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इजरायल की वास्तविकता को पहचानिए बहुत हाय-तोबा मचाने की आवस्यकता नहीं -------------!

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इजरायल का संकट-----------!   
    हमारे देश के नेतागण और बुद्धिजीवी अंदरूनी राजनीति की सनक (इस्लामी वोट बैंक) अंतरराष्ट्रीय संबंधों तक ले जाते हैं। तभी वे हमेशा फलस्तीन की फिक्र करते हैं और इजरायल को दैत्य जैसा दिखाने की फिराक में रहते हैं। वे बुनियादी बातों पर चुप रहते हैं कि कई मुस्लिम शासक, संगठन इजरायल का अस्तित्व ही मिटा देना चाहते हैं। ईरान के पिछले राष्ट्रपति अहमदीनेजाद ने इजरायल को 'दुनिया के नक्शे से हटा देने'की बार-बार घोषणा की थी। इसलिए नहीं कि इजरायल ने उनके साथ कोई बदसलूकी की, बल्कि सिर्फ इसलिए कि वह यहूदियों से घृणा करते हैं। कभी हमारे नेताओं ने इस पर संसद में चर्चा क्यों नहीं की-? हमेशा फलस्तीन की फिक्र के पीछे वही इस्लामपरस्ती है जो उनकी अंदरूनी राजनीति की झक है। अत: यदि गाजा पर चर्चा हो तो 1948 से अब तक की पूरी स्थिति पर होनी चाहिए। इजरायल के जन्म के तुरंत बाद ही उस पर मिश्र, इराक, जार्डन, लेबनान, सीरिया व अरब देश ने साझा हमला किया था। यानी शुरू से ही इजरायल की जान पर आफत है-! मगर दुष्प्रचार से प्रभावित होकर अनेक लोग सदैव इजरायल को ही दोषी मान लेते हैं। सच तो यह है कि हाल तक मुस्लिम समाज यहूदियों को कायरता का दूसरा नाम समझता था। मशहूर शायर अल्लामा इकबाल ने अपनी ऐतिहासिक पुस्तक 'शिकवा'में मुसलमानों को जिहाद के लिए प्रेरित करने के लिए ताना मारा था कि वे यहूदियों से भी कायर हैं।
        सच्चाई यह है कि सदियों से यहूदी व्यापारी प्रकृति के शांति-प्रिय लोग रहे हैं। फिर भी मानव इतिहास में सबसे अधिक जिनका उत्पीड़न हुआ है वे यहूदी हैं। प्रत्येक इस्लामी, ईसाई देशों में अपने उत्पीड़न से आहत होकर आखिर उन्होंने अपने एक अलग देश की मांग की, जिसे अंतत: विश्व समुदाय ने स्वीकार किया। इस प्रकार, इजरायल नामक यह देश संयुक्त राष्ट्र ने मई 1948 में निर्मित किया था। फिर वहां दुनिया के कोने- कोने से यहूदी आकर बसे, लेकिन उसके चारों तरफ जमे इस्लामी शासकों को यह मंजूर नहीं था। यही झगड़े की जड़ है। इस्लामी देशों ने बार-बार इजरायल को बलपूर्वक खत्म करने की कोशिशें की हैं। इस तरह के हालात ने यहूदियों को योद्धा बनाया। हमें उनका अभिनंदन करना चाहिए, भ‌र्त्सना नहीं। इजरायल न केवल हमारा मित्र देश है, बल्कि आत्मरक्षा और आत्मसम्मान के पाठ में हमें उससे कुछ सीखना भी चाहिए। विगत कुछ वषरें से इजरायल पर हमलों की प्रकृति वही है जो हम कश्मीर में बीस साल से झेल रहे हैं। यानी किसी देश द्वारा संगठित, आधिकारिक आक्रमण के बदले आतंकी संगठनों द्वारा जब-तब हमले। उनकी पीठ पर कई देशों की सरकारें भी हैं, मगर उन्हें सीधे-सीधे जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। जैसे पाकिस्तान लश्करे-तैयबा, हिजबुल मुजाहिदीन, माओवादियों आदि को सहयोग, समर्थन देकर भारत को सताता है उसी तरह पहले शिया आतंकी संगठन हिजबुल्ला ने इजरायल पर हमला किया, जिसने दक्षिण लेबनान में मजबूत ठिकाना बना लिया था। उसे ईरान व सीरिया का सहयोग और प्रोत्साहन था। फिर कुछ वर्षों से सुन्नी हमास गाजा से हमले कर रहा है। यूरोपीय संघ से लेकर जापान तक अनेक देशों ने हमास को आतंकवादी संगठन घोषित कर रखा है। हमास से कई पड़ोसी मुस्लिम देश भी सशंकित रहते हैं। उसी की मदद में अभी हमारे वामपंथी नेता और बुद्धिजीवी बयान दे रहे हैं।
        हमास ने गाजा में नागरिक बस्तियों पर जमकर हमला शुरू किया है। ऐसे में इजरायल क्या करे ? हमास के रॉकेट लांचर और ठिकाने गाजा की नागरिक बस्तियों में हैं। उन्हें चोट पहुंचाने में नागरिक आबादी को चोट पहुंचना स्वाभाविक है। यही हो रहा है। तो दोष किसका है, इसे संजीदगी से देखना चाहिए। यह हमास है, जिसे फलस्तीनी जनता की परवाह नहीं। वह अपने आक्रामक एजेंडे में फलस्तीनी स्त्रियों, बच्चों का ढाल के रूप में दुरुपयोग कर रहा है। गाजा में ही एक बड़े हमास कमांडर निजार रयान ने इजरायली सैनिकों से बचने के लिए खुद को एक कमरे में अपनी चार बीवियों और 12 बच्चों के बीच बंद कर लिया था। उसे निशाना बनाने में बीवियां और कई बच्चे भी मारे गए। इसलिए फलस्तीनी बच्चों, स्त्रियों के लिए आंसू बहाने वाले जरा पूरे हालात को देखें और आतंकवादियों के हाथों खेलना बंद करें!
      हमास जैसे आतंकवादी संगठन जान-बूझकर फलस्तीनी बस्तियों के बीच अड्डे बनाते हैं। फिर वहां से जब चाहे इजरायल पर रॉकेट दागने लगते हैं, जिसे अरब अखबार भी अनुचित बता रहे हैं। तब अपने हमलावर पर जवाबी कार्रवाई से होने वाली मौतों के लिए इजरायल कैसे जिम्मेदार है? भारतीय नेता और बुद्धिजीवी इजरायल के धर्मसंकट को समझ सकते हैं, पर समझना नहीं चाहते। हमास इजरायल को मिटाना अपना घोषित लक्ष्य रखता है। इजरायल के उत्तर अर्थात लेबनान के दक्षिणी क्षेत्र में शिया आतंकवादी संगठन हिजबुल्ला का दबदबा है। इस प्रकार ईरान, सीरिया, हिजबुल्ला, हमास आदि कई घटक इजरायल को खत्म करना चाहते हैं। उनके पास शक्ति, आत्मबल और दुस्साहस भी है। मई 1948 में इजरायल पर हमले के बाद से 1956, 1967 और 1973 में तीन बार पुन: इजरायल पर आक्रमण हुए, किंतु युद्धों में इजरायल की जीत उसका अस्तित्व सुरक्षित नहीं करती। इजरायल से बार-बार हारकर भी अरब देश बचे रहेंगे, किंतु इजरायल के पास यह विकल्प नहीं। यह समझना चाहिए कि कई इस्लामी देशों, सत्ताओं को मन ही मन विश्वास रहा है कि अपनी अति-सीमित, स्थिर जनसंख्या, छोटे क्षेत्रफल और नगण्य अंतरराष्ट्रीय समर्थन के कारण इजरायल को अंतत: हारना होगा। इजरायल के पास कोई स्थायी सेना तक नहीं है। उसकी नागरिक आबादी ही आवधिक रूप से सैनिक सेवा करती है। इसलिए उस देश के लिए एक-एक सैनिक कीमती है, जिसे अपने सैनिकों की उपेक्षा करने वाले उच्च-वर्गीय भारतीय नहीं समझ सकते। अपनी विशाल आबादी, संसाधन और मजहबी प्रतिबद्धता के बल पर अनेक मुस्लिम देश व संगठन इजरायल को मिटा देना चाहते रहे हैं। क्या इसे भूलकर इजरायल की प्रतिक्रियात्मक कार्रवाई पर निर्णय दिया जाना चाहिए-?




स्वामी करपात्री जी महराज सन्यासी भी स्वतन्त्रता सेनानी भी----!

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               स्वामी करपात्री जी महराज भारत के अपने समय के अदूतीय सन्यासी थे वे केवल आध्यात्मिक ही नहीं बल्कि हिन्दू राष्ट्रवाद के पक्षधर भी थे वे महान देशभक्त सन्यासी, अदूतीय विद्वान थे, उनका बचपन का नाम ''हरिनारायन ओझा''था, वे 'सरयूपारी'गरीब ब्रह्मण परिवार 'भटनी'नामक ग्राम प्रतापगढ़ जिले के उत्तर प्रदेश मे 1907 ईसवी श्रवण मास, शूक्ल पक्ष द्वितीया को पिता स्वर्गीय श्री रामधानी ओझा माता स्वर्गीय शिवरानी के आगन मे हुआ परम धार्मिक सात्विक सनातनी परिवार था, बचपन से ही उनका मन अध्यात्म मे लगता था वे सन्यासी बनना चाहते थे तभी नौ वर्ष की आयु मे उनके पिता जी ने इंनका विबाह ''कुमारी सौभाग्यवती''के साथ कर दिया, उनका मन गृहस्थी मे नहीं लगा उन्होने सोलह वर्ष की आयु मे सन्यास ले लिया वे परम आध्यात्मिक ब्रांहानंद सरस्वती से सन्यास दीक्षा ले दांडीस्वामी हो गए इनका नाम 'हरी नारायण'से ''हरिहर चैतन्य''हो गया।
            उनकी लौकिक शिक्षा बहुत कम थी शायद हाईस्कूल, एक वर्ष वे प्रयाग आश्रम मे ब्याकरण, दर्शन शास्त्र, न्याय शास्त्र और संस्कृति वांगमय का अध्ययन किया, एक वर्ष के पश्चात उन्होने हिमालय की तरफ प्रस्थान किया, कहते हैं कि स्वामी जी ने गंगा जी की परिक्रमा किया उसी यात्रा मे उन्होने सभी ग्रन्थों का अध्ययन किया वे इतने मेधावी थे की कोई भी श्लोक एक बार देखने के पश्चात उन्हे याद हो जाता इतना ही नहीं जब वे शास्त्रार्थ अथवा प्रवचन करते तो वह श्लोक किस अध्याय किस पृष्ठ का है वे उदाहरण मे बता देते थे उन्होने केवल हिन्दू धर्म के ग्रन्थों का ही अध्ययन ही नहीं किया बल्कि विश्व के बिभिन्न मतों के साहित्यों का भी तुलनात्मक अध्ययन किया उसी दौरान वे भिक्षा ग्रहण अपने हाथों से ही करते किसी वर्तन का उपयोग नहीं करते थे और एक बार ही भिक्षा ग्रहण करते इसी कारण उन्हे स्वामी करपात्री जी कहने लगे। 
           वे केवल आध्यात्मिक ही नहीं वे स्वतन्त्रता सेनानी भी थे देश आज़ाद करने की दृष्टि से सन्यासियों का निर्माण किया, भारतीय संस्कृति के प्रति सचेत रहते हुए उन्होने ''रामराज्य परिषद''नाम की राजनैतिक पार्टी का भी गठन किया जिसे 1952 के चुनाव मे 3 लोकसभा मे सफलता मिली, वे कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टीकरण नीति के बिरोधी थे इस कारण हिन्दू समाज के जागरण मे लगे रहते थे, 1967 मे जब गोरक्षा का आंदोलन शुरू हुआ तो उन्होने उसकी अगुवाई की उसमे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक प॰पू॰ श्री गुरु जी के योजकत्व मे भारत के साधू-संत इकट्ठा हुए जिसका नेतृत्व करपात्री जी, प्रभुदत्त ब्रंहचारी, सभी शांकराचार्य आदि ने किया, बड़ी संख्या मे संत गिरफ्तार किया गए करपात्री जी को जेल मे काफी दिन रहना पड़ा जेल का उन्होने उपयोग कर 'कालमार्क्स और रामराज्य'नामक ग्रंथ लिखा जो विश्व प्रसिद्ध हुआ यह पुस्तक विश्व की सभी राजनैतिक विचारों का विश्लेषण है, वे इतने बड़े थे की उन्हे 'हिन्दू धर्मसम्राट'की उपाधि से नवाजा गया, स्वामी करपात्री जी पूरे देश मे पैदल भ्रमण करते रहते थे उन्होने 1940 मे काशी वास के दौरान 'अखिल भारतीय धर्मसंघ'की स्थापना की वे स्व के प्रेमी थे स्वदेशी, स्वधर्म, स्वराष्ट्र उनका प्राण था प्रवास के दौरान वे मध्यप्रदेश के किसी गाव मे थे अधिकांश संस्कृति ही बोलते थे भजन व पूजा के पश्चात वे नारा गुंजायमान कराते वह भी संस्कृति मे होता एक दिन एक लड़की ने उनसे कहा स्वामी जी अगर यह उद्घोष हिन्दी मे होता तो हम सभी समझ पाते! स्वामी जी को ध्यान मे आया और वहीं तुरंत उन्होने इसका हिन्दी अनुवाद 'धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों मे सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो'का उद्घोष किया और इसी दिन से यह पवित्र उद्घोष पूरे विश्व का हिन्दू धर्म का उद्घोष बन गया, वे अपने ऊपर कितना कम खर्च हो समय का अभाव केवल ढायी गज कपड़े मे ही काम चलाते साथ एक लगोटी, अपनी अंजुली भर भिक्षा वह भी दिन मे मात्र एक बार ।
             देश बिभाजन को कातर दृष्टि से देखते रहे --------! 
            वे बिभाजन से दुखी अपने शिष्यों द्वारा हिन्दुओ को बचाने का काम करते रहे उन्होने हिन्दू समाज को जगाने हेतु सन्यासियों की मानों फौज ही खड़ी कर दी यदि कहा जाय तो आदि जगद्गुरु शंकराचार्य और स्वामी दयानन्द सरस्वती जैसी ही सन्यास परंपरा का देश हित मे उपयोग किया, 1947 देश बिभाजन की घटना, लाखों हिन्दू अपने ही देश को छोड़ने को बाध्य हो रहा था, जो भाग पाकिस्तान मे पड़ गया वहाँ के हिन्दुओ को धन संपत्ति ही नहीं तो अपने बहन -बेटियों को सुरक्षित रख पाना मुसकिल हो गया था उस समय स्वामी जी दिल्ली के अपने आश्रम बैठे थे, तब-तक एक ब्यक्ति हाथ मे खून से लथ-पथ तलवार लेकर स्वामी जी के सामने प्रकट हुआ उसने पूछा, स्वामी जी ! मैंने 15 लोगो की हत्या की है मुझे मोक्ष मिलेगा अथवा पाप लगेगा ! स्वामी जी ने पूछा की यह कैसे हुआ उसने बताया की सैकड़ों मुसलमानों ने मेरा घर घेर रखा था घर मे मेरी माँ दो बहनें थी वे बर्बर हमारी माँ बहनों को जिंदा ही खा जाना चाहते थे, तब-तक मेरी एक बहन ने साहस पूर्वक यह तलवार मेरे हाथ मे देकर कहा --! भैया हम बहनों और माँ की हत्या कर दो नहीं तो इन राक्षसों से हमारी इज्जत नहीं बचेगी मै क्या करता ? मैंने अपने ही हाथ से अपनी बहन और माँ की हत्या कर घेरे हुए मुसलमानो की हत्या की है स्वामी जी ने कहा तुम पाप नहीं तुम तो मोक्ष के अधिकारी हो, आओ हाथ मुह धोकर विश्राम करो ऐसे थे हमारे करपात्री जी महराज ।  
         उन्हे धर्म संस्थापक भी कहा गया वास्तविकता यह है की 1200 वर्ष गुलामी के कारण हमारी पद्धतियों मे कुछ लुप्तता भी आयी कई शंकराचार्य के पीठों की परंपरा बंद सी हो गयी थी करपात्री जी महराज ने सभी परम्पराओं को पुनः शुरू कराया इसी कारण कभी-कभी लोग कहते हैं की वे शंकराचार्य के योजना के एक हिस्सा हुआ करते थे लेकिन वे छुवा-छूत और भेद-भाव को मानते थे इसी विषय को लेकर प्रयाग होने वाले प्रथम विश्व हिन्दू सम्मेलन का बिरोध किया वे इस विषय मे आरएसएस से भी मतभेद रखते थे लेकिन वे महान थे अंतिम समय उन्होने संघ के विचारों से सहमति जताई और हिन्दू समाज मे छुवा-छूत और भेद-भाव समाप्त होना चाहिए स्वीकार किया और अपने शिष्यों को इसका अनुपालन का आदेश दिया, 7 फारवरी 1982 को काशी मे केदारघाट पर स्वेच्छा से उनके प्राण महाप्राण मे बिलिन हो गए, उनकी इक्षानुसार केदारघाट मे उन्हे गंगा जी मे समाधि दी गयी और वे हमेशा के लिए अमर हो हिन्दू समाज के प्रेरणा-पुंज हो गए।           

वैशाली संत समागम का सन्देश ---घर वापसी हेतु तैयार हो संत और हिन्दू समाज -----!

