जिसका अंतर्मन --- हमारी सनातन वैदिक संस्कृति को, हमारे श्रेष्ठ हिन्दू धर्म को, हमारे स्वर्णिम इतिहास को नष्ट करने के इच्छुक धूर्त लोग, षणयंत्र कारी मिशनरियां सेवा का नाटक कर हमारे नवजवानों को हमारे देश के भोले-भाले गरीब वनवासी, दलित हिन्दुओ का धर्मान्तरण कर रही है, उन्हें ईसाई बनाकर हमारे लोगो को हमारे ही दुश्मन बना रही है, वे हमारे ही देश के हमारे ही पैसे से धर्म भ्रष्ट करना चाहते है तथा अपना वोट बैंक बढाकर हमको एकबार फिर गुलाम बनाकर भारत के टुकडे -टुकडे कर देना चाहते है, हिन्दू धर्मनिरपेक्ष व सहिष्णुता की बाते कर सब सहन कर रहा है और वे लोग इसका दुरुपयोग कर रहे है, अगर हिन्दू ही हिन्दू धर्म की रक्षा नहीं करेगा तो उसको कौन बचाएगा---?
ऐसे जिसका उद्बोधन ही नहीं तो कृत्तित्व --- आज के आधुनिक परिवेश में इस नवजवान के बारे में लिख रहा हूँ जिसने अपना ध्येय ही भारतीय संस्कृति के उद्धार हेतु चुना है, ३ नवम्बर १९८१ को बिहार के वैशाली जिला में पिता जल विद्दुत निगम में उप प्रबंधक श्री चन्द्र भूषण प्रसाद सिंह - माता श्रीमती अमृता चंचला (बिमला) अध्यापिका की पवित्र कोख से जिस पुत्र रत्न की प्राप्त हुई उसका नाम उसके दादा ने बड़े ही प्रेम से सोनू रखा बाद में स्कूल का नाम अमिय भूषण रखा गया, दुसरे भाई का नाम अमिताभ भूषण, कहते है ''होनहार विरवान के होत चीकने पात' की कथा चरितार्थ हुई बालक पढने में बहुत ही मेधावी माता पिता दोनों सरकारी सर्विस में होने के कारन इनका बचपन में इनका लालन पालन और प्राइमरी की शिक्षा दादा और दादी की देख रेख में हुआ दादा, दादी इतना प्रेम करते कोई भी यानी इनके माता- पिता भी इन्हें कुछ कह नहीं सकते थे अपने साथियों में सबसे आगे पढने में मेधावी क्षात्र इनके माता- पिता बगल के शहर मुजफ्फरपुर में रहने के कारन हाईस्कूल तक की शिक्षा मुजफ्फरपुर शहर में आगे की पढाई पटना में हुई इन्होने इंजीनियर होने के बावजूद इतिहास विषय से अच्छे अंको में स्नातकोत्तर की शिक्षा प्राप्त किया, पढने में तो आप अच्छे थे ही साथ-साथ आप बहुत संकोची स्वभाव होने के कारण अमिय जी किसी से बात- चीत नहीं करते थे केवल अध्ययन तो वह भी अध्यात्मिक पुस्तकों की, अमिय जी इतनी कम उम्र में ही पुराणों का गहन अध्ययन किया उपनिषदों पर भी अधिकार की बात कही जाय तो अतिसयोक्ति नहीं होगा, बचपन से ही अध्यात्म की वैष्णव परंपरा में रूचि होने के कारण घर में इनकी जिद से लहसुन, प्याज तक बर्जित है आज भी इनके घर में लहसुन, प्याज का उपयोग नहीं होता सुद्ध वैष्णव जीवन का स्वभाव ही बना लिया लेकिन जब हिन्दू समाज का कार्य हो तो स्वाभाव के बिपरीत सबके साथ भोजन करना उसी बने हुए भोजन में बिकल्प चुनना .
