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Channel: दीर्घतमा
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आखिर पश्चिम के वैज्ञानिक सत्रहवीं शताब्दी में ही क्यों पैदा हुए ?

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 पंडित श्यामजी कृष्ण वर्मा 

पंडित श्यामजी कृष्ण वर्मा आर्य समाज के संस्थापक ऋषि दयानन्द सरस्वती के प्रथम शिष्य थे यानी लोकमान्य तिलक, लाला लाजपत राय उनसे जूनियर थे। श्यामजी कृष्णा वर्मा इंग्लैंण्ड में रहकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए क्रांतिकारियों की नर्सरी चलाते थे उस नर्सरी का नाम था "इंडिया हॉउस"उसके उपज के रूप में विनायक दामोदर सावरकर, मदनलाल ढींगरा जैसे क्रन्तिकारी थे जो सशस्त्र स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व कर रहे थे । 1960-61 में जर्मनी में ब्रिटिश द्वारा प्रायोजित मृत भाषा संस्कृत नाम से सेमिनार क आयोजन किया गया जिसमे पंडित श्याम जी कृष्ण वर्मा ने भाग लिया उन्होंने तीन दिनों के इस सेमिनार में "अष्टाध्याई"को आधार मानकर विश्व की सबसे वैज्ञानिक भाषासिद्ध कर दिया। सारा विश्व आश्चर्यचकित था जब श्यामजी ने वेदो की वैज्ञानिकता की ओर ध्यान आकर्षित किया तो सभी देखते ही रह गए। 

ब्यापारी वेश में अंग्रेज 

सोलहवीं शताब्दी मे जब अंग्रेज यहाँ व्यापारी बनकर आये तो उन्होंने भारत का अध्ययन किया उसमे उन्होंने भारत के विज्ञानं, प्रगति, साहित्य ऋषि, मुनियों के बारे मे अध्ययन किया उन्हें ध्यान में आया कि बायबिल और कुरान अवैज्ञानिक ग्रन्थ है जबकि भारतीय धर्मग्रन्थ वैज्ञानिक है। इतना ही नहीं उन्हें ध्यान में आया कि महाभारत के युद्ध में अग्नि वाण, जल वाण, मोहिनी वाण व अन्य प्रकार के अस्त्र हुआ करते थे यहाँ तक कि रामायण में तीन प्रकार के विमानों का वर्णन है। पश्चिम के लोगों ने शोध करके आज बड़े बड़े वैज्ञानिक वने हुए है आखिर इनकी वैज्ञानिकता इससे पहले क्यों नहीं दिखाई देती ? 

आइंस्टीन, न्यूटन, रदरफोर्ड, ग्राहम बेल, टेस्ला, डाल्टन, गैलीलियो, नील्स बोर, एडिसन, डार्विन, एनरिको फर्मी समेत तमाम वैज्ञानिकों की सारी खोज 17 वी शताब्दी से शुरू हुई ।

15वी शताब्दी तक जाहिलो की तरह दुनिया में मार..काट करते थे।

16वी शताब्दी में ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में प्रवेश किया।

भारतीय ग्रंथो को अंग्रेजों ने पढ़ना शुरू किया

मैकाले एक तरफ गुरुकुल शिक्षा और शोध संस्थानों को उन्नति के रास्ते पर बाधक बोल बंद कराता रहा, दूसरी तरफ गोरों को संस्कृत पढ़ाया गया । गीता से लेकर उपनिषद तक का अनुवाद अंग्रेजो, फ्रेंच, जर्मनी द्वारा करवाया गया। पश्चिम देशों के विश्व विद्यालयों में संस्कृत केंद्र खोले गए। वहीं से वैज्ञानिक खोज की भरमार हो गई। हर वैज्ञानिक ने किसी न किसी भारतीय पुस्तक या ऋषि के खोज का अनुसरण किया।

भारतीय अंग्रेजी व उनकी संस्कृत में मस्त होकर अपनी भाषा और ऋषियों का मजाक बनाते रहे और पश्चिमी देशों ने भारतीय शास्त्रों से बहुमूल्य रत्न निकाले रहे और हमने शास्त्रों को पढ़ने वालों को जाहिल गंवार घोषित किया। और अपना ही मजाक उड़ाते रहे आज भी हम अपने ग्रंथों पर धयान न देकर पश्चिम की ओर देखने की आदत सी बना ली है।

भारतीय वैज्ञानिकों को आधार बनाया 

बाधायन, आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त, भास्कराचार्य,कणाद, वहारमिहिर, नागार्जुन, सुश्रुत, चरक,पतंजलि के शोध को अपना आधार बनाकर अंग्रेज वैज्ञानिक, डॉक्टर, सर्जन बन गए।

हमने से कितने लोगों को अपने वैज्ञानिकों के बारे में जानकारी हैं ?

ईसा से 600 साल पहले आचार्य कणाद ने परमाणु संरचना का आधार रखा, अणु की खोज की। 

डाल्टन ने परमाणु सिद्धांत प्रस्तुत किया और कहा कि मैंने भारतीय ग्रंथों को पढ़कर इसे बनाया ।

भारत फिर से खड़ा होगा आज सारा विश्व भारत की ओर देख रहा है विश्व के अधिकांश वैज्ञानिक भारतीय है बस इतना करना होगा कि अपने अंदर से हीन भावना को त्यागना होगा और बामपंथी मानसिकता को निकाल फेकाना होगा। भारत के दो शत्रु है एक कांग्रेस जिसकी स्थापना देश को गुलाम बनाये रखने के लिए हुई थी। दुर्भाग्य तो देखिये स्वतंत्र भारत का प्रथम प्रधानमंत्री बिना किसी चुनाव के अंग्रेजो की योजना से  बनाया गया जिसे भारतीय राष्ट्र व भारत के बारे में कोई जानकारी नहीं थी एक प्रकार से वह राष्ट्र द्रोही था। इतना ही नहीं भारतीयों ने उसे उस पार्टी को पचासों वर्षो तक देश सौपे रखा और वे देश को बर्बाद करते रहे।


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