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 वैशाली के संत समागम का संदेश ---------!
        वैशाली जिसे बुद्ध की कर्म स्थली के नाम से जाना जाता है उसकी वास्तविकता कुछ और ही है वह वैदिक भूमि रही है त्रेता में जब गुरु विश्वामित्र अपने शिष्य श्रीराम और लक्षमण को लेकर जनकपुर जा रहे थे उस समय बाल्मीकि रामायण में लिखा है कि श्रीराम ने गुरु विश्वामित्र से पूछा की हे ऋषिवर यह जग-मगाता हुआ कौन सा नगर है? विश्वामित्र ने उत्तर दिया हे राम तुम्हारे पूर्बजों का बसाया हुआ नगर है यह वैशाली गढ़ हज़ारों लाखों वर्ष पुराण अपना इतिहास लिए हुए है इन्हीं कुछ कारणों को लेकर यह संत समागम यहाँ किया गया कहते हैं की इस गढ़ के चारो तरफ चार गेट और चार मंदिर थे आज कहाँ गए जिसमे खुदाई से तीन मंदिर प्राप्त हुए हैं जिसमे एक प्रमुख विक्रमादित्य चतुर्मुख महादेव मंदिर शामिल है एक अनुमान के अनुसार पांच हज़ार साल पुराना जिसका उल्लेख कहीं न कहीं महाभारत में है कुछ लोगो का कहना है की त्रेता युग में इस प्रकार की चतुर्मुख शंकर जी को विग्रह पाया जाता था जो आज हमारे सामने है, वास्तव मे भगवान बुद्ध वैदिक मतावलंबी थे उनका जीवन वैदिक था वे अहिंसक थे, जब सम्राट अशोक बौद्ध हुआ तब से जिस बुद्ध धर्म का प्रचार जो हुआ वह भगवान बुद्ध का नहीं था वह अशोक का था इस कारण आज बौद्ध मतावलंबी मांसाहारी हैं गो भक्षक हैं जबकि भगवान बुद्ध अहिंसक।
        संत समागम का विचार करते हुए यह समझ में आया कि पुरे बिहार के प्रत्येक पंचायत में किसी न किसी बहाने चर्च के लिए जमींन मतांतरण हेतु खरीद ली गयी है, हमारे ही बंधुओ को कुछ पैसों की लालच देकर पादरी -पास्टर बना दिया गया है एक तरफ चर्च की गति -बिधियां दूसरी तरफ मखतब- मदरसों की बाढ़ सेकुलर नेताओं का हिंदुत्व पर खिलाफ प्रहार, क्या हिन्दू समाज इसका मुकाबला कर पायेगा ? इन्हीं सब कारणों को लेकर यह संत सम्मलेन किया गया, बिहार में मठ -मंदिरों की संख्या बहुत है सम्पन्न भी है यहाँ के लोग बहुत धार्मिक हैं लेकिन यहाँ के मठ-और मंदिरों का धार्मिक न्यास बोर्ड बनाकर उनका सरकारी करण के कारण अब उन्ही संतों के साथ नौकर जैसा ब्यवहार किया जाता है।
         जिस काम को आदि जगदगुरु शंकराचार्य, स्वामी दयानन्द सरस्वती ने किया जिस कारण स्वामी श्रद्धानंद जी का बलिदान हुआ उसी काम को भारत- भारत बना रहे धर्म जागरण समन्वय बिभाग का रहा है, इन्हीं उद्देश्यों को लेकर संत समागम वैशाली मे 12,13,14 दिसंबर को किया गया आखिर हिन्दू समाज की रक्षा कौन करेगा ! तो ध्यान मे आता है की ऋषि अगस्त से लेकर आज के संतों की ही ज़िम्मेदारी है की वे अपने समाज को बचाएं, क्या कोई सेकुलरिष्ट यह बताएगा की देश बिभाजन के समय जिन मुसलमानों की संख्या भारत मे 3 करोण थी इसायियों की संख्या 50 लाख थी आज इस्लाम मतावलंबियों की संख्या अचानक 20 करोण और इसायियों की 4 करोण कैसे हो गयी--? एक लाख हिन्दू लड़कियां प्रतिवर्ष लव जेहाद के माध्यम से इस्लाम मे दीक्षित की जाती हैं, तो क्या बिना हिन्दू के भारत बचेगा ? आज अफगानिस्तान भारत है ! आज पाकिस्तान भारत है ! आज बांगलादेश भारत है ! उत्तर आयेगा नहीं ! तो भारत बचाने के लिए हिन्दू आवस्यक है यदि घटा तो भारत कटा इस कारण भारत को भारत बनाए रखने की गारंटी हिन्दू ही है  ।
          संत समागम मे 2000 से ऊपर संख्या आई बिहार मे यह अभूत पूर्व रहा सारा वाताबरण भगवा मय दिखाई देता था सभी मत-पंथ और संप्रदाय के संत उपस्थित थे बिना किसी भेद-भाव के उत्साह जनक समागम हुआ स्थानीय सांसद श्री रामा सिंह, केन्द्रीय मंत्री श्री राम कृपाल यादव ने भी संत समागम को संबोधित किया बीजेपी के बिहार प्रांत के पूर्ब अध्यक्ष श्री गोपाल नारायण सिंह तीनों दिन रहकर ब्यवस्था देखते रहे तीनों दिन पूज्य परमात्मा नन्द सरस्वती और पूज्य योगी आदित्यनाथ जी ने समरसता हेतु संतों तथा हिन्दू समाज का आवाहन किया संत सभा मे तीन प्रस्ताव पारित किए गए 1- हिन्दू समाज मे कोई छुवा-छूत, भेद-भाव नहीं है ''न हिन्दू पतितो भवेत'' 2- धार्मिक न्यास बोर्ड का अध्यक्ष किसी संत को बनाया जय किसी मठ-मंदिर से कोई टेक्स न लिया जाय मंदिरों की आय केवल हिन्दू समाज के कार्य मे खर्च किया जाय (वैदिक शिक्षा व मंदिरों के विकाश) न की चर्च और हज के लिए, 3- भारत मे पूर्ण ताया धर्मांतरण पर प्रतिबंध लगाया जाय और संत घर वापसी के लिए तैयार हो हिन्दू समाज अपने पचाने की शक्ति बढ़ाए, संत सभा ने केंद्र सरकार से मांग की कि कानून बनाकर घर वापसी का रास्ता साफ करे---! योगी जी ने संतों का आवाहन किया कि पूरे देश मे 13 लाख से अधिक संत हैं देश मे कुल छह लाख 23 हज़ार गाँव है यदि एक गाँव मे दो-दो संत अलख जगाए तो यूरोप से आए हुए पादरी मैदान छोड़ देगे, आज संतों को जगाने की आवस्यकता है जिससे हिन्दू समाज और देश की रक्षा हो सके।
       आखिर क्यों आवाहन करना पड़ रहा है घर वापसी का ? हम सभी को पता है की वर्तमान समय मे जो मुस्लिम समाज अथवा क्रिश्चियन है उनके पूर्वज हिन्दू थे उन्हे जबर्दस्ती मुसलमान बनाया गया उनकी माँ -बहनों के साथ बलात्कार किया कर गया गोवा जैसे राज्यों मे चर्च ने भी यही किया वे इस बात को भूले नहीं कि उनके मंदिरों को तोड़ा गया उनके भगवान कि मूर्तियों को अपवित्र किया गया अब भारत आज़ाद हो चुका है वे अपनी भूल सुधार हिन्दू बनाना चाहते हैं क्यों की उन्हे पता है की वे किसकी संतान हैं वे अपने नाम के आगे सोलंकी, परमार, चौहान, ठकुराई और गद्दी, घोषी लगाते हैं भारत के अंदर उन्हे पछतावा है आज वे अपने घर आना चाहते हैं देश हित मे सरकार को चाहिए उनकी मदद करे, लेकिन सेकुलरिष्ट (देशद्रोही) इसे बरदास्त नहीं कर पा रहे हैं उनका पेट दर्द कर रहा है वे मुसलमानों को मुसलमान नहीं वोट के रूप मे देख रहे हैं जब वे हिन्दू हो जाएगे तो उनका वोट खत्म हो जाएगा उन्हे यह समझना होगा कि वोट से बड़ा हैं देश ! 
          आज के सौ साल पहले गांधी जी कहा था कि ''ईसाई मिशनरियों द्वारा धर्मांतरण कराना 'दुनिया मे अनावस्यक अशांति फैलाना है''और अभी साल भर पहले कांग्रेस नेता तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री जयराम रमेश ने कहा था कि ईसाई मिशनरियों को 'लक्षमण रेखा'का ध्यान रख धर्मांतरण कराने वाली प्रबृत्ति छोड़ना चाहिए यह उन्होने विशपों, पादरियों के सम्मेलन मे कहा था, ''1923 मे महर्षि अरबिन्द ने हिन्दू-मुस्लिम एकता पर कहा था निश्चय ही हिन्दू-मुस्लिम एकता इस आधार पर नहीं बन सकती कि मुसलमान तो हिंदुओं का धर्मांतरण कराते रहे जबकि हिन्दू किसी मुसलमान को धर्मांतरित नहीं करायेंगे'', आज क्या पीड़ित हिन्दू चुप-चाप समाप्त हिन्दू को देखता रहे हिन्दू समाज के साधू-संत आँख मूँद भारत कि दुर्दशा देखते रहे ! यह कैसे संभव है जबकि देश आज़ाद हो चुका है किसी भी हल मे धर्मांतरण के मुद्दे पर हिंदुओं को घेरने की कोशिश घातक प्रवंचना है जिससे सावधान रहना होगा यह उल्टा चोर कोतवाल को डाटें जैसी कहावत चरितार्थ हो रही है, धर्मांतरण पर खुली बहस की जरूरत है इसमे पोप से लेकर तबलीगी मुल्लाओं, इस्लामी किताबों से लेकर हिन्दू महापुरुषों की सारी चिंताओं को पूरी तरह सामने लाना चाहिए ।      
       

बंगलादेशी घुसपैठ के कारण सीमांचल बढ़ता इस्लामिक स्टेट की तरफ---!

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        आइए चलते हैं सीमांचल की तरफ जहां बंगलादेशी घुसपैठिए भारत का पहचान समाप्त करने पर तुले हैं, चुनाव के समय जब भारत के प्रधानमंत्री ने बंगलादेशी घुसपैठियों को देश से निकालने की बात की तो ममता बनर्जी सहित देश के सारे सेकुलरिष्टों ने हाय-तोबा मचाना शुरू किया था लेकिन वास्तविकता क्या है ? ये सेकुलरिष्ट कहीं देशद्रोह तो नहीं कर रहे! इसपर विचार करने की आवस्यकता है, किशनगंज, अररिया, कटिहार और भागलपुर सहित सीमांचल के जनसंख्या का संतुलन कैसा बिगड़ रहा है की भारतीय चिति खतरे मे पड़ गयी है किशनगंज मे मुसलमान 73%, अररिया मे 45%, कटिहार मे 40% और भागलपुर मे भी 40% हो गया है, भागलपुर से चलते जाइए ज्यों-ज्यों हम देवघर महातीर्थ की ओर बढ़ते हैं जहाँ पर कोई मुसलमान नहीं था आज देवधर के गावों में २०% हो गया है ऐसा नहीं की ये सब यहीं पैदा हुए हैं इनकी वास्तविकता है कि ये सभी बगलादेशी घुसपैठिए है, आब्रजन इतना तेज है की गोड्डा में यह घुसपैठ २०%, पाकुड में ५०%, साहबगंज में ४२% संख्या हो गयी है, साहबगंज की हालत इस प्रकार है कि राजमहल प्रखंड में ५०%, उद्वा में ६०%, बड़हरवा में ३०% हो गया है ये सभी बंगलादेशी घुसपैठिए हैं, फरक्खा जिले में कुल नौ प्रखंड है जिसमे तीन प्रखंड बांग्लादेशी प्रभावी हो गया है बड़हरा प्रखंड के गुमानी में सऊदी अरब द्वारा संचालित मदरसा जिसमे हज़ारों विद्यार्थी बाहर से आकर पढ़ते है इस समय यह मदरसा आतंकवादी और धर्मान्तरण अवैध हथियार व तस्करी इत्यादि गति बिधियों का केंद्र बना हुआ है किसी भी प्रशासनिक अधिकारी की हिम्मत नहीं की उसकी जाँच कर सके या उसके अंदर घुस सके, पाकुड जिला के पाकुड नगर ५०% मुसलमान है जिसमे 25% बंगलादेशी, पाकुड़ खंड मे 65% मुसलमान जिसमे 30% बंगलादेशी और महेशपुर मे 40% मे 20% बंगलादेशी मुसलमानों की संख्या हो गयी है ।
         यहाँ पर आने वाला प्रत्येक बंगलादेशी यही बताता है कि वह मुर्शिदाबाद का है ज्ञातब्य हो कि मुर्शिदाबाद का आधा भाग बांगलादेश मे है आधा प॰बंगाल मे यह बंगलादेशी यहाँ के रोजगारों को हासिल तो करता ही है उसकी प्राथमिकता रहती है कि वह प्रथम किसी न किसी वनबासी लड़की से बिबाह कर उसे धर्मांतरित करना क्योंकि किसी भी आदिवासी की जमीन खरीदने पर प्रतिबंध है इस कारण वह अधिकांश वह दो बिबाह करता है झारखंड से सटा हुआ उड़ीसा का जिला क्योझर और मयूरगंज यहाँ भी बंगलादेशी घुसपैठ खतरनाक मोड पर पहुच गयी हैं साहबगंज जिला का राजमहल से मालदा सैकड़ो वर्ग किमी॰ जमीन गंगा जी का कछार है जिसमे हजारों घुसपैठियों की शरण- स्थली बना हुआ है वहाँ फैक करेंसी, अवैध हथियार और देश बिरोधी गतिबिधियाँ बेरोकटोक चलती है आए दिन बंगलादेशियों का सबसे अच्छा ठेकाना बन गया है जिससे वे बिना किसी भय के अपने अवैध कारोबार बेधडक करते हैं, गायों की तस्करी खुलेआम होती है इस क्षेत्र मे तो पशुधन लगभग समाप्त सा हो गया है, मंदिरों मे पूजा घरों मे 'सत्यनारायन कथा'इत्यादि मे शंख बजाना मुसलमानों की कृपा पर निर्भर है मंदिर मे कब पूजा करना वह भी मौलबी पर निर्भर करता है मंदिर के पुजारी को बार- बार अपमानित होना उसकी नियति सी बन गयी है, आए दिन हिन्दुओ की भावनाओ के साथ खिलवाड़ किया जाता है, वहाँ न तो पुलिस जाती है न कोई और जाने कि हिम्मत जुटाता है मीडिया कि हालत तो ऐसे है कि जैसे वे भारतीय हों ही न, यहाँ मुसलमानों के कुछ बड़े -बड़े गाव हैं जैसे उढ़वा ब्लाक का 'प्यारपुर'मालदा का 'मानिकचक'इन गावों मे सभी प्रकार के हथियार यहाँ तक 'एके47'जैसे हथियार बेधक बेचे जाते हैं, फैक करेंसी का अवैध धंधा किसी से छुपा नहीं है पुलिस की हिम्मत ही नहीं की कुछ कर सके, उसका कारण भी है यदि वह कुछ करना भी चाहती है तो सेकुलर राजनीतिज्ञ अल्पसंख्यक सुरक्षा नाम पर हाय- तोबा मचाना शुरू कर देते हैं, देश-भर के लगभग सभी प्रांतो की गाड़ी यदि चोरी हुई तो यहाँ मिल सकती है इन गावों मे जो भी गाड़ी जाती है आधे घंटे मे ही पता नहीं चलते कि कहाँ गया क्योकि गाँव मे बड़े-बड़े अंदर ग्राउंड अवैध गैरिज़ बने हुए हैं, इनके संबंध सिमी, इंडियन मुजाहिद्दीन और अलकायदा जैसे खतरनाक संगठनो को यह क्षेत्र केंद्र बनता जा रहा है यहाँ कुकुरमुत्तों के समान मदरसों की भरमार होती जा रही है इन मदरसों का 'सिम्मी, इंडियन मुजाहिद्दीन'से जुड़ना गर्व कि बात रहती है पटना बम ब्लास्ट मे यहाँ का जुड़ाव था ऐसा वहाँ के लोगो का कहना है अब धीरे-धीरे ये सब इराक मे इस्लाम का नया खलीफा ''अल बगदादी''के ''आईएसआईएस''आतंकवादी संगठन की तरफ बढ़ते जा रहे हैं यदि समय रहते सरकार ने नहीं चेता या कोई कदम नहीं उठाया तो स्थित भयावह हो सकती है। 
        बंगलादेश सीमा की हालत कुछ ऐसी है--!
        मै भारतीय सीमा का दर्शन करने हेतु किशनगंज की सीमा पर गया वहाँ पर 'बार्डर सेक्योर्टी फोर्ष'के अधिकारियों से भेट हुई सीमा पर पिच रोड बनी हुई है जिस पर आसानी से सेना के जवान गस्ती कर सकते हैं कोई भी भारतीय नागरिक सीमा पर क्या हो रहा है कोई मतलब नहीं ! सीमा पार कटीले तर लगे हुए है लेकिन वे टूटते रहते हैं तार व बाड़ लगाने से भारतीय सीमा भी संकुचित हो रही है, वहाँ के अधिकारियों ने बताया की कभी- कभी कुछ राष्ट्रवादी संगठनों के कार्यकर्ता सेना के उत्साह बर्धन हेतु आते हैं एक सैनिक ने बताया की देखिये यह महिला जो घास कट रही है यह बंगलादेशी है उस पार से खतरनाक हथियार आतंकवादी फेकता है ये महिलाएं हथियार अपने घास के बोरे मे भर-कर चली जाती हैं हम कुछ नहीं कर सकते यदि हम इन घास काटने वालों पर कार्यवाही करते हैं तो सेना के ऊपर आरोप- प्रत्यारोप लगा हँगामा करते है और राज्य सरकारें भी उन्हीं के साथ रहती हैं, भारतीय जनता भी और बीएसएफ़ भी मजबूर ! क्या भारत इतना कमजोर देश है की अपनी सीमा को सुरक्षित करने हेतु बाड़ लगाना पड़े ? हमे कड़े कानून बनाना और घुस -पैठियों को सज़ा देने का प्रावधान करना चाहिए जिससे कोई कभी भी घुसपैठ नहीं हो आज हालत कैसी है, भारत को ही सीमा पर बाड़ लगाना पड़ रहा है आखिर पाकिस्तान और बंगलादेश क्यो नहीं बाड़ लगाता-! साहबगंज जिला के राजमहल की हालत तो और भी बदतर है 'बीपीएल'द्वारा जो गरीबों हेतु चीनी, राशन आता है राजमहल मे गंगाजी ही है जो सीधे बंगलादेश की सीमा जुड़ती है घुसपैठिए बड़ी-बड़ी नावों द्वारा गेहूं, चावल चीनी इत्यादि समान लादकर सीधे बंगलादेश ले जाते कोई रोक-टॉक नहो लोकसभा चुनाव के पहले वहाँ के कुछ राष्ट्रवादी संगठन के कार्यकर्ताओं बिरोध किया बंगलादेशियों और बिरोध करने वाले कार्यकर्ताओं मे मार-पीट हो गयी उन सभी लोगो पर मुकदमा हो गया सभों बिरोध करने वाले जेल भेज दिये गए यहाँ तक की वहाँ बीजेपी का बिधायक है जिसने कोई रुचि नहीं दिखाई बल्कि रुचि भी दिखाई तो बंगलादेशियों के पक्ष मे, लेकिन कार्यकर्ता तो जेल गए उसका परिणाम भी हुआ की यह सामानों की तस्करी बंद हो गयी आज भी कार्यकर्ताओ पर मुकदमा चल रहा है, राजमहल और आस-पास छदपुर, उत्तरी प्यारपुर, दक्षिणी प्यारपुर, मध्य प्यारपुर, पूर्वी प्राण पुर, प॰ प्राणपुर, उत्तर पलसगाछी, दक्षिण फलस गाछी, पूर्वी उदवा दियारा, प उदवा दियारा, द॰ सर्राफ गंज, उ॰ सर्राफ गंज, पतौरा, उ॰ बेगमगंज, अमानत, दाहू टोला, खेलूटोला, कमलतोला, बर्बन्ना, हर्मल्ली, कर्बला, हिमसिंग टोला, और मुरमी टोला जैसे सैकड़ों गाव हैं, इस समय यहाँ ''ईसिस''की 'टीशर्ट'पहने इस्लामिक युवक स्वाभाविक दिखाई देते हैं ये वास्तविक खतरे की घंटी है कोई भी इस्लामिक संस्था ने इन आतंकवादियों के खिलाफ कोई फतवा नहीं जारी कर सकता क्यों की ये सब इस्लाम के लिए लड़ रहे हैं हिन्दू समाज के सेकुलर नेता उनकी प्रसास्ति गान कर भारतीय मन में निराशा का भाव पैदा कर रहे हैं, जहां भारतीय मन समाप्त होता दिखाई देता है वहाँ राष्ट्र बिरोधी गति- बिधियां खुलेआम हो रही हैं लेकिन भारतीय मन चुप-चाप देखने को मजबूर है।   
        हिंदुओं की दुर्दशा ----------!
        किशनगंज, कटिहार, अररिया, सहबगंज, और पाकुड़ जैसे जिले जहां गवों मे हिन्दू प्रताड़ित किया जा रहा है जैसे वह इस्लामिक स्टेट मे हो वहाँ केवल इस्लामी लूँगी ही पहनावा, हिन्दू घरों मे 'बधना'ही रखने को मजबूर यदि घर किसी की मृत्यु हो गयी तो बलात उसे गाड़ना ही पड़ता है अग्नि संस्कार नहीं कर सकता, कितना भयावह स्थित है इसकी कल्पना दिल्ली, पटना और रांची मे बैठकर नहीं किया जा सकता आज यहाँ का हिन्दू दीनहीन अवस्था मे पहुच गया है उसकी बहन -बेटियाँ सुरक्षित नहीं है जो जमींदार था वह अब मजदूरी करने को बाध्य है आए दिन हिन्दू समाज की बहन-बेटियाँ लव जेहाद की शिकार हो रही है सेकुलर सरकार इसको बढ़ावा ही दे रही है भारतीय समाज का अस्तित्व इस क्षेत्र मे खतरे मे पड़ गया है उसके मठ, मंदिर और सार्बजनिक स्थानो पर बंगलादेशी कब्जा कर रहे हैं कोई बोलने वाला नहीं है यहाँ की हालत आने समय मे कश्मीर जैसे होने वाली है जैसे कश्मीरी पंडितों को कश्मीर छोड़ना पड़ा उसी प्रकार वह दिन दूर नहीं जब यहाँ के हिन्दुओ को यह क्षेत्र छोड़ना पड़ेगा, यहाँ अलकायदा, आईएसआईएस और सिमी इस्लामिक स्टेट बनाने पर लगे हैं और देशद्रोही सेकुलरिष्ट उनको संरक्षण देने मे ! तो कौन बचाएगा इस क्षेत्र को कैसे यह भाग भारत का हिस्सा रहेगा भविष्य मे यहाँ कोई हिन्दू प्रतिनिधि चुनाव जीत पाएगा यह प्रश्न खड़ा है--! 
इसका उपाय क्या है इस पर विचार करने की आवस्यकता है.
 १-अर्ध सैनिक बल को ईमानदार चुस्त-दुरुस्त करना. 
२- भारतीय राजनेताओं की राजनैतिक इक्षा शक्ति को जगाना. 
३- सीमा पर रहने वाले भारतीय नागरिको को जागृत करना. 
४- राजनीती से ऊपर उठकर देश हित का विचार करना. 
५-घुसपैठियों के प्रति कोई सहानुभूति न रख कड़े से कड़े कानून बनाना. 
६-वोट बैंक की राजनीती, तुष्टिकरण की राजनीती को छोडना. 
७- इस देश का वास्तविक मालिक कौन है इसका पहचान करना और विचार करना. 
८- सीमा पर पूर्व सैनिकों को बसाने की ब्यवस्था करना. 
९- सीमा को मुसलमानों और ईसाईयों से मुक्त करना जिससे तस्करी, आतंकवादी और घुसपैठ जैसी गतिबिधियों पर रोक लगाया जा सके. 
       धीरे-धीरे यह बिहार और झारखंड का सीमांचल 1947 के रास्ते पर बढ़ रहा है बढ़ती मुसलमानों की संख्या और उनके बढ़ते हुए साहस को तथाकथित सेकुलर नेता प्रोत्साहित करते हुए दिखाई देते हैं इन सेकुलरिष्टों को प्रत्येक राष्ट्रवादी कार्य भगवा करण ही दिखाई देता है इसका एक और केवल एक ही उपाय है भारतीय समाज की उग्र राष्ट्र भक्ति, उत्कट ईक्षा-शक्ति जो किसी के रोकने से नहीं रुके --------!                  