ऐसे जिसका उद्बोधन ही नहीं तो कृत्तित्व --- आज के आधुनिक परिवेश में इस नवजवान के बारे में लिख रहा हूँ जिसने अपना ध्येय ही भारतीय संस्कृति के उद्धार हेतु चुना है, ३ नवम्बर १९८१ को बिहार के वैशाली जिला में पिता जल विद्दुत निगम में उप प्रबंधक श्री चन्द्र भूषण प्रसाद सिंह - माता श्रीमती अमृता चंचला (बिमला) अध्यापिका की पवित्र कोख से जिस पुत्र रत्न की प्राप्त हुई उसका नाम उसके दादा ने बड़े ही प्रेम से सोनू रखा बाद में स्कूल का नाम अमिय भूषण रखा गया, दुसरे भाई का नाम अमिताभ भूषण, कहते है ''होनहार विरवान के होत चीकने पात' की कथा चरितार्थ हुई बालक पढने में बहुत ही मेधावी माता पिता दोनों सरकारी सर्विस में होने के कारन इनका बचपन में इनका लालन पालन और प्राइमरी की शिक्षा दादा और दादी की देख रेख में हुआ दादा, दादी इतना प्रेम करते कोई भी यानी इनके माता- पिता भी इन्हें कुछ कह नहीं सकते थे अपने साथियों में सबसे आगे पढने में मेधावी क्षात्र इनके माता- पिता बगल के शहर मुजफ्फरपुर में रहने के कारन हाईस्कूल तक की शिक्षा मुजफ्फरपुर शहर में आगे की पढाई पटना में हुई इन्होने इंजीनियर होने के बावजूद इतिहास विषय से अच्छे अंको में स्नातकोत्तर की शिक्षा प्राप्त किया, पढने में तो आप अच्छे थे ही साथ-साथ आप बहुत संकोची स्वभाव होने के कारण अमिय जी किसी से बात- चीत नहीं करते थे केवल अध्ययन तो वह भी अध्यात्मिक पुस्तकों की, अमिय जी इतनी कम उम्र में ही पुराणों का गहन अध्ययन किया उपनिषदों पर भी अधिकार की बात कही जाय तो अतिसयोक्ति नहीं होगा, बचपन से ही अध्यात्म की वैष्णव परंपरा में रूचि होने के कारण घर में इनकी जिद से लहसुन, प्याज तक बर्जित है आज भी इनके घर में लहसुन, प्याज का उपयोग नहीं होता सुद्ध वैष्णव जीवन का स्वभाव ही बना लिया लेकिन जब हिन्दू समाज का कार्य हो तो स्वाभाव के बिपरीत सबके साथ भोजन करना उसी बने हुए भोजन में बिकल्प चुनना .
वैसे अमिय जी राजकीय पोलिटेक्निक कालेज में प्राध्यापक है लेकिन चिंतन में विबेकानंद जैसी भावना, मेरा केंद्र मुजफ्फरपुर मधुकर निकेतन, एक दिन शहर में चर्च द्वारा धर्मान्तरण, मेरा उनका कोई परिचय नहीं था किसी से उन्हें पता चला कि मेरे पास यह काम है वे सीधे आकर मुझसे मिले, धर्मान्तरण को लेकर जो पीड़ा मैंने उनके मन में देखी मै उनसे बिना प्रभावित हुए नहीं रह सका मै कुछ कर तो नहीं सका लेकिन हमारा संपर्क और प्रगाढ़ होता गया, अमिय जी अक्सर मुझसे मिलने आते कभी- कभी हिंदुत्व की पीड़ा संघ पर प्रतिक्रिया स्वरुप प्रकट होती मुझे उनकी बात बहुत अच्छी लगती, एक दिन मैंने उन्हें अपने कमरे में बुलाया और पूछा कि आपको संगठन के बारे में कितना जानकारी है वे बोलते गए विहिप, संस्कार भारती, वनवासी कल्याण आश्रम और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् सभी में काम किया, बार- बार अन्यसंगठनों की भी चर्चा करते मै उन्हें देखता रहा उनकी हिंदुत्व और देश की पीड़ा से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था, मैंने बहुत कुछ सोच विचार कर उन्हें अगले दिन बुलाया वे आए मैंने उनसे कहा कि आपको यदि लगता है की संघ के अतिरिक्त कोई संगठन हिन्दू समाज का कल्याण कर सकता है तो बताईये उन्होंने बिना विलम्ब किये तुरंत उत्तर दिया की संघ के अलावा कोई विकल्प नहीं, मैंने देखा की यह कोरा कागज, कोमल ह्रदय, निष्प्रिय, निष्कलंक, उत्कट