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इस्लाम----------------!

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  इस्लाम का दर्शन ---        
          कुछ लोग यह कहते नहीं थकते की सभी धर्म समान है कोई भी धर्म झगड़ा नहीं सिखाता लेकिन उन पर दया तब आती है जब वे इस्लाम को धर्म और कुरान, हदीस को धर्म-ग्रंथ मानने लगते हैं या तो वे नादांन हैं अथवा अत्यधिक चालक  इस विषय पर चर्चा जरूरी है क्या कुरान धार्मिक ग्रंथ है ? यदि धार्मिक ग्रंथ है तो क्या कोई भी धार्मिक पुस्तक हिंसा, हत्या और बलात्कार सिखाता है जबकि मुसलमान, कुरान और हदीस का उदाहरण देकर आज सम्पूर्ण विश्व को तबाह करने पर उतारू है। आज पूरा विश्व दो भागों में विभाजित है एक इस्लाम दूसरा काफिर, जहाँ काफिरों की हत्या जन्नत दिलाता है।
           एक मात्र अल्लाह पर विस्वास, अल्लाह किसी माता- पिता व भाई -बंधू नहीं अल्लाह और इमांन वालों के बीच रसूल मध्यस्तता करता है इनके मध्यम से पवित्र पुस्तक भेजी, इस्लाम में पैगम्बर भेजने की प्रथा ६३२ के पश्चात बंद हो गयी, अंतिम रशूल मुहम्मद को आदर्श माना जाता है उनका प्रत्येक कृत्य अनुकरणीय, अपनी अक्ल नहीं मुहम्मद की नक़ल से ब्यवहार करें, अब तक की सभी किताबें बिकृत (इस्लाम के अनुसार) होने के कारन अल्लाह ने पवित्र कुरआनभेजा । 
           कयामत का दिन-- कयामत का दिन जब आता है तो जन्नत यानी कामुक भोगवादी सुख, इस्लाम मे मनुष्य की स्वतंत्र बुद्धि नहीं अल्लाह की ईक्षा के अधीन रहती है यानि विवेक शून्य प्राणी। 
          हदीस -- मुहम्मद के जीवन का ब्यवहार कुरआन से अधिक महत्वपूर्ण है । 
          इस्लाम के पाँच स्तम्भ -- 1 कलमा, नमाज, जकात, रोज़ा, और हज । 
          इस्लाम द्वारा काल का बटवारा --- पिछला काल अंधकारमय अज्ञान मूलक, इस्लाम के पश्चात प्रकाशमय काल प्रारम्भ हुआ इस्लाम के अनुसार इस्लाम के पहले की संस्कृति का समूल नष्ट करना आवस्यक इस कारण आज विश्व की बहुत सारी संस्कृतियाँ इस्लाम अनुयायियों ने नष्ट कर दिया।
            इस्लाम द्वारा मनुष्य जाती मे बटवारा --- पहला अल्लाह के पक्षधर इमान वाले (मुस्लिम,मोमिन), दूसरा शैतान के पक्षधर गैर ईमान वाले, दोनों मे निरंतर शत्रुता, विचार आचार से अंतर बनाए रखना, ईमान और गैर ईमान वालों के लिए नीति मानक अलग-अलग है। गैर ईमान वालों के दो प्रकार एक किताबी जिसमे ईसाई, यहूदी आते हैं। दूसरा गैर किताबी जिसमे मूर्तिपूजक अथवा बहुदेव वादी जो इस्लाम मे सर्वाधिक निंदनीय माना जाता है। इस्लाम पृथबी का भी बटवारा करता है एक इस्लाम का राज्य (दारुल इस्लाम), दूसरा युद्ध राज्य यानि लड़ाई का राज्य वह स्थान जहाँ हिन्दू व अन्य धर्मावलम्बी रहते हैं (दार अल-हर्ब )इस्लाम के अनुसार पृथबी अल्लाह, पैगंबर और मुस्लिमों की है, गैर ईमान वालों को धरती पर रहने का कोई अधिकार नहीं, ''दार अल -हर्ब''का दारुल इस्लाम मे रूपांतर धर्मांतरण करना प्रत्येक मुसलमान का पवित्र कर्तब्य है।
            जिहाद --जिहाद फी सिविल्लाह अल्लाह के मार्ग मे जिहाद, जिहाद का मतलब इस्लाम के विस्तार हेतु प्रयास, गैर ईमान वालों के बिरुद्ध छेड़ा गया निरंतर युद्ध, गैर ईमान वालों की हत्या, लूट, हिंसा, शीलहरण, मंदिरों का विध्वंश, धर्मांतरण आदि कुकृत्य यह सब इस्लाम की दृष्टि मे पुण्य का काम है, ''जिहाद कुरआन का आधार''--''तो जो कुछ गनीमत (लूट का माल) तुमने हासिल किया है उसे हालाल (उचित) और पाक (पवित्र) समझकर खावों (कुरआन 8-69-70), निश्चय ही भूमि पर चलने वाले सबसे जीव अल्लाह की दृष्टि मे वे लोग हैं जिंहोने कुफ़्र किया फिर वे फिर वे ईमान नहीं लाते यानी इस्लाम नहीं स्वीकारते'' (कुरआन 8-55), ''जो काफिर है जालिम वही है'' (कुरआन 2-254), ऐ ईमान वालों उन काफिरों से लड़ो जो तुम्हारे आस-पास हैं और चाहिए कि तुमसे सक्ती पाएँ,'' (कुरआन 9-123) ।
              इस्लाम का त्याग मृत्यु दण्ड --इस्लाम का त्याग करने वाला अल्लाह का अपमान करता है, अल्लाह कि ईक्षा की अवहेलना करता है इस्लाम और उम्माह का द्रोही होता है, इसलिये इस्लामी धर्म-शास्त्र के अनुसार मृत्युदण्ड, उसकी हत्या करने वाला पुण्यवान और जन्नत पाने वाला।
             इस्लाम के सिद्धान्त -- इस्लाम सर्व ब्यापी और परिपूर्ण जीवन पद्धति है, इसमे जोड़-तोड़ व बदलाव संभव नहीं है, एक मात्र अल्लाह और रसूल पर अश्रद्धा सबसे बड़ा अपराध है, पृथ्बी पर फैले अन्याय, अत्याचार, अनाचार और दुष्टता का मूल मुहम्मद मे श्रद्धा हीनता मे है श्रद्धाहीन को जड़ से उखाड़ फेकना मानव जाती पर उपकार है। इस कारण इस्लाम के साथ सीधी सादी हिन्दू जाती कैसे रह सकती है जहां इस्लाम का आधार भूत सिद्धान्त ही काफिरों की हत्या का आदेश देता हो! इस कारण कुरान अथवा हदीस के रहते हिन्दू मुस्लिम साथ नहीं रह सकते क्योंकि मखतब मदरसों मे यही पढ़ाया जा रहा है जिसका परिणाम हिन्दू समाज के त्योहारों मे विवाद खड़ा करना मंदिरों व मूर्तियों को तोड़ना लव जेहाद यानी हिन्दू लड़कियों शील भांग करना उनके लिए शबाब का काम है इस पर हिन्दू समाज को विचार करना ही होगा नहीं तो भारत भूमि भारत नहीं रहेगा कुछ और नाम होगा फिर पछताने से कुछ नहीं होने वाला।                

