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महाराणा राजसिंह मुगलों को मात पर मात देते रहे----------------!

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       महाराणा राजसिंह हिन्दू कुल गौरव हिन्दू धर्म रक्षक थे दक्षिण क्षत्रपति शिवाजी तो उत्तर मे महाराणा राजसिंह थे, इनका जन्म 24 सितंबर 1629 मे महाराणा जगत सिंह माता महारानी मेड्तड़िजी थी, मात्र 23 वर्ष की आयु 1652-53 ईसवी मे उनका राज्यारोहण हुआ वे धर्माभिमानी थे जब औरंगजेब ने कट्टरता की सीमा पार कर हिन्दू मंदिरों को तोड़वाने लगा बलात जज़िया कर लगाने लगा उस समय महाराणा ने मथुरा श्रीनाथ जी की रक्षा कैसे हो पूरे भारतवर्ष मे औरंगजेब की डर के कारण कोई जगह नहीं दे रहा था महाराणा ने अपने राज्य मे श्रीनाथ द्वारा मंदिर बनवाया और औरंगजेब की चुनौती स्वीकार की, आज भी नाथद्वारा दर्शन हेतु सम्पूर्ण विश्व का हिन्दू जाता है, कहते हैं महाराणा राजसिंह महाराणा जैसे ही थे वे महाराणा प्रताप जैसे संगठक भी और योद्धा भी जिन्होने बार-बार मुगल सत्ता को पराजित किया ।
        ''हल्दी घाटी के युद्ध के पश्चात अकबर की हिम्मत नहीं पड़ी की वह मेवाण पर आक्रमण कर सके, अकबर के बाद जहाँगीर दिल्ली के सिंहासन पर बैठा चार साल बाद उसने मेवाण पर हमला किया आक्रमण का समाचार मिलने के पश्चात भी राणा महल मे मस्त पड़ा रहा अंत मे रालमबरा के सरदार ने महलो मे प्रबेश कर महाराणा को बाहर निकाला और युद्ध क्षेत्र मे ले गया इस लड़ाई मे सरदार कहण सिंह ने मुस्लिम सेना को पराजित कर दिया, एक वर्ष पश्चात विशाल सेना लेकर अपने सेनापति के नेतृत्व मे मेवाण पर आक्रमण किया महाराणा ने उसे पराजित कर अपने राज्य मिला लिया बार-बार पराजय के पश्चात राणा अमर सिंह ने चित्तौण को जीत लिया और अपने राज्य मे मिला लिया इससे हिन्दू समाज को कितनी खुशी हुई होगी की हम इसकी कल्पना कर सकते हैं, महाराणा अमर सिंह ने जहगीर को सत्रह बार पराजित किया''।   
        शाहजहाँ के अंत समय मे दिल्ली मे सत्ता संघर्ष के समय महाराणा राजसिंह ने औरंगजेब की कोई सहायता नहीं की जबकि औरंगजेब ने महाराणा से सहायता मांगी थी, उसी समय महाराणा ने रामपुरा क्षेत्र को अपने अधिकार मे ले लिया, औरंगजेब मुगल सुल्तान बन गया परंतु राजसिंह के कृत्य पर ध्यान नहीं दिया, जयपुर के राजा जयसिंह और जोधपुर के राजा जसवंत सिंह के देहावसान होने के पश्चात औरंगजेब निश्चिंत होकर हिंदुओं पर जज़िया कर लगा दिया महाराणा राजसिंह ने इसका बिरोध किया, औरंगजेब जोधपुर पर हमला के दौरान रूपगढ़ की राजकुमारी जजल कुमारी का डोला उठवाने हेतु पाँच हज़ार की लस्कर लेकर भेजा उस राजकुमारी ने बुद्धिमत्ता पूर्वक महाराणा को याद किया, महाराणा ने एक बड़ी फौज लेकार उस राजकुमारी की रक्षा की औरंगजेब की सारी फौज मारी गयी, जोधपुर के अल्प बयस्क राजा अजीत सिंह को औरंगजेब गिरफ्तार करना चाहा महाराणा ने उसकी रक्षा की वहाँ भी उसे मुहकी खानी पड़ी इन सब घटनाओं से औरंगजेब चिढ़ा हुआ था, उसने काबुल बंगाल इत्यादि स्थानो से अपनी सारी फौज मगाली और मुगल सारी शक्ति लगाकर मेवाण पर आक्रमण किया औरंगजेब चित्तौण, मदलगढ़, मंदसौर आदि दुर्गो को जीतता हुआ आगे बढ़ता चला गया किसी ने उसका बिरोध नहीं किया और विजय के आनंद मे उत्सव मानता हुआ राजस्थान के दक्षिणी -पश्चिमी पहाड़ियों तक पहुच गया वहाँ राणा राजासिंह उसके प्रतिरोध हेतु प्रस्तुत था।
       शाहजादा अकबर 50000 की सेना लेकर उदयपुर जा पहुचा किसी ने उसे भी नहीं रोका वह निश्चिंत होकर बैठ गया तो महाराणा राजसिंह ने अचानक आक्रमण करके उसके सारे सैनिको को तलवार के घाट उतार दिया और अकबर को बंदी बना लिया शांति -संधि के पश्चात उसे छोड़ा गया, मुगल सेना के दूसरे भाग मे दिलवर खाँ सेनापति के नेतृत्व मे मारवाड़ की ओर से मेवाण पर हमला किया इसको राणा के सरदारों विक्रम सिंह सोलंकी और गोपीनाथ राठौर ने पराजित कर दिया, उनका सारा साजो सामान, हथियार और गोला, बारूद छीन कर वापस भगा दिया, उधर राणा राजसिंह ने औरंगजेब पर आक्रमण कर दिया वह दिवारी के पास छावनी लगाए बैठा था, अचानक आक्रमण कर औरंगजेब को भी महाराणा ने पराजित कर दिया, उसे भी अपना सारा गोला बारूद हथियार शस्त्र, अस्त्र छोडकर भागना पड़ा, बाद मे महाराणा ने चित्तौड़ पर आक्रमण कर मुगल सेना को भगा दिया और क्षेत्र जो औरंगजेब ने जीता था उसे भी जीतकर पुनः अधिकार कर लिया, राजकुमार भीम सिंह विजय की ध्वजा को लहराता हुआ सूरत तक पाहुच गया इसी प्रकार मालवा को विजय करता हुआ नर्मदा और बेतवा तक चला गया मांडव, उज्जैन और चँदेरी तक भगवा झण्डा मेवाण ने फ़ाहराया। सूरत से हट कर राजकुमार भीम सिंह ने साहजादा अकबर और सेनापति तहवर खाँ को कई जगहों पर हराया, शाहजादा अकबर औरंगजेब से नाराज होकर क्षत्रपति संभाजी की शरण मे चला गया, अंत मे औरंगजेब हार मानकर महाराणा से शांति -संधि कर वापस दिली चला गया।
       यह समय ऐसा था जब महाराणा राजसिंह ने पूरे राजपूताना को संगठित कर (मुगल) इस्लामिक सत्ता को पराजित किया, इस्लामिक सत्ता को बार-बार पराजित होना पड़ा और भारत वर्ष मे उसके पराजय का युग यहीं से प्रारम्भ हुआ, महाराणा राजसिंह 1652 से 1680 ईसवी तक शासन किया उस समय मेवाण की शासन ब्यवस्था को चुस्त दुरुस्त किया अपनी सीमा को सुरक्षित रखने हेतु किलों का निर्माण कराया, एक लाख की नियमित सेना रखने का अभ्यास किया जो रथ, हाथी के अतिरिक्त थी उन्होने बाप्पा रावल और महाराणा प्रताप की परंपरा को कायम रखी ।                

भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने की साजिश ---------------------!

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           कभी भारत आर्यावर्त कभी हिन्दुस्थान कभी जम्बूद्वीप तो कभी मोगलिस्तान कभी इंडिया आज भारत वर्ष के नाते हम जानते हैं क्या भारत- भारत बना रहेगा जब देश का बिभाजन हुआ था उस समय भारत में मुसलमानों की जनसँख्या तीन करोड़ थी पाकिस्तान में हिन्दुओं की संख्या (एक+डेढ़ ) थी आज पाकिस्तान में हिन्दुओं की संख्या दस लाख से अधिक नहीं बंगलादेश में पचास लाख से अधिक नहीं जहाँ भारत में मुसलमानों की संख्या बढ़कर (१३ करोड़ +घुसपैठी ३ करोड़) १६ करोड़ हो गयी वहीँ पाकिस्तान और बंगलादेश में हिन्दू जनसँख्या कम क्यों हो गयी यह विचारणीय विषय है ? यहाँ के मुसलमान इस्लामिक वर्ड के इशारे पर भारत की पहचान समाप्त करना चाहते हैं.
          मुसलमानों का मनोबल कैसा बढ़ा हुआ है इसकी कल्पना हम कर सकते है जिन गावों में मुसलमान अधिक है वहां कथा, भगवत, शंख और घंटा -घरयारी नहीं बज सकती, आज के २० साल पहले गावों में मुसलमान पंडित जी पांव छुइ -बाबू जयराम करता था क्योकि यह भारतीय परंपरा है उसे स्वीकार करता था लेकिन आज यह विचार करने की आवस्यकता है की आखिर आज मुसलमान भारतीय परंपरा से केवल काट ही नहीं रहा बल्कि उसका बिरोध कर रहा है जैसे वह पुनः भारत पर शासन करने की स्थित में हो खुले आम हिन्दुओ लड़कियों का अपहरण (लव-जेहाद) हो रहा है प्रति दिन कही न कहीं यह घटना हो रहे है अब धीरे-धीरे आवाज उठनी शुरू हो गयी है ये क्यों और कैसे हो रहा है ? जब हम विचार करते है तो दिखाई पड़ता है की देश बिभाजन के समय मदरसों की संख्या केवल ५८ थी जो आज बढ़कर ३५ हज़ार हो गयी है उन मदरसों का प्रोडक्ट लम्बा कुरता अधकटा पैजामा, इस्लामिक दाढ़ी, बधना दिखाई देता है इनकी शिक्षा कही परिणाम है की वे भारतीय महापुरुषों से घृणा फैलाना, भारतीय परंपरा का बिरोध कराना, गाव-गाव में इस्लामिक झंडों की बाढ़ आ जाना जैसे हम किसी इस्लामिक देश में हों, आज के बीस -पचीस साल पहले मस्जिदों पर ध्वनि विस्तारक यंत्र नहीं दिखाई देता था लेकिन अब अल्लाह को बिना ध्वनि विस्तारक के सुनाई ही नहीं देता बिना किसी अनुमति के हिंदुओं के पूजा-पाठ और बच्चों की पढ़ाई मे ब्यवधान उत्पन्न करने कमजोर तबके से विवाद खड़ा करना इंका मनोबल सेकुलर नेता बढ़ा रहे हैं जो इनके लिए ही हानिकारक सिद्ध होगा।   
          सेकुलर नेता कहते हैं मुसलमानों की अशिक्षा ही इसका कारण है लेकिन ब्यवहार मे दिखाई देता है कि पढ़ा-लिखा मुस्लिम ही समाज और देश के लिए जादे घातक है क्योंकि अमेरिका का ट्विन टावर हो अथवा भारत मे लोकतन्त्र का मंदिर या ताज होटल ये सभी आतंकवादी इंजीनियर, प्रोफेसर और वैज्ञानिक थे कोई अनपढ़, गँवार नहीं था इस कारण मुसलमानों का पढ़ना -लिखना भी समाज के लिए ठीक नहीं, शिक्षित मुसलमान भारत के लिए सबसे खतरनाक है, मुस्लिम वर्ड मखतब- मदरसों के माध्यम से धर्म के नाम पर भारतीय पहचान को समाप्त करना चाहता है, प्रत्येक सैनिक अड्डे, एयरपोर्ट, हास्पिटल, प्रमुख रेलवे स्टेशन, फोरलेन सड़क और प्रमुख सरकारी आफ़िसों के आस-पास मजार बनाना एक मुल्ला बैठाना जिसका पाकिस्तान खुफिया एजेंसी ''आईएसआई''से संबंध रहता है, यह प्रदर्शन जैसे यह हिन्दुओ का देश नहीं कोई इस्लामिक स्टेट हो, किसी भी तरफ निकलिए बड़ी-बड़ी मस्जिदे जिंसका स्वरूप इराक, ईरान, सौदिया अथवा अन्य किसी इस्लामिक देश जैसा ही रहता है ऐसा नहीं कि भारत के मस्जिदों का स्वरूप कोई भारतीय हो प्रत्येक मुसलमान यह दिखने का प्रयत्न करता है कि वह भारतीय न होकर किसी इस्लामिक देश का हो उसके पहनावा, रहन-सहन खान-पान कुछ भी भारतीय नहीं । 
           चाहे ईद हो अथवा कोई और त्यवहार भाला-काता और अग्नेय अस्त्रों, हथियारों का प्रदर्शन सड़क जाम करना अराजकता फैलाना, अनायास हिन्दू समाज पर हमला करना, मंदिरो के मूर्तियों को निशाना बनाना, मुल्ला-मौलवी तकरीर मे पृथ्बिराज चौहान, महाराणा प्रताप और क्षत्रपति शिवाजी जैसे राष्ट्र नायकों को गली देना और यह बताने का प्रयत्न करना कि हम गोरी, बाबर की संताने हैं हमारी रंगो मे जिस कौम ने हज़ार वर्ष शासन किया है उसका रक्त बह रहा है हमे पुनः भारत का इस्लामी कारण करना है यानी पुनः भारत को इस्लामी राज्य बनाना है।           
          विदेशी ताकते भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाना चाहते हैं उसकी एक कड़ी ''लव जेहाद''है ''मखतब -मदरसे''उसके केंद्र हैं, इसपर इस्लामिक देशों से करोणों-अरबों डालर आ रहा है यदि भारत सतर्क नहीं हुआ तो वह दिन दूर नहीं जब हिन्दू फिर से गुलामी की जंजीरों मे होगा, वे हिंदुओं की कोख के द्वारा ही हिंदुओं को पराजित करना चाहते हैं ! 

पित्र पक्ष केवल अपने लिए अथवा अपने पूर्वजों की संतानो के लिए भी-----------!

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         अभी पित्र पक्ष का महिना शुरू हो गया है लाखों हिन्दू धर्मावलंबी अपने पूर्वजों के तर्पण हेतु ''गयातीर्थ''मे आते हैं कहते हैं की भगवान श्रीराम भी यहाँ आए थे विश्व मे जहां भी हिन्दू रहता है वह चाहता है की एक बार गया जाकर अपने पूर्बजों का श्रद्ध कर्म करे ताकि उसके पूर्वज को स्वर्ग मे स्थान मिल सके, गया वह स्थान है जहां भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था यहीं कहते हैं कि 'गयासुर'को भगवान अपने पैर के तले दबाकर रखा हुआ है, यह वही स्थान है जहां भगवान विष्णु ने बामन स्वरूप धारण कर पृथ्बी ढाई कदम मे ही नाप दिया था उनका एक पैर यही पड़ा था ''विष्णुपाद''मंदिर उसका प्रमाण है। 
       पित्रपक्ष के महत्व के बारे में मै एक सत्य कथा का वर्णन करता हूँ हम सभी ने हनुमान प्रसाद पोद्दार का नाम सुना ही होगा वे मुंबई मे एक किसी शेठ के यहाँ नौकरी करते थे, प्रतिदिन शायं वे समुद्र के किनारे चौपाटी घूमने जाया करते थे एक दिन उन्हे एक छाया दिखाई दी उसका आकार मनुष्य जैसा था बिना परवाह किए ये चलते रहे वापस अपने आवास पर आ गए, वे बराबर चौपाटी जाते उन्हे कभी-कभी वह आकृति दिखाई देती कुछ दिन बाद वह लगातार उनका पीछा करने लगी पोद्दार जी बड़े धार्मिक विचार के थे उन्हें किसी प्रकार का भय नहीं लगता था एक दिन उन्होने उस छाया से पूछा कि मुझसे क्या चाहती है ? उसने बड़ी विनम्रता अपनी भाषा में बोला की मै ईसाई हूँ मेरी आत्मा बहुत कष्ट पा रही है मुझे सुद्ध पानी पीने को नहीं मिलता गंदे स्थान पर रहना पड़ता है जब पोद्दार जी ने कारन पूछा तो उसने बताया की जिनका दाह संस्कार नहीं होता, श्राद्ध कर्म नहीं होता, जिनको मिटटी में दफ़न कर दिया जाता है, उन्हें मुक्ति नहीं मिलती वह सभी प्रेतात्मा हो जाता है, उन्हें बडा ही दुःख भोगना पड़ता है, उसने बताया की जितने लोग चाहे इस्लाम अथवा ईसाई धर्म मानने वाले हों उन्हें कब्र में मुक्ति नहीं, बल्कि सभी प्रेतआत्मा हो जाती है, हनुमान प्रसाद पोद्दार ने उस पर दयाकर पूछा कि मै क्या कर सकता हूँ ? उस आत्मा ने कहा आपकी आत्मा बड़ी पवित्र है आप मेरा उद्धार कर सकते हैं उसने बताया कि मेरी कब्र मुंबई के इस कब्रिस्तान में है यदि मेरी हड्डी गंगाजी में चली जाय तो मुझे मुक्ति मिल जाएगी, पोद्दार जी ने उसके कब्रिस्तान से उसकी हड्डी निकल प्रयाग गंगा जी में तर्पण किया उस दिन से वह आत्मा उन्हें नहीं मिली मतलब उसे मुक्ति मिल गयी। 
         हनुमान प्रसाद पोद्दार को इससे प्रेरणा प्राप्त हुई उन्होंने गोरखपुर में गीता प्रेस खोलकर हिन्दू धर्म के आध्यात्मिक प्रचार में अपना जीवन लगा दिया, मै अपने हिन्दू समाज के बंधुओं से यह कहना चाहता हूँ कि भारत में जो भी ईसाई और इस्लाम धर्म को मानने वाले हैं उन सभी के पूर्वज हिन्दू ही थे वे कब्रिस्तान में प्रेतात्मा बन कष्ट पा रहे हैं यदि हम हिन्दू समाज अपने बंद दरवाजे खोलकर उन्हें अपने घर पुनः वापस ले आएं यानी पुनः हिन्दू धर्म में ले आएं तो उन्हें ही नहीं उनके पूर्बजों को भी मुक्ति मिल जाएगी, इस कारन मानवता पर दयाकर, उन्हे अपनाकर सभी को उनके पूर्बजों के धर्म (हिन्दू धर्म) में वापसी कर पुण्य के भागी बने, यदि हिन्दू समाज इसके लिए आवाहन करता है तो केवल विधर्मियों का ही नहीं, हिन्दू धर्म का ही नहीं बल्कि भारत पुनः परम वैभव को प्राप्त होगा, क्योकि भारतीय धर्म ही भारतीय राष्ट्र का प्राण है।         
                      आइये हम धर्म जगाएं-------------------------------------!