देश भक्त, मुझे विवेकानंद का ध्यान आने लगा विवेकानंद कहा करते थे की मुझे एक सौ नवजवान चाहिए जिसके चलने से हिंदुत्व चलता हो, हिंदुत्व दीखता हो, लगा की उपनिषद का नचिकेता मेरे सामने बैठा है जिन प्रश्नों को लेकर वह यमराज के पास उपस्थित था आज वही नचिकेता कही मेरे सामने तो नहीं--! मैंने उनसे कहा की आप से मै धर्मजागरण के काम में सहायता चाहता हू लेकिन अभी उत्तर नहीं चाहिए पंद्रह दिन बाद आप मुझसे मिलिए उन्होंने देर नहीं लगायी और एक सप्ताह में अपना निर्णय सकारात्मक सुना दिया और अपने पुण्य के काम में लग गए, काम की गति कैसी है आंधी के सामान किसी भी परिस्थिति में अपने परिचय का उपयोग धर्मजागरण के कार्यकर्ता बनाने में लगा दिया लेकिन इनका स्वभाव दुर्वासा जैसा है एक दिन अप्रत्यासित घटना हुई जिसकी हमने कल्पना भी नहीं की थी वे मुझसे बहुत नाराज हो गए मै समझ नहीं सका, मैंने कोई प्रति उत्तर नहीं दिया लेकिन यह छणिक नाराजगी तो एक तरफ़ा थी मै तो इनसे नाराज हो ही नहीं सकता था देखा की अपने- आप काम की चिंता करने लगे दुर्वासा जैसे तो है लेकिन मन के अन्दर कुछ नहीं रखना और तुरंत शांति हो जाना कही हिंदुत्व का नुकसान न हो जाय यह चिंता बराबर बनी रहना, कुछ महापुरुषों के स्वभाव में रहता ही है ऐसा लक्षण महापुरुषों में पाया जाता है, मैने पढ़ा कुमारिल भट्ट का जीवन, शंकराचार्य के जीवन में भी वही बात रातो-दिन वही वैदिक धर्म के प्रति उत्कट प्रेम काम के प्रति मन में तड़पन उसी प्रकार का जीवन जीने का संकल्प रातो दिन केवल वैदिक धर्म की चिंता पुरे भारत का भ्रमण शास्त्रार्थ अथक परिश्रम बिना रुके चरैवेति-चरैवेति डूबते हुए वैदिक हिन्दू धर्म को बचा ही नहीं लिया तो विश्व में शांति का मार्ग प्रसस्थ किया, आज कौन बचाएगा इस राष्ट्र धर्म वैदिक हिन्दू धर्म को --? का उत्तर देने वाले कुमारिल भट्ट तो आज नहीं है लेकिन उनका प्रतिरूप मेरे सामने खड़ा यह सुन्दर, सुशील, सुकुमार और सुकदेव के समान प्रत्येक प्रश्न का उत्तर देने वाला नवजवान आज यह उत्तर दे रहा है, देने को तैयार है मै रक्षा करुगा इस वैदिक हिन्दू धर्म की.
इनकी इक्षा विबाह न करने की इतना ब्यस्त संगठन के काम में रात-दिन एक-कर देना जैसे हिंदुत्व का सारा दायित्व इन्ही की, हो भी क्यों न -? इश्वर कुछ लोगो को अपने कार्य के लिए भेजता है शायद उसमे इनका नाम भी हो !जिसके स्वाभाव में कभी घर से बाहर नहीं निकलता था--! उसे क्या हो गया ? विद्यार्थी परिषद् का संपर्क आया वह इस प्रकार हो गया जैसे सोना को बहुत दिन से रखा गया हो उसका उपयोग न हुआ हो, धीरे- धीरे सोने में निखार आने लगा बचपन का नाम सोनू सार्थक होने लगा और राष्ट्रबाद के प्रवाह में बहने के लिए मन हिलोरे लेने लगा बहुत सारे संगठनो में काम करने के बावजूद स्वभाव स्वच्छंद होने शंकराचार्य जैसा पथ चयन के कारण विचार से न हटते हुए काम तो करना ही था स्वयं ही एक संगठन अभ्युदय भारती खड़ा कर दिया उसके माध्यम से मिथिला पेंटिंग, स्वस्थ, शिक्षा व नृत्य के माध्यम से सैकड़ो विद्यार्थियों को राष्ट्र की मुख्य धारा में जोड़ने का काम किया, कम आयु में इतना संपर्क पत्रकार, राजनेता, अध्यापक और एक ऐसा वर्ग जो समाज को प्रभावित करता हो वह अमिय जी से न जुड़ा हो यह हो ही नहीं सकता अब इनका क्षेत्र धीरे- धीरे वैशाली, मुजफ्फरपुर से विस्तार होने लगा अब ये धर्मजागरण से जुड़ चुके है.