धर्मांतरण, शुद्धी और घर वापसी -----!

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घर वापसी----------
           सनातन हिन्दू धर्म मे शुद्धि कोई नयी बात नहीं है ''कृंणवन्तो विश्वमार्यम''सम्पूर्ण जगत को आर्य बनायेगे, वैदिक काल मे जब शंभर राज ने विश्वामित्र का अपहरण किया था ऋषि अगस्त ने युद्ध द्वारा संभर राज को पराजित कर विश्वामित्र को छुड़ा लिया विश्वामित्र ने उसी समय से समाज मे आई विकृति को समाप्त करने हेतु शुद्धि आंदोलन शुरू की परिणाम स्वरूप वे राज-पाट छोड़ सन्यासी हो गए तो वनबासियों की शुद्धी ही नहीं तो राजा हरिश्चंद्र के यज्ञ मे सुनहशेप के अन्तर्मन मे प्रवेश कर वरुण मंत्र उसके मुख से निकलवा उसे महान मंत्र द्रष्टा बना दिया।
          भारत मे समाप्त होते हुए वैदिक धर्म को आदि जगद्गुरू शंकराचार्य शास्त्रार्थ कर पुनर्वैदिक धर्म (राष्ट्रधर्म) मे वापसी की, लेकिन यहाँ तलवार के बल नहीं बल्कि वाद-बिवाद को महत्व दिया जिससे भारत मे विचार को स्वतन्त्रता मिली जहां मनुष्य को परिपूर्ण मानव बनने का अवसर मिला इसी कारण जब विबेकानंद अमेरिका गए तो एक अमेरिकन सांसद ने 'विश्वधर्म सम्मेलन आयोजन समिति'के संयोजक से कहा कि ''सम्पूर्ण अमेरिका के बिदवानों को एक पलड़े पर दूसरे पर स्वामी विबेकानंद को रख दिया जाए तो भी भारतीय स्वामी जी का पलड़ा टस से मस नहीं होगा''यानी जहां विश्व मे खोजने पर महापुरुष मिलते हैं वहीं भारत मे महापुरुषों की शृंखला खड़ी है ।
         इस्लाम के उदय के पश्चात जहां विश्व के अनेक देश इस्लाम के शिकार हुए, जहां-जहां इस्लाम गया वहाँ की संस्कृत-सभ्यता समाप्त हो गयी, वहीं 1200 वर्षों की गुलामी के पश्चात भी हिन्दू समाज बचा ही नहीं रहा बल्कि संघर्ष कर अपने को स्थापित करने मे सफल रहा, मुहम्मदबिन कासिम का 712इशवी सन मे सिंध पर हमला महाराजा दहिर की छल पूर्ण पराजय ! ये कोई लुटेरे ही नहीं बल्कि तीन वर्ष के शासन मे 40000 हज़ार हिन्दू महिलाओं, बच्चों को अरब की बाज़ारों मे गुलाम बना बेचा-! मूलतन मे 6000लोगो को मुसलमान बनाया, (अलबिलादुरी, फ़ुतूह-उल-बुल्डान पेज 120 ) हजारों हिन्दुओ का बलात तलवार के बल धर्मांतरण किया लेकिन उसके जाते ही अरब शक्ति का पतन सीघ्र हुआ, हिन्दू समाज की ताकतवर जातीय ब्यावस्था ने पुनः शुद्धिकर मतांतरित लोगो को हिन्दू समाज मे सामिल कर लिया, आक्रमणकारी आते रहे हिन्दू समाज इस्लाम का मानस समझ नहीं सका तलवार के बल मुसलमान बनाया जाता रहा हिन्दू समाज के रक्षक साधू- संत सामने आए वहीं सिंध मे देवल ऋषि ने देवल स्मृति लिख पुनः शुद्धि का रास्ता खोल दिया कहा कि केवल तुलसी दल मुख मे डाल, गंगा स्नान मात्र से मनुष्य शुद्ध हो जाता है इस कारण सभी बिधर्मी हुए हिन्दू गंगा स्नान कर यदि वे चाहे तो बिहार,बंगाल अथवा कोकड़ चले जाय यानी वहीं बस जाय (देवल स्मृति)। फिर क्या था संतों कि शृंखला चल पड़ी कोई रामानन्द स्वामी होगे द्वादस भगवत शिष्यों द्वारा दक्षिण के भक्ति मार्ग को उत्तर भारत मे आंदोलित कर दिया अयोध्या मे राज़ा हरी सिंह के नेतृत्व मे 34 हज़ार राजपूतों की सुद्धी की।
          मुस्लिम इतिहासकर मालावार तट पर बसे मुसलमानों की संख्या व उपलब्धियों को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाते हैं लेकिन हिंदुओं के उन प्रयत्नों को छुपा जाते हैं जिनमे हिन्दू नवधर्मांतरित मुसलमानों को पुनः हिन्दू बना लेते थे, सुलेमान सौदागर नवीन शताब्दी मे भारत आया वह लिखता है, ''मुझे पश्चिमी तट पर कोई मुसलमान अथवा अरब नहीं मिला, (सुलेमान सौदागर द्वारा लिखित लेख का अनुवाद महेश प्रसाद पेश्त 84) ''1030 ई॰ मे महमूद गजनवी की मृत्यु और (1191-92ई॰) मुहम्मद गोरी के आक्रमण के मध्य लगभग 150 वर्ष के काल खंड मे पुनः धर्मांतरण के बहुत से अवसर आए जिसमे बड़ी संख्या मे पुनः धर्मांतरण हुआ अर्थात मुसलमान से हिन्दू बनाए गए''आदिब, पेज 337 पर लिखता है सिंध मे राजपूत कभी हिन्दू सा मुसलमान बना लिए जाते थे पुनः वे सब हिन्दू हो जाते थे, अशरफ अपनी 'लाइफ एण्ड कंडीशन आफ द पीपिल आफ हिन्दुस्तान'मे पेज 195 पर लिखते हैं, ''उच्च वर्ग के धर्मांतरित हिन्दू कभी-कभी वापस हिन्दू हो जाते थे और अपने पूर्व स्तर को प्राप्त कर लेते थे''।      
           एक पागल इस्लामी शासक मुहम्मद तुगलग ने देखा कि सैकड़ों वर्ष तक इस्लामिक शासन होने व बलात इस्लामिकरण के बावजूद मुसलमानों की संख्या बढ़ती क्यों नहीं ? पता लगा कि जिन हिंदुओं को वे मुसलमान बनाते हैं उन्हे हिन्दू समाज की जातीय ब्यवस्था, पंचायत तथा साधू-संत मिलकर पुनः शुद्धि कर हिन्दू धर्म मे सामिल कर लेते हैं, मु॰ तुगलक ने एक फरमान जारी किया कि कोई भी हिन्दू -मुसलमान तो बन सकता है लेकिन कोई भी मुसलमान -हिन्दू नहीं बन सकता बनने और बनाने वाले दोनों को फांसी की सजा होगी, मुगल शाहजहाँ ने फरमान जारी किया कोई भी मुसलमान बनता है तो उसे सजाये मौत होगी समाज भय-भीत होने लगा उसी समय से मुसलमानों का हिन्दू बनाना बंद हो गया, लेकिन साधू-संत सतर्क थे उन्होने मुसलमानों को मलेक्ष व अछूत घोषित किया कोई भी हिन्दू उनके यहाँ पानी -पीना तो दूर मुसलमानों का छुवा भी पानी नहीं पीना, कितना उत्कृष्ट समाज मुगलों के यहाँ नौकरी तो करता था पर घर से खाना खाकर जाना लौट कर घरपर ही भोजन करना, अपना ही पानी -पीना ऐसा पराजित समाज (हिन्दू) जो अपने को श्रेष्ठ समझता रहा आज भी वह श्रेष्ठ है ऐसा हमारा हिन्दू मानस हमारे संतों ने बनाया,  अलवेरूनी पेज 22 पर लिखता है ''हिन्दू ऐसा विस्वास रखता है विश्व मे भारत जैसा महान कोई देश नहीं, उनके जैसा राष्ट्र नहीं, सनातन धर्म जैसा श्रेष्ठधर्म कोई धर्म नहीं, उनके जैसा ज्ञान-विज्ञान दुनिया मे कहीं नहीं, यहाँ के जैसे राजा, महाराजा और चक्रवर्ती सम्राट, ऋषियों महर्षियों द्वारा निर्मित वैदिक संस्कृति विश्व मे कहीं नहीं हैं ऐसे लोगो का धर्मांतरण आसान नहीं है''।  
           मुगल काल मे काशी का कोई मंदिर नहीं बचा जिसे तोड़ा नहीं गया हो अयोध्या, मथुरा और काशी जो हिन्दू समाज के श्रद्धा के केंद्र थे उन्हे समाप्त करने का प्रयास किया गया काशी विश्वनाथ मंदिर के शिवलिंग को जब तोड़ने औरंगजेब की सेना पाहुची वहाँ के पुजारियों ने उसे बचाने के लिए शिवलिंग लेकर भागे मुगल सैनिक ने एक को तलवार के काटा तो दूसरे ने ले लिया दूसरा काटा गया तो तीसरे ने ले लिया इस प्रकार हिन्दू समाज हुत्तात्मा बन अपने देवी-देवताओं के मूर्तियों की रक्षा कारता रहा, क्या हम उस बलिदान को भुला सकते हैं ! एक हाथ मे कुरान दूसरे मे तलवार लेकर हिंदुओं का बलात धर्मांतरण किया, आज के छः सौ वर्ष पूर्व कश्मीर घाटी मे केवल हिन्दू थे तलवार के बल मुगलों ने उनका धर्मांतरण किया गुरु तेगबहादुर का बलिदान इसका साक्षी है वे हिन्दू समाज के धर्म रक्षक थे उन्हे आज सम्पूर्ण समाज 'हिन्द की चादर'के नाम से जनता है।
           ब्रिटिश काल मे यदि यह कहा जाय कि 1200 वर्ष वाद भारत की आज़ादी का अकेला श्रेय दिया जाय तो वे केवल और केवल महर्षि दयानन्द सरस्वती ही होगे, स्वामी दयानन्द सरस्वती ने अपने ही जीवन काल मे राजस्थान के व्यावर मे प्रथम सुद्धी कि थी बस क्या था अब तो सुद्धी का रास्ता खुल ही गया स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती ने तो मानो शुद्धी आंदोलन ही खड़ा कर दिया उन्होने आर्य समाज द्वारा सुद्धी सभा का गठन किया केवल उत्तर प्रदेश मे मेरठ से लेकर गाजियावाद तक उन्होने 111 गावों के मुसलमानों की सुद्धीकी स्वामी जी उन्हे उनके पूर्वजों की गरवपूर्ण गाथा सुना धर्म की श्रेष्ठता बता सबको सुद्ध कर लेते थे, स्वामीजी ने राजस्थान के मलकाना राजपूत जो मुसलमान हुआ था इकट्ठे डेढ़ लाख मलकाना मुस्लिम राजपूतों की शुद्धी कर वैदिक धर्म की दीक्षा दी, इसी कारण 23 दिसंबर 1926 को मुहम्मद रसीद नाम के मुसलमान ने बीमार और चारपाई पर पड़े स्वामी जी को छुरी मारकर हत्या कर दी, गुरु घासीदास, दादू, संतजीवन दास, बाबा रामदेव जैसे बहुत सारे संतों ने ब्रिटिश काल मे धर्मांतरित समाज को पुनः हिन्दू समाज मे मिला लिया।
           देश आज़ादी के पश्चात हमारे समाज के बड़े लोगो ने एक बार फिर अपने बिछड़े हुए समाज को पुनः हिन्दू समाज मे सामील करने का प्रयास किया 1950 का दसक राजस्थान के महाराणा, महाराजा जोधपुर, राजा सिरोही तथा अन्य राजाओं के साथ बैठक कर जो सम्राट पृथ्बिराज चौहान की सेना के लोगों को बलात मुसलमान बनाया गया था उन्हे वापस लाया जाय हजारों राजपूत और पठान इकट्ठा हुए संयोग से महाराजा जोधपुर का निधन हो जाने के कारण शुद्धी नहीं हो सकी, इसी प्रकार गुजरात मे नरेंद्र सिंह (तत्कालीन कृषि मंत्री) उ प्र मे राजा सिंगारामवू श्रीपाल सिंह, अमेठी के राजा रणञ्जय सिंह ने एक बैठक की जिसमे मुसलिम और हिन्दू राजपूत इकट्ठा हुए रोटी-बेटी को लेकर बात नहीं बनी, बिहार के अरवल जिला के पीरु-बन्तारा के भूमिहार लोग मुसलमान हुआ रामानुज परंपरा के संत बसुदेवाचार्य के नेतृत्व मे प्रयास हुआ प॰ चंपारण मे गद्दी मुसलमान जो 'अहीर'जाती से है पचास के दसक मे उनके वापसी का प्रयास हुआ यानी हिन्दू समाज का मानस हमेसा बिछड़े हुए बंधुओ को वापस लाने का था, लेकिन दुर्भाग्य बस नेहरू की सेकुलर नीति जो हिन्दू समाज के लिए आत्मघाती सिद्धि हुई।
             घर वापसी के लिए धर्म जागरण ने कोई नया काम नहीं शुरू किया आदि जगद्गुरू शंकरचार्य, रामानुजाचार्य, स्वामी रामानन्द, स्वामी दयानन्द सरस्वती, स्वामी विबेकानंद और स्वामी श्रद्धानंद जैसे महापुरुषों की विराशत स्वीकार कर मानव धर्म और राष्ट्र रक्षा हेतु घर वापसी हमारा कर्तब्य---! हमारे पूर्वज जो बिछुड़ गए किन्हीं कारणो से बिधर्मी हो गए उन्हे अपने पूर्वजों का स्मरण कर घरवापसी करके अपने कर्तब्य का निर्वहन करना मात्र है सेकुलर के नामपर ईसाई और इस्लामी ताकतों को धर्मांतरण करने को अनदेखी करना और हिन्दू धर्म छोड़ने वाले लोग या उनकी संतति फिर से अपने मूल धर्म मे वापस आए तो बवाल मचाना यह सेकुलरों द्वारा देशद्रोही कृत्य के अतिरिक्त कुछ भी नहीं ।  
सूबेदार जी 
पटना 

पंद्रह अगस्त 1947 बारह सौ वर्षों मे हिन्दुत्व की सबसे बड़ी पराजय---------!