धर्मान्तरण और लव जेहाद ने पूरे बिहार को तबाह कर दिया है --------------------!

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        पूरा बिहार इस्लाम और ईसाईयों के लिए चारागाह बन गया है जहाँ ईसाई मिशनरियां प्रत्येक पंचायत में विद्यालय के नाम पर चर्च के लिए जमीन खरीद रही हैं वहीँ मुसलमान बलात धर्मान्तरण और लव जेहाद में लगा हुआ है हिन्दू समाज किंकर्तब्य बिमूढ़ सा बन गया है सेकुलर नेता इसको जायज ठहरा रहे हैं लेकिन वे यह नहीं समझ प् रहे हैं की जब हिन्दू अपने पर उत्तर आएगा तो कोई भी ताकत उन्हें रोक नहीं सकती, जब हिन्दू मारना शुरू करता है तो फिर मुसलमानों की बहादुरी समाप्त हो जाती है, वैसे पूरी दुनिया इस कौम को आतंकवादी घोषित हो चुकी है, भारत में यदि यही हाल रहा तो यहाँ भी जल्द ही इन्हे गाव-गाव से हिन्दू समाज खदेड़ना शुरू कर देगा, कोई भी सरकार इन्हे बचा नहीं सकती न कोई सेकुलर नेता ही दिखाई देगा बीजेपी में भी जो सेकुलर नेता है जनता उन्हें दौड़ा-दौड़ा कर मारेगी। 
         इस्लाम काबुल न करने पर महिला का उत्पीड़न किया जा रहा है सितमढ़ी सीतामढ़ी जिले मे एक दलित महिला ने अपने पति पर जबरन धर्म परिवर्तन की कोशिस का आरोप लगाया है, पूपरी थाना के पुलिस अधिकारी ने एक अखबार को बताया की यशोदा नाम की दलित महिला ने बताया की उसके पति ने जबर्दस्ती धर्म बदलने का प्रयास किया उसका कहना था की उसका पति ब्मुसकिल 200 रु कमाता था एक दिन उसके हाथ मे 20000रु देखे कहाँ से ये रुपये आए यशोदा ने बताया की ये रुपये जरूर किसी ने धर्म परिवर्तन हेतु दिये तभी तो रामकिशोर अचानक अब्दुल्ला बन गया और उसकी वेश-भूषा बादल गया और यशोदा पर धर्म परिवर्तन के लिए दबाव बनाने लगा। 
            धर्मांतरण के इस तूफान मे केवल अब्दुल्लाह ही नहीं है इसी गाव का शिवानंद अब सैफ बन गया है दस वर्ष पूरब लव जेहाद मे फंस कर एक मुस्लिम लड़की से शादी इस सरट पर की वह इस्लाम काबुल करे, इस प्रकार की घटना यहाँ एक दर्जन से भी अधिक है, पिछले महीने अगस्त मे एक ही जाती की आधा दर्जन लड़कियां लव जेहाद की शिकार हुई, मुजफ्फरपुर मे पिछले छह माह मे आधा दर्जन हिन्दू लड़किया का शिकार हो चुका है, प्रतिदिन धरना-प्रदर्शन हो रहा है प्रशासनिक अधिकारी सेकुलर सरकार के इशारे पर मामला दबाने मे लगी है लेकिन जब बिस्फोट होगा तो कौन बचाएगा ? सेकुलर नेता वे किसी भी पार्टी के हों मुसलमानों को बढ़ावा दे रहे हैं लेकिन ये न तो मुसलमानों के हित मे है न ही बिहार के हित मे क्यों की जब हिन्दू जगेगा तब मुसलमानों की कोई भी सुरक्षा नहीं कर पाएगा।
          ब्यभिचारियों का धर्म जो भारतीयता से मेल नहीं खाता ---------------!
१-इस्लाम में तिलक, चन्दन लगाना हराम है लेकिन हिन्दू लव जेहाद हेतु टिका,चन्दन लगा महिला कालेजों का चक्कर लगते हैं और इस्लाम इसे जायज ठहराता है क्यों की गैर मुस्लिम लड़की से बिबाह करने से जन्नत मिलती है । 
२- हाथ में कलावा बांधना हराम है लेकिन हिन्दू लड़की फ़साने के लिए जायज है। 
३- सुना है इस्लाम में शराब हराम है लेकिन लव जेहाद में लगे लोग शराब, ड्रग्स सभी का धंधा कर इसका प्रयोग कर रहे हैं सब जायज है । 
४- वास्तविकता यह है की इस्लाम में कुछ हराम नहीं जो हिन्दुओ को धोखा देने में सहायक हो सब जायज है दूसरे की बहन-बेटियों की इज्जत लेना ही जन्नत है। 
५- इस्लाम के लिए कुछ भी कर गुजरना ISIS हो अथवा हिज्बुल मुजाहिदीन अथवा कोई और आतंकी संगठन भारत के बिरोध में उसमे भर्ती होन। 
6-लखनऊ मे एक मुस्लिम बुड्ढे ने अपनी लड़की समान बहू के साथ बलात्कार किया सभी मुल्ले अब उसे बुड्ढे की पत्नी और पति को बेटा बनाने पर तुले हैं क्योकि मुहम्मद ने भी अपने बेटे की पत्नी के साथ निकाह किया था, मुजफ्फरपुर जिले के एक गाव से सात वर्ष की कन्या का अपहरण किया कुछ पता नहीं चला इस्लाम मे यह भी जायज है क्यों की मुहम्मद साहब ने सात वर्ष की आयसा से बिवाह किया था जो-जो मुहम्मद ने किया वह सब जायज है ! जो भारतीय संस्कृति से बिलकुल मेल नहीं खाता सब ब्यभिचार ही इस्लाम मे सिष्टाचार है।
         पिछले दिनों लव जेहाद, मुस्लिम आतंकवाद की घटनाएँ हो रही हैं क्या कोई इमाम, उर्दू मीडिया कुछ बोल अथवा लिख रहा है नहीं ? सभी उर्दू अखबार लव जेहाद, इस्लामिक आतंक का किसी न किसी प्रकार समर्थन करते दिखाई दे रहे हैं, 'आईएसआईएस'के आतंकवादी सैकड़ों लड़कियों को सेक्स के लिए गुलाम बनकर रखे हुए हैं क्या किसी मुल्ला मौलवी अथवा उर्दू अखबार ने उसकी आलोचना की --! इस कारण इस्लाम के कर्म अथवा ब्यवहार भारतीय संस्कृति के अनुकूल नहीं बैठता। 
           ''अमेरिका जिए हज़ारों साल''यदि अमेरिका नहीं होता तो स सारे विश्व के मुसलमान भारत को तबाह करते और आज भारत नहीं होता कोई टुकड़ों में बटा हुआ इस्लामिक देश होता।      

तसलीमा नसरीन के स्थायी वीसा के विचार पर इतना हाय-तोबा क्यों-----?

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      तसलीमा नसरीन के आवासीय वीजा पर ------------
      सेकुलर नेता उर्दू मीडिया हाय -तोबा मचाए हुए है ऐसा क्यों क्या यह देश इस्लामिक देश है ? उर्दू टाइम्स ने कहा है की जस्टिस काटजू के घृणित चेहरे का नकाब हट गया है, काटजू ने कहा था की तसलीमा नसरीन को भारत मे स्थायी वीसा देकर रहने की अनुमति देनी चाहिए, जब तसलीमा नसरीन गृहमंत्री श्री राजनाथ सिंह से मिली तो उन्होने स्थायी वीसा देने के लिए विचार से अवगत कराया, वह चाहे जब-तक भारत मे रह सकेगी फिर क्या था इस्लामिक मीडिया ने तो हाय-तोबा मचाना शुरू कर दिया सेकुलर नेताओं और उर्दू मीडिया के कहना है वह जब -तक जिंदा रहेगी तब-तक मुसलमानों के छाती पर मूंग की दाल दलती रहेगी, मोदी सरकार के रवैये से हमे कोई हैरानी नहीं है क्यों की उनका वजूद मुसलमानो की दुश्मनी से तैयार हुआ है, उर्दू टाइम्स ने यहाँ तक कहा कि मोदी सरकार ने मुसलमानों के घाव पर नमक लगाने जैसा काम किया है, दैनिक उर्दू सहारा, उर्दू दैनिक सियासत ने लिखा है की मोदी सरकार मुसलमानों की भावनाओ के साथ खेलवाड़ कर रही है सभी बौखलाए हुए हैं. तसलीमा नसरीन को वीसा मिलना ही चाहिए उसे भारत मे स्थायी रहने कि ब्यवस्था करनी चाहिये क्यों भारत मानतावादी देश है जहां सभी विचारों के लोगो को रहने की स्वतन्त्रता है और पूरा देश तसलीमा के साथ है, जैसा तसलीमा ने कहा की भारत मेरे घर जैसा है उसका स्वागत होना ही चाहिए ।
       आखिर उर्दू अखबार और उर्दू मीडिया क्या चाहते है, मुसलमानों की मंशा क्या है ? वे कहते हैं कि मुसलमानों के भावनाओं का ख्याल सरकार नहीं रख पा रही है, मुसलमानों को अपने बारे मे विचार करना चाहिए जिस देश मे वे रहते हैं क्या उन्हे उस देश की जनता की भावनाओं का ख्याल है ! हिन्दू समाज इनसे कितना पीड़ित है हिन्दू समाज की बहू-बेटियाँ लव जेहाद की शिकार हो रही हैं गाय जिसे हिन्दू माँ मानता है मुसलमान उसे जिद पूर्बक काटता है, हिन्दू समाज के देबी -देवताओं की मूर्तियों को तोड़ने मे जन्नत महसूस करता है इसके बावजूद चीन जैसा भारत ने रोज़ा पर प्रतिबंध तो नहीं लगाया, फ्रांस जैसा मस्जिदों को नहीं तोड़ा, जर्मनी जैसा बुर्कों पर प्रतिबंध नहीं लगाया, जापान जैसा अरबी लिपि पर प्रतिबंध नहीं लगाया, जापान का प्रधानमंत्री किसी भी इस्लामिक देश का दौरा नहीं करता, ऐसा तो भारत ने नहीं किया, लेकिन भविष्य मे यदि मुसलमानों का ब्यवहार भारत देश जैसा नहीं हुआ और बहुसंख्यक समाज कि भावनाओं का ख्याल मुसलमानों ने नहीं रखा तो यह सब हो सकता है जो अन्य देशों में इनके साथ हो रहा है चाहे जिसकी सरकार हो।         

आइए जाने क्या है -----! ऐतरेय ब्राह्मण

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ऐतरेय  ब्राह्मण
'ऐतरेय ब्राह्मण'ऋग्वेदके शाकल शाखाके सम्बद्व है। इसमें 8 खण्ड, 40 अध्याय तथा 285 कण्डिकाएं हैं। इसकी रचना 'महिदास ऐतरेय'द्वारा की गई थी, जिस पर सायणचार्यने अपना भाष्य लिखा है। इस ग्रन्थ से यह पता चलता है कि उस समय पूर्व में विदेह जाति का राज्य था जबकि पश्चिम में नीच्य और अपाच्य राज्य थे। उत्तर में कुरू और उत्तर मद्र का तथा दक्षिण में भोज्य राज्य थां। ऐतरेय ब्राह्मण में राज्याभिषेक के नियम दिये गये हैं। इसके अन्तिम भाग में पुरोहितका विशेष महत्त्व निरूपित किया गया है।
ॠक् साहित्य में दो ब्राह्मण ग्रन्थ हैं। पहले का नाम ऐतरेय ब्राह्मण तथा दूसरे का शाख्ङायन अथवा कौषीतकि ब्राह्मणहै। दोनों ग्रन्थों का अत्यन्त घनिष्ठ सम्बन्ध है, यत्र-तत्र एक ही विषय की व्याख्या की गयी है, किन्तु एक ब्राह्मण में दूसरे ब्राह्मण में विपरीत अर्थ प्रकट किया गया है। कौषीतकि ब्राह्मण में जिस अच्छे ढंग से विषयों की व्याख्या की गयी है उस ढंग से ऐतरेय ब्राह्मण में नहीं है। ऐतरेय ब्राह्मण के पिछले दस अध्यायों में जिन विषयों की व्याख्या की गयी है वे कौषीतकि में नहीं हैं, किन्तु इस अभाव को शाख्ङायन सूत्रों में पूरा किया गया है। आजकल जो ऐतरेय ब्राह्मण उपलब्ध है उसमें कुल चालीस अध्याय हैं। इनका आठ पंजिकाओं में विभाग हुआ है। शाख्ङायन ब्राह्मण में तीस अध्याय हैं।

                                                                                   विषय सूची 

ऐतरेय ब्राह्मण का प्रवचन कर्ता

पारम्परिक दृष्टि से ऐतरेय ब्राह्मण के प्रवचनकर्ता ॠषि महिदास ऐतरेय हैं। षड्गुरुशिष्य ने महिदास को किसी याज्ञवल्क्यनामक ब्राह्मण की इतरा (द्वितीया) नाम्नी भार्या का पुत्र बतलाया है।[1]
ऐतरेयारण्यक के भाष्य में षड्गुरुशिष्य ने इस नाम की व्युत्पत्ति भी दी है।[2]सायणने भी अपने भाष्य के उपोद्घात में इसी प्रकार की आख्यायिका दी है, जिसके अनुसार किसी महर्षि की अनेक पत्नियों में से एक का का नाम 'इतरा'था। महिदास उसी के पुत्र थे। पिता की उपेक्षा से खिन्न होकर महिदास ने अपनी कुलदेवता भूमि की उपासना की, जिसकी अनुकम्पा से उन्होंने ऐतरेय ब्राह्मण के साथ ही ऐतरेयारण्यक का भी साक्षात्कार किया।[3]भट्टभास्कर के अनुसार ऐतरेय के पिता का नाम ही ॠषि इतर था।[4]
  • स्कन्द पुराणमें प्राप्त आख्यान के अनुसार ऐतरेय के पिता हारीत ॠषि के वंश में उत्पन्न ॠषि माण्डूकि थे।[5]
  • छान्दोग्य उपनिषद[6]के अनुसार महिदास को 116 वर्ष की आयु प्राप्त हुई। शांखायन गृह्यसूत्र[7]में भी इनके नाम का 'ऐतरेय'और 'महैतरेय'रूपों के उल्लेख हैं।
कतिपथ पाश्चात्त्य मनीषियों ने अवेस्तामें 'ॠत्विक्'के अर्थ में प्रयुक्त 'अथ्रेय'शब्द से 'ऐतरेय'का साम्य स्थापित करने की चेष्टा की है। इस साम्य के सिद्ध हो जाने पर 'ऐतरेय'की स्थिति भारोपीयकालिक हो जाती है। हॉग और खोन्दा सदृश पाश्चात्त्य विद्वानों की धारणा है कि सम्पूर्ण ऐतरेय ब्राह्मण किसी एक व्यक्ति अथवा काल की रचना नहीं है। अधिक से अधिक महिदास को ऐतरेय ब्राह्मण के वर्तमान पाठ का सम्पादक माना जा सकता है।[8]

