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मनुस्मृति की नारी...कठगणराज्य की राजकुमारी "कार्विका "

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"यत्र नारियस्य पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता"---- (मनुस्मृति)

भारतीय काल गणना के अनुसार वेदों का प्रादुर्भाव व सृष्टि का निर्माण एक अरब छानबे करोड़ आठ लाख वर्ष पूर्व हुआ था। उसके पश्चात महर्षि मनु ने मानव जीवन तथा राज्य चलाने के लिए एक विधान बनाया जिसे हम मनुस्मृति ग्रंथ के नाम से जानते हैं। हिंदू वांग्मय में नारी का पुरुषों से अधिक महत्व दिया गया है जैसे महिलाओं का नाम पहले पुरुषों का बाद में लिया जाता है जैसे सीता-राम, लक्ष्मी- नारायण इत्यादि। उसी प्रकार जैसे पुरुषों को सैनिक प्रशिक्षण दिया जाता था, शासन प्रशासन का अधिकार व प्रशिक्षण दिया जाता था ठीक उसी प्रकार महिलाओं को भी बराबर का अधिकार था। इसलिए भारतीय वांग्मय में शासक, प्रशासक महिलाएं बराबर की हकदार थीं परिणाम स्वरूप कोई वीरांगना कार्विका तो कोई नाग्निका सातकर्णि और रानी लक्ष्मीबाई के रूप में दिखाई देती हैं। 
जो पश्चिम के देश यह कहते नहीं थकते की भारत में तो महिलाये बहुत पिछड़ी हुई हैं ,वे यह भू जाते है की १९५० से पहले पश्चिम के बहुत सरे देशो में महिलाओ को वोट करने तक को अधोकर ही नहीं था, और मुस्लिम देशो में तो अज भी कोई अधिकार नहीं मिलता है. 

(सिकंदर को पराजित करने वाली "कठ गणराज्य"की राजकुमारी कार्विका)

राजकुमारी कार्विका सिंधु नदी के उत्तर में कठगणराज्य  की राजकुमारी थी। राजकुमारी कार्विका बहुत ही कुशल योद्धा थी। रणनीति और दुश्मनों के युद्ध चक्रव्यूह को तोड़ने में पारंगत थी। राजकुमारी कार्विका ने अपने बचपन की सहेलियों के साथ फ़ौज बनाई थी। जिस उम्र में लड़कियाँ गुड्डे गुड्डी का शादी रचना खेल खेलते थे उस उम्र में कार्विका को शत्रु सेना का दमन कर के देश को मुक्त करवाना,शिकार करना इत्यादि ऐसे खेल खेलना पसंद थे। राजकुमारी धनुर्विद्या के सारे कलाओं में निपुण थी, दोनो हाथो से तलवारबाजी करते मां कालीका प्रतीत होती थीं।

सिकंदर से युद्ध

कुछ साल बाद जब भयंकर तबाही मचाते हुए सिकंदर की सेना नारियों के साथ दुष्कर्म करते हुए हर राज्य को लूटते हुए कठगणराज्य की ओर आगे बढ़ रही थी। तब अपनी महिला सेना जिसका नाम राजकुमारी कार्विका ने चंडी सेना रखी थी जो कि ८००० से ८५०० विदुषी नारियों की सेना थी, के साथ युद्ध करने का ठाना। ३२५(इ.पूर्व) में सिकन्दर  के अचानक आक्रमण से राज्य को थोडा बहुत नुक्सान हुआ पर राजकुमारी कार्विका पहली योद्धा थी जिन्होंने सिकंदर से युद्ध किया था। सिकन्दर की सेना लगभग १,५०,००० थी और कठगणराज्य की महज आठ हज़ार वीरांगनाओं की सेना थी जिसमें कोई पुरुष नहीं जो कि ऐतिहासिक है।

विजयश्री राजकुमारी को

सिकंदर ने पहले सोचा "सिर्फ नारी की फ़ौज है , मुट्ठीभर सैनिक काफी होंगे” पहले २५००० की सेना का दस्ता भेजा गया उनमे से एक भी ज़िन्दा वापस नहीं आ पाया।राजकुमारी की सेना में ५० से भी कम वीरांगनाएँ घायल हुई थी पर मृत्यु किसी को छु भी नहीं पायी थी। दूसरी युद्धनीति के अनुसार सिकंदर ने ४०,००० का दूसरा दस्ता भेजा उत्तर पूरब पश्चिम तीनों और से घेराबन्दी बना दिया परंतु राजकुमारी सिकंदर जैसे कायर नहीं थी खुद सैन्यसंचालन कर रही थी उनके निर्देशानुसार सेना ने तीन भागो में बंट कर लड़ाई किया और सिकंदर की सेना पस्त हो गई।

सिकंदर संधि को मजबूर

तीसरी और अंतिम ८५,०००० दस्ताँ का मोर्चा लिए खुद सिकंदर आया। नंगी तलवार लिये राजकुमारी कार्विका ने अपनी सेना के साथ सिकंदर को अपनी सेना लेकर सिंध के पार भागने पर मजबूर कर दिया। इतनी भयंकर तवाही से पूरी तरह से डर कर सैन्य के साथ पीछे हटने पर सिकंदर मजबूर हो गया। सिकंदर की १,५०,००० की सेना में से २५,००० के लगभग सेना शेष बची थी , हार मान कर प्राणों की भीख मांग लिया सिकंदर ने और कठगणराज्य में दोबारा आक्रमण नहीं करने का लिखित संधी पत्र दिया राजकुमारी कार्विका को।

इस महाप्रलयंकारी अंतिम युद्ध में कठगणराज्य के ८,५०० में से २७५० साहसी वीरांगनाओं ने भारत माता को अपना रक्ताभिषेक चढ़ा कर वीरगति को प्राप्त कर लिया। जिसमे से इतिहास के दस्ताबेजों में गरिण्या, मृदुला, सौराय मिनि, जया यह कुछ नाम मिलते हैं।

नमन है ऐसी वीरांगनाओं को 


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