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            यह सनातन परंपरा से चला आया हुआ सनातन संस्कृति को मानने वाला देश जिसकी संस्कृति अक्षुण रही कभी खंडित करने का किसी ने प्रयत्न किया भी तो कभी चाणक्य के नेतृत्व मे सम्राट चन्द्रगुप्त तो कभी शंकराचार्य और पुष्यमित्र शुंग ने उसे करारा जबाब दिया, भारत के सिंध के महाराजा दाहिरसेन और दिल्ली सरोवा सम्राट पृथ्बीराज चौहान की पराजय के पश्चात ऐसा नहीं था की हिन्दू समाज ने संघर्ष नहीं किया कभी महाराणा प्रताप, शिवाजी, गुरु गोविंद सिंह, बंदा बैरागी जैसे लोगो ने संघर्ष किया तो कभी संत समाज रामानुजाचार्य, रामानन्द स्वामी, कबीर दास, संत रबीदास, चैतन्य महाप्रभु और शंकरदेव जैसे संतों ने अपनी संस्कृति को अक्षुण रखा ब्रिटिश शासन के समय स्वामी दयानन्द सरस्वती, स्वामी विबेकानंद, सावरकर, नेताजी सुभाषचन्द्र बॉस, महर्षि अरविंद और महामना मदनमोहन मालवीय जैसे मनीषियों ने हिन्दुत्व की पताका को झुकने नहीं दिया स्वामी श्रद्धानंद जी ने तो बिछड़े हुए बंधुओं को पुनः हिन्दू धर्म मे सामील कर आदि जगद्गुरू शंकराचार्य की परंपरा की याद ताज़ा कर दी।
         क्या पता था कि जिस लड़ाई को हिन्दू समाज के श्रेष्ठ जनों ने हज़ार वर्षों तक लड़ी, जिनके हाथ मे नेतृत्व आया वे हिन्दू समाज को धोखा देगे, बड़ी ही योजना वद्ध तरीके से लोकमान्य तिलक, बिपिनचंद पाल और लालालाजपत राय के शक्तिशाली, कुशल, क्षमता वाले नेतृत्व को गांधी जैसे कमजोर हाथ मे देकर हिन्दू समाज के साथ धोखा हुआ, भारत की वास्तविकता यह है कि हजारों वर्षों से पश्चिम सिंधु पार से पूर्व मे ब्रम्हपुत्र नद, उत्तर मे हिमालय से दक्षिण मे कन्याकुमारी तक यह अखंड आर्यावर्त, भारत वर्ष, हिंदुस्तान इत्यादि नामों से प्रसिद्ध इस सनातन देश का 14 अगस्त 1947 को इस आधार पर बिभाजन हो गया कि हिन्दू और मुसलमान दो राष्ट्र है इसी हिन्दू राष्ट्र मे से एक अलग पाकिस्तान का निर्माण जो इस्लामिक राष्ट्र  के रूप मे खड़ा है 1851 के एक सर्वे के अनुसार (धर्मपाल) भारत की साक्षरता 80% थी 1857 की स्वतन्त्रता समर मे ब्रिटिश ने इस आंदोलन को दबाने हेतु जितने पढे-लिखे लोग थे उनका संहार किया केवल उत्तरप्रदेश और बिहार मे बीस लाख लोग मारे गए आज भी बहुत से कुएं, पीपल के बृक्ष और चौराहे मिलेगे जहां लोग बताते हैं कि इस कुएं मे सैकड़ो, इस पेड़ पर सैकड़ों और इस चौराहे पर इतने लोगों को फासी पर लटकाया गया है आज भी स्थानीय जनता उस पर पुष्पार्चन करती है, फिर भी हिन्दू समाज का संघर्ष जारी रहा भारतीय समाज पराजित नहीं हुआ।
      देश बिभाजन के समय जनसंख्या अदला-बदली के समय मुसलमानों द्वारा मारे गए हिंदुओं की संख्या एक अनुमान के अनुसार कम से कम 15 लाख थी, लाखों बहनो का बलात इस्लामीकरण किया गया यह बिभाजन अप्राकृतिक था हमारे तीर्थ स्थान गुरुद्वारे, शक्तिपीठ सहित बहुत सारे देवस्थान चले गए उस समय महात्मा गांधी के हाथ नेतृत्व था हिन्दू समाज उन्हे अपना नेता मानता ही नहीं था बल्कि अंधभक्त था चारो तरफ मार-काट मचाते आठ करोण मुसलमानों के आगे अहिंसा के मोहजाल मे फसा 35 करोण हिन्दू पराजित हुआ, सच्चाई यह है कि हिंदुओं की सबसे बड़ी पराजय पानीपत के मैदान मे नहीं बल्कि 1947 के बिभाजन मे हुई, आज भी हिन्दू समाज यह भ्रम पाले बैठा है कि बिभाजन गांधी जी नहीं बल्कि जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल के राजनैतिक भूल का परिणाम था परंतु यह कोरा अंध विश्वास है सत्य क्या है और कितना भयानक है --? 5 मार्च 1947 को कांग्रेस कि कार्यसमिति ने अपनी बैठक मे मुस्लिम लीग द्वारा बिभाजन कि अपनी मांग मनवाने के लिए पंजाब मे मचाए जा रहे हत्याकांड और अग्निकांड को ध्यान मे रखते हुए निर्णय किया गया कि पंजाब का दो भागों मे बिभाजन आवस्यक है , एक मुस्लिम -बहुल जिलों का पश्चिमी पंजाब और हिन्दू- बहुल जिलों का पूर्वी पंजाब, एक अन्य प्रस्ताव द्वारा निर्णय हुआ की उसी समय मे गठित की जा रही संबिधान सभा मे भाग लेना स्वेच्छिक है तथा यह संबिधान उन्हीं पर लागू होगा जो इसे स्वीकार करेगे, उसी प्रकार जो प्रांत या प्रदेश भारतीय संघ मे मिलना चहेगे उन्हे किसी प्रकार रोका नहीं जाएगा, (वी पी मेनेन ट्रांसफर आफ पवार,351-52 पृष्ट ) गांधी जी उसी समय बिहार दंगा ग्रस्त क्षेत्रों मे थे, उन्हे पता चला कि बिना उनकी राय के बिभाजन का निर्णय ले लिया गया है तो वे बहुत लाल-पीले हुए, बिहार से वे मार्च के अंत मे वे दिल्ली आए।
         बिभाजन मेरी लास पर -------!  
         मुस्लिमलीग के एक प्रमुख नेता 'सर फिरोज खाँ नून'ने यह धामकी दी की ''यदि गैर मुसलमानों ने आवादी की अदला-बदली मे रुकावट डाली तो चंगेज़ खाँ, हलाकू जैसी समूहिक संहार की विनास लीला की पुनरावृत्ति कर दी जाएगी, तदनुसार ही मुस्लिम लीग द्वारा 'डायरेक्ट ऐक्सन'के नाम पर 16 अगस्त, 1947 को कलकत्ता (नोवाखली) मे हिन्दुओ की समूहिक हत्याओं व अग्निकांडों का सूत्र पात हुआ,फिर गांधी जी बोले ---''यदि कांग्रेस विभाजन स्वीकार करती है तो वह मेरे मृत शरीर के ऊपर होगा, जब-तक मै जीवित हूँ मै कभी विभाजन स्वीकार नहीं करुगा, यदि हो सका तो न ही मै कांग्रेस को स्वीकार करने दूंगा'' (इंडिया विन्ज फ्रीडम). गांधी जी ने १२ अगस्त को लिखा की कांग्रेस के आत्म- निर्णय के सिद्धांत के वे ही जनक हैं, साथ ही यह भी लिखा ''अहिंसा पर विस्वास करने वाला मै हिंदुस्तान की एकता तभी बनाये रख सकता हूँ जब इसके सभी घटकों की स्वतंत्रता स्वीकार करूँ'', इस प्रकार की बिरोधाभाषी बातें करने वाला ब्यक्ति अन्य देश में पागल करार दिया जाता, किन्तु हिंदुओंके भारत ने उन्हे राष्ट्रपिता स्वीकार कर लिया, यह एक और बड़ी गलती थी कि जिस देश मे श्रीराम और श्रीकृष्ण राष्ट्रपिता न होकर राष्ट्र-पुत्र ही रहे, उसी देश मे कुछ लोगों ने गांधी जी को राष्ट्रपिता बना दिया । 
           कांग्रेस के प्रमुख नेताओं ने इस गंभीर और महत्वपूर्ण समस्या पर चिंतन नहीं किया, किन्तु जुलाई -अगस्त 1947 मे विभाजन के साथ पाकिस्तानी क्षेत्रों मे हिंदुओं के ब्यापक संहार और उसका पलायन देखकर सरदार पटेल तथा कुछ नेता आबादी की अदला-बदली की आवस्यकता समझी; किन्तु गांधी, नेहरू ने यह प्रस्ताव को ठुकरा दिया, दूसरी तरफ पाकस्तानी क्षेत्र से हिंदुओं को पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा तथा योजना बद्ध तरीके से बांग्लाभाषी मुसलमानों को असम मे बसने को प्रोत्साहित किया गया, भारत सरकार ने इसपर कोई ध्यान नहीं दिया, उल्टे जब सरदार पटेल ने यह प्रस्ताव किया की आबादी का अदला-बदली कर ली जाय तथा भूमि का आबादी के अनुपात मे पुनर्निर्धारण हो, तो नेहरू बहुत क्रोधित हो गया, परिणाम यह हुआ कि जहां पाकिस्तान ने सभी हिन्दुओ को भारत मे धकेल दिया वहीं भारत के 70% मुसलमान यहीं रह गए गांधी, नेहरू के ही कारण हिंदुओं की इतनी बड़ी पराजय हुई जो भारतीय इतिहास के काले पन्ने मे दर्ज है जिसे आने वाला हिन्दू समाज कभी भी इन्हे माफ नहीं करेगा।
      आज़ादी नहीं विभाजन--------!
       हिंदुओं को स्वतन्त्रता नहीं बल्कि उनके ही देश का विभाजन मिला, जो 600 वर्षों के तुर्क, अफगान, मुगल तथा 200 वर्षों के ब्रिटिश काल मे भी नहीं हुआ था, जिसके फलस्वरूप भारत का एक तिहाई भाग इस्लामी कट्टर पंथियों के हवाले हो गया और लाखों निर्दोष, निरीह मानवों कि हत्या हुई और दो करोण ब्यक्ति बिस्थापित हुए, इस खूनी विभाजन मे सुप्रसिद्ध सत्य-अहिंसा के प्रतिमूर्ति 'महात्मा'गांधी की भूमिका मुस्लिम लीगी नेता मोहम्मद अली जिन्ना अथवा जवाहरलाल नेहरू से कम नहीं थी, विभाजन से पहले 600 वर्षो के इस्लामिक शासन मे इस्लामी कानून ''शरीयत''चलता था जो हमेशा मुसलमानों के पक्ष का रहता था 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजी राज्य समाप्त होकर एक नए युग का सूत्रपात हुआ, इस नए युग के साथ ही हिन्दू -दासता के दूसरे अध्याय का सूत्रपात हिन्दुओ की आखो के सामने, हिन्दू जाती की सहमति से हुआ, जिसे हम आज सेकुलर के नाम से जानते हैं।                              

अजीतपुर, सरइया, (मुजफ्फरपुर) घटना के पीछे की मानसिकता------!

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 मामला धर्मान्तरण का है हत्या और आगजनी में स्थानीय मुल्ला मौलबी का हाथ ---!
          अभी-अभी 18 जनवरी को कौन सी घटना हो गयी कि अजीतपुर गाँव धू-धू जलने लगा जब इसकी गहराई मे जाते हैं तो ध्यान मे आता है कि लव जेहाद केवल मुसलमान लड़के ही नहीं बल्कि मुसलमानों की लड़कियां भी इस कार्य मे लगी हैं इसी गाँव की एक मुसलिम लड़की एक स्नातकोत्तर क्षात्र भारतेन्दु जो एलएस कलेज मुजफ्फरपुर मे पढ़ता था लड़की ने उसे जाल मे फसा उसे मुसलमान बना चाहती थी लड़का तैयार नहीं था लड़की का भाई सदाकत उसे मुजफ्फरपुर से घर बुलाकर ले गया (उसके साथ दो और मित्र थे उन्हे भेजकर उसे अपने बेडरूम मे लेजाकर उसकी हत्या की) वह कहाँ गया किसी को पता नहीं, घर वाले अपहरण का मुकदमा स्थानीय पुलिस स्टेशन मे दर्ज कराया सप्ताह भर बीत गया पुलिस हाथ पर हाथ रखकर बैठी रही कारण बिहार मे मुसलमानों के खिलाफ कोई भी कदम उठाने मे कोई रिस्क नहीं लेता जैसे यहाँ इस्लामिक शासन हो, किसी तरह सुराग लगा की भारतेन्दु  को स्थानीय गाँव के मुसलमानो ने छिपा रखा है पुलिस को यह भी सूचना दी गयी कोई कार्यवाही नहीं हुई गाँव वालों को सक हो गया-- इन लोगो ने लड़के की हत्या कर दी है यह भी सूचना पुलिस को दी लेकिन पुलिस की हिम्मत नहीं की वहाँ कुछ कर सकें!  लास खोजी जाने लगी एक पालतू कुत्ता खोज निकाला ठीक मस्जिद के पीछे सरसों के खेत मे लास मिली गाँव वालों ने फिर पुलिस को सूचना दी पुलिस की कोई सुनवाई नहीं हुई जब मुल्ले की पिटाई गाँव वालो ने की तो उसने बताया की लड़की का भाई सदाकत ने उसे बुलाकर लाया गाँव के मौलबी ने उसे इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिए दबाव डाला वह तैयार नहीं हुआ (गाँव -गाँव मे यह चर्चा का विषय बना हुआ है) फिर मौलबी, सदाकत और उसके बाप ने उसे मार डाला किया, वहाँ के मौलबी को बुला लड़की के ही घर मे उसे मुख मे कपड़ा ठूसकर दर्दनाक तरीके से गला रेतकर मारा, सदाकत का बयान है की उसने गला दबाकर मारा जबकि स्थानीय 'संसद और डीएम'दोनों ने ऑन स्पॉट खून पर्याप्त मात्र मे गिरा हुआ है देखा पोस्ट मार्टम रिपोर्ट ही असलियत बताएगी एफ़आईआर केवल 2-3 लोगो पर है जबकि सजिस मे पूरा मुल्ला सहित गाँव सामिल रहा होगा, एक चर्चा और है की मर्डर के पश्चात कुछ मुल्लाओं ने मुस्लिम घरों मे स्वयं ही आग लगवा दी (गांव वालों की आसंका ) जिससे मर्डर को दंगे का रूप दिया जा सके। 
           एक तरफ इस्लाम शांति का संदेश देता है क्या यही उसका शांति का संदेश है ! जबकि एक लाख हिन्दू लड़कियों का लव जेहाद द्वारा के मुसलमान बनाया जा रहा है ! इसमे किसी का दोष नहीं, दोष केवल मानसिकता का है आखिर यह कौन मानसिकता है कि इनका धर्म गुरु इतना क्रूर है अब खोजी पत्रकारिता कहाँ चली गयी उन्हे यह दिखाई नहीं देता-! वास्तविकता यह है भारतीय पत्रकारिकता हिन्दू बिरोधी होते- होते वह भारत बिरोधी हो गयी वे इस्लाम की वास्तविकता को जानना नहीं चाहते, आखिर फ्रांस मे जब आतंक वादियों द्वारा पत्रकारों की हत्या के पश्चात सभी कालेज और विद्यालयों मे शोक सभा पश्चात दो मिनट का मौन रखा गया उस समय इस्लामी बच्चों ने आतंकवादियों के पक्ष नारे लगाए आखिर यह कौन सी मानसिकता है इसका मतलब यह है कि मुसलमानों के घरों मे भी आतंकवादी मानसिकता बनाई जाती है कोई भी मुसलमान शांति मे विस्वास नहीं रखता, तो यह मानसिकता कैसे बदलेगी ! वास्तविकता यह है कि यदि विश्व को शांति पूर्वक रहना है तो इसका इलाज करना होगा, गलती तो प्रत्येक हिन्दू करता है जो इस कौम पर विस्वास करता है जबकि हमारे महापुरुषों ने पहले ही सचेत किया है, गुरु गुरुगोविंद सिंह ने कहा ''जन विस्वास करौ तुरुक्का, तुरुक मिताई तब करे जब सबै हिन्दु मरि जाय''।
           घटना के पंद्रह दिन पश्चात भी कोई गिरफ्तारी नहीं हुई हिन्दू जनमानस ब्याकुल हो गया साहनी समुदाय के लोग थे अति पिछड़े लोग हैं मुख्यमंत्री भी लगभग इसी समुदाय से आते हैं लेकिन सरकार तो केवल मुसलमानों को साधने मे लगी हुई है फिर क्या था साहनी समुदाय के लोग सीधे-सादे हैं जब उन्हे न्याय नहीं मिला कानून अपने हाथ मे लेना चाहा, तो कौन -कहाँ से आया कुछ पता नहीं धू-धू कर अजीतपुर जलने लगा, कुछ जन-धन का नुकसान हुआ लेकिन बिहार सरकार एक पक्षीय कार्यवाही कर रही है जिससे सद्भाव बिगड़ रहा है जिन्हे मरा हुआ दिखाया जा रहा है वे घर से भाग गए हैं यह तो उनकी योजना का एक हिसा है सभी भाग जाना और घर फूंक कर मुआवजा लेना वहाँ के लोगों का कहना है कि घर उसी मुसलमानों मे से किसी ने फूँक दिया हत्या को कुछ और रंग देने के लिए मुल्ला-मौलबियों ने यह काम किया इस घटना की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए अजीतपुर गाँव के सभी साजिस करने वालों के ऊपर कार्यवाही (एफ़आईआर) होना चाहिए। 
          यदि दंगे -फसाद खत्म करना है तो मखतब मदरसों पर प्रतिबंध लगाना पड़ेगा, बर्तमान कुरान को प्रतिबंधित कर उसे नए तरीके से परिभाषित करना चाहिए जिसमे मानवता हो, मुसलमान उसे ही अपना देश मानता है जहां शरिया कानून लागू होता है, कुरान और हदीश किसी भी  मुसलमान को भारत के प्रति श्रद्धा की अनुमति नहीं देता और जो अपने को उदार और देश भक्त मुसलमान कहते हैं वे भारत के लिए अधिक खतरनाक हैं क्योंकि वे हिन्दु समाज और भारत दोनों को धोखा दे रहे हैं, इसलिए अजीतपुर की घटना धर्मांतरण की घटना है इसकी जांच होनी चाहिए,  मै सेकुलर सरकार से कहना चाहता हूँ हिन्दु समाज को जाती-पाँत मे बांटकर कमजोर करना बंद करे, आपको पता है न भागलपुर मे मुसलमानों ने ही दंगा शुरू किया था परिणाम क्या हुआ ? अजितपुर मे मुसलमानों ने शुरू किया क्या हुआ ? आप हिंदुओं पर हमले बंद कराईये भारत के इस्लामीकरण की ब्यवस्था बंद करिए और सेकुलर का पाठ इस्लामिक मुहल्लों मे पढाईए हिन्दु तो जन्म- जात धर्मनिरपेक्ष होता है।    

मेरे सारगाछी यात्रा के अनुभव ----------!

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स्वामी अखंडानन्द के लिए चित्र परिणाम         आज दिनांक २६ जनवरी 15 को कुछ साथियों के साथ हावड़ा से रोड द्वारा सारगाछी आश्रम हेतु रवाना हो गए रास्ते का अनुभव बड़ा ही बिचित्र था शायद आम भारतीय इसका अनुभव नहीं कर पाते होंगे कुछ तो दृष्टिकोड का भी असर रहता है इस कारन मैंने सोचा की इस पर कुछ लिखा जाय क्योंकि प बंगाल की ममता सरकार आँख पर जान-बुझकर पट्टी बांध बैठी हुई है, यहाँ हाइवे ३४ पर सारगाछी में स्वामी अखंडानंद ने यह आश्रम स्थापित किया था वे भगवन श्री रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे हिमालय में तपश्चर्या हेतु जा रहे थे अचानक क्या हुआ और क्यों अचानक वे यहाँ बैठ गए-?
        सारगाछी मे एक छोटी सी नदी है गाँव के लोग पानी- पीने के लिए उस नदी से लाया करते थे स्वामी जी उसी रास्ते से हिमालय की तरफ जा रहे थे शायद उस समय भी उत्तर हिमालय जाने का रास्ता यही था जैसे आज हाइवे जहां पर है स्वामी जी ने देखा कि एक महिला रो रही है स्वामी जी ने पूछा माता क्यों रो रही हो-! बड़ी ही मुसकिल से उसने बताया कि यह मेरा घड़ा टूट गया है अब मै कैसे घर जाऊ स्वामीजी को समझने मे देर नहीं लगी पूरे गाँव को गरीबी ने जकड़ा हुआ था उन्होने आस्वासन दे उस महिला के साथ गाँव मे चले गए और उन गरीब वनबासियों की सेवा मे अपना सारा जीवन लगा दिया इस आश्रम की नीव उसी समय स्वामी अखंडानन्द जी ने रखी जहां आज शिशु से लेकर इंटर कालेज तक का विद्यालय और क्षात्रावास बना हुआ है रामकृष्ण मिशन के दीक्षित सन्यासी आश्रम का संचालन करते हैं।
          वहाँ स्वामी गोपाल जी मिले मेरी जिज्ञासा को शांत करते हुए बताया कि संघ के श्री गुरु जी यहीं स्वामी अखंडानन्द जी से दीक्षा ली थी उस कमरे को भी हमने देखा जहां पूज्य श्रीगुरु जी रहते थे बड़ा ही रोमांचित दृश्य हो गया, आगे उन्होने बताया कि इस मुरसीदाबाद जिले मे 80% आबादी मुसलमानों कि है आए दिन आश्रम मे बाधा पाहुचाते रहते हैं जिले के हिंदुओं की गुलामी आज भी खत्म नहीं हुई हैं ध्यान मे आया की जब हम लोग हावड़ा से मुर्सिदावाद से चले तो देखा कि जगह-जगह चर्च बने हुए हैं मखतब-मदरसों की तो भरमार है लग रहा था कि हम लोग भारत मे न होकर पाकिस्तान मे हों, सन्यासियों के चेहरों पर कोई कांति नहीं वे हमेसा भय-भीत रहते हैं, जो  धरती महर्षि अरविंद, नेताजी सुभाषचंद बोस, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, रामकृष्ण परमहंश और विवेकानंद जैसों की कर्मभूमि रही हो आखिर ऐसा क्या हो गया की यहाँ राष्ट्रवाद का गला घुट-घुट कर दब रहा है बांग्लादेसियों की घुसपैठ आम बात है बात-बात मे हिन्दू देवि-देवताओं का अपमान हिन्दू समाज की मन-बहन और बेटियाँ सुरक्षित नहीं लेकिन वहाँ कोई बिवाद नहीं क्यों की हिंदुओं का साहस ही नहीं वे इतने कम हैं की यह सब उन्होने अपनी नियति ही मान लिया है उन्हे कोई सिकायत नहीं क्योंकि कोई सुनने वाला नहीं जो कुछ है वह सब मुसलमानों के लिए, उन्हे बीजेपी से कुछ उम्मीद थी लेकिन वह भी कहते हैं की उसमे भी मुसलमान ही घुसपैठ कर रहे हैं।
      उस सन्यासी ने कहा कौन बचाएगा हिन्दू धर्म, संस्कृति और भारत को ---?         

इस्लाम की हालत जन्म देने वाले बिच्छू के समान------------!