ऐतरेय-ब्राह्मण का विभाग, चयनक्रम और प्रतिपाद्य

सम्पूर्ण ऐतरेय ब्राह्मण में 40 अध्याय हैं। प्रत्येक पाँच अध्यायों को मिलाकर एक पंचिका निष्पन्न हो जाती है जिनकी कुल संख्या आठ है। अध्याय का अवान्तर विभाजन खण्डों में है, जिनकी संख्या प्रत्येक अध्याय में पृथक्-पृथक् है। समस्त चालीस अध्यायों में कुल 285 खण्ड हैं। ऋग्वेदकी प्रसिद्धि होतृवेद के रूप में है, इसलिए उससे सम्बद्ध इस ब्राह्मण ग्रन्थ में सोमयागों के हौत्रपक्ष की विशद मीमांसा की गई है। होतृमण्डल में, जिनकी ‘होत्रक’ के नाम से प्रसिद्धि है, सात ॠत्विक होते हैं-
  • होता,
  • मैत्रावरुण,
  • ब्राह्मणाच्छंसी,
  • नेष्टा,
  • पोता,
  • अच्छावाक और
  • आग्नीघ्र।
ये सभी सोमयागों के तीनों सवनों में ॠङ्मन्त्रों से 'याज्या'[9]का सम्पादन करते हैं। इनके अतिरिक्त पुरोनुवाक्याएं होती हैं, जिनका पाठ होम से पहले होता है। होता, मैत्रावरुण, ब्राह्मणाच्छंसी और अच्छावाक- ये आज्य, प्रउग प्रभृति शस्त्रों[10]का शंसन करते हैं। इन्हीं का मुख्यता प्रतिपादन इस ब्राह्मण ग्रन्थ में है। प्रसंग वश कतिपय अन्य कृत्यों का निरूपण भी हुआ है। होता के द्वारा पठनीय प्रमुख शस्त्र ये हैं-
  • आज्य शस्त्र,
  • प्रउग शस्त्र,
  • मरुत्वतीय शस्त्र,
  • निष्कैवल्य शस्त्र,
  • वैश्वदेव शस्त्र,
  • आग्निमारुत शस्त्र,
  • षोडशी शस्त्र,
  • पर्याय शस्त्र और
  • आश्विन शस्त्र आदि।
याज्या और पुरोऽनुवाक्या को छोड़कर अन्य शस्त्र प्राय: तृच होते हैं जिनमें पहली और अन्तिम (उत्तमा) ॠचा का पाठ तीन-तीन बार होता है। 'उत्तमा'ॠचा को ही 'परिधानीया'भी कहते हैं। पहली ॠचा का ही पारिभाषिक नाम 'प्रतिपद'भी है। इन्हीं के औचित्य का विवेचन वस्तुत: ऐतरेय ब्राह्मणकार का प्रमुख उद्देश्य है।
अग्निष्टोम समस्त सोमयागों का प्रकृतिभूत है, एतएव इसका सर्वप्रथम विधान किया गया है, जो पहली पंचिका से लेकर तीसरी पंचिका के पाँचवें खण्ड तक है। यह एक दिन का प्रयोग है सुत्यादिन की दृष्टि से सामान्यत: इसके अनुष्ठान में कुल पाँच दिन लगते हैं। इसके अनन्तर अग्निष्टोम की विकृतियों उक्थ्य, क्रतु, षोडशी और अतिरात्र का वर्णन चतुर्थ पंचिका के द्वितीय अध्याय के पंचम खण्ड तक है। इसके पश्चात सत्रयागों का विवरण है, जो ऐतरेय ब्राह्मण में ताण्ड्यादि अन्य ब्राह्मणों की अपेक्षा कुछ कम विस्तार से है। सत्रयागों में ‘गवामयन’ का चतुर्थ पंचिकागत दूसरे अध्याय के षष्ठ खण्ड से तीसरे अध्यायान्तर्गत अष्टम खण्ड तक निरूपण है। 'अङिगरसामयन'और 'आदित्यानामयन'नामक सत्रयाग भी इसी मध्य आ गये हैं। पाँचवीं पंचिका में विभिन्न द्वादशाह संज्ञक सोमयागों का निरूपण है। इसी पंचिका में अग्निहोत्र भी वर्णित है। छठी पंचिका में सोमयागों से सम्बद्ध प्रकीर्ण विषयों का विवेचन है। इसी पंचिका के चतुर्थ और पंचम अध्यायों में बालखिल्यादि सूक्तों की विशद प्ररोचना की गई है, जिनकी गणना खिलों के अन्तर्गत की जाती है। सप्तम पंचिका का प्रारम्भ यद्यपि पशु-अंगों की विभक्ति-प्रक्रिया के विवरण के साथ होता है, किन्तु इसके दूसरे अध्याय में अग्निहोत्री के लिए विभिन्न प्रायश्चित्तों, तीसरे में शुन:-शेप का सुप्रसिद्ध उपाख्यान और चतुर्थ अध्याय में राजसूययाग के प्रारम्भिक कृत्यों का विवरण है। आठवीं पंचिका के प्रथम दो अध्यायों में राजसूययाग का ही निरूपण है, किन्तु अन्तिम तीन अध्याय सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण विवरण-ऐन्द्रमहभिषेक, पुरोहितकी महत्ता तथा ब्रह्मपरिमर[11]का प्रस्तावक है। 'ब्रह्म'का अर्थ यहाँ वायु है। इस वायु के चारों ओर विद्युत, वृष्टि, चन्द्रमा, आदित्यऔर अग्निप्रभृति का अन्तर्भाव मरण-प्रकार ही ‘परिमर’ है। यज्ञ की सामान्य प्रक्रिया से हटकर सोचने पर यह कोई विलक्षण वैज्ञानिक कृत्य प्रतीत होता है।
इनमें से 30 अध्यायों तक प्राच्य और प्रतीच्य उभयवुध विद्वानों के मध्य कोई मतभेद नहीं है। यह भाग निर्विवाद रूप से ऐतरेय ब्राह्मण का प्राचीनतम भाग है। इसमें भी प्रथम पाँच अध्याय तैत्तिरीय ब्राह्मणसे भी पूर्ववर्त्ती माने जा सकते हैं।[12]कीथ की इस धारणा के विपरीत विचार हार्श (V.G.L.Horch) का है, जो तैत्तिरीय की अपेक्षा इन्हें परवर्ती मानते हैं।[13]कौषीतकि ब्राह्मणके साथ ऐतरेय की तुलनात्मक विवेचना करने के अनन्तर पाश्चात्य विद्वानों का विचार है कि सातवीं और आठवीं पंचिकाएं[14]परवर्ती हैं। इस सन्दर्भ में प्रदत्त तर्क ये हैं:-
  • कौषीतकि ब्राह्मण में मात्र 30 अध्याय हैं- जबकी दोनों ही ॠग्वेदीय ब्राह्मणों का वर्ण्यविषय एक ही सोमयाग है।
  • राजसूययाग में राजा का यागगत पेय सोम नहीं है, जबकि ऐतरेय ब्राह्मण के मुख्य विषय सोमयाग के अन्तर्गत पेयद्रव्य सोम है।
  • ऐतरेय ब्राह्मण की सप्तम पंचिका का आरम्भ 'अथात:'[15]से हुआ है, जो परवर्ती सूत्र-शैली प्रतीत होती है।
उपर्युक्त तर्कों के उत्तर में यहाँ केवल पाणिनि का साक्ष्य ही पर्याप्त है, जिन्होंने ऐतरेय ब्राह्मण के 40 अध्यायात्मक स्वरूप का संकेत से उल्लेख किया है। वे ऋग्वेद के दूसरे ब्राह्मण कौषीतकि के 30 अध्यायात्मक स्वरूप से भी परिचित थे।[16]वस्तुत: उपर्युक्त शंकाओं[17]का कारण ऐतरेय ब्राह्मण की विवेचन-शैली है, जो विषय को संश्लिष्ट और संहितरूप में न प्रस्तुत कर कुछ फैले-फैले रूप में निरूपित करती है। वास्तव में श्रौतसूत्रों के सदृश समवेत और संहितरूप में विषय-निरूपण की अपेक्षा ब्राह्मण ग्रन्थों से नहीं की जा सकती। यह सुनिश्चित है कि ऐतरेय ब्राह्मण पाणिनि के काल तक अपने वर्तमान स्वरूप को प्राप्त कर चुका था। मूलवेद[18]के अस्तित्व की बात भी उठाई है, किन्तु प्रा. खोंदा जैसे मनीषियों ने उससे असाहमत्य ही प्रकट किया है।[19]

ऐतरेय ब्राह्मण की व्याख्या-सम्पत्ति

इस पर चार प्राचीन भाष्यों का अस्तित्व बतलाया जाता है-
  • गोविन्दस्वामी,
  • भट्टभास्कर,
  • षड्गुरुशिष्य और
  • सायणाचार्य के भाष्य।
इनमें से अभी तक केवल अन्तिम दो का प्रकाशन हुआ है। उनमें भी अध्ययन-अध्यापन का आधार सामान्यतया सायणभाष्य ही है, जिनमें होत्रपक्ष की सभी ज्ञातव्य विशेषताओं का समावेश है।

ऐतरेय ब्राह्मण की रूप-समृद्धि

किसी कृत्यविशेष में विनियोजन मन्त्र के देवता, छन्दस इत्यादि के औचित्य-निरूपण के सन्दर्भ में ऐतरेयकार अन्तिम बिन्दु तक ध्यान रखता है। इसे वह अपनी पारिभाषिक शब्दावली में ‘रूप-समृद्धि’ की आख्या देता है- एतद्वै यज्ञस्य समृद्वं यद्रूप-समृद्वं यत्कर्म क्रियामाणं ॠगभिवदति।[20]

ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विवरण

ऐतरेय ब्राह्मण में मध्य प्रदेश का विशेष आदर पूर्वक उल्लेख किया गया है- 'ध्रुवायां मध्यमायां प्रतिष्ठायां दिशि'।[21]पं. सत्यव्रत सामश्रमी के अनुसार इस मध्य प्रदेश में कुरु, पंचाल, शिवि और सौवीर संज्ञक प्रदेश सम्मिलित थे।[22]महिदास का अपना निवास-स्थान भी इरावती नदी के समीपस्थ किसी जनपद में था।[23]ऐतरेय ब्राह्मण[24]के अनुसार उस समय भारतके पूर्व में विदेह आदि जातियों का राज्य था। दक्षिण में भोजराज्य, पश्चिम में नीच्य और अपाच्य का राज्य, उत्तर में उत्तरकुरुओं और उत्तर मद्र का राज्य तथा मध्य भाग में कुरु-पंचाल राज्य थे।
ऐन्द्र-महाभिषेक के प्रसंग में, अन्तिम तीन अध्यायों में जिन ऐतिहासिक व्यक्तियों के नाम आये हैं, वे हैं- परीक्षित-पुत्र जनमेजय, मनु-पुत्र शर्यात, उग्रसेन-पुत्र युधां श्रौष्टि, अविक्षित-पुत्र मरूत्तम, सुदास पैजवन, शतानीक और दुष्यन्त-पुत्र भरत। भरत की विशेष प्रशंसा करते हुए कहा गया है कि उसके पराक्रम की समानता कोई भी नहीं कर पाया।
महाकर्म भरतस्य न पूर्वे नापरे जना:।
दिवं मर्त्य इव हस्ताभ्यां नोदापु: पञ्च मानवा:॥[25]
इस भरत के पुरोहितथे ममतापुत्र दीर्घतमा

पुरोहित का गौरव

ऐतरेय ब्राह्मण के अन्तिम अध्याय में पुरोहितका विशेष महत्त्व निरूपित है। राजा को पुरोहित की नियुक्ति अवश्य करनी चाहिए, क्योंकि वह आहवनीयाग्नितुल्य होता है। पुरोहित वस्तुत: प्रजा का प्रतिनिधि है, जो राजा से प्रतिज्ञा कराता है कि वह अपनी प्रजा से कभी द्रोह नहीं करेगा।

आचार-दर्शन

ऐतरेय ब्राह्मण में नैतिक मूल्यों और उदात्त आचार-व्यवहार के सिद्धान्तों पर विशेष बल दिया गया है। प्रथम अध्याय के षष्ठ खण्ड में कहा गया है कि दीक्षित यजमान को सत्य ही बोलना चाहिए[26]इसी प्रकार के अन्य वचन हैं- जो अहंकार से युक्त होकर बोली जाती है, वह राक्षसी वाणी है।[27]
शुन:शेप से सम्बद्ध आख्यान के प्रसंग में कर्मनिष्ठ जीवन और पुरुषार्थ-साधना का महत्त्व बड़े ही काव्यात्मक ढंग से बतलाया गया है। कहा गया है कि बिना थके हुए श्री नहीं मिलती; जो विचरता है, उसके पैर पुष्पयुक्त होते हैं, उसकी आत्मा फल को उगाती और काटती है। भ्रमण के श्रम से उसकी समस्त पापराशि नष्ट हो जाती है। बैठे-ठाले व्यक्ति का भाग भी बैठ जाता है, सोते हुए का सो जाता है और चलते हुए का चलता रहता है। कलि युगका अर्थ है मनुष्य की सुप्तावस्था, जब वह जंभाई लेता है तब द्वापर की स्थिति में होता है, खड़े होने पर त्रेता और कर्मरत होने पर सत युगकी अवस्था में आ जाता है। चलते हुए ही मनुष्य फल प्राप्त करता है। सूर्यके श्रम को देखो, जो चलते हुए कभी आलस्य नहीं करता-
कलि: सयानो भवति संजिहानस्तु द्वापर:।
उत्तिष्ठंस्त्रेता भवति कृतं सम्पद्यते चरंश्चरैवेति॥
चरन्वै मधु विन्दति चरन्स्वादुमुदुम्बरम्।
सूर्यस्य पश्य श्रेमाणं यो न तन्द्रयते चरंश्चरैवेति॥[28]

देवताविषयक विवरण

ऐतरेय ब्राह्मण में कुल देवता 33 माने गए हैं- 'त्रयस्त्रिंशद् वै देवा:'। इनमें अग्निप्रथम देवता है और विष्णुपरम देवता। इन्हीं के मध्य शेष सबका समावेश हो जाता है-[29]यहीं से महत्ता-प्राप्त विष्णु आगे पुराणों में सर्वाधिक वेशिष्ट्यसम्पन्न देवता बन गए। देवों के मध्य इन्द्रअत्यधिक ओजस्वी, बलशाली और दूर तक पार कराने वाले देवता हैं-[30]देवताओं के सामान्यरूप से चार गुण हैं-
  • देवता सत्य से युक्त होते हैं,
  • वे परोक्षप्रिय होते हैं,
  • वे एक दूसरे के घर में रहते और
  • वे मर्त्यों को अमरता प्रदान करते हैं।[31]

शुन:-शेप-आख्यान

ऐतरेय ब्राह्मण में आख्यानों की विशाल थाती संकलित है। इनका प्रयोजन याग से सम्बद्ध देवता और उनके शस्त्रों (स्तुतियों) के छन्दों एवं अन्य उपादानों का कथात्मक ढंग से औचित्य-निरूपण है। इन आख्यानों में शुन:शेप का आख्यान, जिसे हरिश्चन्द्रोपाख्यान भी कहा जाता है, समाजशास्त्र, नेतृत्वशास्त्र एवं धर्मशास्त्र की दृष्टि से विशेष महत्त्वपूर्ण है। यह 33वें अध्याय में समाविष्ट है। राज्याभिषेक के समय यह राजा को सुनाया जाता था। संक्षिप्त रूप में आख्यान इस प्रकार है: इक्ष्वाकुवंशज राजा हरिश्चन्द्रपुत्ररहित थे। वरुणकी उपासना और उनकी प्रसन्नता तथा इस शर्त पर राजा को रोहित नामक पुत्र की प्राप्ति हुई कि वे उसे वरुण को समर्पित कर देंगे; बाद में वे उसे समर्पित करन्र से टालते रहे, जिसके फलस्वरूप वरुण के कोप से वे रोगग्रस्त हो गये। अन्त में राजा ने अजीगर्त ॠषि के पुत्र शुन:-शेप को ख़रीद कर उसकी बलि देने की व्यवस्था की। इस यज्ञ में विश्वामित्रऔर जमदग्नि ॠत्विक् थे। शुन:-शेप की बलि के लिए इनमें से किसी के भी तैयार न होने पर अन्त में पुन: अजीगर्त्त ही लोभवश उस काम के लिये भी तैयार हो गये। बाद में विभिन्न देवी-देवताओं कि स्तुति से शुन:-शेप बन्धन-मुक्त हो गये। लोभी पिता का उन्होंने परित्याग कर दिया और विश्वामित्र ने उन्हें पुत्ररूप में स्वीकार कर लिया। शुन:-शेप का नया नामकरण हुआ देवरात विश्वामित्र। इस आख्यायिका के चार प्रयोजन आपातत: प्रतीत होते हैं-
  • वैदिक मन्त्रों की शक्ति और सामार्थ्य का अर्थवाद के रूप में प्रतिपादन, जिनकी सहायता से व्यक्ति वध और बन्धन से भी मुक्त हो सकता है।
  • यज्ञ या किसी भी धार्मिक कृत्य में नर-बलि जैसे घृणित कृत्य की भर्त्सना सम्भव है, बहुत आदिम-प्राकृत-काल में, जब यज्ञ-संस्था विधिवत गठित न हो पाई हो, नर-बलि की छिटपुट घटनाओं की यदा-कदा आवृत्ति हो जाती हो। ऐतरेय ब्राह्मण ने प्रकृत प्रसंग के माध्यम से इसे अमानवीय घोषित कर दिया है।
  • मानव-हृदय की, ज्ञानी होने पर भी लोभमयी प्रवृति का निदर्शन, जिसके उदाहरण ॠषि अजीगर्त हैं।
  • राज-सत्ता द्वारा निजी स्वार्थ के लिए प्रजा का प्रलोभनात्मक उत्पीड़न।
इस आख्यायिका के हृदयावर्जक अंश दो ही हैं-
  • राजा हरिश्चन्द्र के द्वारा प्रारम्भ में पुत्र-लालसा की गाथाओं के माध्यम से मार्मिक अभिव्यक्ति।
  • ‘चरैवेति’ की प्रेरणामयी गाथाएँ।

शैलीगत एवं भाषागत सौष्ठव

ऐतरेय ब्राह्मण में रूपकात्मक और प्रतीकात्मक शैली का आश्रय लिया गया है, जो इसकी अभिव्यक्तिगत सप्राणता में अभिवृद्धि कर देती है। स्त्री-पुरुष के मिथुनभाव के प्रतीक सर्वाधिक हैं। उदाहरण के लिए वाणी और मन देवमिथुन है[32]घृतपक्व चरु में घृत स्त्री-अंश है और तण्डुल पुरुषांश।[33]दीक्षणीया इष्टि में दीक्षित यजमान के समस्त संस्कारगर्भगत शिशु की तरह करने का विधान भी वस्तुत: प्रतीकात्मक ही है। कृत्य-विधान के सन्दर्भ में कहीं-कहीं बड़े सुन्दर लौकिक उदाहरण दिये गये हैं, यथा एकाह और अहीन यागों के कृत्यों से याग का समापन इसलिए करना चाहिए, क्योंकि दूर की यात्रा करने वाले लक्ष्य पर पहुँचकर बैलों को बदल देते हैं।
38वें अध्याय में, ऐन्द्रमहाभिषेक के प्रसंग में मन्त्रों से निर्मित आसन्दी का सुन्दर रूपक प्राप्त होता है, जो इस प्रकार है- इस आसन्दी के अगले दो पाये बृहत् और रथन्तरसामों से तथा पिछले दोनों पाये वैरूप और वैराज सामों से निर्मित हैं। ऊपर के पट्टे का कार्य करते है शाक्वर और रैवत साम। नौधस और कालेय साम पार्श्व फलक स्थानीय है। इस आसन्दी का ताना ॠचाओं से, बाना सामों से तथा मध्यभाग यजुर्षों से निर्मित है। इसका आस्तरण है यश का तथा उपधान श्री का। सवितृ, बृहस्पति और पूषा प्रभृति विभिन्न देवों ने इसके फलकों को सहारा दे रखा है। समस्त छन्दों और तदभिमानी देवों से यह आसन्दी परिवेष्टित है। अभिप्राय यह है कि बहुविध उपमाओं और रूपकों के आलम्बन से विषय-निरूपण अत्यन्त सुग्राह्य हो उठा है। ऐतरेय ब्राह्मण की रचना ब्रह्मवादियों के द्वारा मौखिकरूप में व्यवहृत यज्ञ विवेचनात्मक सरल शब्दावली में हुई है जैसा कि प्रोफेसर खोंदा ने अभिमत व्यक्त किया है।[34]प्रोफेसर कीथ ने अपनी भूमिका में इसकी रूप-रचना, सन्धि और समासगत स्थिति का विशद विश्लेषण किया है।

