Quantcast
Channel: दीर्घतमा
Viewing all articles
Browse latest Browse all 434

"मनुस्मृति की अवधारणा"पर एक दृष्टि

$
0
0

 


अपनी बात----!

भारतीय संस्कृति ज्ञान का भंडार है, चाहे शिल्पी कोई भी हो उसने किस वृत्तांत का किस संदर्भ में व क्यों प्रस्तुत किया है ? इसका ग्रहण करने व समझने के लिए हमें भी उसी पृष्ठ भूमि से चिंतन करना होगा। प्रलय और महाप्रलय अपने समय पर होते रहते हैं। इनका चक्र अनादि काल से चला आ रहा है महाप्रलय में सब तत्व क्रमशः लीन होकर एकमात्र प्रकृति रह जाता है। आरम्भ में भूमि सलिलावस्था में थी तदनु सलिल में काई बनी। अग्नि, मारुत के योग से इसमें घनत्व बढ़ा, पर भूमि सर्बथा आद्रा और शिथिल थी। वह ठोस हो रही थी, जब वायु का प्रकोप होता और वायु प्रवाह बहुत वेग से आता तो शिथिल भूमि भी पवन के साथ बेगवती होती ठीक उसी प्रकार समुद्र की लहरें आगे आगे जाती रहती हैं। (महा. शान्ति पर्व)

 कालांतर में भूमि में रेत, कण बने, रेत के पश्चात भूमि शर्करा अथवा कंकड़ बने। कंकणों के कारण भूमि का ऊपरी भाग ठोस होने लगा। भूमि की वह अवस्था दही के समान थी, अर्थात कुछ ढीली भूमि के ऊपर ठोस सिक्कड़ बनने लगा। भूमि अधिक ठोस होने लगी, पर्वत स्थिर होने लगे, इंद्र और सूर्य आदि के बल से अल्प भूमि फैलने लगी तब से भूमि का नाम पृथिबी हो गया। पृथिबी, चंद्र अन्य सभी ग्रह अपने अपने राशि में भ्रमण कर रहे थे। पहले राति ही राति थी तो कहीं दिन ही दिन होता था और अब रात्रि और दिन का प्रादुर्भाव हुआ। कभी सूर्य की अंगिरा रश्मियों को सारी पृथिबी मिल गई और पार्थी व अग्नि ने इन रश्मियों को तपाया। वे बाहर जाने लगीं, पृथिबी ने सिंही के समान अंगड़ाई ली। उसके फलस्वरूप पृथिबी में दरार होने लगी, उससे पूर्व पृथबी समतल थी। इसी प्रकार पृथिबी पर नदियां भी बन रही थीं जंगल भी नहीं बनने लगे थे, पर्वतों को काटती हुई नदियाँ नए नए मार्ग बनाने में लगी।

मानव जीवन का प्रादुर्भाव

जैसे मनुष्य बच्चा पैदा होने से पहले पिता अपनी ब्यवस्था करता है उसी प्रकार ईश्वर मनुष्य को पृथिबी पर भेजने से पहले ईश्वर ने सब प्रकार की ब्यवस्था किया है। औषधि-- जन्म काल के पश्चात पृथिबी पर मनुष्य उत्पन्न हुआ, आदि मनुष्यों में जिसे हम अमैथुनी सृष्टि कहते हैं उनमें ब्रह्मा जी और ग्यारह ऋषि थे भृगु, अंगिरा आदि सप्तर्षि प्रसिद्ध हुए हैं। इन्हीं सप्तर्षियों के नाम से गोत्र चलते हैं और मानव सृष्टि का विस्तार होने लगा इक्कीस प्रजापति इन्हीं दिनों में थे, उनमें कश्यप और दक्ष बहुत प्रसिद्ध हुआ है। धीरे धीरे मनुष्य पृथिबी पर फैलने लगा। विकासवादी लोग आदि मानव को असभ्य मानते हैं लेकिन भारतीय संस्कृति  ऐसा नहीं मानती। ब्रम्हा जी, स्वयंभू मनु सप्तर्षियों में भृगु, अंगिरा, अत्रि आदि महान विद्वान थे वे ऋषि थे। रजोगुण और तमोगुण से रहित होने के कारण उनका महान आत्मा से साक्षात सतत संबंध था। वे साक्षात कृतधर्मा थे।

महाभारत में एक रोचक प्रसंग है धृतराष्ट्र संजय से पूछते हैं--! "जो यह भारत है जिसके क्षत्रियों को युद्ध में भाग लेना है वह कैसा और कितने विस्तार वाला है?"संजय ने कहा-- "हे भारत ! अब मैं भारत वर्ष का वर्णन करता हूँ, यह देश देवराज इंद्र का प्रिय देश था। यही देश विवस्वान, विवस्वान मनु का प्यारा देश था। आदि राजा पृथुवैन्य का भी यही देश था। महात्मा इक्ष्वाकु, ययाति, अम्बरीश, मान्धाता तथा नहुष आदि का यही देश था। उशीनर और शिबि आदि का भी यही प्यारा देश था।"आर्य लोग प्रारम्भ से ही अपने देश से प्रेम करने वाले थे, वे इसी देश के वासी थे। उन्हीं की संस्कृति की यह तेजस्विनी ज्योतिर्मयी गाथा लिखी जा रही है, जो भगवान मनु ने "मनुस्मृति"में उसे संरक्षित करने मनुष्य को जीवन जीने, अनुसासन में रहने के लिए नियम बनाया है।

मानव--?

मनुष्य कौन है तो भगवान मनु ने मनुस्मृति यानी मानव जाति के लिए एक विधान लिख कर मनुष्य को परिभाषित किया है, क्योंकि किसी को मनुष्य नहीं कहा जा सकता नवीन पंथों ने अपने ग्रंथों में मनुष्य शब्द का वर्णन नहीं किया है इसके विपरीत सनातन धर्म के ग्रंथों में मनुष्य शब्दों का वर्णन मिलता है और उसकी परिभाषा भी 

                       "धृति: क्षमा दमोस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः।

                        धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणं।।" (मनुस्मृति 6.92)

 किया गया है इसलिए जिनके ग्रंथों में मनुष्य शब्द है ही नहीं उनके अंदर मानवता है कि नहीं यह कौन तय करेगा ? क्योंकि इनके इतिहास तो अमानवीयता, हिंसा से भरे पड़े हैं इसलिए मनुस्मृति और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।

मैंने अपने ब्लॉग "दीर्घतमा"में भगवान मनु तथा मनुस्मृति पर अनेकों लेख लिखे हैं मेरा मानना है कि मनुस्मृति धरती का प्रथम ग्रंथ है जो सर्वाधिक लोगों को प्रभावित करता है । और किसी के द्वारा लिखा गया प्रथम ग्रंथ है क्योंकि वेद अपौरुषेय है सभी भारतीय वांग्मय में मनुस्मृति की किसी न किसी प्रकार से मनुस्मृति की चर्चा मिल जाती है लेकिन मनुस्मृति में वेद के अतिरिक्त किसी की चर्चा नहीं मिलती। इससे यह सिद्ध होता है कि यह मानवमात्र का प्रथम ग्रंथ है लेकिन वैदिक कालीन है, वेदों पर आधारित बनाया गया मानव जीवन के लिए प्रथम विधान है।



Viewing all articles
Browse latest Browse all 434

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>