Quantcast
Channel: दीर्घतमा
Viewing all articles
Browse latest Browse all 434

धर्मवीर बालक वीर हकीकत राय

$
0
0


 धर्म वीर वीर हकीकत राय

पंजाब के सियालकोट (जो आज के पाकिस्तान) में एक बालक का जन्म 1719 में हुआ जिसका नाम हकीकत राय था पढ़ने में बड़ा मेधावी छात्र था। बचपन में ही रामायण- महाभारत व अन्य धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन कर लिया था। उसे बहुत सारी पौराणिक कथाएं मुह जबानी याद थी। उस समय इस्लामी शासन था यह समय सत्रहवीं शताब्दी का इस्लामिक काल था, सारे सरकारी काम - काज अरबी व फारसी भाषा में हुआ करता था। हकीकत के पिता अपने बेटे को अधिकारी बनाना चाहते थे इसलिए उसे बगल के एक मदरसे में हकीकत का प्रवेश दिला दिया। थोड़े ही दिनों में बालक हकीकत अपने गुरुजनों (मौलवियों) के बीच बहुत लोकप्रिय हो गया। 

खेल खेल में विबाद

 एक दिन की घटना है कि मदरसे के छात्रों ने हकीकत से कबड्डी खेलने का जिद करने लगे हकीकत पढ़ने में ब्यस्त था वह खेलना नहीं चाहता था उसने कहा कि भाई मुझे अभी फ़ारसी सीखने में बड़ी मेहनत करनी है मैं नहीं जा सकता। उसने भगवती की सौगंध खाते हुए कहा कि मैं नहीं जा सकता तभी एक मुस्लिम बालक ने कहा कि तुम्हारी इस पत्थर की देवी को अभी सड़क पर फेंक दूंगा फिर तुम्हारी देवी सबके पैरों से पूजी जाती रहेगी। हकीकत ने क्रोध से बोला अनवर अगर यही बात मैं तुम्हारी फातिमा वीवी के लिए कह दूं तो तुम्हे कैसा लगेगा ? इसी बात पर सभी छात्रों में लड़ाई शुरू हो गई सभी मुस्लिम छात्रों ने मिलकर हकीकत पर हमला कर दिया तभी वहां मौलाना आ गया, सभी छात्रों ने कहा कि इसने हमारी "फातिमा वीवी"को गाली दी है। इस पर मौलबी साहब ने हकीकत से छमा मांगने के लिए कहा लेकिन हकीकत राय ने कहा कि हमने कोई गुनाह नहीं किया है तो क्षमा क्यों माँगू-? सभी मुस्लिमों ने हकीकत को पकड़कर "काजी अदिनाबेग"के सामने पेश किया, मौलाना ने समझाया कि इस आपसी झगड़े को अधिक तूल नहीं देना चाहिए  लेकिन कट्टर मुसलमानों ने एक न मानी हकीकत को सजा दिलाने यानी मृत्यु दंड देने की मांग करने लगे ।

सजाए मौत 

 तभी एक मौलबी हकीकत के घर पहुंच गया और सारी घटना की जानकारी दी। हकीकत के माता पिता सभी मदरसे में पहुँच गए उसके अनेक रिस्तेदार भी आ पहुचे तभी अदिनाबेग ने हकीकत राय से कहा कि इसकी सजा केवल मौत है अथवा तुम इस्लाम धर्म काबुल कर लो! हकीकत राय ने कहा मैं जिस धर्म में जन्म लिया हूँ उसी में मरना स्वीकार करूँगा लेकिन इस्लाम धर्म स्वीकार नहीं करूंगा। बात आगे बढ़ते देख हकीकत के माता-पिता ने एक दिन की मोहलत माँगी और  पंजाब के नबाब जकारिया खान के पास गए, रात भर हकीकत राय के माता पिता व अन्य रिस्तेदारों ने हकीकत को समझाने का प्रयास किया कि वह इस्लाम कबूल कर ले जिंदा तो रहेगा ! लेकिन हकीकत ने कहा कि आप लोगों ने ही हमें अपने धर्म की शिक्षा दी है फिर मैं कैसे अपना धर्म छोड़ दूं मैं इस्लाम नहीं कबूल करूँगा। 

धर्म नहीं  छोड़ा मौत स्वीकार किया 

हकीकत ने अपने परिजनों से पूछा कि यदि मैं मुसलमान बन गया तो क्या मेरी मौत नहीं होगी! सभी चौकन्ना रह गए ! किसी के पास कोई उत्तर नहीं था और सनातन धर्म के लिए मौत स्वीकार किया, सन 1734  "बसंत पंचमी"के दिन काजी ने हकीकत राय को पत्थर से मार कर मौत की सजा सुनाई ! हकीकत राय को मदरसे के मैदान में आधा धड़ा जमीन में गाड़ दिया गया और प्रेम- मुहब्बत का धर्म मानाने वाले व शांतिदूत कहे जाने वाले मोमिनों ने पत्थर मारना शुरू कर दिया जब हकीकत राय बेहोस हो गए फिर क्या था उनका गला जल्लाद ने धड़ से अलग कर दिया। पंद्रह वर्ष में वीर हकीकत राय ने धर्म के लिए अपना बलिदान दिया, उनका विवाह वचपन में हो गया था उनकी धर्म पत्नी ने उनकी चिता पर अपना बलिदान दिया और उनके माता पिता को यह सदमा बर्दास्त नहीं हुआ वे दोनों स्वर्ग सिधार गए। बसंत पंचमी के दिन देश के कई स्थानों पर वीर हकीकत राय की याद में मेला लगता है, हकीकत राय तो पंद्रह साल की आयु में चले गए परंतु समग्र हिंदू समाज के लिए वे आज भी जीवंत हैं। हमे लगाता है कि हकीकत राय गुरू पुत्रों की श्रेणी में खड़े होकर हिंदू समाज के लिए प्रेरणास्रोत बन गए। किसी भी धर्म में चाहे ईसाई हो अथवा इस्लाम कोई भी हकीकत राय पैदा नहीं कर सकता यानी न हुआ है न होगा। यह सत्य घटना यह बताती है कि स्वधर्म पालन के लिए स्वराज्य आवश्यक है।


Viewing all articles
Browse latest Browse all 434