वैज्ञानिक तथ्यों का समावेश

ऐतरेय-ब्राह्मण में अनेक महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक सूचनाएं संकलित हैं, उदाहरण के लिए 30वें अध्याय में, पृथ्वीके प्रारम्भ में गर्मरूप का विवरण प्राप्त होता है- आदित्यों ने अंगिरसों को दक्षिणा में पृथ्वी दी। उन्होंने उसे तपा डाला, तब पृथ्वी सिंहिनी होकर मुँह खोलकर आदमियों को खाने के लिए दौड़ी। पृथ्वी की इस जलती हुई स्थिति में उसमें उच्चावच गर्त बन गए।

ऐतरेय ब्राह्मण के उपलब्ध संस्करण

अद्यावधि अएतरेय-ब्राह्मण के (भाष्य, अनुवाद या वृत्तिसहित अथवा मूलमात्र) जो संस्करण प्रकाशित हुए हैं, उनका विवरण निम्नवत् है-
  • 1863 ई. में अंग्रेज़ी अनुवाद सहित मार्टिन हॉग के द्वारा सम्पादित और बम्बई से मुद्रित संस्करण, दो भागों में।
  • थियोडार आउफ्रेख्ट के द्वारा 1879 में सायण-भाष्यांशों के साथ बोन से प्रकाशित संस्करण्।
  • 1895 से 1906 ई. के मध्य सत्यव्र्त सामश्रमी के द्वारा कलकत्ता से सायण-भाष्यसहित चार भागों में प्रकाशित संस्करण्।
  • ए.बी.कीथ के द्वारा अंग्रेज़ी में अनूदित, 1920 ई. में कैम्ब्रिज से (तथा 1969 ई. में दिल्ली से पुनर्मुद्रित) प्रकाशित संस्करण्।
  • 1925 ई. में निर्णयसागर से मूलमात्र प्रकाशित जिसका भारतसरकार ने अभी-अभी पुनर्मुद्रण कराया है।
  • 1950 ई. में गंगा प्रसाद उपाध्याय का हिन्दी अनुवाद मात्र हिन्दी-साहित्य सम्मेलन प्रयागसे प्रकाशित।
  • 1980 /इ. में सायण-भाष्य और हिन्दी अनुवाद-सहित सुधाकर मालवीय के द्वारा सम्पादित संस्करण, वाराणसीसे प्रकाशितअ।
  • अनन्तकृष्ण शास्त्री के द्वारा षड्गुरुशिष्य-कृत सुखप्रदा-वृत्तिसहित, तीन भागों में त्रिवेन्द्रम से 1942 से 52 ई. के मध्य प्रकाशित संस्करण्।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
  1. 'महिदासैतरैयर्षिसन्दृष्टं ब्राह्मणं तु यत्। आसीद् विप्रो यज्ञवल्को द्विभार्यस्तस्य द्वितीयामितरेति चाहु:।'ऐतरेय ब्राह्मण, सुखप्रदावृत्ति
  2. इतराख्यस्य माताभूत् स्त्रीभ्यो ढक्यैतरेयगी:। ऐतरेयारण्यक, भाष्यभूमिका
  3. ऐतरेय ब्राह्मण सायण-भाष्य, पृष्ठ 8,(आनन्दाश्रम
  4. इतरस्य ॠषेरपत्यमैतरैय:। शुभ्रादिभ्यश्य ढक्।
  5. अस्मिन्नैव मम स्थाने हारीतस्यान्वयेऽभवत्। माण्डूकिरिति विप्राग्र्यो वेदवेदाङगपारग:॥ तस्यासीदितरानाम भार्या साध्वी गुणैर्युता। तस्यामुत्पद्यतसुतस्त्वैतरेय इति स्मृत:॥ स्कन्द पुराण, 1.2.42.26-30
  6. छान्दोग्य उपनिषद 3.16.7
  7. शांखायन गृह्यसूत्र 4.10.3
  8. जे. खोन्दा, हिस्ट्री इण्डियन लिटरेचर वे.लि., भाग 21, पृ. 344
  9. ठीक आहुति-सम्प्रदान के समय पठित मन्त्र
  10. अगीतमन्त्र-साध्य स्तुति
  11. शत्रुक्षयार्थक प्रयोग
  12. कीथ, ऋग्वेद ब्राह्मण, भूमिका
  13. वी.जी.एल.हार्श, डी वेदिशे गाथा उण्ड श्लोक लितरातुर
  14. अन्तिम 10 अध्याय
  15. अथात: पशोर्विभक्तिस्तस्य विभागं वक्ष्याम:
  16. अष्टाध्यायी 5.1.62
  17. जिनमें षष्ठ पंचिका को परिशिष्ट मानने की धारणा भी है, क्योंकि इसमें स्थान-स्थान पर पुनरुक्ति है
  18. भारोपीय काल के वैदिक संहिता-स्वरूप, जिसको जर्मन भाषा में ‘UR-Brahmana
  19. खोन्दा, हिस्ट्री आफ इण्डियन लिटरेचर, वे.लि., भाग 1, पृ. 360
  20. ऐतरेय ब्राह्मण 3.2
  21. ऐतरेय ब्राह्मण 8.4
  22. ऐतरेयालोचन, कलकत्ता, 1906 पृष्ठ 42
  23. ऐतरेयालोचन, कलकत्ता, 1906, पृष्ठ 71
  24. ऐतरेय ब्राह्मण (8.3.2
  25. ऐतरेय ब्राह्मण 8.4.9
  26. 'ॠतं वाव दीक्षा सत्यं दीक्षा तस्माद् दीक्षितेन सत्यमेव वदितव्यम्'।
  27. 'विदुषा सत्यमेव वदितव्यम्'(5.2.9)। 'यां वै दृप्तो वदति, यामुन्मत्त: सा वै राक्षसी वाक्'(2.1)।
  28. ऐतरेय ब्राह्मण, 33.1
  29. 'अग्निर्वै देवानामवमो विष्णु: परमस्तदन्तरेण अन्या: सर्वा: देवता:'।
  30. 'स वै देवानामोजिष्ठो बलिष्ठ: सहिष्ठ: सत्तम: पारयिष्णुतम:'(7.16)।
  31. ऐतरेय ब्राह्मण (1.1.6; 3.3.9; 5.2.4; 6.3.4
  32. ‘वाक्च वै मनश्च देवानां मिथुनम्’(24.4) ।
  33. ऐतरेय ब्राह्मण 1.1
  34. खोन्दा, हिस्ट्री इण्डियन लिटरेचर:वे.लि., भाग 1, पृ.410

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श्रुतियाँ


संत झूलेलाल के अवतरण के कारण-----!

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          संत झुलेलाल का ऐसे समय अवतरण हुआ जब हिन्दू समाज मुस्लिम आक्रांताओं से त्राहि-त्राहि कर रहा था मंदिर ढहाए जा रहे थे हिंदुओं को गुलाम बना अरब की बाज़ारों मे बेचा जाता हिन्दू महिलाओं का बलात हरण तो सामान्य बात हो गयी थी ऐसे लगता था हिन्दू अस्तित्व खतरे मे पड़ गया -- कौन बचाएगा और कैसे बचेगा यह मानवतावादी धर्म यह प्रत्येक मनुष्य के मन मे थी, नौ सौ साल पहले की बात है लाहौर शहर नष्ट होकर मुस्लिम शहर बन चुका था मकरखान नामक अहंकारी मुस्लिम शासक था जिसने हिन्दुओ का जीना दूभर कर रखा था बलात धर्मांतरण जो असह्य था मरखखान ने फरमान जारी किया या तो सभी हिन्दू इस्लाम स्वीकार ले या आराधना करते हुए अपने ईश्वर को प्रकट कारें इस आदेश से हिन्दू कंपित हो गया तभी किसी ने सुझाव दिया की सिंधु सागर तट पर भगवान की आराधना की जाय सभी दरियासाह की आराधना मे सागर पर हिन्दू समाज अपार जैसे उमड़ पड़ा या तो मरेगे या तरेगे अपने आराध्य को पाएगे यह संकल्प झाझ, मजीरा इत्यादि वाद्य यंत्र लेकर हिन्दू समुदाय सिंधु तट पर खड़ा, विद्वान पंडितों ने वरुण देवता की पूजा शुरू की तब-तक सिंधु जल मे अजीब सी हलचल हुई आकाशवाणी हुई तुम सभी श्रद्धालु अपने-अपने घर जावो तुम्हारा संकट दूर करने मै नरसपुर मे जन्म लेने वाला हूँ इस आकाशवाणी सुन सभी हर्ष से नाच उठे ठक्कर रत्नराय के यहाँ,जो अपने गाव के अग्रगणी ब्यक्ति थे ऐसे समय मे वर्ष प्रतिपदा के दिन झुलेलाल का जन्म हुआ सारा गाव, हिन्दू समाज आनंद उत्सव मनाने लगा और यह समाचार मरखखान के यहाँ तक पहुच गया ।
          नबाब ने अपने मंत्री को गुलाब की पंखुड़ियों मे जहर लगा उस बालक की हत्या हेतु भेजा, जब वजीर रत्नराय के यहाँ पहुचा तो बालक एक दृष्टि से वजीर को देखता रहा देखते-देखते वह एक घड़ी का जन्म लिया बालक दस वर्षीय दिखाई देने लगा वह आश्चर्यकित हो उठा इतना ही नहीं वह वयस्क और फिर सफ़ेद दाढ़ी- मुछ वाला बूढ़ा हो गया, वजीर की परेशानी बढ़ गयी परेशान हो गया रत्नराय से कहा इस दिब्य  बालक को नबाब अपने घर देखना चाहते हैं, पिता ने छमा याचना करते हुए कहा इतने छोटे बालक को कैसे मै ले चालूगा मै एक महीने मे लेकर आवुगा इधर यह सब हो ही रहा था की मरखसह ने देखा की हजारों की सेना के साथ सागर से वह बालक चला आ रहा है वह भय से काँप गया छमा याचना करने लगा फिर कहा हे वरुण अवतार आप यहा से चले जायिए मै यह सब अत्याचार बंद कर दूगा मै कभी कोई अनाचार नहीं करुगा, हे अवतारी औलिया मैंने आपको बुलाया था न की सेना को कृपया आप शांति हो जाय तब-तक सारी सेना सहित सब कुछ समाप्त हो गया, वजीर जब दरवार पहुचा तो नबाब ने कहा की तू भले ही आज आया परंतु वह बालक तो सेना सहित कल रात्री मे ही यहा आ चुका था साह की बात सुन वह आश्चर्य चकित पूछा की तब क्या हुआ सरकार ! साह ने बताया की वह किसी के रोकने से नहीं रुका वह क्या था समझ मे नहीं आया।
        वे वरुणदेव के अवतार थे उन्होने हिन्दू समाज पर होते अत्याचार से मुक्ति दिलाई इस्लामिक सासन भयाक्रांत हो गया अत्याचार बंद हो गए वे हिन्दू रक्षक होकर पूजित हो बढ़ते हुए धर्मांतरण, इस्लामी करण को रोका अश्वारूढ़ हो उन्होने हिन्दू समाज को उपदेश दे वे त्रिशूल गाड़ स्वर्ग को चले गए, जब हिन्दू समाज के लोगो को पता चला तो सभी जन भागकर आए देखते-देखते जहां त्रिशूल गड़ा था वहाँ सागर हो गया यह चमत्कार देख जय झुलेलाल का भक्ति गान करने लगे और वह स्थान तीर्थस्थान बन गया ।        

का पर करूँ सिंगार पिया मोर आंधर-----------------!

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      ''बिहार बीजेपी''कुछ और ही है लगता है की इसका बीजेपी से कोई संबंध ही नहीं है जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न तो रोज़ा इफ्तार दिया न ही किसी इफ्तार निमंत्रण को स्वीकार किया, वहीं ''बिहार बीजेपी''नेता इस्लामी टोपी पहन रोज़ा इफ्तार कर हिन्दू निष्ठ कार्यकर्ताओं को अपमानित करते है इतना ही नहीं नरेंद्र मोदी नहीं, नितीश पीएम मेटीरियल हैं बोलकर नितीश को परमोट करते रहे, जब पूरा देश हिन्दुत्व के रंग मे रगा है तब भी बिहार बीजेपी पर कोई असर नहीं है, उन्हें सेकुलर होने में गर्व महसूस हो रहा है जबकि बिहार धर्मांतरण और लव जेहाद का केंद्र बना हुआ है लेकिन कोई भी बीजेपी नेता हिम्मत नहीं जुटा पा रहा कि वह हिन्दुत्व के इस मुद्दे पर बोल सके! राष्ट्रवादी, हिन्दू क्या करे------! 
         यहाँ (बिहार) बीजेपी सात वर्ष तक सत्ता मे रही विचार के लिए क्या किया ! तो पता चलेगा की कुछ नहीं हाँ इतना जरूर हुआ वैशाली जिले के एक प्रखण्ड केंद्र पर बीजेपी की बैठक थी उस समय जो संगठन मंत्री थे उन्होने दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद पर बोलते हुए कहा की समाज के अंतिम ब्यक्ति तक को हमे ऊपर उठाना है पीछे बैठा एक ग्रामीण कार्यकर्ता खड़ा होकर कहा, अपने बहुत अच्छी बाते की एक बीजेपी के नेता तो बहुत गरीब थे उनके पास एक छोटी सी गोमती थी अब हज़ार करोण की पार्टी हो गयी है संगठन मंत्री नाराज हो डाटने लगे आखिर करते भी क्या-? बीजेपी के एक सर्वश्रेष्ठ नेता ने बृद्धा पेंशन की घोषणा मदर टेरसा के नाम पर की उन्हें सीता, गार्गी याद नहीं क्या करें उन्हे भी तो घर मे रहना पड़ता है! इतना ही नहीं आरा मे ''गो बधशाला''खुलवाना चाहते थे प्रबल बिरोध के कारण नहीं कर सके फिर अररिया मे गिरिराज सिंह (तत्कालीन पशुपालन मंत्री) को आगे कर एक बड़ा पशु बधशाला खुलवाया.
         जब आंदोलन शुरू हुआ और जोर पकड़ने लगा तो बीजेपी के सर्वश्रेष्ठ नेता अपने बीजेपी कार्यकर्ताओं से कहा की जैसे आपके लिए मछली, हरीसब्जी तरकारी है उसी प्रकार गाय भी मुसलमानो के लिए तरकारी है, बीजेपी बिहार के एक बड़े नेता तो लव -जेहाद के प्रेरणा श्रोत ही हैं, एक अन्य नेता जो अपने को संघ का स्वयंसेवक भी कहते है, उनका सभी बड़े अधिकारियों से भी अच्छा संबंध रहता है पहले बिधायक थे अब वे संसद है जिले के स्वयंसेवकों को प्रताड़ित करना, अपने घर पर ही पशु बाज़ार लगवाना, वहाँ से ट्रक द्वारा बंगलादेश के लिए गायें तस्करी कराना यह अच्छा ब्यापार है, अभी-अभी 257 गायें पटना मे पकड़ी गयी हैं कहते है कि उस बाज़ार से भी गायें थी, बीजेपी की वास्तविकता ये है आये दिन ऐसे बयान जिससे बीजेपी के प्रतिवद्ध वोटरों का मन दुखी हो, उनका अपमान हो जैसे वे (लालू+नितीश) भय के कारन बीजेपी को वोट देंगे ही! वे अन्य किसी दल को वोट तो नहीं देंगे लेकिन कहीं यह बीजेपी का प्रतिबद्ध वोटर सिथिल न पड़ जाय जिसका नुकसान बीजेपी को उठाना पड़ सकता है, लव जेहाद के मुद्दे पर पूज्य योगी आदित्यनाथ का बिरोध करना महगा भी पड़ सकता है क्योंकि मुसलमान तो वोट देने से रहे कहीं हिन्दु प्रतिवद्ध वोटर भी सिथिल पड़ गया तो क्या होगा? हिन्दू समाज क्या करे ? और क्या करे बीजेपी का ईमानदार कार्यकर्ता-----!
         बीजेपी का हजारों लाखों कार्यकर्ता राष्ट्रवाद से ओत-प्रोत है हिंदुत्व की आंधी में कार्यकर्ता हताश- निराश उसे रास्ता नहीं मिल रहा क्योंकि ये जो भी नेता हैं भ्रष्टाचार मे लिप्त और हिन्दू बिरोधी है करनी-कथनी बड़ा अंतर दिखाई देता है, जब सत्ता मे आएगे तो इन्हे कार्यकर्ता नहीं दिखाई देगा, हिन्दू विचार नहीं सभी सेकुलर हो हिन्दुत्व का बिरोध करेगे कत्ल खाने खुलवाना, दुर्गाजी, सरस्वती जी की मूर्तियों के विसर्जन पर हमला करवाना, राजगीरि के अधिक मास के मेले मे साधू-संतों की जमीन को मुस्लिम कब्रिस्तान मे परिणित करवाना यही सब करते हैं, बीजेपी कार्यकर्ता की सोच कुछ इस प्रकार हो रहा है-----
         का पर करूँ सिंगार पिया मोर आंधर -----!      

हिन्दू अपने घर मे ही शरणार्थी-------------------!