घर के लोग बड़े ही परेशान है बड़ी संतान होने के कारण विबाह यह सामाजिक बंधन मनुष्य की स्वाभाविक प्रकृति परिवार परंपरा में विबाह आवस्यक है, वर्ष भर बड़ी संख्या में विबाह देखने हेतु समाज के बड़े-बड़े लोग आते क्यों कि अमिय जी का परिवार क्षेत्र में बहुत ही संभ्रांत माना जाता है, लेकिन कभी भी 'वर' देखने वाले को 'वर' नहीं मिलता वह तो हिंदुत्व के काम में ब्यस्त रहता, जो बेतन मिलता उसे गरीब बच्चो की फ़ीस चुकाने में सामाजिक कामो, साधू- संतो की सेवा में लग जाता अपने पास कुछ भी नहीं, गुरु नानक जी के पिता जी ने उन्हें कुछ रूपया दिया जिससे वे अच्छा व्यवसाय करेगे गुरु नानक ने जो भी कमाया उसे गरीबो में दान कर वापस आ गए, अमिय जी का भी वही रास्ता एक हाथ से कमाया दुसरे से अच्छे काम में लगा दिया, अपना कपडा, पेट्रोल तो माता जी है ही पिता जी यदि 'गरम ऊनी सूट' सिलाने वाले है तो वह भागवत कथा में दान जिद पुर्बक देना सूट नहीं बनवाना अपने परिवार के प्रत्येक सदस्य से धार्मिक कार्यो में बिना इक्षा दान दिलाना ऐसा उदहारण तो शायद ही कही मिले, हो सकता है की अमिय जी अपने माता- पिता अथवा परिवार की अपेक्षा पूरी नहीं कर पाए लेकिन हिन्दू समाज और देश की अपेक्षा अवस्य ही पूर्ण करने की क्षमता है, आखिर उनमे यह कौन सा लक्षण है ---? यह गुण साधारण मनुष्य में पाया जाता है क्या --? एक दिन दादी जी से हमारी भेट होती है उन्होंने कहा कि मै बूढी हो चुकी हू चाहती हू कि इसका विबाह हो जाय अपनी आखो से अपनी पतोहू को देख ले किसी ने बताया होगा कि इनकी बात अमिय जी मानेगे इनकी माता जी को भी यही लगता उन्हें यह नहीं मालूम कि ''चढ़े न दूजा रंग'' गाव में भी जब कोई विबाह जाता तो गाव वाले कहते कि लडका तो साधू-संतो के बीच में ही रहता है ऐसी उम्र जब सभी लड़के अपने विबाह की तयारी स्वयं करते इनके स्वभाव में ही नहीं हित -मित्र सभी परेशान.