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        मुहम्मद इकबाल ने एक पुस्तक लिखी है जिसका नाम है ''शिकवा''उन्होने उसमे अल्लाह से सिकायत की है अपने मन की बात बड़ी बेबाकी से खुदासे कहा कि इस्लाम के नाम पर हम मुसलमानों ने लाखों मंदिर तोड़े, लाखों-करोणों निरपराध लोगो की हत्या की, दुनिया की धरोहर साहित्यों के पुस्तकालयों को जलाया और विश्व की तमाम पुरातन संस्कृतियों को समाप्त किया ---फिर मिला क्या--? गंदगी, गरीबी, हिंसा, हत्या और बलात्कार मे फंसा निराशा भरा जीवन-! ''हो जाएँ खून लाखों लेकिन लहू न निकले, जिनको आता नहीं दुनियाँ मे कोई फन तुम हो !''इकबाल यहीं नहीं रुकते वे आगे इसका जबाब भी लिखते है ''जबाबे शिकवा''उसमे वे लिखते हैं कि हे अल्लाह तुमने हमे लड़ने की क्षमता दी, जहां इस्लाम का उदय हुआ तेल का कुवां दिया जिससे इस्लाम मे संपन्नता हुई ऐसे इकबाल दो पुस्तक लिखते हैं। 
       आज का इस्लाम कहाँ खड़ा है इसपर विचार करते हैं क्या इकबाल ने जो शिकवा मे कहा वही सही है ? क्योंकि इतनी हिंसा के पश्चात क्या मिला ! लगता है की इकबाल ने जबाबे शिकवा को मुल्ला-मौलबियों के दबाव मे लिखा, वर्तमान समय मे इस्लाम की हालत बड़ी दयनीय बन गयी है, इस्लाम विश्व पटल पर आतंक का पर्याय हो गया है जब हम विचार करते हैं तो ध्यान मे आता है की ''यू एन''के एक आकडे के अनुसार 25 वर्ष से आज तक विश्व मे एक करोण पाचीस लाख मुसलमान मारे गए हैं इनको किसने मारा उसका भी आकडा है अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, रुश, इशरायल, भारत और चीन इत्यादि देशों ने आतंकबाद अथवा किसी युद्ध मे कुल दस लाख मुसलमानों को मारा होगा तो एक करोण पंद्रह लाख कहाँ चले गए --वे आपस मे लड़कर मर गए कहते हैं की इस्लाम शांति, प्रेम मुहब्बत का धर्म है, कैसे हैं ये शिया -सुन्नी को नहीं देखना चाहता न सुन्नी- शिया को, अहमदिया, कादियानी जैसे इनके बहत्तर फिरके हैं जिसमे एक दूसरे को अपने शत्रु ही समझते है यानी इनकी पोल यहीं खुल जाती है ये शांति और प्रेम मुहब्बत का धर्म नहीं केवल अरबियन राष्ट्रवाद का विस्तारवाद है।
       आखिर क्यों और कैसे -- इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसेन जो सुन्नी थे उन्होने इराक मे लगभग 30 लाख शिया मुसलमानों की हत्या की उसके बदले ईरान के राष्ट्रपति अयातुल्ला खुमैनी जो शिया थे 25 लाख सुन्नियों को मरवा दिया इराक -ईरान का युद्ध हुआ जिसमे आठ लाख ईरानी और पाँच लाख इराक़ी मारे गए, कोरियन गृहयुद्ध मे 1950 से 53 तक उन्नीस लाख, सुडान गृह युद्ध 1955से 1972 और 1983 से 2006 अट्ठारह लाख सत्तर लाख संख्या मे मारे गए, ऐसे पूरा इस्लामिक देश लड़कर मरते रहे इधर पिछले दस सालों मे कहीं अलकायदा, कहीं आईएस आईएस, कहीं बोको हरम, कहीं जमात उल दवा, कहीं हरकत उल मुजाहिदीन कहीं तालिबान अथवा अन्य आतंकवादी संगठन जो अपने को असली इस्लाम के मसीहा ही नहीं सभी आतंकी संगठनों के प्रमुख अपने को असली खलीफा बताते हैं इस्लाम के नाम पर ही लाखों की हत्या कर चुके हैं यहाँ तक की स्कूली बच्चों को भी नहीं बक्स रहे हैं महिलाओं मे भी अपने बच्चों को आतंकवादी बनाना गर्व की बात, आईएस आईएस इराक के कई भागो पर कब्जा कर चुका है 'इराक और सीरिया'को इस्लामिक स्टेट बनाना चाहते हैं इनकी और माओवादियों की कार्य पद्धति एक ही है (स्वयंभू सरकार) लेकिन इराक पर कब्जा इतना आसान नहीं आईएस आईएस के पास सात हज़ार लड़के हैं जबकि इराक के पास ढाई लाख की सेना है, इस समय आईएस आईएस के पास 14 हज़ार की समपत्ति जो सभी आतंकी संगठनों के समाप्त का कारण बनेगी संपत्ति को लेकर संगर्ष होना स्वाभाविक है, आखिर वे किसकी हत्या कर रहे हैं इस्लाम के नाम वे मुसलमानों की ही हत्या --! 
      पाकिस्तान, इराक, ईरान ऐसे कुछ देशों को छोड़ दीजिये तो 57 इस्लामिक देशों मे कोई सेना नहीं आतंकवादी संगठन ही है अधिकांश इस्लामिक देशों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी अमेरिका की है वे अमेरिका से भाग नहीं सकते पाकिस्तान के परुमाण सैयन्त्रों पर अमेरिका की निगरानी है, अब सारा विश्व मानवता को बचाने हेतु इकट्ठा हो रहा है फ्रांस, जर्मनी और आस्ट्रेलिया ने तो खुलकर ब्यवहार किया ही है चीन ने तो रोज़ा पर ही प्रतिबंध लगाया, रूस ने कहा की यदि शरिया कानून मानना है तो जहां शरिया कानून हो वहाँ चले जाय, जापान किसी मुसलमान को वीसा नहीं देता, अरबी लिपि का कोई पत्र नहीं प्राप्त करता, वहाँ का प्रधानमंत्री किसी इस्लामिक देश का दौरा नहीं करता, वर्मा मे कोई नयी मस्जिद बनाने की अनुमति नहीं पूरे विश्व से ये महत्वहीन हो रहे हैं। 
       अब इनके तेल पर विश्व की निगाह है यूरोप और अमेरिका देश प्रति दिन इनके तेल की कीमत कम करा इनकी आर्थिक रीढ़ तोड़ने का प्रयत्न धीरे-धीरे तेल की कीमत कम करना विश्व की नीति हो गयी है क्योंकि इस पैसों का उपयोग विश्व विद्यालय खोलने मे नहीं, सोध कार्य मे नहीं, किसी विकाश कार्य मे नहीं केवल बारूद खरीदने और आतंकवादी गतिबिधियों मे लग रहा है इस कारण सारा विश्व इकट्ठा होकर मानवता बचाने हेतु इन्हे समाप्त करेगे, इनकी दसा बिच्छू के समान हो गयी है बिच्छू जिस बच्चे को जन्म देती है वही उसे अपना भोजन बनाते हैं, इस्लाम की संरचना ही ऐसी है जो आतंकवाद, हिंसा, हत्या पर आधारित है इस्लाम मे बलात्कार, काफिरों की हत्या, लूट सभी जन्नत के रास्ते हैं यही इसके समाप्त के कारण बनेगे, लगता है वह समय अब आ गया है क्योंकि मुहम्मद साहब ने भी कहा था की इस्लाम 14 सौ वर्ष रहेगा चौदह सदी समाप्त हुए 25वर्ष हो गए कुछ नहीं हुआ लेकिन हम गड़ित ठीक करें तो ध्यान मे आयेगा वर्ष 365 दिन का होता है ईसाई कलंडर 30, 31, 28 और 29 करके पूरा करते हैं हिन्दू तिथि मे प्रत्येक चौथे वर्ष एक माह निकाल कर पूरा करते है इस्लाम मे 30 दिन ही होता है यदि गणना की जाय तो 1400 वर्ष मे 36 वर्ष बढ़ जाता है इस समय अब वह समय आ गया है जब चौदह सदी पूरी हो रही है, यदि इस्लाम को नए आधुनिक तरीके से परिभाषित नहीं किया गया तो यह अपने-आप समाप्त हो जाएगा।      

शतपथ ब्राह्मण के प्रवचन कर्ता---- ऋषि याज्ञवल्क्य

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      ऋषि याज्ञवल्क्य को सदानीरा कहा गया है क्योंकि उनका जन्म कहाँ हुआ तो सुदूर पश्चिम में सौराष्ट नाम का एक विस्तीर्ण प्रान्त था उसका भाग आनर्त कहाता था उसकी राजधानी चमत्कारपुर थी,आनर्तपुर राज्य का एक और प्रधानपुर विख्यात नगर था, नागर ब्राह्मणों कावही उद्गम माना जाताहै, स्कन्द पुराण नागर खंड (174-55) के अनुसार चमत्कारपुर के समीप ही कहीं याज्ञवल्क्य का आश्रम था, योगी याज्ञवल्क्य पूर्व खंड (1-1) तथा याज्ञवल्क्य स्मृति 1-2 मे मिथिला मे बताया गया है संभव है की उनके कई आश्रम रहे होगे राज़ा जनक के यहाँ शास्त्रार्थ हेतु जाया करते थे उनकी राज़ा जनक से गुरु शिष्य जैसा संबंध था, वे समस्त भारत भ्रमण किया करते थे वे जहां पांडवों का राजसूय यज्ञ कराते हैं तो जनमेजय के पुत्र शतानिक को वेद पढाते हैं वे दीर्घजीवी भी हैं,राजा जनक के यहाँ भी हैं इसी कारण उन्हे सदानीरा भी कहा गया है।
       वे कौसिक कुल के हैं इससे यह सिद्ध होता है की भारत मे जातीय ब्यवस्था कर्मणा था क्षत्रिय कुलोत्पन्न ब्राह्मण हैं, वायु औए विष्णु पुराण के अनुसार याज्ञवल्क्य के पिता का नाम ब्रम्ह्वाह था श्रीमदभगवत के अनुसार देवरात था, दोनों पर्याय वाची हो सकता है, देवरात शुनःशेप का पुत्र था जो अंगिरा कुल का था जिसे ऋषि विश्वामित्र ने अपना पुत्र मान आध्यात्मिक उत्तराधिकार दिया चुकी वह शुनःशेप विश्वामित्र का पुत्र बन गया इस कारन कौसिक कुल हुआ वैदिक ग्रंथों में विश्वामित्र का निज नाम विश्वरथ था, विश्वामित्र कुल के लोग कौसिक कहलाते हैं महाभारत सहित कई ग्रंथों में याज्ञवल्क्य को कौसिक ही कहा गया हैइस कारन कोई संसय नहीं कि ये देवरात शुनःशेप के पुत्र हैं देवरात को ही कई ग्रंथों में ब्रम्हारात कहा है इस कारन यह सिद्ध है कि ऋषि याज्ञवल्क्य पुत्र देवरात पुत्र शुनःशेप पुत्र विश्वामित्र ही है और ये कौसिक गोत्र के हैं।   
          ग्रंथों के अनुसार याज्ञवल्क्य कृष्णद्वैपायन व्यास के शिष्य करीबी रिश्ते में मामा थे यजुर्वेद प्रवचन में कुछ मतभेद हुआ वे अलग हो यजुर्वेद संहिता पर अध्ययन कर ब्राम्हण ग्रन्थ लिखा जिसे शतपथ ब्राम्हण ग्रन्थ कहते हैं यजुर्वेद कई शाखाएं उनकी दें हैं उन्होंने उसके जान सुबिधा हेतु कई बिभाग किये उन्होंने वैदिक शिष्यों की परंपरा ही खड़ी कर दी, लगता है की वेद्ब्यास के मतभेद के पश्चात वे जनकपुर राज्य में आश्रम स्थापित किया उनकी दो पत्नियां थी एक ब्रम्हवादिनी मैत्रेयी और दूसरी स्त्रीप्रज्ञा वाली कात्यायनी, उनके पुत्र का नाम कात्यायन और कात्यायन के पुत्र का नाम बररुचि था वाजसनेय याज्ञवल्क्य दो गुरुओं की जानकारी मिलती है उनमे से एक चरकाचार्य वैशम्पायन, पुराणों के अनुसार इस गुरु से उनका विवाद हो गया, उनका दूसरा गुरु था उद्दालक आरुणि। 
          याज्ञवल्क्य एक दीर्घजीवी ब्राह्मण थे खाण्डव-दाह से बचा हुआ मय नामका विख्यात असुर जब महाराज युधिष्ठिर की जब दिब्य-सभा बना चुका तो उसके प्रवेश उत्सव के समय अनेक ऋषि और राजागण इंद्रप्रस्थ आये उसमे एक याज्ञवल्क्य भी थे, युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में भी याज्ञवल्क्य धौम्य द्वैपाययन के साथ उपस्थित थे सम्राट युधिष्ठिर के अश्वमेध यज्ञ में व्यास जी कुंतीसे कहते हैं की यह पायल और याज्ञवल्क्य तुम्हारा कृत्य करायेगे, युधिष्ठिर ३६वर्श राज्य कर चुके थे यदुवंश के नाश का समाचार सुन परीक्षित को सिंहासन देकर अंतिम प्रस्थान का निर्णय किया याज्ञवल्क्य इत्यादि को भोजन कराया परीक्षित ने ६० वर्ष शासन किया सम्राट परीक्षित के पश्चात जनमेजय और उसके पुत्र शतानिक ने ८०वर्श राज्य किया राजा शतानिक की याज्ञवल्क्य ने वेद पढ़ाया, गणना से ज्ञात होता है कि याज्ञवल्क्य की उम्र २३९ वर्ष थी। 
          याज्ञवल्क्य ने केवल शतपथ ब्राह्मण ही नहीं बल्कि कई ग्रन्थ लिखा १- याज्ञवल्क्य शिक्षा २- याज्ञवल्क्य स्मृति ३-योगि याज्ञवल्क्य, ये तीनों ग्रन्थ वाजसनेय प्रणीत है अथवा उनकी शिष्य परंपरा के पीछे बनाये गए हैं, याज्ञवल्क्य व जनक का संवाद और राजा जनक को वेदांत का ज्ञान कराना यगवल्क्य का सारा ज्ञान सुनकर राजा ने धन, दौलत, रत्न और गउवें दान दे अपने पुत्र को राज्य देकर सन्यास चले गए, यहीं इसी दरबार में गार्गी और याज्ञवल्क्य का प्रसिद्द शास्त्रार्थ हुआ था, और अंत में उन्होंने अपनी दोनों पत्नियों को बुला उनमे धन का बटवारा कर स्वयं सन्यासी हो गए अपनी पत्नियों से कहा कि----------------------!
          ''मै स्वयं से प्रेम करता हूँ इस कारन तुम सबसे प्रेम करता हूँ मनुष्य अपनी संतुष्टि हेतु ही प्रेम करता है यही सत्य है'', वे जीते थे ''जीवन ब्रम्ह सत्य जगत मिथ्या''इसी को आधार बना मानवता को केवल दिसा ही नहीं तो एक भविष्य के भारत को नयी प्रज्ञा प्रदानकी, जिसे 2500 वर्ष पहले आदि जगद्गुरू शंकराचार्य ने सास्त्रार्थ कर भारत को बौद्ध होने से बचा लीया और सनातन वैदिक धर्म की ध्वजा फहराई---।                      

बीजेपी --------------------------!

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 बीजेपी सरकार----!
         जब-जब बीजेपी सत्ता मे आती है वह अपने कार्यकर्ताओं को भूल जाती है यह बात ठीक है की उसका दृष्टिकोण राष्ट्रवादी है लेकिन कार्यकर्ता दुखी होता है इसलिए नहीं कि सत्ता मे उसका कोई उपयोग नहीं हो रहा है बल्कि वह दुखी होता है जब कोई मंत्री कार्यकर्ताओंको छोड़ अपने परिवार, रिसतेदार नहीं तो अपनी जाती से ऊपर नहीं उठ पाता, क्या बीजेपी के नेता सत्ता सुख, केवल और केवल स्वयं ही भोगना चाहते हैं जबकि दूसरे पार्टी के लोग जब सत्ता मे आते हैं तो वे अपने पार्टी के कार्यकर्ताओं को एक सप्ताह के अंदर सभी राजनैतिक नियुक्तियाँ कर देते हैं वहीं बीजेपी सत्ता मे आए हुए 9 महीने बीत गए सभी स्थानों पर कांग्रेस और वामपंथी लोग सरकार मे बैठे सरकार के काम मे बाधक बने हुए हैं, इन्हे कहीं पर अपने विचार के लोग दिखाई नहीं दे रहे हैं बिहार मे जो नेता हैं जब वे सत्ता मे थे तो अलीगढ़ मुविबि तथा पशु बधशाला खुलवाया, अभी से ही किसी भी पार्टी से आए हुए लोगों का टिकट कनफर्म कर दिये हैं फिर कार्यकर्ता काम क्यों करे-? जो राजनैतिक नियुक्ति हो भी रही है वह कुछ नेताओं के रिसतेदारों के अतिरिक्त किसी कि नहीं। 
        तो क्या अकेले मोदी जी ही सरकार चलाएगे, कुछ मंत्री, कुछ संसद या देश भर के लाखों कार्यकर्ता अभी तो लग रहा है कि सरकार कुछ लोग चला रहे हैं यदि सरकार चाहे तो सभी मंत्रालयों मे लाखों कार्यकर्तों को नियुक्त कर सरकार व विचार के पक्ष देश को मोड़ा जा सकता है, कम से कम ब्यूरोकेट द्वारा यह संभव नहीं भारतीय ब्यूरोकेट को भारतीयता अथवा हिन्दुत्व या देश दे कोई मतलब नहीं वह तो सरकार को बदनाम कर पैसा कमाने के अलावा कुछ नहीं करेगे, केंद्र सरकार को चाहिए कि अपने कार्यकर्ताओं पर विसवास कर सत्ता मे उनकी भागीदारी सुनिश्चित करे, नहीं तो न देश न विचार कोई काम नहीं! केवल प्रधानमंत्री अकेले कुछ नहीं कर सकते कार्यकर्ताओं की सत्ता मे भागीदारी ही प्रधानमंत्री की असली सफलता होगी जो देश और पार्टी दोनों का हित करेगे।
       सरकार को अपने काम करने की अवस्यकता है संघ विचार परिवार का काम अहर्निश चलने वाला है हम किसी भी कीमत पर मदर टेरसा के सेवा को उचित नहीं मान सकते अगर वह धर्मांतरण नहीं कराती अथवा चर्च मतांतरण नहीं करता तो आज देश मे तीन करोण ईसाई कहाँ से हो जाते-? अब मतांतरण का खेल बंद होना चाहिए नोबुल प्राइस भारत भक्तों को नहीं मिलता अमेरिका मूर्ख इतना देश नहीं ! अमर्त्यसेन को नोबुल मिला उसका धन कहाँ गया ? है किसी के पास इसका उत्तर ?  

पितृ पक्ष केवल अपने लिए अथवा अपने पूर्वजों की संतानो के लिए भी-----------!

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         अभी पितृ पक्ष का महिना शुरू हो गया है लाखों हिन्दू धर्मावलंबी अपने पूर्वजों के तर्पण हेतु ''गयातीर्थ''मे आते हैं कहते हैं की भगवान श्रीराम भी यहाँ आए थे विश्व मे जहां भी हिन्दू रहता है वह चाहता है की एक बार गया जाकर अपने पूर्बजों का श्रद्ध कर्म करे ताकि उसके पूर्वज को स्वर्ग मे स्थान मिल सके, गया वह स्थान है जहां भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था यहीं कहते हैं कि 'गयासुर'को भगवान अपने पैर के तले दबाकर रखा हुआ है, यह वही स्थान है जहां भगवान विष्णु ने बामन स्वरूप धारण कर पृथ्बी ढाई कदम मे ही नाप दिया था उनका एक पैर यही पड़ा था ''विष्णुपाद''मंदिर उसका प्रमाण है। 
       पित्रपक्ष के महत्व के बारे में मै एक सत्य कथा का वर्णन करता हूँ हम सभी ने हनुमान प्रसाद पोद्दार का नाम सुना ही होगा वे मुंबई मे एक किसी शेठ के यहाँ नौकरी करते थे, प्रतिदिन शायं वे समुद्र के किनारे चौपाटी घूमने जाया करते थे एक दिन उन्हे एक छाया दिखाई दी उसका आकार मनुष्य जैसा था बिना परवाह किए ये चलते रहे वापस अपने आवास पर आ गए, वे बराबर चौपाटी जाते उन्हे कभी-कभी वह आकृति दिखाई देती कुछ दिन बाद वह लगातार उनका पीछा करने लगी पोद्दार जी बड़े धार्मिक विचार के थे उन्हें किसी प्रकार का भय नहीं लगता था एक दिन उन्होने उस छाया से पूछा कि मुझसे क्या चाहती है ? उसने बड़ी विनम्रता अपनी भाषा में बोला की मै ईसाई हूँ मेरी आत्मा बहुत कष्ट पा रही है मुझे शुद्ध पानी पीने को नहीं मिलता गंदे स्थान पर रहना पड़ता है जब पोद्दार जी ने कारन पूछा तो उसने बताया की जिनका दाह संस्कार नहीं होता, श्राद्ध कर्म नहीं होता, जिनको मिटटी में दफ़न कर दिया जाता है, उन्हें मुक्ति नहीं मिलती वह सभी प्रेतात्मा हो जाता है, उन्हें बडा ही दुःख भोगना पड़ता है, उसने बताया की जितने लोग चाहे इस्लाम अथवा ईसाई धर्म मानने वाले हों उन्हें कब्र में मुक्ति नहीं, बल्कि सभी प्रेतआत्मा हो जाती है, हनुमान प्रसाद पोद्दार ने उस पर दयाकर पूछा कि मै क्या कर सकता हूँ ? उस आत्मा ने कहा आपकी आत्मा बड़ी पवित्र है आप मेरा उद्धार कर सकते हैं उसने बताया कि मेरी कब्र मुंबई के इस कब्रिस्तान में है यदि मेरी हड्डी गंगाजी में चली जाय तो मुझे मुक्ति मिल जाएगी, पोद्दार जी ने उसके कब्रिस्तान से उसकी हड्डी निकल प्रयाग गंगा जी में तर्पण किया उस दिन से वह आत्मा उन्हें नहीं मिली मतलब उसे मुक्ति मिल गयी। 
         हनुमान प्रसाद पोद्दार को इससे प्रेरणा प्राप्त हुई उनका जीवन ही बदल गया, उन्होंने गोरखपुर में गीता प्रेस खोलकर हिन्दू धर्म के आध्यात्मिक प्रचार में अपना जीवन लगा दिया, मै अपने हिन्दू समाज के बंधुओं से यह कहना चाहता हूँ कि भारत में जो भी ईसाई और इस्लाम धर्म को मानने वाले हैं उन सभी के पूर्वज हिन्दू ही थे वे कब्रिस्तान में प्रेतात्मा बन कष्ट पा रहे हैं यदि हम हिन्दू समाज अपने बंद दरवाजे खोलकर उन्हें अपने घर पुनः वापस ले आएं यानी पुनः हिन्दू धर्म में ले आएं तो उन्हें ही नहीं उनके पूर्बजों को भी मुक्ति मिल जाएगी, इस कारन मानवता पर दयाकर, उन्हे अपनाकर सभी को उनके पूर्बजों के धर्म (हिन्दू धर्म) में वापसी कर पुण्य के भागी बने, यदि हिन्दू समाज इसके लिए आवाहन करता है तो केवल विधर्मियों का ही नहीं, हिन्दू धर्म का ही नहीं बल्कि भारत पुनः परम वैभव को प्राप्त होगा, क्योकि भारतीय धर्म ही भारतीय राष्ट्र का प्राण है।         
                      आइये हम धर्म जगाएं-------------------------------------!

