जीतते देवता पराजित होते तब इंद्राणी ने इन्द्र को युद्ध मे जाते समय रक्षा सूत्र बांधा और देवताओं को विजयश्री प्राप्त हुई धीरे-धीरे यह त्वय त्यवहार का स्वरूप धारण कर लिया, यह त्यवहार पहले वीर-ब्रत के रूप मे मनाया जाता था फिर परंपरा बन राष्ट्रिय पर्व हो गया।
''येन वद्धों
बली राजा----------''
हमे प्रहलाद पौत्र महाराजा बली की कथा ध्यान मे है जब सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए की यह देवताओं के राज्य पर राज़ा बली का शासन है इसे हमे वापस दिलाएँ विष्णु ने बताया की राज़ा बली तो बड़े धार्मिक राज़ा हैं इसलिए उनसे युद्ध करना अधार्मिक होगा और अपने मर्यादा के बिरुद्ध होगा लेकिन भगवान विष्णु ने देवताओं की बात मान बामन रूप धारण कर वे ठीक राजाबली के यज्ञ के समय पहुचे, राजाबली बामन भगवान के सुंदर स्वरूप को देख मोहित हो गया भगवान ने राजा से दान मांगा राजाबली तो उस समय के सबसे बड़े दानी थे और उस समय तो यज्ञ कर रहे थे, राजा ने उस बालक से कहा मांगो, लेकिन उनके गुरु शुक्राचार्य ने दान देने से माना किया कहा की ये सामान्य बालक नहीं ये साक्षात विष्णु हैं ये तुम्हें ठगने आए हैं लेकिन राजा ने कहा यदि ये तो और भी सौभाग्य की बात है कि विष्णु स्वयं ही मुझसे कुछ मागने आए हैं वे नहीं माने तो बामन भगवान ने उनसे कहा कि हे राजन आप रक्षा सूत्र बधवाकर पहले संकल्प ले फिर मै कुछ मगूगा राजा को भगवान बामन ने रक्षासूत्र बांध दान मांगा, मुझे केवल ढाई कदम जमीन अपने आसान के लिए चाहिए, राजा ने जैसे ही स्वीकार किया देखते ही देखते वह छोटा सा बालक महाआकार लेता दिखाई दिया और दो कदम मे ही सारी धरती नाप ली फिर कहा राजन अब मै अपना कदम कहाँ रखू राजा ने आफ्ना सिर झुका दिया, भगवान ने वर मागने के लिए कहा तो महादानी राजाबली के भगवान से अपने साथ रहने के लिए काहा उसी समय राजबली पाताल लीक चले गए और भगवान उनके दरवान बन वही रहने लगे, देवताओं ने प्रथम बार रक्षाबंधन का महत्व जाना।
''येन बद्धों बली राजा --------''
अब देवलोक मे भगवती लक्ष्मी अकेले रहने लगी भगवान तो पाताल लोक मे राजाबली की चाकरी कर रहे हैं उन्होने पाताल लोक जाकर राजाबली से भेटकर उनको भाई बना रक्षासूत्र बांधा राजबली ने लक्ष्मी से वर मागने को कहा लक्ष्मी ने उनसे उनके दरवान को ही मांगा राजबली तो सब समझ ही रहे थे उन्होने रक्षासूत्र बधवाने के पश्चात भगवान विष्णु को लक्ष्मी को सौप दिया वे देवलोक चले गए, धीरे-धीरे देवता फिर मानव समाज मे यह परंपरा पड़ गयी।
''येन वद्धों बली राजा ----------''
देवासुर संग्राम हो रहा था बार-बार असुर जीतते देवता पराजित होते तब इंद्राणी ने इन्द्र को युद्ध मे जाते समय रक्षा सूत्र बांधा और देवताओं को विजयश्री प्राप्त हुई धीरे-धीरे यह त्वय त्यवहार का स्वरूप धारण कर लिया, यह त्यवहार पहले वीर-ब्रत के रूप मे मनाया जाता था फिर परंपरा बन राष्ट्रिय पर्व हो गया।