अमिय जी प्रतिदिन छपरा कालेज जाते दोपहर तक वापस आकर धर्मजागरण के काम से मेरा प्रवास कराते हमारे पास कोई साधन नहीं था इतना ही नहीं मेरा भोजन जैसे इनकी ही जिम्मेदारी बन गयी हो तय करना और लेजाकर भोजन कराना, काम करते- करते भावुक हो जाते, हिन्दू समाज की हालत देख आखो से आसू गिरने लगता मन का भाव आखो से प्रकट होता कैसे बचेगा हिन्दू समाज इसकी चिंता और कुछ नहीं उनकी दशा देख मेरी भी काम करने की गति तेज होती, अब वे पुराणों के अतिरिक्त इतिहास के क्षात्र होने के कारण और विचार के नाते हिंदुत्व, ऐतिहासिक ऐसे सैकणोंपुस्तकों का अध्ययन करना ही नहीं तो उसका अभ्यास भी करना भारत के सभी महापुरुषों की जीवनी मत-पंथ, संप्रदाय कुमारिल भट्ट व शंकराचार्य के जीवन का आधार मानते हुए कैसे रामानुजाचार्य ने कर्मकांड के माध्यम से इस्लामी धर्म भीरूओ से हिन्दू समाज को बचाया रामानंदस्वामी ने कैसे हजारो इस्लाम मतावलंबियो की हिन्दू धर्म में वापसी की शंकरदेव ने कैसे असम को बचाया सम्पूर्ण भारतका इतिहास, संस्कृति और भूगोल का अध्ययन, हिंदुत्व के लिए कैसे उसका उपयोग किया जाय बिना समय गवाए ही केवल चिंता नहीं करना बल्कि रातो-दिन एक कर देना, प्रश्न करते तो नचिकेता जैसे, उत्तर देते हो तो सुकदेव जैसे, बहस हो तो शंकराचार्य जैसे शास्त्रार्थ कर रहे हो, आदर्श दयानद सरस्वती जैसा, ऐसे प्रतिभा के धनी, सुन्दर, सुडौल, स्वस्थ शरीरजैसे विबेकानंद इस उम्र में ऐसे ही दीखते रहे होगे, ईश्वर ने ऐसे ही लोगो को चुना अपने कार्य के लिए ! क्यों की सारे बिधर्मियो को अपने में समाहित करना यानी हिन्दू धर्म में वापसी बस एक ही लक्ष्य.
कल्पक, योजक और प्रवास की अद्भुत क्षमता होने का अनुभव उस समय कराया जब सत्यनारायण धर्मशाला मुजफ्फरपुर में अगस्त २०१० में पुरोहित प्रबोधन संपन्न करा धर्मजागरण को एक नया आयाम दिया और आगे बढे तो बढ़ते गए आप सालभर में ही प्रान्त धर्मजागरण के परियोजना प्रमुख का दायित्व ग्रहण किया, जिन जातियों में धर्म परिवर्तन हुआ, अथवा होने वाला है उसमे काम करना, यदि सभी जातीय अपने समाज को जागृत कर ले तो धर्मान्तरण बंद हो जायेगा ऐसे १३ जातियों में काम शुरू कर दिया, ''धर्मान्तरण ही राष्ट्रान्तरण'' ऐसा विचार उन्हें काम के लिए प्रेरित करता अब वे प्रान्त के सह संयोजक है अमिय जी कहते है की आखिर मठ और मंदिरों पर से सरकारी नियंत्रण हटना ही चाहिए वे धार्मिक न्यास बोर्ड के नकारात्मक रवैयिये के विरोधी भी है उनका कहना है की हिन्दू मंदिरों के चढ़ा हुआ धन हिन्दू धर्म के विकाश में ही खर्च होना चाहिए, चिकित्सालय व अन्य सेवा कार्य सरकार को करना चाहिए, मंदिरों द्वारा हमारी परंपरा के साधू, महात्मावो की सेवा में तथा वैदिक गुरुकुल पुरुहितो का प्रशिक्षण और धर्म परिवर्तन रोकने तथा घर वापसी के कामो में खर्च करना श्रेयस्कर होगा, हिन्दू मंदिरों के आय का धन अन्य बिधर्मी कार्यो में नहीं खर्च होना चाहिए .
कल्पक, योजक और प्रवास की अद्भुत क्षमता होने का अनुभव उस समय कराया जब सत्यनारायण धर्मशाला मुजफ्फरपुर में अगस्त २०१० में पुरोहित प्रबोधन संपन्न करा धर्मजागरण को एक नया आयाम दिया और आगे बढे तो बढ़ते गए आप सालभर में ही प्रान्त धर्मजागरण के परियोजना प्रमुख का दायित्व ग्रहण किया, जिन जातियों में धर्म परिवर्तन हुआ, अथवा होने वाला है उसमे काम करना, यदि सभी जातीय अपने समाज को जागृत कर ले तो धर्मान्तरण बंद हो जायेगा ऐसे १३ जातियों में काम शुरू कर दिया, ''धर्मान्तरण ही राष्ट्रान्तरण'' ऐसा विचार उन्हें काम के लिए प्रेरित करता अब वे प्रान्त के सह संयोजक है अमिय जी कहते है की आखिर मठ और मंदिरों पर से सरकारी नियंत्रण हटना ही चाहिए वे धार्मिक न्यास बोर्ड के नकारात्मक रवैयिये के विरोधी भी है उनका कहना है की हिन्दू मंदिरों के चढ़ा हुआ धन हिन्दू धर्म के विकाश में ही खर्च होना चाहिए, चिकित्सालय व अन्य सेवा कार्य सरकार को करना चाहिए, मंदिरों द्वारा हमारी परंपरा के साधू, महात्मावो की सेवा में तथा वैदिक गुरुकुल पुरुहितो का प्रशिक्षण और धर्म परिवर्तन रोकने तथा घर वापसी के कामो में खर्च करना श्रेयस्कर होगा, हिन्दू मंदिरों के आय का धन अन्य बिधर्मी कार्यो में नहीं खर्च होना चाहिए .