''गद्दी जाती''भगवान बलराम के वंशज अहीरों की सातवीं कूरी------!

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भगवान बलराम के वंशज ''गद्दी समाज''दुर्दसा के शिकार---!
        पूरे देश मे गद्दियों की संख्या लाखों मे है इनका खान-पान, रहन-सहन सब हिन्दू (यादवों) की तरह है कोई किसी तरह का अंतर-भेद नहीं फिर ये हिन्दू समाज से अलग क्यों--? यह एक विचारणीय प्रश्न है! ये गद्दी बने कैसे ! हम सभी को पता है कि पाँच हज़ार वर्ष पहले जातियाँ थी ही नहीं कलयुग मे कुछ जातियाँ बनी जो कर्म से थीं जैसा कि भगवान कृष्ण ने गीता मे कहा ''गुण कर्म बिभाग सः''यानि जातियाँ करमानुसार थीं, पिछले 1200 वर्षों की गुलामी अथवा संघर्ष या कालरात्रि का समय परिणाम हिन्दू समाज ने अपनी सुरक्षा हेतु छोटे -छोटे नियम बनाए जो समयानुसार परिवर्तित न होने के कारण स्वयं के लिए आत्मघाती सिद्ध हुआ इस्लामिक और अंग्रेज़ो के काल मे हिन्दू समाज बहुत विभाजित हुआ या योजना वद्ध तरीके से उसे विभाजित किया गया आज यह समाज हजारों जतियों मे बटा हुआ है, कुछ लोग यह मानते हैं की गद्दी घुमंतू जाती है हो भी सकता है लेकिन इस समय तो यह सब कहीं कोई घुमंतू नहीं, हो सकता है की ऐसी ही हिमांचल मे भी एक घुमंतू जाती गद्दी कहलाती है, लेकिन चंपारण के गद्दी या गंगा जी के किनारे के गद्दी वे नहीं।
          कौन कब कहाँ कैसे गया इस्लामिक काल मे औरंगजेब का क्रूरतम समय था ने बलात इस्लामीकरण किया मुल्ला -मौलबियों ने कहा कि इस्लाम मे कोई उंच-नीच नहीं, कोई भेद-भाव नहीं लेकिन यह तो कोरा साबित हुआ जो जिस जाती मे था वह मुसलमान बनने के पश्चात वह उसी जाती मे है जो धोबी का काम करने वाला धोबी ही रह गया जो जुलाहा था वह जुलाहा ही रहा जो नाई था वह नाई ही रहा इन सब जातियों का कोई भी ब्यक्ति किसी भी पठान अथवा शेख की चारपाई पर नहीं बैठ सकता है यहाँ तक कि जूता चप्पल पहनकर भी दरवाजे पर नहीं जा सकता, ईसाई होने के पश्चात भी यही हाल सवर्णों की चर्च मे लाइन अलग कबरिस्तान भी अलग कोई समरसता नहीं, वे जहां थे वही रह गए उलट अछूत बन गए हिन्दू समाज ने एक कदम आगे जा शासक जाति (मुसलमान-ईसाई) को अछूत घोषित किया वे जगीरदार थे, नबाब थे हिन्दू उनके यहाँ नौकरी तो करते लेकिन पानी अपने घर का ही पीते, यह दुनिया के लिए अद्भुत था गुलाम जाती का अदुतीय स्वाभिमान !
         इसी प्रकार आइए गद्दियों पर विचार करते हैं कहाँ-कहाँ, कब और कैसे ये गद्दी हुए वास्तविकता यह है कि जब मुगलों की पल्टन पूरब की तरफ बढ़ी उस समय नदियों के रास्ते का उपयोग होता था जहां-जहां फौज रात्री विश्राम हेतु रुकती वहाँ खाना बनाने हेतु मुगल हिन्दू समाज को अपमानित करने हेतु (वह तो पराजित समाज) गाय काटकर खाना गाय किसके पास है तो हम सभी जानते हैं की गाय तो अहीरों के पास यानी गोपालकों के पास जबर्दस्ती छीनकर ले लिया जब पल्टन वहाँ से चली गयी तो सारे गाँव के लोग इकट्ठा हुए किसके -किसके यहाँ से गाय मुगल ले गए जिसके यहाँ से गायें गयी उन्हे उसी समय जाती से निकाल दिया, गाय दिया -गाय दिया वे गद्दी कहलाने लगे, पश्चिमी चंपारण मे तो 250 वर्ष हो गया वे 45000 लोग आज तक इंतजार कर रहे हैं कि कब उन्हे यादव लोग अपनी जाती मे सामिल करेगे ! वे आज भी अपनी हिन्दू परंपरा से जुड़े हुए हैं कोई भी पुरोहित उनके यहाँ नहीं जाने से मुल्ला मौलवी उनके जाते हैं आज भी उनके नाम रामचन्द्र गद्दी, ललचन्द गद्दी यही भारतीय नाम हिन्दू ही है जहां स्थानीय यादव उन्हे स्वीकार नहीं करते वहीं स्थानीय मुसलमान उन्हे पथर पुजवा मुसलमान कहते हैं। 
        नेपाल की राजधानी काठमांडू मे लगभग 3 साल पहले एक बृहद यादव सम्मेलन हुआ था जिसमे यादवों की सात कुरियों मे एक कूरी ''गद्दी''बताया गया उसकी एक पुस्तिका भी प्रकाशित की गयी, कुछ लोगो का मत है की भगवान बलराम के वंसज जो हुए वे गद्दी कहलाए, भगवान बलराम के पुत्र गदाधर या कुछ लोगों का कथन है कि बलराम का दूसरा नाम गदाधर ही था, गदाधर के वंशज ही गद्दी कहलाए नेपाल के यादव जाती की पुस्तिका मे यह स्पष्ट लिखा है कि गद्दी यादवों की एक कुरी ही है, जो भी हो ये उच्च कुलीन अहीर ही हैं जिन्हे यादव कहा जाता है और गद्दी (हिन्दू) यादव समाज का अटूट अंग है अभी भी उनका सारा का सारा संस्कार यादवों का ही है भगवान कृष्ण जन्म अष्टमी व छठ मानना, कपड़े का पहनावा, गाय और भैस पालना, दूध -दही का ब्यापार करना इत्यादि इस कारण यादव समाज को चाहिए कि उन्हे स्वीकार कर रोटी-बेटी का संबंध बनाएँ जिससे वे राष्ट्र की मुख्य धारा मे मिल सकें ।      

एक ही प्रकार हिन्दू युवकों की हत्याएं क्या साबित करना चाहती हैं -----?

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       अभी-अभी कुछ दिन पहले जनवरी माह मे ही अजीतपुर (सरइया मुजफ्फरपुर) घटना हुई ही थी कि सेंदुवारी गाँव हाजीपुर थाना मे दूसरी घटना हुई दोनों घटना एक ही समान है अजीतपुर मे भी हिन्दू लड़के को बुलाकर गला रेतकर हत्या की गयी जिसका प्रतिकार स्वरूप मुसलमानों का घर जलाया गया कई मारे भी गए तब भी सेकुलरों ने हिन्दू समाज की आलोचना की और कहा की सांप्रदायिक ताकतों का हाथ है, क्या लव जेहाद कर रहे मुसलमानों के लड़कों का ये हाल किया जाता है नहीं तब पूरा समाज-सरकार सेकुलर हो जाता है लेकिन ये कब-तक --? 22 मार्च 15 दिन मे ही सेंदुवारी गाँव मे घुसकर मुसलमानों ने दरवाजा तोड़कर संजीव के भाई और भाभी को मरा जानकर छोड़ा वे पटना 'पीएमसीएच'मे भर्ती हैं बूढ़े माँ-बाप को बुरी तरह पीटा संजीव और उसकी पत्नी को गाड़ी मे भरकर उठा ले गए, भला गाँव वालों की नपुंशकता तो देखिये कोई कुछ नहीं बोला घंटों यह सब होता रहा, मुसलमानों की हिम्मत तो देखो उस गाँव मे केवल पाँच घर ही है बाहर से मुस्लिम गुंडो को बुला इस घटना को अंजाम दिया गया।  
        यहाँ के मुसलमान भारतीय कानून नहीं मानते वे कुरान अथवा शरीयत कानून को मनाने का प्रयास करते हैं इसी कारण गैर मुस्लिमो के प्रति बैर भाव रखते हैं हमेसा मरने-मारने पर उतारू रहते हैं भारत का मुसलमान भी आईएसआईएस अथवा अन्य किसी भी इस्लामिक आतंकवादियों के नजदीक पाता है क्योंकि जन्नत का एक मात्र रास्ता वही है मानवता के रास्ते मे ''कुरान बाधक''है यदि वे अजीतपुर, सेंदुवारी जैसी घटना करेगे तो हिन्दू क्या करेगा ---? 
        कुछ दिन पहले ही संजीव गाँव के एक मुस्लिम लड़की से प्रेम करता था उससे अदालत मे विबाह कर लिया वह पटना मे रहता था वह घर आया ही था की उसके साथ यह घटना हो गयी बात यह नहीं कि उसकी मुसलमानों मे हत्या की, विषय यह है कि जिस प्रकार अजीतपुर मे मौलबी की सलाह पर गला रेतकर हत्या की गयी थी ठीक उसी प्रकार सेंदुवारी के संजीव का गला रेतकर हत्या की, हत्याओं का प्रकार एक ही है मुसलमानों को हलाल पसंद है भारत मे प्रतिवर्ष एक लाख हिंदुओं की लड़कियों का लव जेहाद- माध्यम से इस्लामी कारण किया जाता है यदि हिन्दू समाज कानून अपने हाथ मे ले-लेगा तो क्या होगा ? मुसलमान बहुत बहादुर नहीं है ये बलात्कारियों की ही सन्तानें हैं ये सभी कायर हैं कायर, हिन्दू समाज को विचार करना होगा कि कोई भी मुसलमान भारत का नियम-कानून नहीं मानता किसी भी मुस्लिम मुहल्ले मे कोई भी बिजली का बिल नहीं देता कटिया लगा काम चलाते हैं कोई कुछ नहीं कह सकता वे सरकारी दामाद हैं आज सेंदुवारी गाँव की घटना जिसमे अदालत ने संजीव को अपनी पत्नी के साथ रहने को कहा था कहाँ गया कानून मुसलमानों ने कानून अपने हाथ मे ले गरीब पिछड़े हिन्दू जातीसे आने वाले युवक संजीव की हत्या की, क्या हिन्दू समाज लाखों हिंदुओं की लड़कियों के इस्लामिकरण का बदला लेगा !
        एक दिन हिन्दू जरूर जागेगा उसके रंगों मे महाराणा, शिवा जी और गुरु गोविंद सिंह का खून बह रहा है उसके धैर्य की परीक्षा न लो नहीं तो कोई सरकार काम नहीं करेगी मै आज़ादी के पश्चात के दंगों को याद करना नहीं चाहता, अब भारत का अंधेरा युग समाप्त है हम मुगलों और इस्लामिक संघर्ष मे हम विजयी हो चुके हैं, हिंदुओं को छेड़ों नहीं उन्हें अरब से लेकर बंगाल तक क्या-क्या हुआ सब याद है विश्व मे कहीं भी इस्लाम गया वहाँ कोई नहीं बचा इस्लामिकरण हुआ लेकिन हुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी वही हमारी ताकत है ----हिन्दुत्व--?      

धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों मे सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो--------!

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            भारतीय संस्कृति के प्रखर उपासक महान विद्वान स्वामी करपात्री  जी महराज को कौन नहीं जनता उनकी लौकिक पढ़ाई बहुत कम थी उन्होने गंगा जी की परिक्रमा की और वे वेद, वेदांग, उपनिषद और पुरानों के महान ज्ञाता बनकर आ गए वे भारतीय स्वतन्त्रता सेनानी ही नहीं धर्म संघ स्थापना कर धर्म प्रचार मे लग गए, एक बार मध्य प्रदेश के एक गाँव मे वे ठहरे हुए थे प्रवचन के पश्चात वे जो जय घोष लगाते वह संस्कृत मे होता था एक छोटी सी बालिका आई और करपात्री जी से कहा की स्वामी जी यदि आप इस नारा को हिन्दी मे लगते तो हम भी समझ पाते, करपात्री जी को यह बात समझ मे आ गयी और उन्होने उसी उद्घोष को हिन्दी मे कहा ''धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों मे सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो''और यह उद्घोष भारतीय संस्कृति का उद्घोष बन गया ।
धर्म की जय हो -----------------!
      भारतीय संस्कृति मे धर्म क्या है नैतिकता, राष्ट्रिय चरित्र, कहते हैं की 'धृति क्षमा दमों अस्तेय ------ दसकम धर्म लक्षणम'इत्यादि दस धर्म के लक्षण हैं जैसे धर्म शाला, धर्म पत्नी यानी जहां -जहां धर्म शब्द लगा है वहाँ समाज का विस्वास,पवित्रता, सामाजिक बंधन परिवार, काका-काकी, मामा-मामी  ऐसे रिस्ते जो हमे बांधे रखता है उसे भारत मे धर्म कहते हैं, भगवान श्रीराम ने एक आदर्श कायम किया उनकी सादगी, सरलता, भाइयों के प्रति कैसा प्रेम की राज्य नहीं लेना चाहते दोनों, राम का जीवन संस्कृति की ब्याख्या, परिभाषा जीवन मूल्य और सर्वसमावेशी है वे एक दूसरे क गद्दी पर बैठना चाहते हैं, जहां श्रीक़ृष्ण धर्म स्थापना हेतु महाभारत कराते हैं, वास्तव मे यही हिन्दू धर्म है जो विश्व का सर्व श्रेष्ठ धर्म है जहां केवल मानव मात्र ही नहीं बल्कि पशु-पक्षी, जीव- जन्तु तक की चिंता का विधान है जहां प्रकृति के प्रति श्रद्धा का भाव है वहीं इसके सरक्षण, संबर्द्धन मे पुण्य माना जाता है इसी धर्म की जय हो ।
अधर्म का नाश हो-------!
            अधर्म का नाश हो यानी क्या ? हमे विचार करना है की अधर्म क्या है जिसका नाश हो जो नैतिकता का विरोधी हो, जिसका ब्रंहांड  मे विस्वास नहीं जिसमे पूर्णता मे विस्वास नहीं जहां चरित्र का कोई महत्व नहीं, जहां सम्बन्धों पर विचार नहीं, जहां गोत्र का कोई संबंध नहीं, जिनका प्रकृति का संरक्षण नहीं करते, नहीं जो पीपल, तुलसीआदि औसधियों को नष्ट करना विचार, जिनका नदियों मे मातृत्व का भाव नहीं यानी जल का संरक्षण नहीं जिनका भारत के प्रति माता का भाव नहीं जो गाय को माता नहीं मानते उसे को काटने मे जन्नत महसूस करते हैं जिनका वेद व भारतीय वांगमय मे विस्वास नहीं भारतीय महापुरुषों मे विस्वास नहीं यहाँ के तीरथों मे आस्था नहीं वह अधर्म है मै एक कथा बताता हूँ ''एक बार मुहम्मद साहब अपने घर मे गए अपनी पुत्र वधू स्नान कराते हुए देखा उसके साथ बलात संबंध बना लिया जब उनका लड़का घर पर आया तो उन्होने बताया कि अल्लाह का ''इलहाम''आया है कि अब ये तुम्हारी माँ है और मेरी पत्नी ''भारत मे कम से कम इसको स्वीकार नहीं किया जा सकता लेकिन इस्लाम मे भाई-बहन का बिवाह जायज है, इसायियों मे केवल अगूठी बदलते हैं यह सब भारत मे अधार्मिक माना जाता है  तो इसका नाश हो ---!
प्राणियों मे सद्भावना हो -----!
      प्राणियों मे सद्भावना माने क्या ? हिन्दू समाज मे केवल मनुष्य का ही चिंतन नहीं किया गया तो प्राणी मात्र का चिंतन है कहा जाता है कि प्रत्येक मानुषे को पाँच पेड़ लगाने चाहिए, पीपल का बृक्ष, तुलसी का पौधा नहीं काटना तो नीम का बृक्ष घर के बाहर लगाना यानी हमने पेड़-पौधों मे भी आत्मा का दर्शन किया, हिन्दू धर्म के अनुसार केवल गाय को गो ग्रास ही नहीं निकालना तो चींटी को भी चारा देना हाथी मे गणेश का दर्शन करना यहाँ तक 'सूकर'भी विष्णु का अवतार माना जाता है इतना ही नहीं सर्प की भी पूजा उसे दूध पिलाने की परंपरा गरुण भगवान विष्णु कि सवारी है तो चूहा गणेश जी का हमारे पूर्वजों (ऋषियों-मुनियों ) ने लाखों करोणों वर्षों मे सम्पूर्ण समाज का चिंतन करते हुए सभी की चिंता, सभी मे सदभना बनी रहे ऐसा समाज खड़ा किया ।  विश्व का कल्याण हो----------!
        विश्व का कल्याण हो यानी क्या यह हमे समझने की अवस्यकता है कल्याण क्या है -? एक वार धरती को भगवान ''सूकर''ने बचाया था, भगवान श्रीरामचन्द्र ने रावण का बाधकर विश्व कल्याण किया था तो हृणाकश्यप का बध नरसिंघ भगवान ने किया था द्वापर और कलयुग के संधि काल मे भगवान कृष्ण ने कंस ही नहीं तो धर्म स्थापना हेतु महाभारत करवाया था, भगवत गीता मे उन्होने कहा ''यदा-यदाहि धरमस्य ग्लानिर्भवति भारत, अभ्युत्थानम अधर्मस्य तदात्मानम शृजामिहम''जब-जब धर्म की हानी होती है मै आता हूँ बिधर्मियों का संहार करता हूँ, वर्तमान मे विश्व कल्याण करना यानी क्या करना जो मानवता का नुकसान कर रहे हैं जो गोबध कर रहे हैं जो विश्व मे हिंसा यानी धर्म के नाम पर अपने को स्वयं भू खलीफा सिद्ध कर हजारों लाखों की हत्या कर रहे हैं जो यह कहते हैं की मेरी ही बात सत्य है मेरा ही धर्म मानने योग्य है मेरा ही पूजा स्थल साधना योग्य है शेष को न जिंदा रहने का अधिकार है न मठ, न मंदिर बनाने का सभी नष्ट करना, सभी ग्रंथागारों को नष्ट करना अथवा करना चाहते हैं, इन राक्षसों को समाप्त करना यानी इन्हे समाप्त करना, जिस मानवतावादी संस्कृति की रक्षा हेतु महाराणा प्रताप ने जीवन भर संग्राम किया, क्षत्रपति शिवा जी महराज ने अफजलखान जैसे आतताईयों की बध किया, गुरु गोविंदसिंह ने पिता, पुत्र सहित अपने प्रिय शिष्यों के बलिदान का आवाहन किया, वीर बंदा बैरागी ने अपने बंद-बंद नुचवाया, भाई मतिदास ने आरे से शरीर को चिरवाया, जिस विश्व कल्याण कारी संस्कृति की सुरक्षा हेतु गुरु तेगबहादुर का बलिदान हुआ धर्म वीर संभाजी राजे ने अप्रितम आहुति दी इन महापुरुषों ने जो किया वही विश्व का कल्याण का मार्ग है ।
      अपने मठ, मंदिर और गुरुद्वारों मे पूजा के पश्चात हम केयल यह जय-घोष ही करेगे या विश्व के कल्याण मे कोई भूमिका भी निभाएगे आइए विचार करें।     


नेपाल मे भूकंप और मानव दृष्टि ----!