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           देश का जब विभाजन हुआ था तब जिन्ना ने पाकिस्तानी संसद मे कहा था कि पाकिस्तान सेकुलर स्टेट रहेगा, आगे उन्होने कहा कि भारत के हिन्दू जैसा ब्यवहार मुसलमानों के साथ करेगे वैसा ही पाकिस्तान मे हिन्दुओ के साथ होगा, सब कुछ बदल गया जहां भारत मे मुसलमानों कि संख्या विभाजन के समय 3 करोंड़ थी पश्चिमी पाकिस्तान मे एक करोण, पूर्वी पाकिस्तान मे 1.5 करोड़ थी वर्तमान समय मे भारत मे मुसलमानों कि संख्या 16 करोड़ पाकिस्तान मे हिंदुओं की संख्या 10 लाख और बंगलादेश मे केवल 70 लाख बची हुई है वे कहाँ चले गए ! या तो मतांतरित हो गए, मार दिए गए अथवा पलायन कर गए ।
       आज विचार करना है क्या विश्व मे जहां हिन्दू सताया जाएगा वह कहाँ जाएगा--? उसके लिए अयोध्या, मथुरा, काशी यहीं है भारत उसका स्वाभाविक घर है, जैसा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव मे प्रचार के समय असम की एक जनसभा मे कहा था कि विश्व के सभी हिन्दुओ का भारत मे स्वागत है यदि वे परेशान होते हैं तो वे भारत मे शरणार्थी नहीं हैं भारत उनका घर है उन्हे नागरिकता देनी चाहिए, कैसा दुर्भाग्य है कि भारत मे लगभग 1.20000 हिन्दू पाकिस्तान से आए हुए है यूपीए सरकार उन्हे भगा रही थी वे गए नहीं कई स्थानो पर वे हैं अपने देश मे वे पाकिस्तानी बन कर रह रहे हैं। 
            पकिस्स्तान के सिंध विश्वविद्यालय से MA प्रजापति कहते हैं, ''मै हिन्दू हूँ, लेकिन भारत में पाकिस्तानी हूँ, मेरा जीवन पाकिस्तान में नरक हो गया था, क्योंकि मुझे अपनी हिन्दू पहचान छुपानी पड़ती थी, लेकिन अब हिंदुस्तान में भी मेरी जिंदगी अँधेरी है क्योंकि मुझे यह छुपाना पड़ रहा है की मै पाकिस्तानी हूँ''. प्रजापति के जीवन की विडम्बना उन जैसे हज़ारों पाकिस्तानी हिन्दुओं की है जो सताए जाने पर हिन्दू बहुल भारत में अपना घर समझ भागकर आये लेकिन यहाँ भी उन्हें दुत्कार और संदिग्ध निगाहें ही हासिल हुई, पाकिस्तान में हिन्दू सबसे बड़े अल्पसंख्यक हैं, पाकिस्तान की कुल १८ करोड़ की आवादी में उनकी तादात १.६ % ही हैं पाकिस्तान में हिंद्दुओं की कुल आवादी का ९५% आवादी उसके दक्षिणी राज्यों पंजाब और सिंध में निवास करती है उनका पिछला बड़ा पलायन पिछले साल कुम्भ मेले के समय जब ४८९ हिन्दू तीर्थ के लिए सिंध से दिल्ली आये उन्हें एक हिन्दू परोपकारी श्री नाहर सिंह दक्षिण दिल्ली के ब्रिजवासन में आश्रय दिया।
          दिल्ली के एक समाजसेवी श्री अरुण चावला ने कुछ शरणार्थी शिबिरों के बारे में बताया कुम्भ के बहाने भारत में आये हुए हिन्दू जहागीर नगर और आदर्श नगर के बीच रोड ५७ पर कुल ४८० हिन्दू रहने को मजबूर हुए वहीँ सेक्टर ११ में 325 लोग रहने को मजबूर हुए हैं दिल्ली की शीला दीक्षित सरकार उन्हें भगाने पर उतारू थी हिन्दू हैं इस कारण इन्हे यहाँ रहने का अधिकार नहीं लेकिन अरुण चोपड़ा जैसे सामाजिक लोग भी हैं उन्हें दिल्ली के धर्मजागरण कार्यकर्ताओं ने उन्हें भोजन आवास हेतु तिरपाल इत्यादि की ब्यवस्था की लेकिन यह कितना दिन वहां के संघ के कार्यकर्ताओं ने कुछ रोजगार के अवसर उपलब्ध कराये आज वे ठेला इत्यादि लगा अपना जीवन यापन कर रहे हैं वे अब पाकिस्तान नहीं जाना चाहते वे अब इस पुण्य भूमि में ही मरना चाहते हैं वे कहते हैं की हमारी इज्जत सुरक्षित नहीं है जब चाहे कोई भी मुस्लिम नौजवान हमारी इज्जत लूटता है हम देखते रहते हैं हम कुछ कर नहीं सकते पाकिस्तानी सरकार भी उन्हीं आतंकवादियों के साथ रहती है क्योंकि इस्लाम सब जायज है, दिल्ली प्रवास के दौरान इन शिविरों में गया वे कितने दुखी हैं वे हम उसका वर्णन नहीं कर सकते !
        हलाकि भारत अफगानिस्तान, लंका, म्यांमार, कांगो, ईरान, इराक, सोमलिया, सूडान और इरिट्रिया जैसे देशों को सहूलियत देता है लेकिन पाकिस्तान से आये हुए हिन्दुओं को कोई सुबिधा देने को तैयार नहीं है हम ९० देशो के लोगो के प्रवेश पर वीसा देने की पेस्कस करते हैं लेकिन दुखद यह है की पाकिस्तानी हिन्दू (जो अविभाजित भारत के स्वाभाविक नागरिक हैं ) को भारत में प्रवेश की सुबिधा नहीं देता. यह समस्या केवल १०००० हिन्दू जो भारतीय नागरिकता हेतु आवेदन दिया है उनकी ही नहीं बल्कि लाखों उन हिन्दुओ की है जो भारत को अपना घर मानते हैं, जब असम में बंगलादेशी घुसपैठियों के बिरुद्ध आंदोलन च रहा था उस समय संघ ने स्टैंड लिया था की जो हिन्दू भारत आ रहे है वे शरणार्थी हैं मुसलमान घुसपैठिये हैं, अभी-अभी लोकसभा चुनाव के दौरान भारत के प्रधान मंत्री ने अपने चुनाव प्रचार में कहा था की विश्व का हिन्दू का स्वाभाविक घर है भारत, ''दूसरे देशों में सताए जा रहे हिन्दुओं के प्रति हमारी जिम्मेदारी भी हैउनके लिए भारत एकमात्र स्थान हैइरिट्रियायहाँ जगह देनी होगी'', पश्चिम बंगाल के चुनावी रैली में श्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, ''मै बता देना चाहता हूँ भाइयों-बहनों इसे लिख लें, १६ मई के पश्चात हम बंगलादेशियों को बोरिया-बिस्तर सहित सीमा पर भेज देंगे''. देश और सीमा पार के प्रताड़ित हिन्दू अब प्रधानमंत्री के वचन पूरा करने का इंतजार कर रहे हैं ।                  

मुगल- अकबर की महानता के लक्षण --------------!

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         आधुनिक भारत के बामपंथी इतिहासकार यह लिखते नहीं थकते कि अकबर महान था जबकि उसकी महानता का कोई लक्षण उसमे दिखाई नहीं देता, अकबर भारतीय शासक न होकर बिदेशी आक्रमणकारी था वह मुग़ल था उसने भारत की सबसे ताकतवर जाती जो भारत की सुरक्षा, सत्ता जिस कुल में चक्रवर्तियों का समूह रहा हो उस क्षत्रिय जाती की लड़कियों को बेगम बनाकर क्षत्रियों का अपमान यानी भारत का अपमान ही किया वह राजपूत राजाओं को मनसबदारी दे अपने दरबार में दरबारी बनाना उनकी लड़कियों को अपने हरम में रख उन्हें बार- बार अपमानित करना सभी का इस्लामी करण कर निकाह करना सभी हिन्दू नारियों का घुट- घुट कर मरने के अतिरिक्त कोई रास्ता नहीं था क्या यही उसकी महानता का लक्षण था -?
        बामपंथी इतिहासकारों की दुनिया १५० वर्ष या १३०० वर्ष से अधिक २००० वर्ष तक ही जाती है उन्हें हिन्दू वांगमय, वैदिक वांगमय अथवा महाभारत, रामायण इतिहास दिखाई नहीं देता वे हमारी मान्यताओं की धज्जी उड़ाकर इसे इतिहास मानने को तैयार नहीं ''जैसे यदि मुर्गा वाग नहीं दे तो सुबह नहीं होगी'' ! इनके लिखने से कुछ नहीं होता उन्हें पता नहीं कि श्रुती यानी वेद लाखों वर्ष श्रुती के आधार पर सुरक्षित रहा भारत में उनकी कोई जगह नहीं, मुग़ल आक्रमणकारी थे यह सिद्ध हो चूका है हिन्दू राजाओं ने लगातार संघर्ष कर मुगल सत्ता समाप्त करने पर तुले थे, केवल कुछ चापलूस ही अकबर को शहंसाहे हिन्द कहते थे क्योंकि अकबर की सत्ता तो स्थिर थी नहीं, राजपूताना ने मुगलों को कभी स्वीकार नहीं किया यहाँ तककि राजा मान सिंह को अपना किला आगरा में बनाना पड़ा वे राजस्थान में मुह दिखाने के लायक नहीं थे वे उसी प्रकार थे कि जैसे एक नककटे ब्यक्ति ने संप्रदाय चला पूरे राज्य के लोगो की नाक कटवा दी उसी प्रकार मानसिंह ने अपनी बेटी तो दी ही साथ में जागीर की लालच में बहुत से राजपूतों की राज कुमारियों को भी तुर्क हरम में पहुचायीं सभी एक से हो गए इस कारण कोई भी राणाप्रताप के सामने ठहर नहीं सकता था, गुजरात, मालवा, मराठा, बिहार, बंगाल असम तथा दक्षिण का कोई प्रदेश मुगलों के कब्जे में नहीं रहा फिर कहेका शहंशाहे हिन्द ! महाराणा प्रताप के स्वदेश, स्वधर्म संघर्ष ने उन्हे महान बना दिया प्रत्येक भारतीय उनके चित्र अपने घर मे लगा अपने को धन्य मानता है क्या कोई अकबर का भी चित्र लगता है महान तो एक ही हो सकता है महाराणा अथवा अकबर---!
           अकबर के पास कोई महानता का लक्षण नहीं था अकबर के हरम मे 500 बीवियाँ थीं इस्लाम मे कौन कितना वीवी रखता है उसी मे मुक़ाबला होता है अकबर की यही महानता थी, चित्तौण हमले के समय महारानी जयमल मेतावड़िया के साथ १२ हज़ार क्षत्राणियों का जौहर हुआ था क्या यही थी मु. जलालुद्दीन अकबर की महानता-? वह मीना बाज़ार लगवाता था जिसमे स्वयं महिला वेश मे जाता था जिसमे हिन्दू लडिकियाँ बेची-खरीदी जाती थी, उसने सभी क्षत्रिय राजकुमारियों से ही विवाह किया न कि किसी मुगल शाहजादी का विवाह किसी क्षत्रिय कुमार के साथ किया, मंत्रिमंडल के सभी सदस्यों राजा टोडरमल, पं तानसेन, बीरबल सभी को इस्लाम स्वीकार करवाया केवल मानसिंह ही बचा था, मुगल दरबार तुर्की, ईरानी शक्ल ले चुका था भारतीयता का कहीं नाम नहीं था, वह भारत मे लुटेरा था हमलावर था जोधाबाई तड़पती रहती थी, मुगलों की हुकूमत है उसका ईमान इस्लाम है जोधाबाई ने अपनी कोख से सलीम को पैदा किया लेकिन सलीम ने कभी भी जोधा को अपनी माँ नहीं स्वीकार किया उसकी शिक्षा -दीक्षा भारतीयता बिरोधी हुई उसी जोधाबाई की कोख द्वारा गुरु अर्जुनदेव का बधिक पैदा हुआ।
           मेवाड़ के हजारों निहत्थे किसानों की हत्या यही उसकी महानता मेवाड़ के बिरोध मे आमेर, बीकानेर इत्यादि को राजा की उपाधि देकर राणा के समानान्तर खड़ा करने का असफल प्रयास किया क्योंकि ये कोई राजा नहीं थे ये तो मेवाण राणा सांगा के रिआया यानी जागीरदार थे, राजपूतों को मांसाहार और ऐयासी की आदत डाली, मानसिंह जब मेवाण पर हमला किया तो अकबर ने कहा की कोई भी मारे दोनों तरफ हिन्दू ही हैं मान सिंह के पराजय के पश्चात कभी भी उसने महाराणा पर हमला के लिए नहीं भेजा हमेसा मुस्लिम सेनापतियों को ही भेजा, अकबर हिन्दू संतों का अपमान करने हेतु अपने दरबार मे बुलाता कुम्हन दास और संत तुलसीदास इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं विनय पत्रिका मे प्रकारांतर से वर्णन किया है, उसका मानसिंह के संत तुलसीदास से मिलने के पश्चात मान सिंह से विस्वास उठ गया था उसने मानसिंह को दूध मे जहर दिया लेकिन गिलाश बदल गया और जहर अकबर पी गया उसी से उसकी मृत्यु हो गयी। 
          अकबर न तो महान था न ही शहंसाहे हिन्द वह भारत के छोटे से हिस्से मे ही संघर्ष करता हुआ आत्म हत्या को मजबूर हुआ----!     

जब बुद्ध मुस्कराये----------!

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         विश्व के अंदर अहिंसा का सबसे बड़ा उपदेश देने वाला देश भारत जिसने महात्मा बुद्ध जैसे महापुरुष को जन्म दिया, शांति की स्थापना कब हो सकती है जब मानवता वादी सकारात्मक सात्विक विचार वाले शक्ति सम्पन्न होंगे भगवान बुद्ध का जन्म उस समय इसी कारण हुआ जब वैदिक धर्म व्यवहारिक न होकर केवल कर्मकांड मे फंस गया था तब महात्मा बुद्ध ने सभी राजाओं को संगठित कर नए मार्ग को प्रसस्त कर वेदों की व्यावहारिक जीवन पद्धति को अपना कर हिंसा को बंद कराया उन्होने कोई पंथ नहीं चलाया, कहते हैं बुद्ध मुस्कराये कब जब सम्राट चन्द्रगुप्त ने महापद्म नन्द वंश को समाप्त कर विशाल साम्राज्य की स्थापना की ! जब सम्राट अशोक विश्व शांति स्थापित करने की सैनिक क्षमता ग्रहण की तब बुद्ध मुस्कराये, कोई भी कमजोर संस्था अथवा राजा बिना शक्ति सामर्थ्य के कुछ नहीं कर सकता इसलिए बुद्ध कब मुस्कराते हैं जब कोई सद-विचार, मानवतावादी सभ्य समाज शक्ति शाली हो उभरता है जिससे विश्व मे शांति स्थापित होने की संभावना हो तब बुद्ध मुस्कराते हैं।
       जब चाणक्य ने सम्राट चन्द्रगुप्त को 'पाटिलीपुत्र'की गद्दी पर बैठाया तब बुद्ध मुस्कराइए, जब अंतिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ का बधकर सेनानी पुष्यमित्र शुंग पाटिलीपुत्र की गद्दी पर बैठा तब बुद्ध मुस्कराये, और फिर बुध मुस्कराये जब सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने भारत की सीमा अरब तक किया हूड़ों को भारत भूमि से बाहर किया विक्रम संबत प्रारम्भ किया, एक बार फिर बुद्ध मुस्कराये जब अदुतीय वीर महान हिन्दूसम्राट पृथ्बीराज चौहान दिल्ली की गद्दी पर बैठा वे फिर मुस्कराये जब सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य ने तुर्कों से सत्ता छीन हिन्दू साम्राज्य स्थापित किया, भगवान बुद्ध फिर मुस्कराये जब हिन्दू कुल भूषण महाराणा प्रताप ने मुगल विदेशी सत्ता के समाप्ति का संकल्प लिया, जब राणा राजसिंह, गुरुगोविंद सिंह, क्षत्रपति शिवाजी ने मुगल सत्ता को तार- तार कर समाप्त कर दिया और क्षत्रपति संभाजी राजे-वीरबंदा बैरागी जैसे हुत्तामा को बलिदान होते देखा ! बुद्ध फिर मुस्कराये जब महाराजा रंजीत सिंह, हरी सिंह नलवा ने अफगानिस्तान तक हिन्दू साम्राज्य को फैलाया और इस्लाम को उसी भाषा मे जबाब दिया (हरीसिंह नलवा ने मारे खेद-खेद अफगान पठन)।
        भगवान बुद्ध ने जब देखा भारत भूमि मे छट-पटाती भारत माता के दुख हरने जहां स्वामी दयानन्द सरस्वती ने ऋषि अनुकूल ग्रन्थों की रचना व वेदों का भाष्य किया, आर्य समाज की स्थापना कर हजारों क्रांतिकारी तैयार किया वहीं स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती ने सुद्धी सभा का गठन कर हजारों हुए बिधर्मियों को पुनः हिन्दू धर्म मे वापसी की, स्वामी विबेकानंद ने विश्व गर्जना शुरू कर दी, वीर सावरकर ने ब्रिटेन मे जा क्रांतिकारियों की फौज ही खड़ी कर दी, प पू डॉ केशव बलीराम हेड्गेवार ने 1925 मे नागपुर मे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना कर हिन्दू समाज मे देश भक्ति का ज्वार ला दिया, नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने जय-हिन्द नारा के साथ ''आज़ाद हिन्द फौज''की स्थापना-- तब बुद्ध मुस्कराये जब भारत आज़ाद हुआ और वे फिर मुस्कराये जब भारत ने पाकिस्तान पर विजय प्राप्त कर उसके टुकड़े कर एक नया राष्ट्र खड़ा कर दिया बुद्ध फिर मुस्कराये जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पोखरण किया भारत परूमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र हो गया । 
        भारत का उदारमना विचार ही विश्व मे शांति स्थापित कर सकता है इतिहास गवाह है  की भारत ने बलात अपने विचार किसी के ऊपर नहीं थोपा न ही किसी पर आक्रमण किया हमारे पास विचार है क्षमता है हम उसके लिए शक्ति आराधना कर हम पुनः बुद्ध के मुस्कराने का आवाहन कर सकते हैं। 

और दीपावली मनायी गयी जो आज राष्ट्रीय त्यवहार बन गया -----------!