एक दिन अमिताभ भूषण जो दिल्ली में पत्रकार है मेरे पास आया बड़े प्रेम से कहा की मेरा भैया तो प्रत्येक संगठन में केवल छः मास ही काम करता है आपके साथ ये तीसरा साल, अमिय जी मन से निरछल होते हुए भी जल्दी नाराज होना स्वभाव में है लेकिन वे तुरंत दुर्वासा के सामान प्रसंन्द भी हो जाते है कभी-कभी तो मुझे अपमान महसूस होता लेकिन लगता कि मेरा क्या है-? फिर मिलने पर कोई फर्क नहीं एक दिन इनका मित्र अभिजित जी ने भी मुझसे कहा कि इतने मेधावी से काम लेना सबके बस की बात नहीं आप इनका अच्छा उपयोग करेगे, मित्र भी कैसा चयन सभी राष्ट्रबादी और एक धुन के ऐसे प्रतिभा संपन्न सबके-सब, वे अपनी मां से उत्कटप्रेम करने वाले आज्ञाकारी पुत्र भी है और भाई को मित्र से सामान प्रेम करते है.
आखिर वह दिन आया इनकी माता जी ने हमें बुलाया कहा जब अमिय जी घर पर रहे तब आप आइये, एक लड़की का फोटो दिखाया मुझे बहुत अच्छी लगी मैंने अमिय जी को बताया आप जैसा चाहते थे वैसे ही यह लड़की है सभी ने पसंद कर बिबाह तय कर दिया अमिय जी न नुकुर करते आखिर वे यह बिबाह चाहते भी थे अन्दर ही अन्दर मन तो चंचल है ही प्रत्येक इस उम्र में ऐसा होता ही है, उन्हें उसी लड़की से प्रेम हो गया, २४ फरवरी २०१२ को पैत्रिक गावं मागनपुर से बारात मुजफ्फरपुर में आई, श्रेयसी नाम की उसी कन्या से विबाह संस्कार संपन्न हुआ, मैंने इस नाते इसका वर्णन किया क्यों कि आज विबाह के पश्चात् हनीमून मनाने लोग बिभिन्न स्थानों पर जाते है ये भी जा सकते थे ऐसा भी नहीं था की कोई अभाव था जिससे विबाह हुआ वह भी अध्यापिका है आधुनिक युग की लड़की है लेकिन नहीं ऐसा नहीं हुआ, कही हिंदुत्व कार्य में बाधा न आ जाये प्रवास पर प्रवास हरिहरनाथ-मुक्तिनाथ यात्रा जो संगठन की ही योजना का एक अंग थी अथक परिश्रम बिना किसी चिंता किये हुए मेरे याद दिलाने के बावजूद कि अभी-अभी शादी हुई है, लेकिन ये तो निष्काम योगी के समान हरिहरनाथ से मुक्तिनाथ यात्रा जो तिब्बत नेपाल की सीमा पर स्थित है ब्यवस्था देखना सभी की चिंता करना इसे कौन करता --? ये उन्ही के बस की बात थी लगातार कार्यक्रम उनकी पत्नी भी क्या कहती होगी की ये कैसा मुझे पति मिला जिसे मेरा नहीं केवल हिन्दू समाज की चिंता ---वास्तव में वे अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करते है लेकिन उसे प्रकट करना उनके लिए बड़ा ही कठिन रहता है स्वभाव ही कुछ ऐसा है, भाई को तो मित्र जैसा ही मानते है, लेकिन धर्म की भी चिंता है, बार-बार यह तड़पन यह उदहारण देना क्या राणाप्रताप की सहायता करने वाले चित्तौर राज्य से पलायन किये हुए सन्यासी और ब्यापारी- आज इस बर्तमान परिस्थिति में सन्यासी या ब्यापारी यह भूमिका निभा सकते है-? क्या