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         मै सीवान जिले की धर्म रक्षा समिति के एक कार्यक्रम मे था इस कार्यक्रम मे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह मा होसबले दत्ता जी भी थे कार्यक्रम मे 350 संख्या थी उदघाटन कार्यक्रम यानी दीप प्रज्वलन हुआ मेरा विषय समाप्त हुआ मा दत्ता जी ज्यों ही बोलना शुरू किए कोई पाँच मिनट ही हुआ होगा धरती हिलने लगी मैंने सोचा कोई धकेल रहा है क्या ? लेकिन वहाँ कुछ नहीं फिर क्या था आवाज़ आयी भूकंप आया धैर्य के साथ सभी नीचे उतरने लगे लेकिन हिलना बंद ही न हो हम पाँचवी मंजिल पर विजय हाता शिशु मंदिर के विशाल कक्ष मे थे लेकिन सकुशल सभी नीचे आए किसी तरह कार्यक्रम पूरा किया गया चरो तरफ से फोन आने लगा सीतामढ़ी, मोतीहारी, पूर्णिया और सोनपुर इत्यादि स्थानो पर छती भी हुआ है लेकिन नेपाल मे भीषण दुर्घटना हुई है बहुत जन-धन का नुकसान हुआ है फिर क्या करना रात्री मे मा दत्ता जी को पूज्य सरसंघचालक मा मोहन भागवत जी का फोन आया की इस बिपत्ती की घरी मे अवस्य ही जाना चाहिए। 
        दूसरे दिन हमे मा दत्ता जी को नेपाल छोड़ने जाना था सुबह जलपान के पश्चात हम चले लगभग 12.30 हुआ होगा की देखा रक्सौल मे लोग दुकान छोडकर भाग रहे हैं हमने भी गाड़ी रोक दी यानि पुनः भूकंप आया पूरे देश मे भारत सरकार सहित यह मानस बना की नेपाल को मदद जानी चाहिए केंद्र सरकार तो दो घंटे मे हरकत मे आ गयी कैबिनट बैठक उसी दिन 2 बजे हो गयी जबकि नेपाल मे पाँच बजे हुई संघ ने सामाग्री भेजना शुरू की हिन्दू समाज ने इसे ऐसा माना जैसे यह बिपत्ति हमारे ऊपर ही हो संघ के हजारों कार्यकर्ता कंबल, तिरपाल और खाद्य सामाग्री लेकर गाँव-गाँव पहुच रहे हैं, भारतीय साधु-संत, सामाजिक संस्थाएं जैसे उनके घर में बिपति आ गयी है वास्तव यह सोच भारतीय चिंतन और हिन्दू विचार यही है उनके स्कूल, अस्पताल बनाने की योजना बना रहे हैं पूरे भूकम्प पीड़ित क्षेत्र में भारतीय नंबर की गाड़ी ही गाड़ी देखि जा सकती है वे नेपालियों के लिए देव-दूत साबित हो रहे हैं हाँ यह जरूर है की जगह-जगह माओवादी बाधा डालने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन लगभग निष्प्रभावी हो रहे हैं, अभी-तक २५० ट्रक सामग्री केवल संघ द्वारा भेजी गयी है और प्रति-दिन आती जा रही है हिन्दू संगठन वहां ''सेवा इंटर नेशनल''के नामसे काम कर रहा है, लेकिन कोई इस्लामिक संस्थाएं आगे नहीं आयीं इतना ही नहीं पाकिस्तान मे कुछ होता तो अमीर खान और शाहरुख खान कोई न कोई शो कर पाकिस्तान की मदद कराते लेकिन उनकी मानवता तो केवल इस्लाम के लिए है और इसाइयों यानि चर्च के लिए तो यह ललचाई आखो से देख उन्हे अवसर मिला और वे मतांतरण मे लग गए इस बिपट्टी के समय बाइबिल बाटने का कार्य करना शुरू किया, पाकिस्तान ने गोमांस भेजा यह हिन्दू समाज और नेपाल को अपमानित करने का ही प्रयास किया।
        बागमती अंचल मे सर्वाधिक नुकसान हुआ है सिन्धुपाल चौक जिला तो समाप्तप्राय हो गया है 90% घर नहीं है काठमांडों, ललितपुर, भक्तपुर, काभ्रे, नुवाकोट, धादिङ, रामेछाप, दोलखा और सिन्धुली इन जिलो मे ईश्वर ने कहर बरपया है, दोलखा और सिंधपाल जिला तो लगभग समाप्त हो गया है दस हज़ार से अधिक लोग मारे गए हैं, सिन्धुपाल जिला मे चर्च का काम अधिक है वहाँ लगभग प्रत्येक गाविसा मे चर्च है प्रार्थना का समय था ज्ञातबया हो कि नेपाल मे ईसाई शनिवार को चर्च जाते हैं भूकंप मे हजारों समाप्त हो गए इतना ही नहीं ये कितने अंध विसवासी हैं कि काठमांडों के कफेन नाम के मुहल्ले मे सात तल्ला बिल्डिंग के एक तल चर्च के लिए लिया था उसमे 100 संख्या थी कुछ नए भी थे जब भूकंप आया कुछ लोग ''ॐ नमो भगवते वासुदेवाय''कहकर भागे पादरी ने कहा कि भागो नहीं जीसस का नाम लो वह बचाएगा सभी बैठ गए वह बिल्डिंग गिरि सभी जो भागे नहीं लगभग 70 जोग ज़मींदोज़ हो गए ऐसी भी घटनाये हुईं, चर्च का पाखंड उजागर हुआ सेवा के नाम पर धर्मांतरण यह भी उजागर हुआ धीरे-धीरे चर्च नेपालियों के समझ मे आ रहा है, हम कार्यकर्ताओं के साथ भक्तपुर जिला के गंगत गाव मे गए जहां रास्ता भी नहीं है ऐसे दुर्गम स्थान पर राहत सामाग्री संघ के कार्यकर्ता बाँट रहे है जहाँ फोटो खीचने वाले नहीं पहुँचते। 
       लेकिन एक दूसरा चेहरा है जो और भिवत्स है सिक्कम से 45 ट्रक राहत सामाग्री भेजी गयी 15 ट्रक माओवादियों ने लूट लिया ऐसे दक्षिण भारत से एक संत कि टोली बड़ी संख्या मे राहत सामाग्री लेकर आए वहाँ भी लूट माओवादी सरकार को फेल करना चाहते हैं वे अपना चेहरा दिखा रहे हैं जो सामाग्री भूकंप पीड़ितों के लिए आई है उसे लूट कर पहाड़ मे जहां रास्ता नहीं है दस-दस किमी बुलाकर एक-एक किलो चावल माओवादी दे रहे हैं जबकि उसपर उनका कोई अधिकार नहीं है, इस समय एक अच्छा काम हुआ कि सेना सक्रिय हुई है जनता का विसवास कुछ सेना पर है नेपाली नेताओं पर तो बिलकुल नहीं, भारतीय सेना को तो नेपाली भगवान जैसी देख रही थी भारत बिरोधियों को कोई मौका नहीं मिल रहा था लेकिन कुछ पत्रकार जिनका रोजी-रोटी का संबंध चीन और पाकिस्तान से है उन्होने भारत, भारतीय सेना और पत्रकारों का बिरोध करना शुरू किया लेकिन दिखाई पड़ रहा है कि जनता पर कोई असर नहीं है इनकी हालत खिसयानी बिल्ली खंभा नोचे जैसे हो गयी है, एक चिंता का विषय जरूर है पिछले 3 दिनों से नेपाल के संसद मे चीन का नाम लेकर प्रसंसा हो रही है लेकिन भारत का नाम न लेना नेपाली सांसदों के लिए जैसे अज्ञात भय समा गया हो क्या कारण है कुछ पता नहीं--?              

इस्लाम का वैश्विक स्वरूप ------!

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          आज सारी दुनिया आतंक के साये मे जी रही है सेकुलर नेता, इतिहास कार यह कहते नहीं थकते की इस आतंकवाद का इस्लाम से कोई सरोकार नहीं है और इस्लाम प्रेम, शांति सिखाता है वे इतिहास को झुठलाने का प्रयास कर रहे है जबकि इस्लाम का जन्म ही आतंकी स्वरूप मे ही हुआ है, कुछ लोग इस्लाम को धार्मिक वाना पहिनाने का प्रयास कर रहे हैं जबकि इस्लाम कोई आध्यात्मिक पंथ नहीं बल्कि एक आतंकी गिरोह के समान ही है छठवीं शताब्दी मे मुहम्मद साहब ने इस्लाम की स्थापना की ! यदि हम ईमानदारी से कुरान और हदीस पढे तो ध्यान मे सब बाते आ जाएगी मुहम्मद साहब क्या थे ? इस्लाम क्या है ?
       मुहम्मद साहब के जाने के पश्चात इस्लाम का स्वरूप कैसा रहा, हिन्दू समाज तथा कम से कम भारत को यह समझना ही होगा ! हम मुसलमानों को मनुष्य समझने की भूल कर रहे हैं जैसे हमारे पूर्बजों ने किया था मुसलमान केवल मुसलमान होता है न कि मनुष्य मुहम्मद साहब ने अपने जीवन मे जो किया जैसा किया वही मुसलमानों के लिए आदर्श है उन्होने जीवन भर लूट-पाट की अन्य धर्म वालों को धोखा दिया गिरोह बना लूट का माल आपस मे बाटते रहे उन्होने जब चाहा, जिससे चाहा, जितना चाहा बिवाह किया, उनके जाने के पश्चात अरब मे खलीफाओं की होड मच गयी और बिभिन्न प्रकार के संघर्ष मे गिरोह खड़े होने लगे कारण भी था अरब बड़ा गरीब -असभ्य, कबीलाई मुल्क था वहाँ कुछ खाने पीने के लिए कुछ नहीं था भारत से ब्यापारी पश्चिम जाते तो उन्हे लूटने का ही काम था, धीरे-धीरे उन्हे ध्यान मे आया की भारत तो धन- धान्य से परिपूर्ण है, वे गिरोह बना भारत को लूटने की जतन करने लगे मुहम्मद साहब की मृत्यु के 100 वर्ष के अंदर ही गिरोह, लुटेरे भारत मे उत्पात मचाने आने लगे वे असभ्य, कबीलाई थे इसलिए यही उनका काम था किसी के पास सौ, किसी के पास दो सौ अथवा पाँच सौ घुड़सवारों का गिरोह होता ये कोई सैनिक नहीं थे ये तो लुटेरे थे इन लुटेरों ने अपने हाथ मे कुरान नाम की एक पुस्तक ले रखा था, उसके आड़ मे कुछ भी करो।
         इस्लाम का गिरोह कहीं मुहम्मद कासिम, कहीं गजनी, कहीं गोरी, कहीं बख्तियार, कहीं तैमूर, कहीं बाबर जैसे तमाम गिरोह खड़े हो गए ये कोई राजा नहीं कहीं के कोई जगीरदार नहीं सब के सब चंबल के डकैतों के समान थे यहाँ के डकैत भारतीय होने के कारण कुछ मानवता भी थी, लेकिन इन सब मे तो मानवता, उदारता से कोई सरोकार ही नहीं, उस समय अरब कोई ताकतवर देश नहीं था कि भारत जैसे शक्ति सम्पन्न देश पर आक्रमण करे ये सबके सब लुटेरे ही थे बाबर को तो मंगोलिया से भगा दिया गया था चार वर्ष वह भारत मे उत्पात मचाता रहा लूटता रहा फिर मारा गया, आठवीं सताब्दी कासिम, दसवीं सताब्दी मे गजनी ये सभी लुटेरे मारे गए बारहवीं सताब्दी मे बख्तियार खिलजी दो सौ घुड़सवारों का गिरोह लेकर आया 1161 मे लूट मचाया नालंदा को फूंका हजारों बौद्धों को मारा जब असम के राजा को पता चला तो नदिया (बंगाल) 1162 मे बुरी तरह पीटा गया और 1163 मे मारा गया ये लुटेरे यहाँ लूटे तो लेकिन यहाँ की समपत्ति ले जाने मे सफल नहीं हुए वे सब के सब मारे ही गए इसलिए यह कहना कि अरबों ने भारत पर आक्रमण किया यह अरब देश का अपमान करना है, बाबर के वंसजों ने सासन करने का प्रयास जरूर किया लेकिन भारतीय जनता ने उस मुगल वंश को कभी स्वीकार नहीं किया औरंगजेब दक्षिण से लौट नहीं पाया मराठों ने उसे वहीं ढेर कर दिया, सत्रहवीं शताब्दी मे जाटों, मराठों, राजपूतों और सिक्खों ने पुनः हिन्दू पताका भारत वर्ष पर फहराई मुगलों के लालकिले पर भगवा झण्डा फहराया इतना ही नहीं जिस हरमंदिर साहब (स्वर्ण मंदिर) को मुसलमानों ने तोड़ा था सरोवर को अपवित्र किया था उन्हीं मुगल सैनिकों के द्वारा उसका उद्धार कराया गया।
       आज जिसे हम आतंकी कह रहे हैं ये उसी प्रकार हैं जैसे कासिम, गजनी, गोरी, बख्तियार और बाबर था वे उस जमाने के आतंकी थे उनके हाथ मे भी कुरान थी आज अलकायदा, हिजबूल मुजाहिदीन, आईएस आईएस और आईएस जैसे तमाम संगठन अपने को इस्लाम का असली खलीफा बता रहा है और इनके हाथ मे भी कुरान है, दुनिया को यह समझना होगा के ये केवल मोमिन है न कि मनुष्य इसलिए इनके साथ मोमिनो जैसा ही ब्यवहार किया जाना चाहिए न कि मनुष्यों जैसा !          

हिन्दू साम्राज्य------ हज़ार वर्ष पराधीनता के नहीं शौर्य, स्वाभिमान शतत संघर्ष का काल ।

