''जब कभी धर्म की हानि होती है, तभी मै आता हूँ'' ------- वे फिर से आये, इस बार देश के सुदूर दक्षिण में भगवान का अभिर्भाव हुआ, उस ब्राह्मण युवक का----- जिसके बारे में कहा गया कि तेरह वर्ष का बालक सन्यासी भगवे वेश में जब चलता था तो हजारो साधू, संत, जिज्ञासु और प्रबुद्ध उसके पीछे- पीछे हाथी, घोडा, पैदल और रथों से चलते थे जिसका दृश्य अद्भुत दिखाई देता था, शास्त्रार्थ में तो जैसे सरस्वती उनकी जिभ्वा पर सवार रहती थी सुन्दर, सलोना चेहरा सबको सम्मोहित करने वाला अनायास ही सबको मोहित कर लेता था.
जिसके बारे में हम सभी जानते है कि उन्हें एक वर्ष में ही अपनी मात्री भाषा के वर्णमाला का अक्षर-ज्ञान हो गया था, उनको २-३ वर्षो में अपने माता- पिता से पुराणों का ज्ञान हो गया था, ४ वर्ष में गुरु -गृह जाकर उपनिषद और वेदों की शिक्षा ग्रहण कर ली थी, आस-पास के तथा दूर-दराज के गावो से बड़ी संख्या में जिज्ञासा हेतु तथा शास्त्रार्थ करने व हारने में उस छोटे सुन्दर-बालक से आनंदित होते थे और वे दक्षिण में चर्चा के विषय बन गए थे, माँ से आज्ञा लेकर सात वर्ष की उम्रमें सन्यास ले अमरकंटक गोविन्द्पाद के शिष्य बनते हैं, उन्होंने सोलह वर्ष की आयु में ही अपनी सारी ग्रन्थ -रचना समाप्त कर ली थी, उसी अद्भुत प्रतिभाशाली शंकराचार्य का अभ्युदय हुआ, इस सोलह वर्षीय बालक के लेखों से आधुनिक सभ्य संसार विस्मित हो रहा है, वह अद्भुत बालक था---! उसने संकल्प किया था कि सम्रग भारत को उसके प्राचीन विशुद्ध मार्ग पर ले जाऊंगा ----------!
वैदिक धर्म की पूर्णता को परिपुष्ट करने के लिए परमहंस परिव्राजक भगवान शंकर का आविर्भाव हुआ.
वैदिक धर्म की पूर्णता को परिपुष्ट करने के लिए परमहंस परिव्राजक भगवान शंकर का आविर्भाव हुआ.