धार्मिक संत महात्मा अपना दायित्व पूरा कर सकते है ? गावं-गावं में बढ़ते हुए चर्च व मस्जिद के देश बिरोधी गति-बिधि धर्मान्तरण से बेफिक्र हिन्दू समाज को कौन जगायेगा --? कभी-कभी वे अकेले में आह भर उठते उनकी आखो में अश्रु धारा बहने लगती इस प्रकार की चिंतन धारा लिए हुए हिन्दू समाज की चुनौतियों को स्वीकार कर आज हिन्दू समाज के कार्य में दृढ नचिकेता के सामान अटल ---इसी प्रकार का ही हो सकता है,
मै सर्वाधिक प्रभावित हुआ --------
धीरे-धीरे अमिय जी के प्रवचन में निखार आने लगा अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित करने लगे यात्रा के चित्रों के संग्रह चित्रांजलि और बृत्त चित्र बनाया था कई स्थानों पर विमोचन का कार्य था पटना में मा. मुकुंद राव, अध्यक्ष गोपाल नारायण सिंह और बिहार सरकार के मंत्री गिरिराज सिंह मुजफ्फरपुर में संस्कृति मंत्री सुनील कुमार (पिंटू)थे कार्यक्रम बड़ा ही प्रभावी था उसमे अमिय जी का भाषण हमें सर्बाधिक प्रभावित किया, यात्रा तो अंतर्राष्ट्रीय थी उसका विमोचन नेपाल के उपराष्ट्रपति भवन में था जब विमोचन कार्यक्रम में अमिय जी का भाषण शुरू हुआ तो उपराष्ट्रपति परमानन्द झा ने मुझसे पूछा इस लड़के का नाम क्या है -? मैंने बताया उन्होंने अपने भाषण में पाच बार इनका नाम लेकर कई उदहारण दिया आगे बीरगंज के कार्यक्रम में तो इन्होने अपनी पतिभा का अनुपम अदाहरण प्रस्तुत किया नेपाल और भारत को धर्म ही जोड़ सकता है इतना उच्च स्तरीय बक्तब्य था कि सभी को लगा की यह बालक कोई सामान्य नहीं है कई पूर्व मंत्री भारतीय दूतावास के अधिकारी, बड़े उद्दोगपति सभी का मन मोह लिया --किसी को यह अतिशयोक्ति लग सकता है, लेकिन मेरा ब्यक्तिगत अनुभव है मै उनके अधितम नजदीक महसूस करता हूँ, शायद ही कोई उनकी भावनाओ को मुझसे अधिक समझ पाता होगा--! उनके भाषण के कुछ अंश इस प्रकार है दुर्गा पूजा समिति में बोलते हुए कहा की ''हम एक हज़ार साल बाद आजाद होकर यह उत्सव मना रहे है अगर आज नहीं वैभव का प्रदर्शन नहीं करेगे तो कब करेगे,'' वे बोलते गए वह १३ वर्ष का बालक चलता तो हजारो लोग हाथी, घोडा के साथ हो लेते ऐसा क्या था उनमे जिससे सभी परास्त हो जाते---? वह था वैदिक मीमांशा जिसका आधार कुमारिल भट्ट ने तैयार किया आचार्य शंकर ने तर्क द्वारा सबको वैदिक धर्म में संस्कारितकर लिया, जब किसी हिन्दू का धर्मान्तरण सुनते तो उनकी आत्मा तड़प कर बिचलित हो जाती है, आज के युग में ऐसा ब्यक्ति मिलना -----? ''जिसका मिशन ही धर्म, समाज और राष्ट्र''-! जिस भारत माता के ऐसे मेधावी उत्कट राष्ट्रभक्त सुपुत्रों की हजारो में श्रृंखला हो वहां निराशा का कोई कारण नहीं, अतीत के सामान अंतिम विजय का आकांक्षी यह स्वप्न द्रष्टा.