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           पवित्र गीता मे भगवान कृष्ण कहते हैं ''हे अर्जुन! मै महाकाल हूँ लोकक्षय और लोकबृद्धि दोनों का कारण, मै इन दुष्टों के विनाश के लिए प्रवृत हूँ, अर्जुन तू लड़े या न लड़े, इस महाभारत मे उपस्थित सभी योद्धा समाप्त होने वाले हैं, अतः कर्तब्य यही है कि तू उठे स्वधर्म का पालन करे और यश प्राप्त करे, वस्तुतः तू निमित्त मात्र है, कर्ता तो मै ही हूँ, मै जो परम अकर्ता हूँ, वहीं परमकर्ता भी हूँ।''
         भगवान वहीं कहते हैं जब-जब अधर्म बढ़ेगा मै आऊँगा और वे बिभिन्न रूपों मे आए --------
        भारत वर्ष आर्यावर्त राष्ट्र एक राज्य अनेक परंतु परकीय हमले मे एक, भारतवर्ष ने चक्रवर्ती सम्राटों को जन्म दिया मौर्य सम्राट, गुप्तवंश, शुंगवंश, चालुक्य, चेर, पल्लव वंश, महान बाप्पा रावल (राणा) वंश, महान विजय नगर साम्राज्य, नाग वंश ऐसे सैकड़ों राजवंशों ने इस पर शासन किया, दुर्भाग्य कैसा है कि जिसे इस्लामिक काल कहा जाता है वह किस आधार पर कौन से इतिहास लेखक थे, जो अरबी लुटेरे आए उनके साथ कुछ भांड भी लेकर आए वे उसी लूट का वर्णन कराते थे जैसे 'बाबर नामा- अकबर नामा'ये क्या है जो बाबर चार वर्ष भी भारत भूमि पर टिक नहीं सका मारा गया उसे भारत का विजेता बताना भारत और हिन्दू समाज का अपमान करना है। छठी -सातवीं सताब्दी मे इस्लाम का उद्भव हुआ आठवीं सताब्दी मे यानी 712 से भारत मे लुटेरे आने शुरू हो गए हम सभी को ज्ञात है कि भारत के ब्यापारी पश्चिम ब्यापार हेतु जाते थे अरब इत्यादि देशों मे कुछ खाने-पीने के लिए नहीं था सभी का गिरोह बना केवल लूटने का ही धन्धा था जो जितना बड़ा गिरोह का सरदार उतनी बड़ी प्रतिष्ठा, धीरे-धीरे इन लुटेरों को ध्यान मे आया कि भारत तो सुखी सम्पन्न देश है लेकिन अरब कि कोई हैसियत ही नहीं थी कि वे भारत हमला करते, मुहम्मदबिन कासिम कहीं का कोई राजा नहीं था वह सीमा प्रांत सिंध का लुटेरा था, माफी मांगना छल -प्रपंच द्वारा छुट जाना राजा दहिरसेन निश्चिंत थे एक दिन धोखे से राजा की हत्या हो गयी राजधानी देवलपुर (कराची) कि लूट किया जिसका बदला राजा दाहिरसेन की पुत्रियों ने बगदाद मे जाकर कासिम हत्या से चुकाया ।
       सातवीं सताब्दी मे भारत वर्ष के चक्रवर्ती सम्राट राजा हर्षवर्धन थे वे बौद्ध धर्म से प्रभावित थे इस कारण सीमा प्रांत भी कुछ कमजोर सा हो गया था सीमा प्रांत के राजा सामंत अपने को स्वतंत्र घोषित कर लिए थे सम्राट ने कोई ध्यान नहीं दिया अरब मे गिरोहो का बनाना जारी था एक हाथ मे कुरान लेकर अल्लाह मे नाम पर लूट-पाट करना ही उनकी जीविका थी, गजनी का लुटेरा महमूद गजनवी पुरुषपुर (पेशावर) लूट-पाट मचाने आया राजा जयपाल ने उसे बुरी तरह पीटा, यह हो सकता है कि अरब के इन लुटेरों को सायद जगीरदार कहते रहे हों लेकिन वह बार-बार आतंक मचाने आता राजा आनंदपाल ने संधि की जिससे वह पूत आतंक बंद हो जाय लेकिन वह माना नहीं भारत अंदर घुसकर लूट-पाट करता हुआ  सोमनाथ मंदिर सहित कई मंदिरों को ध्वस्त ही नहीं तो लूट पाट भी किया जब वह जाने लगा तो गुजरात के राजाओं ने उसे रेगिस्तान मे 1030 मे समाप्त कर दिया,  गजनी की मौत के पश्चात मुहम्मद गोरी वहाँ का जागीर बना यानी डकैतों के गिरोह का सरदार मुहम्मद गोरी ने कई बार पृथ्बिराज चौहान के राज्य मे लूट-पाट करता राजा ने कई बार उसे मारकर भगाया पकड़-पकड़ कर छोड़ दिया, सूफी संत मोइद्दीन चिस्ती (मु गोरी का जासूस) ने समय देखकर गोरी को हमला करने हेतु बुलाया राजा धोखे से पराजित हुआ लेकिन 'कबी चंद्रवर दायी'की युक्ति काम आई पृथ्बिराज चौहान ने शब्दवेधी वाण द्वारा मुहम्मद गोरी का 1191 मे बध कर कबी और राजा दोनों अपने आपको समाप्त कर लिये, दिल्ली की पराजय भारत की पराजय नहीं क्योंकि पृथ्बिराज चौहान का शासन केवल दो जागीर 'अजमेर और दिल्ली'जो की कन्नौज से भी छोटी थी इस नाते शेष भारत का क्या ? क्या मुहम्मद गोरी ने शासन किया ! क्या कासिम ने शासन किया !क्या गजनी ने शासन किया तो उसका उत्तर है की नहीं ! तो ये कहाँ के शासक थे इतिहास मे खोजते रहिए ।
         चार वर्ष तक कुतुबुद्दीन ऐबक दिल्ली जागीर का शासक रहा फिर इब्रहीम लोदी शासक हुआ इसे समाप्त कर कुशल सेनापति हेमचन्द्र विक्रमादित्य दिल्ली के सम्राट हुए, 1526 मे बाबर का युद्ध इब्रहीम लोदी से हुआ ऐसा नहीं था की बाबर दिल्ली का शासक हुआ वह तो चार वर्ष उत्तर भारत के कुछ हिस्सों मे लूट-पाट मचाता रहा और मर गया (यही लुटेरों की प्रबिति) हिमायूं भी भागता ही रहा अकबर धोखे से हेमचन्द्र को पराजित कर उसकी हत्या कर दी और पहला मुगल दिल्ली के जागीर पर आया लेकिन उसकी हिम्मत यह नहीं थी की वह दिल्ली को राजधानी बनाए उसने फ़तेहपुर सीकरी को अपना केंद्र बनाया आगरा से शासन शुरू किया लेकिन उसका शासन भी कुछ ही हिस्से मे था अफगानिस्तान, कश्मीर से लेकर मालवा गुजरात तक महाराणा का शासन था मुगलों की सत्ता को भारतीय जनता ने कभी स्वीकार नहीं की राणा राजसिंह से कई बार पराजित होने बाद औरंगजेब दक्षिण गया वह पहले क्षत्रपति शिवाजी हमराज़ से उलझा फिर संभाजी महराज से कई युद्ध हारने के पश्चात धोखे से संभाजी को पकड़वा लिया अपमान पूर्वक उनका बध किया परिणाम यह हुआ की औरंगजेब की समाधि वहीं बन गयी वह वापस नहीं आ सका दक्षिण मे मराठे, राजपूतना, सिक्ख और जाट खड़े हो पुनः स्वर्ण मंदिर को उनही पकड़े हुए मुगल सैनिकों द्वारा जीर्णोद्धार पवित्र सरोवर को साफ कराया, लाल किले पर भगवा झण्डा फहराया सत्रहवीं शताब्दी सम्पूर्ण विदेशियों को समाप्त कर हिन्दू पद पादशाही की स्थापना हुई ।
         अंग्रेजों ने कुटिल चाल से भारतीय राजाओं से बिभिन्न प्रकार की संधि की राजाओं को चौथ देना उनकी चापलूसी करना धीरे-धीरे बंगाल मे अपना धंधा मजबूत करने मे सफलता प्राप्त की उन्होने राजाओं से हम ब्यापारी हैं हमे चौकीदार भर्ती की अनुमती राजाओं ने इसे स्वीकार कर लिया क्योंकि ब्रिटिश महारानी विक्टोरिया की हैसियत भारत के राजाओं के सामने कुछ भी नहीं थी, उस समय ब्रिटिश एक राष्ट्र था भी नहीं अंग्रेजों ने कमीशन पर मालगुजारी वसूलने की भी अनुमती ली, सेक्योर्टी गार्ड की आड़ मे वे सेना भर्ती करते रहे उस समय स्वामी दयानन्द सरस्वती का प्रादुर्भाव हुआ वे भारतीय राजाओं को सचेत करने लगे और उसी मे 1857का बिगुल बज ही गया ज्ञातब्य हो की उस समय तक पूरे देश मे हिंदुओं का शासन था, लेकिन केवल बंगाल की लूट ने ब्रिटिश को मालामाल कर दिया और वे भारत मे षणयंत्र शुरू कर दिये अंग्रेजों ने 1912 मे दिली को राजधानी घोषित किया केवल 70 वर्ष ही सत्ता और संघर्ष दोनों और फिर सत्ता हस्तांतरण क्योंकि ब्रिटीशि के पास कोई राष्ट्रिय सेना ही नहीं थी।
           संधि मे उन्होने भारत मे जनगणना 1851 मे कराया जिसमे राजाओं की सहमति थी उन्हे (अंग्रेजों) ध्यान मे आया की भारत मे तो 80% शाक्षरता है इसी कारण 1857 मे बिहार और उत्तर प्रदेश मे ही 20 लाख लोगो की हत्या की क्या यह गुलामी का लक्षण है जो जाती गुलाम होती है वह संघर्ष करती है ! देश मे स्वामी दयानन्द, स्वामी विबेकानंद, महर्षि अरविंद, लोकमान्य तिलक, बिपिनचंद पाल, लाला लाजपत राय जैसे क्रांतिकारी आध्यात्मिक ताकते खड़ी हो गयी राजा, संत, नेता जी सुभाषचंद बोष की आज़ाद हिन्द फौज और भारतीय जनता खड़ी हुई अंग्रेजों को जाना पड़ा, यह कहना की उन्होने 600 रियासतों को स्वतंत्र कर दिया यह भी गलत है क्योंकि वे तो उन राजाओं से समझौता किए थे यह स्वाभाविक सत्ता हस्तांतरण था क्यों कि केवल भारत के कुछ हिस्से पर ही ब्रिटिश का शासन था 1947 से 37 वर्ष पहले तक एक तिहाई भारत पर ब्रिटिश सत्ता थी लेकिन वह (ब्रिटिश शासित) भाग हमेसा संघर्ष रत रहा।
         पराधीन देश मे आध्यात्मिक चेतना नहीं जगती मध्यकाल मे रामानुजाचार्य, रामानन्द स्वामी के द्वादस भगवत शिष्य, संत रविदास, कबीर दास, मीराबाई, संत तुलसी दास ने रामलीला शुरू कर तथा रामचरित मानस लिखकर पूरे देश को जागृत कर दिया क्या किसी गुलाम देश मे यह संभव है ? दूसरा जहां इस्लाम मतावलंबियों अथवा ईसाईयत का शासन रहा हो वहाँ किसी गैर मतावलंबियों जीवित बचा है नहीं ! जहां-जहां ये दोनों मत गए वहाँ की संस्कृतियाँ समाप्त हो गईं, यदि भारत पराधीन रहा होता तो क्या हिन्दू समाज व भारतीय संस्कृति बच पाती नहीं ! इससे यह सिद्ध होता है की भारत कभी पराधीन नहीं रहा बल्कि ''नेहरू पंथियों''ने यह झूठा प्रचार किया की हम गुलाम थे जिससे हिन्दू समाज के भीतर हीन भावना की ग्रंथि बन सके, वास्तव मे यदि विचार किया जाय तो ध्यान आता है की यह काल भारत के आध्यात्मिक उत्थान का काल था जिसे पराधीनता का काल कहा जा रहा है ।                
          17वीं शताब्दी मे ब्रिटिश के पास कोई राष्ट्रीय सेना नहीं थी वह एक राष्ट्र भी नहीं था ईस्ट इंडिया कंपनी धूर्तता पूर्ण काम कर रही थी समझौते की आण मे कंपनी- ''धंधा मुनेफ़ा का -सपना जीसस का''क आधार बना धंधा कर रही थी कंपनी के प्रबन्धकों को गवर्नर कहा जाता था उन्हे भारत का गवर्नर समझना मूर्खता थी, योजना वद्ध तरीके से लार्ड माइकले ने 1934 मे आज के कनवेंट की तर्ज पर अँग्रेजी शिक्षा का प्रचार शुरू किया ज्ञातब्य हो की यह केवल आधे भारत मे ही लागू था बाद मे चर्च ने शिक्षा अपने हाथ मे लेकर शिक्षा और मतांतरण दोनों शुरू किया और देश के सभी गुरुकुलों को समाप्त करने का प्रयास किया, लेकिन भारतीय राजा, आध्यात्मिक संत और क्रांतिकारियों ने विदेशियों को देश छोड़ने को मजबूर कर दिया ।

सीमांचल मे हिन्दू नेतृत्व की आवस्यकता, नहीं तो कश्मीर जैसी हालत ---!

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   सीमांचल मे हिन्दू नेतृत्व की आवस्यकता------!
              आज सीमांचल की हालत जम्मू- कश्मीर जैसी होती जा रही है जब हम अररिया होकर आगे बढ़ते हैं तो ध्यान मे आता है कि मै भारत मे हूँ अथवा कहीं -? पूर्णिया, कटिहार, अररिया और किशनगंज सभी स्थानो गावों मे भारतीय वेश -भूषा दिखाई ही नहीं देती इतना ही नहीं जब कोई गरीब हिन्दू मारता है तो उसे मुसलमान बलात दफनवा देते हैं वे भारतीय परंपरा के अनुसार अंतिम संस्कार नहीं कर सकते सभी हिंदुओं को घर मे बधना रखना पड़ता है भले ही उसका प्रयोग केवल सौच जाने के लिए करते हों भय के कारण उसे इस्लामिक संस्कृति अपना दिखाना, मजबूरी हो जाता है, जहां हिन्दू जनसंख्या कम है वहाँ हिन्दू विधायक होना नामुमकिन है दुर्भाग्य ऐसा है कि वोट की लालच मे सेकुलर पार्टियां मुसलमानों के वोट के खातिर कुछ भी करने को तैयार हैं यदि सेकुलर पार्टियां ऐसा करें तो कोई आश्चर्य की बात नहीं--! लेकिन जब बीजेपी भी ऐसा करती है तो फिर हिन्दू समाज विचार करने को मजबूर हो जाता है अब यहाँ के हिंदु समाज का क्या होगा--? आज आवस्यकता है इन क्षेत्रों मे हिन्दू नेतृत्व को बढ़ावा दिया जाय, जहां हिन्दू जनसंख्या कम भी हो वहाँ भी हिन्दू उम्मीदवार को चुनाव लड़ाना चाहिए नहीं तो यह क्षेत्र कश्मीर की राह पकड़ रहा है आए दिन गो तस्करी, फैक करेंसी धंधा, अवैध हथियार तस्करी, आब्रजन, दुर्गा पुजा व हिन्दू त्योहारो पर हमला यह सब आम बात हो गयी है यदि हिन्दू ताकतवर नहीं रहा तो वह दिन दूर नहीं जब इस क्षेत्र से हिंदुओं का पलायन होना शुरू हो जाएगा।
            यहाँ एक विशेष समुदाय मे गो तस्करी, फैक करेंसी का धंधा बुरा काम है ऐसा नहीं माना जाता आखिर क्यों-! इस पर विचार होना चाहिए इन क्षेत्रों मे आईबी, रॉ, सीबीआई इत्यादि एजेंसियाँ असहज क्यों रहती हैं आखिर इन्हीं क्षेत्रों मे आए दिन आतंकवादी, देशद्रोही घटनाएँ होती रहती हैं --! यह कहने से बात नहीं बनती कि मुसलमान भी देश भक्त है भारतीय समुदाय को तो इस पर विसवास होना चाहिए अब आप यह कह सकते हैं कि इस समुदाय पर इतना शंका क्यों आए दिन आतंकवादी घटनाएँ हिंदुओं की असुरक्षा कश्मीर जैसा हालत के लिए कौन जिम्मेदार है आखिर कौन सा कारण है कि जम्मू और काश्मीर प्रांत मे केवल घाटी क्षेत्र मे ही क्यों सेना लगाई जाती है लद्दाख और जम्मू मे क्यों नहीं आज घाटी से सेना हटा ली जाय तो क्या काश्मीर घाटी भारत का अंग रहेगा इस पर विचार करना जरूरी है, इसी दृष्टि से सीमांचल पर विचार करना जरूरी है, यह भाग कब तक बिना सेना के हमारे पास रहने वाला है इस कारण समय रहते इस विषय पर विचार करना जरूरी है, आज सीमांचल के पूर्णिया, करिहार, किशनगंज और अररिया जिला संवेदनशील बना हुआ है अभी भी हिंदुओं का जीना दूभर हो गया है आए दिन हिंदु लड़कियां, गो तस्करी, हथियार और फैक करेंसी का धंधा ज़ोरों पर है मुस्लिम समुदाय मे इसे अच्छा माना जाता है यह दीनी काम है इससे सबाब मिलता है अल्लाह खुश होता है वह बड़ा दयालु है। इन जिलों मे कुल पूर्णिया, कस्बा, वनमनखी, रुपौली, धमदाहा, कोढ़ा, अमौर, बाइसी, नरपत गंज, रानीगंज, अररिया, फरविसगंज, जोकीहाट, सिकटी, किशनगंज, बहादुरगंज, ठाकुरगंज, कोचधामन, कटिहार, कदवा, बलरामपुर, प्राणपुर, मनिहारी और बरारी लगभग 25 विधान सभा है मुस्लिम प्रभावी तो है ही कुछ क्षेत्रों मे तो हिन्दू वोटर अल्पसंख्यक भी है जैसे कटिहार मे 43%, कदवा मे 60%, बलरामपुर मे 60% मुसलमान है किशनगंज मे 35%, बहादुरगंज मे 60% ठाकुरगंज मे 35% कोचधामन मे तो 80% मुसलमान है वहीं अररिया मे 48% पूर्णिया मे 37%  और बाइसी मे 60% मुसलमान है इन क्षेत्रों मे हिंदुओं की सुरक्षा का विषय न भी हो तो देश के सुरक्षा का विषय तो होना ही चाहिए, ध्यान रखना होगा कि यहाँ हिन्दू उम्मीदवार होना ही चाहिए चाहे वह हारे ही क्यों न लेकिन हिन्दू नेतृत्व का विकाश होना जरूरी है नहीं तो इस क्षेत्र को काश्मीर होने से कोई रोक नहीं सकता, यह वह क्षेत्र ऐसा है जहां सीमा पर घास छिलने वाली महिलाएं भी हथियारों की तस्करी करती हैं सीमा पर से बंगलादेसी आतंकी तस्कर हथियार फेकता है ये घास छिलने वाली महिलाएं घास के बोरे मे हथियार रख लेती है यदि 'बीएसएफ़'के लोग पूछ-ताछ करते हैं तो बंगलादेशी हँगामा करते हैं इस सीमांचल मे घुसपैठियों की संख्या दिनो-दिन बढ़ती जा रही है जिससे हिन्दू समाज अल्पसंख्यक होता जा रहा है यहाँ इस्लाम के नाम पर सब जायज है आतंकी हो, घुसपैथी हो अथवा तस्कर हो सभी की सुरक्षा होती है आसानी से भारतीय नागरिकता प्राप्त कर लेता है यहाँ की संस्कृति बहुत तेजी मे परिवर्तित हो रही है जिससे भारतीय संस्कृति को खतरा उत्पन्न हो सा गया है । 
          इस विषय पर विचार करना जरूरी है की जिनकी मानसिकता ऐसी है जिस कौम ने 700 वर्षों तक इस देश पर शासन किया है उसका खून मेरे रगों मे बह रहा है (एक पूर्व सांसद) आज भी वे अपने को बाबर का वंशज मानते हैं आज भी वे अपने को भारत मे शासक की भूमिका मे देखना चाहते हैं अब यह कैसे हो सकता है, ऐसे इस्लामिक नेता केवल सेकुलर पार्टियों मे हैं ऐसा नहीं बीजेपी मे भी हैं वे आज भी मोदी जी को मुस्लिम हत्यारा कहने गुरेज नहीं करते, इस क्षेत्र मे भारतीय त्योहार मनाना मुसलमानों की कृपा पर निर्भर है यहाँ देशद्रोही ही नेता माना जाता है जो जिताना बड़ा गुंडा, तस्कर उतना बड़ा नेता क्योंकी मुसलमानों मे इसे अच्छा माना जाता है इन सारे विषयों पर बीजेपी सहित सभी राजनैतिक पार्टियों, सामाजिक संगठनों को देश हित मे ठीक से विचार कर हिन्दू नेतृत्व उभारने का प्रयास करना चाहिए नहीं तो इन क्षेत्रों मे भारत को खोजना होगा -----!             
           मै एक घटना आपको बताता हूँ एक बार बीजेपी के मुख्य सचेतक संघ कार्यालय पर आए उन्होने एक वारिष्ट प्रचारक से कहा की 'बोधगया'मे बीजेपी विधायकों का अभ्यास वर्ग लगा हुआ है कोई गीत बता दीजिये कुछ लोगों ने सुझाव दिया की अटल जी ने तो बहुत गीत लिखा है उन्होने कहा कि हमारे यहाँ एक मुसलमान विधायक है इस कारण वहाँ ऐसी कोई गीत नहीं हो सकती, कैसा दुर्भाग्य है कि अटल जी तो बीजेपी के गाड फादर हैं फिर आखिर उनकी गीत क्यों नहीं तो जब एक मुस्लिम विधायक पर ये हाल है तो अधिक होने पर इनका क्या होगा इस कारण बीजेपी अथवा संघ विचार परिवार को भी विचार करना चाहिए ।  

धर्म को अपमानित करता हुआ बिहार धार्मिक न्यास बोर्ड------------!

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              धर्म यानी क्या ? वास्तविकता यह है कि धर्म केवल सनातन धर्म ही है जहां जीव -जन्तु, पशु- पक्षी यहाँ तक कि नदियां, समुद्र, पहाड़ सभी की पूजा व समादर है जिसे हमारे ऋषियों मुनियों ने लाखों, करोणों वर्ष तक तपस्या सोध द्वारा एक मानव पद्धति मे विकाशित किया है, वैदिक ऋषियों ने जहां ज्ञान का विकाश उपनिषदों को माध्यम बना विकाश कर उत्कृष्ट ज्ञान भंडार को मानव के सामने परोसा वहीं आदि शंकर ने अद्वैत दर्शन आधार पर ''ब्रम्ह सत्य जगत मिथ्या''पर वैदिक धर्म की पुनर्प्रतिष्टा की रामानुजाचार्य, स्वामी रामानन्द ने द्वैत विशिष्टा द्वैत को आधार बना मठ, मंदिरों द्वारा दस-नामी संतों को खड़ाकर हिन्दू धर्म को और विकसित किया, वास्तविकता यह है की मठ, मंदिर और साधू-संत ही सनातन धर्म की पहचान हैं लेकिन बिहार मे धार्मिक न्यास बोर्ड नित्य हमारे साधू-संतों काअपमान करता जा रहा है। 
            बोर्ड ने तो साधू-संतों का स्तर चपरासी से भी बदतर बना दिया है बोर्ड के अध्यक्ष की निगाह मे सभी साधू चोर हैं उनके साथ जो ब्यवहार है उससे केवल साधू ही नहीं अपमानित होता बल्कि हिन्दू धर्म ही अपमानित होता है हिन्दू समाज को इस पर विचार करना चाहिए न्यास बोर्ड का तो किसी संत को अध्यक्ष बनाना चाहिए मठ मंदिरों का मालिकाना हक भी महंतों के पास रहना चाहिए बोर्ड का तो केवल उसमे यदि अनिमियतता है तो उसकी जांच का अधिकार होना चाहिए नहीं तो धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हिन्दू धर्म के साथ यह ब्यवहार हिन्दू समाज को बड़ा महगा पड़ेगा क्योंकी न्यास हिन्दू समाज के प्रतीक चिन्हों को समाप्त करने मे लगा है किसी भी मठ अथवा मंदिर पर उस परंपरा का साधू व संत नहीं है बोर्ड किसी को भी नियुक्त कर देता है जबकि उस परंपरा के आचार्य को यह अधिकार है की वह महंतों की नियुक्ति करे, इस कारण हिन्दू धर्म मे हस्तक्षेप हिन्दुत्व पर भारी पड़ रहा है बोर्ड मठ मंदिरों का धन हज यात्रा और चर्च पर खर्च कर रहा है, सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मागने पर बोर्ड कोई जानकारी उपलब्ध नहीं कराता यह भी दुर्भाग्य पूर्ण है समय रहते हिन्दू समाज को इस विषय पर विचार करने की अवस्यकता है नहीं तो हमारे मठ, मंदिर और गुरुकुल केवल इतिहास मे पढ़ने को मिलेगा-----! 
           ज्ञातब्य हो की वैशाली संत समागम 12,,13,14 दिसंबर को दो हज़ार साधू-संतों ने प्रस्ताव पारित कर न्यास बोर्ड को निष्पक्ष करने बोर्ड मे संसोधन कर साधू-संतों को ही बोर्ड का अध्यक्ष बनाया जाय सरकार आख मुड़े हुए है अभी इनहो सारे विषय को लेकर सभी संत बोध गया मे 24,25,26 जुलाई को संत समागम मे इकट्ठा होने वाले हैं संतों ने इस लड़ाई को स्वीकार किया है किसी परिणाम पर पहुचे बिना लड़ाई बंद नहीं होगी संत समाज समरसता और धर्मांतरण जैसे मुद्दे पर संघर्ष को तैयार है इन सभी विषयों पर संतों द्वारा बोध गया मे विचार विमर्श होगा ।  
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