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           कोई भी राष्ट्र तत्काल अथवा अल्प काल मे नहीं बनता वह एक लंबे समय की परंपरा का एक हिस्सा होता है, हिन्दू समाज मे जब कोई त्यवहार, उत्सव मनाया जाता है तो उसका कोई न कोई उद्देश्य होता है तो इस पवित्र दीपावली पर्व का उद्देश्य क्या है, मनाया ही जाता क्यों है -?
        हम सभी जानते हैं की जब भक्त प्रहलाद पौत्र महाराजा बलि ने तीनों लोक अपने पराक्रम से विजित कर लिया वे तीनों लोको पर शासन करने लगे महान दानी थे, सारे देवता भगवान विष्णु के पास गए महाराज यह देवलोक, देवभूमि हमे पुनः वापस दिला दीजिये भगवान जानते थे वह तो महान पराक्रमी और दानी है, वे बामन रूप धारण कर वे राजा बलि के पास गए राजा उनके सुंदर स्वरूप को देख भाव विह्वल हो गए, ब्राह्मण बालक ने अपने लिए तीन कदम धरती मागा महाराज बलि के गुरु शुक्राचार्य ने बहुत समझाया ये भगवान विष्णु है तुम्हें ठगने आए है, लेकिन राज़ा बलि ने उनकी अनसुनी कर यज्ञ वेदी पर बैठ उन्होने कहा कि यदि ये विष्णु ही हैं तो इससे बड़ा महान कार्य और क्या हो सकता है! कि भगवान स्वयं ही मेरे यहाँ दान हेतु आए हैं राज़ा ने संकल्प ले उस सुंदर बामन ब्रह्मण बालक को दान देने का संकल्प लिया संकल्प लेते ही वह सुन्दर छोटा सा बालक विशाल के होता दिखाई दिया, उस बामन ने ढाई कदम से ही धरती नाप दी, तीसरा कदम राजा बलि के सिर पर रखा। उसके पश्चात भगवान ने राजा बलि को पाताल लोक का राज्य वापस कर दिया, देवता बहुत प्रसंद हुए पहली बार धरती पर दीपावली मनायी गयी सभी ने अपने- अपने घरों को सजाया खुशियां मनाई -------!
       जब मृत्यु के रहस्य की गुत्थी सुलझाने हेतु तीन दिनो तक नचिकेता यमराज के दरवाजे पर भूखा- प्यासा बैठा रहा, आने पर यमराज को बड़ा ही पश्चाताप हुआ उन्होने उसके बदले तेजस्वी नचिकेता से तीन वर मागने को कहा उसने किसी प्रकार का प्रलोभन स्वीकार नहीं किया, मजबूर हो यमराज ने मृत्यु रहस्य बता, नचिकेता को संतुष्ट कर वापस पृथ्बी पर भेज दिया नचिकेता के वापस आने पर आध्यात्मिक जगत मे ही नहीं बल्कि मानव समाज में भी दीपावली मनाई गयी तब से यह परंपरा पड़ गयी।
        रामायण यानी त्रेतायुग काल मे जब भगवान श्रीराम ने रावण का बध कर अयोध्या लौटे तो यह भी दिन वही विजयदशमी के पश्चात अमावस्या का दिन था बड़ी ही धूम-धाम से अयोध्या ही नहीं सम्पूर्ण मानव जगत मे दीपावली मनाई गयी सभी मानवों ने अपने-अपने घरों को सजाया इस कारण समस्त भारतवर्ष मे दीपावली राष्ट्रीय पर्व (त्यवहार) के रूप मे मनाया जाता है।  
        और दीपावली पर्व भारत का राष्ट्रीय पर्व बन गया जिसे समस्त भारतीय समाज जो भी अपने को भारतीय राष्ट्रीय मानता है सभी भारतीय इस पर्व को राष्ट्रीय पर्व के नाते बड़ी धूमधाम से मनाते हैं ।  

दीपावली और गणेश-लक्ष्मी पूजन------=!

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दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें-----। 
        बहुत से हिन्दू समाज के प्रगतिशील 21वीं सदी मे अपने को कहने वाले यह कहते नहीं थकते की दीपावली प्रकाश उत्सव है क्या हिन्दू समाज बिना किसी विचार के कोई पर्व मनाता है नहीं---! प्रत्येक पर्व- परंपरा और त्यवहार के पीछे कोई विचार, कोई उद्देश्य छिपा होता है, अपने अंतर मन को ज्ञान से प्रकाशित करने वाले इस पर्व मे गणेश और लक्षमी की क्या आवस्यकता है ! कहते हैं कि गणेश जी बुद्धि के देवता हैं जब कृष्ण द्वैपायन {वेद ब्यास} को महाभारत की रचना करनी हुई तो उन्होने भगवान गणेश का आवाहन किया और व्यास जी बोलते गए गणेश जी लिखते गए।
       गणेश यानी क्या ? ऋग्वेद मे गणपती बुद्धि के देवता का वर्णन आता है, वैदिक मान्यताओं के अनुसार गणेश जी को लंबोदर यानी बड़े पेट वाला, कान हाथी के बहुत बड़ा, मुख छोटा, सवारी कैसी तो चूहे की इतनी बड़ी शरीर चूहे की सवारी अजीब है, पृथ्बी की परिक्रमा करनी है तो माता-पिता की परिक्रमा कर पूरा लेते करते हैं, इनके कान बहुत बड़े हैं वे सब कुछ सुनते हैं पेट इतना बड़ा है कि उसमे सब कुछ पचा जाते हैं मुख बहुत छोटा है अवस्यकतानुसार ही बोलते हैं, सवारी चूहे यानी माउस आज-कल जिससे कंप्यूटर चलता है, इन्हे हम लोकतन्त्र का भी देवता कह सकते हैं, जहां बुद्धि वास करेगी वहीं लक्ष्मी वहीं निवास करेंगी यानी बुद्धिमान ब्यक्ति ही धन का स्वामी हो सकता है।
         दीपोत्सव के दिन मनुष्य ख़रीदारी करता है घर को सजाता है घर की सफाई इतना ही नहीं नए घर मे प्रवेश सबसे अच्छा माना जाता है छोटे- छोटे बालक खेलने के लिए सही नया-नया घर बनाते हैं पटाखे दागना, अपने प्रतिष्ठान, घर, प्रत्येक खेत मे दीप जला केवल मन का उजाला ही नहीं तो खेत, खलिहान मे भी संपन्नता का उद्घोष करना, यानी यह त्यवहार निर्माण का है कुछ न कुछ खरीदना, सोने का सिक्का, चादी का सिक्का खरीदना उसके द्वारा पूजा करना आज-कल जो भी खरीदना है दीपावली पर खरीदना वर्ष भर प्रसन्नता वैभव संपन्नता बनी रहे यह संपन्नता का द्वैतक माना जाता है यानी लक्ष्मी का बास घर मे, इसी कारण लक्ष्मी की पूजा प्रत्येक घरमे हमारे यहाँ यह उत्सव वैदिक काल से आज- तक चला आ रहा अनादि काल तक चलने वाली है और अब यह भारत का राष्ट्रीय त्यवहार बन चुका है।
        पौराणिकों ने इसी बुद्धि के देवता को मूर्ति का जमा पहना कर गणेश और लक्ष्मी की पुजा शुरू कर दी, आज के दिन हो पूरे भारत मे सम्पूर्ण भारतीय दीपावली के दिन गणेश-लक्ष्मी की पुजा करता है ये दोनों एक प्रकार से भाई -बहन भी हैं इसलिए भैया द्विज भी दूसरे दिन ही होता है।           

बिहार में धार्मिक न्यास बोर्ड और उसकी प्रासांगिकता-----!

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बिहार धार्मिक न्यास बोर्ड---!
         बिहार धार्मिक न्यास बोर्ड क्या है और क्यों बनाया गया है ? इसका विश्लेषण होना जरूरी है जहां एक तरफ इसका समाज को लाभ दिखाई दे सकता है वहीं इसका दूसरा पक्ष भी जो बहुत ही खतरनाक भी है, मै आपको चीन और सोबियत रुश ले चलता हूँ वहाँ पर साम्य -वादियों की सत्ता आने के पश्चात उन लोगो ने जिन चर्च मे सोने छड़ी के क्रॉस थे जहां बौद्ध मंदिरों गुम्बों मे सोना-चाँदी की मूर्तियाँ अथवा अन्य बहुमूल्य सामाग्री थी शासकों ने उसे सुरक्षा के नाम पर राजकोष मे जमा कर धार्मिक आस्थाओं को समाप्त करने का प्रयास किया, नेपाल- चीन के प्रभाव मे आकर राजा महेंद्र ने गूठी संस्थान बनाकर पहाड़ और तराई के मंदिरों मे पूजित सोने-चाँदी की पूर्तियाँ उठा ली गयी तानाशाही के कारण कोई कुछ बोल नहीं सकता था सारा का सारा धार्मिक स्थल बिरान सा हो गया हैं।
        भारत मे भी सीधे वामपंथियों का शासन तो नहीं था लेकिन नेहरू जी तो संयोग-वस हिन्दू थे इस कारण उनकी भारतीय संस्कृति, भारतीय राष्ट्र, सनातन परम्परा व हिन्दू धर्म मे कोई आस्था नहीं थी उन्होने सीधे हिन्दू धर्म पर हमला नहीं किया लेकिन उन्होने जिस नीति का अनुशरण किया वह हिन्दू बिरोधी थी भारत के कई प्रांतो मे अपने कांग्रेस नेताओं को साधू बना धार्मिक क्षेत्र को नास्तिक व हिन्दू बिरोधी अथवा भारत बिरोधी कराने का प्रयास किया उसी मे एक बिहार के हरिनारायणानंद जी भी हैं जो भारत साधू समाज जो कांग्रेस का एक काम है उन्हे इस कार्य मे लगा दिया, सर्वप्रथम नेहरू जी का ध्यान बिहार की तरफ आया उन्होने एक कांग्रेस कार्यकर्ता स्वामी हरीनारायना नन्द को 1951 मे न्यास बोर्ड बना उसका प्रथम अध्यक्ष बना दिया, बिहार मे हजारों मठ -मंदिर हैं जिनका समाज पर बहुत प्रभाव था वे उसे कैसे समाप्त करें उनके लिए धार्मिक न्यास बोर्ड बनाने का प्रयास किया स्वामी हरीनारायना नन्द के दिमाग मे था की कांग्रेस की सत्ता कभी समाप्त नहीं होगी सरकार से मिलकर हिन्दुत्व को समाप्त करने हेतु धार्मिक न्यास बोर्ड का गठन किया गया बस क्या था ? सब कुछ समाप्त हो गया।
         न्यास बोर्ड का परिणाम धीरे -धीरे जब संतों का प्रभाव समाप्त होने लगा संत मात्र सिम्बौलिक (खेतों मे धोक के समान) रहने लगे उन्हे असुरक्षा भाव का अनुभव होने लगा, परम्पराएँ खंडित होने लगी सभी गुरुकुल बंद होने लगे जो मठ गावों मे सामाजिक केंद्र हुआ करते थे अब घृणा के पात्र होने लगे, न्यास बोर्ड की तुलना मुगल शासन से की जा सकती है जैसे उस काल मे जज़िया कर हिन्दू मंदिर, मठों पर था उस सामय के राजाओं, राणाओं ने जज़िया कर से छुटकारा था वहीं आज उससे अधिक मठों, मंदिरों से कर वसूला जा रहा है जिससे किसी मंदिर का विकास नहीं अपनी सरकार द्वारा ही धार्मिक विकास अवरुद्ध, यदि कोई महंत अपने मंदिर की मरम्मत करना चाहता है तो वह अपराधी हो जाता है इस कारण मंदिरों का विकाश अवरुद्ध हो गया, वामपंथियों ने हिन्दू धर्म पर परोक्ष हमला शुरू किया वे मानों नेहरू के ही सैनिक थे बाबाओं के ऊपर अनावस्यक आरोप लगा मठ का सरकारी करण शुरू कर दिया, परम्पराएँ समाप्त कर अपने ब्यक्ति जिंनका उस पंथ से कोई मतलब नहीं उन्हे महंत बनाने की प्रक्रिया शुरू हो गयी, पहले तो किसी ने कोई ध्यान नहीं दिया लेकिन जब पूर्ब आईपीएस किशोर कुणाल न्यास के अध्यक्ष बने तब से साधू-संत परेशान हैं उन्होने समाज मे अपनी प्रतिष्ठा बना ली है और धर्म को समाप्त करने पर तुले हुए हैं अब वे नया पंथ बना जगतगुरु बनाना चाहते हैं कुछ मंदिरों को प्रतिष्ठित कर अन्य मंदिरों के महंतों को निकालना जैसे वे जगतगुरु हों अपने आफिस मे साधुओं का अपमान तो सामान्य सी बात है क्या वे किसी मुल्ला-मौलबी व फादर, पास्टर का अपमान कर सकते हैं ? कुणाल अपने समय के प्रतिष्ठित (जहां-जहां एसपी रहे वहाँ के लोगों का मत अच्छा नहीं) अफसरों मे गिने जाते हैं नितीश कुमार को एक हिन्दू बिरोधी पाखंडी हिन्दू चाहिए था वह कुणाल मिल गए उन्हे न्यास बोर्ड का अध्यक्ष बना दिया सर्वबिदित है कि किशोर कुणाल पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंहा राव के राम जन्म भूमि बिरोध की मुहिम के अगुवा थे इसी कारण हिन्दू बिरोधी- हिन्दू को आगे कर हिन्दुत्व समाप्त करना यही काम है, किशोर कुणाल मंदिरों को धार्मिक न्यास बोर्ड मे न लेकर अपने ब्यक्ति गत ट्रष्ट महावीर मंदिर ट्रष्ट के नाम लिखाना जैसे मुजफ्फरपुर का पोखर मंदिर जो करोणों की संपत्ति है, किसी बड़े मठ जो 100 से हजार एकड़ के हैं बाहुबली हैं कुणाल उसे अनदेखी करते हैं लेकिन जो सज्जन साधू हैं परंपरा से जुड़े हैं उन्हे परेशान करना उनकी नियति ही बन गयी है।                    
        न्यास बोर्ड ने सनातन परंपरा को समाप्त करना ही नियति बना लिया है यदि सन्यासी परंपरा का मठ है तो वहाँ किसी और मत का साधू बैठाना यदि वैष्णव मत का है तो कबीर पंथी जब की न्यास को किसी मठ मे हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है वह केवल ब्यवस्था देख सकता है, संतों, महंतों की नियुक्ति करने का अधिकार उनके परंपरागत जगतगुरु, आचार्य को हैं वे सब के सब अयोध्या, मथुरा, काशी मे रहते हैं, साधू सन्यासियों का अपमान करना सेकुलर दिखाना, इतना ही नहीं न्यास बोर्ड का धन भारत बिरोधी, ''चर्च और मखताब, मदरसों''के लिए देना, यह समाज मे चर्चा का विषय बना हुआ है कारण कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सूचना अधिकार के तहत जब न्यास बोर्ड से पूछा कोई उत्तर नहीं मिला, वास्तविकता यह है कि न्यास बोर्ड की प्रासंगिकता ही समाप्त हो गयी है, अब इसका नए सिरे से गठन होना चाहिए मठो मे महंतों की नियुक्ति परंपरा से होनी चाहिए जिससे भारतीय संस्कृति सुरक्षित रह सके, हमारे मठ, मंदिर हमारी संस्कृति के केंद्र बिन्दु हैं बिना मठ, मंदिर और गुरुद्वारा के भारतीय संस्कृति की कल्पना नहीं की जा सकती वे हिन्दू समाज के प्रतीक हैं उसके साथ खिलवाड़ करना राष्ट्रीय अपराध है, सभी संप्रदायों के संत-महंतों और हिन्दू विचारकों से विचार -बिमर्श कर सरकार को न्यास बोर्ड मे संतों की भूमिका निर्धारित करना और ''बिहार धार्मिक न्यास वोर्ड''के पुनर्गठन के बारे मे सीघ्र निर्णय करना चाहिए।
        यदि न्यास बोर्ड ईमानदार है बिहार सरकार सेकुलर है तो चर्च, बौद्ध मंदिर, जैन मंदिर और मस्जिद मदरसे क्यों नहीं न्यास बोर्ड मे--? क्या ये सब बिहार मे नहीं रहते--! हिन्दू ही निरीह प्राणी है-! जिसके धर्म व स्थलों पर जब चाहे तब जो चाहे सो करे लेकिन इनकी हिम्मत नहीं की हिन्दू धर्म के अलावा किसी का छेड़- छाड़ कर सके, आज हिन्दू समाज को आगे आकर अपने मठ- मंदिरों की सुरक्षा हेतु खड़ा ही नहीं लड़ना भी पड़े तो लड़ना चाहिए नहीं तो ये सेकुलरिष्ट हिंदुओं की परंपरा, धार्मिक पहचान समाप्त कर सेकुलर के नाम पर भारत का इस्लामीकरण करने का प्रयास करेगे, हिन्दू समाज को इस समय चैतन्य रहने की अवस्यकता है यह हिंदुओं का देश है अपने देश की रक्षा करना हमारा कर्तब्य है देश की रक्षा का मतलब है देश की संस्कृति, भाषा और धर्म की रक्षा जो एक-दो दिन मे नहीं तो हजारों, लाखों वर्षों की तपस्या से हमारे ऋषियों, मुनियों और चक्रवर्ती सम्राटों ने निर्माण किया है।         

प्रचारक कर्मयोगी श्री राकेश कुमार जी के असमय निधन पर शोक संवेदना----!

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           मेरे परम श्रद्धेय मित्र श्री बालमुकुंद जी का फोन ठीक 12 से कुछ ऊपर है वे फोन पर कुछ ठीक से बोल नहीं प रहे थे उन्होने कहा की बहुत दुखद समाचार है और वे बोले श्री राकेश जी का सड़क दुर्घटना मे मृत्यु हो गयी उनके साथ श्री अशोक प्रभाकर भी थे वे स्वस्थ है उनसे बहुत बात नहीं हो सकी मैंने अशोक जी से बात की मैंने पूछा की आप कैसे हैं ठीक हैं न-! उन्होने कहा अब ठीक होने से क्या मित्र तो चला गया-------! मेरे कमरे मे मा॰ दत्ता जी हैं उन्हे बैठक मे जाना है कैसे सूचित करू तब-तक वे बैठक मे चले गए लौट कर आने पर पूछा की आप सोये नहीं नीद कैसे आती मैंने कहा बहुत दुखद समाचार है फिर मैंने उन्हे इस दुखद समाचार से अवगत कराया वे स्तब्ध कुछ देर देखते रहे---! राकेश जी कोई 56 वर्ष के थे स्नातकोत्तर शिक्षा के पश्चात वे ''हिन्दवः सोधरा सर्वे न हिन्दू पतितो भवेत''भारत माता ही आराध्य, दरिद्र नारायण की सेवा ही लक्ष्य मान संघ के प्रचारक निकले वे लुधियाना के पास पंजाब के रहने वाले थे बिभिन्न दायित्यों को का निर्वाहन करते हुए जम्मू कश्मीर जैसे कठिन प्रांत के प्रचारक बने, आठ वर्षों तक प्रांत प्रचारक रहे, उनके अंदर कभी राजनैतिक महत्वाकांक्षा नहीं थी किसी भी राजनेता से संपर्क स्थापित करना स्वभाव मे नहीं था कितना भी कठिन परिस्थित क्यों न हो वे हसते-खेलते समाधान करना स्वभाव मे था सादगी तो उन्हे देखते झलकती थी।  
        संगठन उनकी क्षमता देखते हुये भारतीय सीमा का काम दिया उन्होने बड़ी ही कुशलता से उन्होने अपने कार्य का निर्वहन किया बहुत ही अल्पसमय मे भारत के समुद्री सीमा से लेकर दुर्गम हिमालय तक संगठन खड़ा कर दिया उन्होने यह बताया की सीमा की रक्षा का कार्य केवल सैनिको का ही नहीं बल्कि समाज का भी है, एक अद्भुत कार्यक्रम के माध्यम (सरहद को प्रणाम)  से सेना के मनोबल बढ़ाने का काम किया हमारा सौभाग्य था की साथ काम करने का मौका मिला वे हमेशा हँसते मिलते उनकी याद हमे काम करने की प्रेरणा देगी आज 11 बजे वे जैसलमेर से पोखरण के लिए श्री अशोक प्रभाकर के साथ जा रहे थे अचानक गाड़ी कंट्रोल से बाहर हो गयी गाड़ी पलट गयी राकेश जी ने तो यह भी मौका नहीं दिया की उन्हे हास्पिटल ले जाया जा सके, उन्होने यह चरितार्थ किया ''तेरा वैभव अमर रहे माँ हम दिन चार रहे न रहे,''उनका तत्काल देहांत हो गया अशोक जी को चोट आयी है एक कार्यकर्ता और भी हमने खोया संघ की बड़ी छति हुई जिसकी पूर्ति होना मुसकिल, भगवान उनकी आत्मा को शांति दे संघ परिवार धर्मजागरण समन्वय विभाग की तरफ से उनके परिवार को इस दुख सहन करने की क्षमता दे यह ईश्वर से यही प्रार्थना।   

हज़ार वर्ष गुलामी के पश्चात क्या आज हम स्वतंत्र है? अथवा वह दिन कब आयेगा !

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          कहते हैं की 15 अगस्त 1947 को देश आज़ाद हो गया और 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान भी लागू हो गया क्या यह वास्तविकता है या कल्पना यदि यह वास्तविकता है तो हज़ार-बारह सौ वर्ष की हमने समीक्षा की ! यदि नहीं की तो क्यों ? विधर्मियों ने कितने मंदिर तोड़े, कितने हिन्दुओ को मुसलमान बनाया, कितने को भेड़-बकरियों के समान सऊदी अरब के बाज़ारों मे बेचा, कितनी हिन्दू ललनाओं से बलात्कार किया या कितने को बलात अपने हरम मे रखा कभी तो कोई हिसाब करता, हमारा देश कितना बड़ा था हम कौन थे क्या हो गए ? इन सब विषयों पर हम कब विचार करेगे!
           पिछले हज़ार वर्षों से भारत इस्लामी आक्रांताओं से पीड़ित रहा है और आक्रांताओं ने इस भारत वर्ष के हजारों मंदिरों को ध्वस्त किया है, सातवीं सताब्दी मे जो चीनी यात्री भारत आए उनके यात्रा वृतांतों मे ऐसे मंदिरों का उल्लेख है जिनमे बौद्ध, जैन मंदिर सामील हैं परंतु आज उन मंदिरों का कोई अस्तित्व देखने मे नहीं आता, क्या वे हवा मे लुप्त हो गए ? भारत एक वैभवशाली देश था हिन्दुओ की उदारबृती के फलस्वरूप हिन्दू-मंदिर भी काफी वैभवशाली थे, इन मंदिरों की अकूत संपत्ति ने भी इन लुटेरों को आकर्षित किया इन आक्रांताओं ने मंदिरो को लूटा और हिन्दुओ की भावनाओं को ठेस पहुचाने की लिए उन्हे तोड़ा तथा पवित्र स्थलों पर उन्ही मंदिरों के अवशेषो से मस्जिद निर्माण किया, कहीं-कहीं मंदिर की मूर्तियों को मस्जिद की सीढियों तले नीचे लगाया ताकि मुसलमान उस पर पैर रखकर मस्जिद मे प्रवेश करें, यह सब हिन्दुओ को अपमानित करने के लिए उनका मनोबल तोड़ने, उन्हे जबरदस्ती मुसलमान बनाने के लिए किया जाता था और जिंहोने प्रतिरोध किया वे मौत के घाट उतार दिये जाते रहे, मुख्य मंदिर मुस्लिम दरिंदगी के शिकार हुए, वे थे सोमनाथ गुजरात, श्रीकृष्ण जन्मभूमि मथुरा, श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या तथा काशी का विश्वनाथ मंदिर।
            मुस्लिम आक्रांताओं ने भारत का वैभव लूटा हजारों -लाखों की संख्या मे नरसंहार किया बलात धर्मपरिवर्तन कराया और लाखों की संख्या पुरुषों -महिलाओ बच्चो को गुलाम बनाकर मुस्लिम देशों के बाज़ारों मे भेड़-बकरियों की तरह बेचा।इतने बड़े अत्याचार की लोंहर्षक कथा से पूरा का पूरा पश्चिम व मीडिया के बंधु अज्ञात रहे यह उनके लिए भी सोध का विषय है, सन 1947 मे धर्म के नाम पर देश का बटवारा हुआ पश्चिमी पाकिस्तान तथा पूर्वी पाकिस्तान, बाद मे बांगलादेश शेष भाग भारत हुआ जो हिन्दुओ के पास है, पाकिस्तान बनने के बाद हजारों मंदिर तोड़ दिये गए यहाँ तक कि पाकिस्तान और बंगलादेश की सरकारों तथा सेना ने मंदिर ध्वंसकारियों को सहयोग दिया, भारत का वास्तविक इतिहास यह हैं की यहा के हिन्दु -मंदिर इतनी बड़ी मात्र मे मुसलमानो द्वारा ध्वंस हुआ, लेकिन इसकी कोई गणना नहीं की गयी और न इसे कोई महत्व ही दिया गया, अयोध्या की घटना मे इसके बिपरित एक विवादित ढ़ाचा के ध्वंस को इतनी अहमियत प्रदान की गयी कि पूरी की पूरी हिन्दू- जाती को अनुदार, असहनशील, मस्जिद ध्वंसक के रूप मे प्रचारित किया गया।
         अयोध्या घटना की प्रतिकृया स्वरूप पाकिस्तान, बांग्लादेश के अलावा विश्व के अनेक भागों मे, ब्रिटेन, यहाँ तक की मुस्लिम बहुल कश्मीर मे भी बड़ी संख्या मे मंदिर तोड़े गए लेकिन इन घटनाओं की कोई निंदा तक नहीं की गयी और न इसकी कोई अहमियत ही दी गयी, उल्टे माना गया की यह अयोध्या घटना की स्वाभाविक प्रतिकृया है और इन मंदिरों के ध्वंस के लिए भी हिन्दू ही जिम्मेदार, आरोपी हैं न कि मुसलमान।
          अब भारतीय समाचार -पत्रों के पूर्वग्रह को देखें, इतनी बड़ी संख्या मे हिन्दू मंदिरो के ध्वंस के बजाय उनकी नज़र मे अयोध्या का विवादित ढांचा ज्यादा महत्वपूर्ण है, क्योकि मंदिरों के ध्वंस को कोई महत्व नहीं जबकि विवादित ढांचे के ध्वंस को विश्व की एक प्रमुख घटना बना दिया गया ? पाकिस्तान मे ही अहमदिया समुदाय की एक मस्जिद को तोड़ा गया, इस्लामी देशों मे कई अन्य कारणों से कई मस्जिड़े तोडी गईं, लेकिन समाचार पत्रों का विषय नहीं बनाया गया, न उनपर तीखी प्रतिक्रियाएँ दी गईं यह समाचार पत्रों की गुलामी की भूमिका नहीं तो और क्या है ?
           आज़ादी के इतने वर्षों के पश्चात भी क्या आज भी हिन्दू समाज गुलाम ही है--! यह प्रश्न बार-बार कौधता है जब NDA की सरकार अटल जी के नेतृत्व मे थी तब भी क्या हुआ ? छोटे-छोटे दलो की प्रतिबद्धता ध्यान मे थी लेकिन हिन्दुओ की जिंहोने बड़ी उम्मीद से वोट दिया था क्या हुआ ! वही मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति और परिणाम 2004 के चुनाव मे बीजेपी की बुरी तरह पराजय, बीजेपी यानि एनडीए की बिहार सरकार के मंत्रिमंडल ने अलीगढ़ मुस्लिम वि बि की स्थापना, बंगलादेशी घुसपैठ को नकारना, अररिया मे पशु बधशाला प्रदेश भर मे हिंदुओं की उपेक्षा दुर्गा, सरस्वती पूजा मे मूर्तियों पर हमले आम बात हो गयी हिन्दुओ की कोई सुनने वाला नहीं हिन्दू त्राहि-त्राहि करने लगा राजगीरी मे अधिक मास के मेले की हालत तो और भी खराब हिन्दुओ की परंपरागत जमीन जहां साधुओं की छवानी लगती थी एनडीए की सरकार ने उजड़कर मुसलमानो के लिए घेरवाया, हिन्दू समाज कब आज़ाद होगा कब इन सारे विषयों का हिसाब चुकाएगा ? बांगलादेश, पाकिस्तान मे हिंदुओं की दुर्दशा तो हम देख ही रहे है भारत के प बंगाल, उप, बिहार, कश्मीर सहित अन्य प्रांतो मे हिंदुओं की क्या दशा है ? जिन लोगो ने बंगाल मे बीजेपी को वोट दिया था वे मारे जा रहे हैं उत्तर प्रदेस मे संघ के कार्यकर्ताओं की हत्या हो रही है आखिर गृहमंत्री का ध्यान इस पर क्यों नहीं जाता वे महाराष्ट्र मे आतंकवादी मोहसीन की हत्या पर जो ब्यक्ति जेल मे था उसे पर कार्यवाही के लिए ही क्यों आदेश ? क्या बीजेपी को वोट देकर पुरानी एनडीए जैसा ही होगा जिसमे हिन्दुओ का अपमान ही हुआ आज केंद्र सरकार से सवाल है की भारत कब आज़ाद होगा जब उसे हजारो साल से टूटते मंदिरों, हिंदुओं की हत्याओं, हिन्दू माँ बहिनों के साथ बलात्कारों का हिसाब मिलेगा और आज भी बिहार के पूर्बी हिस्सा, झारखंड का पूर्वी भाग व पश्चिम उप्र मे हिन्दू सुरक्षित रह सकेगा इसका उत्तर कौन देगा -?
       भारत 9वी शताब्दी के बाद से निरंतर मुस्लिम आक्रांताओ के सैनिक अभियान तथा आर्थिक, धार्मिक शोषण का शिकार होता रहा है, और 17वी शताब्दी मे पुर्तगालियों तथा अंग्रेजों के अत्याचारों का शिकार रहा है भारत मे आज़ादी के पश्चात शासन के केवल तरीके बदले हैं दुर्भाग्य आज भी सब कुछ वही है जो गुलामी काल मे था, फिर वही प्रश्न है की क्या हिन्दू समाज को आज़ादी मिलेगी! जिसमे वह खुली स्वास ले सके, जहां उसके मंदिर तोड़े न जाय, जहा उसे समानता का न्याय मिले, जहां गो हत्या न हो, जहां उसके मानदंडों की उपेक्षा न की जाय, जहां लव -जेहाद से हिंदुओं की बहन बेटियों का अपहरन न किया जाय, वह दुर्गा पूजा और माँ सरस्वती की प्रतिमा का बिना किसी विघ्न के विसर्जित कर सके इन सब विषयों का उत्तर चाहिए-----!                 

संत झूलेलाल के अवतरण के कारण-----!

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          संत झुलेलाल का ऐसे समय अवतरण हुआ जब हिन्दू समाज मुस्लिम आक्रांताओं से त्राहि-त्राहि कर रहा था मंदिर ढहाए जा रहे थे हिंदुओं को गुलाम बना अरब की बाज़ारों मे बेचा जाता हिन्दू महिलाओं का बलात हरण तो सामान्य बात हो गयी थी ऐसे लगता था हिन्दू अस्तित्व खतरे मे पड़ गया -- कौन बचाएगा और कैसे बचेगा यह मानवतावादी धर्म यह प्रत्येक मनुष्य के मन मे थी, नौ सौ साल पहले की बात है लाहौर शहर नष्ट होकर मुस्लिम शहर बन चुका था मकरखान नामक अहंकारी मुस्लिम शासक था जिसने हिन्दुओ का जीना दूभर कर रखा था बलात धर्मांतरण जो असह्य था मरखखान ने फरमान जारी किया या तो सभी हिन्दू इस्लाम स्वीकार ले या आराधना करते हुए अपने ईश्वर को प्रकट कारें इस आदेश से हिन्दू कंपित हो गया तभी किसी ने सुझाव दिया की सिंधु सागर तट पर भगवान की आराधना की जाय सभी दरियासाह की आराधना मे सागर पर हिन्दू समाज अपार जैसे उमड़ पड़ा या तो मरेगे या तरेगे अपने आराध्य को पाएगे यह संकल्प झाझ, मजीरा इत्यादि वाद्य यंत्र लेकर हिन्दू समुदाय सिंधु तट पर खड़ा, विद्वान पंडितों ने वरुण देवता की पूजा शुरू की तब-तक सिंधु जल मे अजीब सी हलचल हुई आकाशवाणी हुई तुम सभी श्रद्धालु अपने-अपने घर जावो तुम्हारा संकट दूर करने मै नरसपुर मे जन्म लेने वाला हूँ इस आकाशवाणी सुन सभी हर्ष से नाच उठे ठक्कर रत्नराय के यहाँ,जो अपने गाव के अग्रगणी ब्यक्ति थे ऐसे समय मे वर्ष प्रतिपदा के दिन झुलेलाल का जन्म हुआ सारा गाव, हिन्दू समाज आनंद उत्सव मनाने लगा और यह समाचार मरखखान के यहाँ तक पहुच गया ।
          नबाब ने अपने मंत्री को गुलाब की पंखुड़ियों मे जहर लगा उस बालक की हत्या हेतु भेजा, जब वजीर रत्नराय के यहाँ पहुचा तो बालक एक दृष्टि से वजीर को देखता रहा देखते-देखते वह एक घड़ी का जन्म लिया बालक दस वर्षीय दिखाई देने लगा वह आश्चर्यकित हो उठा इतना ही नहीं वह वयस्क और फिर सफ़ेद दाढ़ी- मुछ वाला बूढ़ा हो गया, वजीर की परेशानी बढ़ गयी परेशान हो गया रत्नराय से कहा इस दिब्य  बालक को नबाब अपने घर देखना चाहते हैं, पिता ने छमा याचना करते हुए कहा इतने छोटे बालक को कैसे मै ले चालूगा मै एक महीने मे लेकर आवुगा इधर यह सब हो ही रहा था की मरखसह ने देखा की हजारों की सेना के साथ सागर से वह बालक चला आ रहा है वह भय से काँप गया छमा याचना करने लगा फिर कहा हे वरुण अवतार आप यहा से चले जायिए मै यह सब अत्याचार बंद कर दूगा मै कभी कोई अनाचार नहीं करुगा, हे अवतारी औलिया मैंने आपको बुलाया था न की सेना को कृपया आप शांति हो जाय तब-तक सारी सेना सहित सब कुछ समाप्त हो गया, वजीर जब दरवार पहुचा तो नबाब ने कहा की तू भले ही आज आया परंतु वह बालक तो सेना सहित कल रात्री मे ही यहा आ चुका था साह की बात सुन वह आश्चर्य चकित पूछा की तब क्या हुआ सरकार ! साह ने बताया की वह किसी के रोकने से नहीं रुका वह क्या था समझ मे नहीं आया।
        वे वरुणदेव के अवतार थे उन्होने हिन्दू समाज पर होते अत्याचार से मुक्ति दिलाई इस्लामिक सासन भयाक्रांत हो गया अत्याचार बंद हो गए वे हिन्दू रक्षक होकर पूजित हो बढ़ते हुए धर्मांतरण, इस्लामी करण को रोका अश्वारूढ़ हो उन्होने हिन्दू समाज को उपदेश दे वे त्रिशूल गाड़ स्वर्ग को चले गए, जब हिन्दू समाज के लोगो को पता चला तो सभी जन भागकर आए देखते-देखते जहां त्रिशूल गड़ा था वहाँ सागर हो गया यह चमत्कार देख जय झुलेलाल का भक्ति गान करने लगे और वह स्थान तीर्थस्थान बन गया ।        

बिहार जिसने 2600 वर्ष भारत का नेतृत्व किया ------------!

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          आखिर बिहार की पहचान क्या है ? लालू प्रसाद यादव, नितीश कुमार, राजेंद्र बाबू अथवा और कुछ-! आज यह हमे विचार करने की आवस्यकता है जब पूरे भारत मे जाते हैं तो लोग लालू का बिहार कहकर मज़ाक उड़ाते हैं क्या यही बिहार है ? या भ्रष्ट्राचार मे डूबा, अहंकारी नितीश आखिर बिहार की पहचान क्या है! जिस बिहार ने 3500 वर्ष तक भारतवर्ष पर शासन किया उत्कर्ष पर पहुचाया अथवा आर्यावर्त के केंद्र मे रहा उसकी राजधानी राजगिरि, पटलिपुत्र रहा वह बिहार कहाँ है ! पुरातात्विक अनुसन्धानों के अनुसार पटना का इतिहास 490 वर्ष ईशा पूर्व शुरू होता है जब हर्षक वंश के शासक अजातुशत्रु ने अपनी राजधानी राजगृह से बदलकर यहाँ स्थापित की, मौर्यवंश के उत्कर्ष के पश्चात पाटिलीपुत्र सत्ता का केंद्र बन गया चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य ब्रह्मदेश से अफगानिस्तान तक फ़ेल गया था।
         बिहार के ऐतिहासिक योगदान का सबसे प्रभावशाली पक्ष है, छठी शताब्दी ईशा पूर्व से छठी सदी अर्थात बारह सौ वर्ष तक भारतीय राजनीति अग्रगनी भूमिका का निर्वाह किया, इस कल खंड मे बिहार ने चन्द्रगुप्त मौर्य, बिंबिसर, अशोक, अजातशत्रु, पुष्यमित्र शुंग, समुद्रगुप्त, चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य  और स्कंदगुप्त जैसे यशस्वी शासक ही नहीं दिये आपित असेतु हिमाचल अर्थात समुद्र से हिमालय तक शासन की अखंड भारत की आधारशिला रखी यह बारह सौ का समय भारतीय संस्कृति के पुष्पित,पल्लवित होने का समय है, महर्षि पतंजलि का महाभाष्य, पाणिनी का अष्टाध्यायी और कौटिल्य का अर्थशास्त्र जैसे अपूर्व ग्रंथ इसी काल के हैं, महान खगोल शास्त्री, गणितज्ञ आचार्य आर्यभट्ट की प्रयोग शाला खगोल तथा तारेगना भी यहीं, विश्व प्रसिद्ध नालंदा विश्व बिद्यालय, विक्रमशिला यहीं था  ।
         वास्तविक बिहार का परिचाय ऐतिहासिक श्रोत और महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं के वर्णन से मिलता है यही है असली बिहार लेकिन दुर्भाग्य ऐसा है कि किसी भी सत्ता का उत्थान और पतन भी निश्चित है लेकिन इस प्रकार होगा यह नहीं पता था कि जहां -जिस राजधानी मे चन्द्रगुप्त मौर्य और पुष्यमित्र शुंग जैसे सम्राटों ने शासन किया जो चक्रवर्ती हुये वहीं पर उनके उत्तराधिकारी के रूप मे लालू और नितीश आएगे यह कल्पना से बाहर था क्या पुनः इतिहास दुहराएगा और अपने वैभव को प्राप्त करेगा -----!     

आर्यावर्त के महानतम वैज्ञानिक आर्यभट ----------------!

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         महान गणितज्ञ वैज्ञानिक आर्यभट----
          भारत मे निर्मित प्रथम उपग्रह का आर्यभट नाम देकर 19 अप्रेल 1975 को अंतरीक्ष मे छोड़ा गया तभी जाकर प्राचीन भारत के महान वैज्ञानिक 'आर्यभट'का नाम देश के कोने-कोने मे प्रचारित हुआ, फिर अगले वर्ष नयी दिल्ली मे आर्यभट की 1500वी जयंती मनाई गयी और 'आर्यभटीय'के तीन -चार उत्तम संस्कारण उपलब्ध हुए और वे चर्चा मे आए।
       आर्यभट के जन्म के बारे में कुछ मत-भेद है कुछ विद्वानो का मत है की उनका जन्म नर्मदा के पास कहीं हुआ था कुछ इतिहासकारों के मतानुसार लेकिन उनकी पढ़ाई नालंदा विश्वबिद्यालय में हुई थी इनकी प्रयोगशाला 'खगोल'जो कुसुमपुर (पटना) के पास है 'तारेगना'जो दूसरी प्रयोग शाला जहाँ से वे नक्षत्रों के गणना का काम करते थे, वह भी स्थान यहीं पर है इससे यह पता चलता है की जन्म कहीं भी हो पर कर्मभूमि कुशुमपुर ही थी, कुछ लोगो का विचार है की उनका जन्म कुसुमपुर अर्थात आधुनिक पटना मे हुआ था। आर्यभट ने केवल इतनी ही स्पष्ट जानकारी दी है भारतीय ज्योतिष के अनुसार कलि के 3179 वर्ष बीतने पर शककाल शुरू हुआ था अतः आर्यभट 23 वर्ष के थे यानी उनका जन्म 398 शक अर्थात उनका जन्म 476 ई॰ सन मे हुआ, इस गणना के अनुसार रविवार 21 मार्च 476 को आर्यभट का जन्म तिथि निर्धारित किया जा सकता है ।
        पाटीलीपुत्र आधुनिक पटना को पुष्पपुर और कुसुमपुर के नाम से भी जाना जाता था, मौर्यकाल से लेकर गुप्तकाल तक भारत का एक वैभवशाली नगर था 'दशकुमारचरित'के लेखक 'दंडी'ने पाटीलीपुत्र को कुसुमपुर कहा है, कबि विशाखादत्त, जिनका समय संभवतः ईशा की आठवी सदी है अपने नाटक 'मुद्रराक्षस'मे सूचना देते हैं कि कुसुमपुर (पटीलीपुत्र) मे राज़ा और बड़े लोगो का निवास था, आर्यभट के प्रथम भाष्यकार भास्कर प्रथम (629) ने भी मगध के पाटीलीपुत्र को ही कुसुमपुर माना है उस समय कुसुमपुर मे स्वयंभूव या ब्रम्हा-सिद्धान्त का विशेष आदर था। वराहमिहिर ने ''पंचसिद्धांतिका''मे जिन पाँच पुराने सिद्धांतों का परिचय दिया है उनमे सबसे प्राचीन 'पितामह-सिद्धान्त'या 'ब्रम्हा-सिद्धान्त'ही है, वस्तुतः ब्रम्हा-सिद्धान्त को संशोधित करने के प्रयोजन से आर्यभट ने अपने ग्रंथ की रचना की है।
         आर्यभट मूलतः वैदिक आचार्य थे उनका वेदों मे अटूट विसवास था वेदों के आधार पर सौर्य मण्डल के गूढ रहस्यों को खोज निकालने का प्रयास किया, उन्हीं वेदों को आधार मान स्वामी दयानन्द ने जब पृथबी सहित अन्य ग्रहों के भ्रमण की बात की तो बहुत अवैदिक मत के लोगो ने बड़ा बिरोध किया यहाँ तक कि यदि ये भारत न होता तो उनकी हालत भी 'गलेलियों'के ही समान होती, आर्यभट ने तो हजारों वर्ष पूर्व वैदिक सिद्धांतनुसार ब्रह्मांड के रहस्यों को उजागर किया तो हम समझ सकते है कि समाज जीवन की क्या प्रतिकृया रही होगी ! कुछ विद्वानों का मत है कि उन्होने अपने बुद्धि से नहीं दैवीय प्रेरणा से लिखा तो वह दैविक प्रेरणा भी वैदिक ही रही होगी 'आर्य स्त्रोत सत'  मे 108 श्लोक है यह भाग तीन छोटे-छोटे भागो मे विभक्त है, 'आर्यभटीय'मे पृथबी का आकार, पृथ्बी कि आकर्षण शक्ति, पृथ्बी का अपनी धुरी पर घूमना, पृथ्बी के मार्गों का विषम वृत्ताकार होना, पृथ्बी का रकबा, भू-वायु कि उचाई आदि के बारे मे वर्णन है छठे सूत्र मे है 'भूगोलः सर्वतो वृत्ताह' (पृथ्बी गोलाकार है) सूर्योदय पृथ्बी पर नहीं होता यह वैदिक आधार पर सिद्ध किया।  
           संसार के वे पहले ज्योतिष वैज्ञानिक थे जिंहोने वेदों की सार्थकता को सिद्ध करते हुए यह सिद्ध किया कि पृथ्बी स्थिर नहीं अपनी धुरी पर घूमती है, उस समय न तो वर्तमान की तरह आधुनिक विकसित यंत्र थे न ही प्रयोगशाला, यह उनकी बिलक्षण बुद्धि का परिचायक ही है और हमारे पूर्वज कितना सोध के प्रति सतर्क थे, ग्रंथ मे पृथ्बी के सूर्य का चक्कर लगाने का ब्यवरा है, जिसमे लिखा गया है कि चतुर्युगी यानी चार युग (कलयुग, त्रेतायुग, द्वापर तथा सतयुग) इन सबों के कालावधि का भी वर्णन है, ग्रंथ मे पृथ्बी 366 दिनों मे एक बार घूमती है, इस तरह पृथ्बी का क्षेत्रफल या ब्यास कहें 1,94,82,897,30 वर्ग मिल है। काल क्रिया पद के 15वें सूत्र ग्रहों मे चंद्रमा को पृथबी के सबसे नजदीक बताया गया है। 
           उन्होने जिन ग्रन्थों की रचनाकी उसमे 'आर्यभटीय'ग्रंथ के चार खंड है दशगीतिका, गणितपाद, कालक्रियापाद, और गोलपाद, दशगीतिका मे प्रथम वंदना और पुस्तक का विषय निर्देशित है आर्यभट के गणित और खगोल विज्ञान पर अनेक पुस्तके हैं जिनमे कुछ खो गयी हैं उनकी प्रमुख कृति आर्यभट्टीयम गणित और खगोल विज्ञान का एक संग्रह है जो आधुनिक समय मे भी अस्तित्व मे है उनके गणतीय भाग मे अंकगणित, बीजगणित, सरल त्रिकोणमिती और गोलीय त्रिकोणमिती शामिल है, आर्यभट् सिद्धान्त के इस समय केवल 34 श्लोक ही उपलब्ध है, दूसरे आर्य मे स्वरों एव व्यंजनों की सहायता से बड़ी संख्यायों को लिखने की विधि है फिर दश आर्ययों मे ब्रम्हा का एक दिन का परिणाम वर्तमान दिन का बीता समय आकाशीय पिंडों के भ्रमण उनके मंद बृत तथा शीघ्र वृत की परिधियों उनकी कक्षाओं के परस्परिक झुकाव और 24 अर्धज्याओं के मान दिये गए हैं इसी से इसे 'दशगीतिका'कहते हैं, 'आर्यभटीय'एक तंत्र ग्रंथ है तंत्र उन्हे कहते हैं जिनमे गणना कलियुग के प्रारम्भ से की जाती है, जिन ग्रन्थों मे गणना 'कल्प'के प्रारम्भ से की जाती है उन्हे 'सिद्धान्त'कहते हैं इसके अतिरिक्त कारण ग्रंथ होते हैं जिनमे गणना किसी निश्चित क्षण मे की जाती है, 'कल्प'की धारणा का प्रारम्भ आर्यभट के बहुत पहले हो चुका था जिसका वर्णन महाभारत मे है । 
           लगभग 1200 वर्षों की गुलामी का परिणाम हमारे वैज्ञानिक शोध सब कुछ गायब कर दिये गए, हम हिंदुओं मे हीन भावना का विकाश विदेशियों ने किया परिणाम स्वरूप हमारा स्वाभिमान समाप्त सा हो गया, स्वामी दयानन्द सरस्वती और डाक्टर हेड्गेवार दो ऐसे महापुरुष हुए जिंहोने भारतीय समाज को झकझोरा और जगाने का प्रयत्न किया उसी का परिणाम है की आज हम सब इन महापुरुषों को खोज कर हिन्दू समाज के सामने ल पा रहे हैं, प्राचीन भारत मे गणित और ज्योतिष का अध्ययन साथ-साथ होता था इसलिए प्रायः एक ही ग्रंथ मे गणित व ज्योतिष की जानकारी दी जाती थी, 'आर्यभटीय'ऐसा ही ग्रंथ है, आर्यभट को याद करना भारतीय वांगमय मे विस्वास का प्रकटीकरण ही है।
        आर्यभट हमारी वैदिक परंपरा की एक कड़ी हैं जिसमे कणदि, गौतम, सुश्रुत तथा भाश्कराचार्य जैसे ऋषि वैज्ञानिक थे ये विश्वामित्र, अगस्त के मौलिक उत्तराधिकारी थे ।   
                                                     ''भारत माता की जय''         
                

वैदिक वांगमय मे केवल तैतीस देवताओं का वर्णन (याज्ञबल्क्य-गार्गी संवाद) जो तैतीस करोण हो गए ---!

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        भारतीय समाज मे हमेसा से महिलाओं का सम्मान रहा है वे शास्त्रार्थ करती थीं, वे वेद मंत्रों के दर्शन भी करतीं थीं, वे युद्ध मे सेनापति भी थी और राज्य संचालन का कार्य भी करती थीं जिन मातृ शक्तियों का वेदों मे नाम है उनमे से एक गार्गी भी हैं --!  
           विदेह नरेश जनक की धर्मसभा मे ---- वह (गार्गी) बोली 'हे याज्ञबल्क्य, जैसे काशी-नरेश या विदेह-नरेश, वीर पुरुष धनुष पर दो बांण चढ़ाकर हाथ मे दोनों बाणों को तानता हुआ सामने आवे उसी प्रकार मै भी दो प्रश्न लेकर तेरे सामने आई हूँ, याज्ञबल्क्य ने उत्तर दिया ''हे गार्गी ! तू पूछ '' !
     वह बोली, 'हे याज्ञबल्क्य, जो कुछ आकाश के ऊपर है और पृथ्बी के नीचे है या आकाश और पृथ्बी के बीच मे है जो भूत है, बर्तमान है और भविष्य है, वह सब किसमे ओत-प्रोत है ?
        याज्ञबल्क्य ने उत्तर दिया, हे गार्गी ! जो कुछ आकाश लोक से ऊपर है, जो कुछ पृथ्बी के नीचे है या जो कुछ आकाश और पृथ्बी के बीच मे है, जो कुछ भूत, बर्तमान, या भविष्य है वह सब आकाश मे ओत-प्रोत है, वह ब्रम्हा है जो सभी जगह है पशु-पक्षी मे, 'अहं ब्रंहास्मी'हम और तुम है, उसी की बनाई सब रचनाए हैं वाणी भी, वायु भी, प्राण भी चराचर जगत भी सब ब्रम्हा ही है वह न तो नर है न ही मादा है, वह अजर-अमर है।  
  जब गार्गी ने बहुत सारे संवाद किए पर--! यज्ञबल्क्य को परास्त न कर सकी यज्ञबल्क्य ने सभी का समुचित उत्तर दिया तब गार्गी ने कहा की हे विद्वान ब्रह्मणों अब इनसे कोई प्रश्न न करो इन्हे कोई भी पराजित नहीं कर सकता।
        विदग्ध-याज्ञवल्क्य संवाद
        अब विदग्ध शाकल्य ने उनसे पूछा, हे याज्ञवल्क्य, देव कितने हैं-? उसने उत्तर दिया, 'निवित'से पता चलेगा जीतने वैश्वदेव निवित ('निविन्नाम देवतासंख्या -वाचकानी मंत्रपदानी कानिचिद वैश्वदेवे शस्त्र शस्यन्ते तानि निवित्संज्ञकानि-) मे देव बताए गए हैं उतने ही हैं, तीन और तीन सौ, तीन और तीन हज़ार,यानी तैतीस सौ, उसने कहा अच्छा। ''1''
       फिर उसने पूछा हे याज्ञवल्क्य, देव कितने हैं ? तैतीस, अच्छा , हे याज्ञवल्क्य देव कितने हैं ? दो, अच्छा, हे याज्ञवल्क्य कितने देव हैं ? डेढ़, अच्छा । हे याज्ञवल्क्य देव कितने हैं? एक, अच्छा। तीन और तीन सौ, तीन और तीन हज़ार कौन से देव हैं ?''2''
         याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया, इतनी तो इनकी महिमा (बिभूतियाँ) हैं, देव तो तैतीस ही हैं, आठ वसु, ग्यारह रुद्र, बारह अदित्या, ये हुए इकतीस, इन्द्र और प्रजापति, ये हुए तैतीस ''3''
         'वसु कौन-कौन हैं' ? 'अग्नि, पृथबी, वायु, अन्तरिक्ष, आदित्य, धौ, चंद्रमा, नक्षत्र, ये वसु हैं।
इन्हीं मे सब जगत वसा हुआ है, यही सब जगत को बसाते हैं, इस सब जगत को बसाते हैं इसलिए इसका नाम वसु है। ''4''
          'रुद्र कौन-कौन है' ? पुरुष के शरीर मे दस प्राण है और ग्यारहवाँ आत्मा, जब ये मर्त्य शरीर से निकलते हैं तो इनको रुलाते हैं, रुलाते हैं इसलिए इंका नाम रुद्र है। ''5''
         'आदित्य कौन-कौन है' ? वर्ष के बारह मास, यह इस जगत को ग्रहण करते हैं इसलिए इनको आदित्य कहते हैं। ''6''
          'इन्द्र कौन है-? और प्रजापति कौन है' ? स्तनयीत्नु इन्द्र हैं और यज्ञ प्रजापति हैं, 'स्तनयीत्नु क्या है' ? 'अशनि या बिजली', यज्ञ क्या है ? ''पशु''। ''7''
         'छः देव कौन' ? 'अग्नि,पृथबी, वायु, अन्तरिक्ष, धौ, ये छः देव हैं'यह सब छः देव हुए। ''8''
         'तीन देव कौन-कौन है' ? यही तीन लोक है इनहि मे से तो ये सब देव हैं, 'दो देव कौन हैं, ? ''अन्न और प्राण'', डेढ़ कौन हैं ? 'यह वायु जो बहता है'। ''9''
         तब कहा, यह तो एक ही है जो बहता है फिर यह डेढ़ कैसे हुआ ? इसी से तो सबकी समृद्धि होती है इसलिए डेढ़ हुआ । एक देव कौन हुआ ? वह ब्रम्हा हैं जिसको 'त्यद'कहते हैं। ''10''
         फिर विदेह राज-- याज्ञबल्क्य संवाद -------!
         राजा जनक ने जब याज्ञबल्क्य से पूछा जो मै स्वप्न मे देखता हूँ वह भी सत्य दिखाई देता हैं जब जागता हूँ तो वह नहीं, शरीर व आत्मा वही है तो क्या सत्य है-? याज्ञबल्क्य ने कहा न ये सत्य है न वो सत्य है केवल ब्रम्हा सत्य है। ब्रम्हा यानी अहम ब्रंहास्मी, एकेश्वरवाद जहां ब्रम्हा यानी वेदज्ञ जिसे आदि शंकर ने ''ब्रम्हा सत्य जगत मिथ्या''बताया और तुलसीदास ने कहा ''बिनु पग चलय सुनय बिन काना, बिन कर कर्म करय बिधि नाना''जिसकी ब्याख्या याज्ञबल्क्य ने विदेहराज से किया ।
          विदेह ने पूछा कि गुरु कौन है ? याज्ञबल्क्य ने बताया माता, पिता प्रथम गुरु है, फिर जनक ने पूछा कि गुरु कौन है ? याज्ञबल्क्य ने उत्तर दिया जो शिक्षा देता है वह गुरु है, फिर विदेह ने पूछ की गुरु कौन है याज्ञबल्क्य ने बताया जो हमारे सनातन धर्म, अध्यात्म तथा आत्मा को परमात्मा के मिलन का रास्ता दिखाने की दीक्षा दे वही गुरु है। 
(शतपथ ब्राह्मण से --------!)                                        

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