नेपाल की अखंडता हिंदुत्व में निहित है .

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नेपाल की अखंडता हिंदुत्व में निहित है ---!
        एक सार्वभौमिक सत्ता सम्पन्न राष्ट्र है इससे कोई इंकार नहीं कर सकता जिसका वर्णन पुराणों में भी मिलता है यही भी सत्य है की भारतीय संस्कृति और नेपाली संस्कृति में कोई भेद नहीं दोनों को ही हिन्दू अथवा भारतीय संस्कृति कहा जा सकता है यह भी सत्य की सैकड़ों वर्ष पूर्व ''रावल रतन सिंह के भाई रावल कुम्भकरण ''मेवाङ से आकर यहाँ राज्य स्थापित किया आज का राजवंश उनकी ४४ वीं पीढ़ी है जिसने पुरे का एकीकरण किया कुछ वामपंथी इसका विरोध भी कर सकते हैं क्योंकि उन्हें संस्कृति औ देश से कोई मतलब नहीं जबकि वामपंथ का सूर्य जहाँ से पनपा था वहीँ डूब गया नेपाल और भारत में इसका कोई स्कोप नहीं, ये ऐसे देश हैं जहाँ से ब्रिटिश ने बड़ी ही कोसिस की किसम्राट विक्रमादित्य को इतिहास से ही समाप्त कर दिया जय लेकिन भारतीय, नेपाली समाज में ऐसी परंपरा थी कि कोई इस महापुरुष को समाप्त नहीं कर सका एक समय आया कि जब भारत में विदेशी ताकतों ने समाजवाद को जातिवाद में परिवर्तित करने का प्रयास किया अस्सी के दसक में जब वी पी सिंह प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने अनजाने ही सही मंडल कमीशन लागु किया पुरे भारत में प्रबल बिरोध हुआ सैकड़ों नवजवान बलिदान हुए जबकि तथाकथित पिछड़े समाज का कोई लाभ तो नहीं हुआ बल्कि अगड़ा-पिछड़ों को लेकर आपस में बिरोध शुरू हुआ देश भक्त लोग राष्ट्रवादी लोगों ने श्रीरामजन्म भूमि मुक्ति का आंदोलन प्रारम्भ किया था आंदोलन से हिंदुत्व का ज्वार इतना अधिक हुआ कि अगड़ा-पिछड़ा सभी विवाद ख़त्म हुआ और देश हिंदुत्व के नाम पर एक रहा औरभी मजबूत हुआ वास्तविकता यह है कि भारत और नेपाल की एकताकी गारंटी हिंदुत्व ही है .
            आज नेपाल में १९९९ से २००८ के बीच जो जान आंदोलन था उससे भी स्थिति बहुत भयावह हो गयी है नेपाल में राजा हिंदुत्व के नाम पर राष्ट्रिय एकता का केंद्र हुआ करता था उस राजा ने कभी हिन्दू धर्म के लिए काम नहीं किया बल्कि राणाओं के काल में हिन्दू धर्म के लिए बहुत ही काम हुआ यहाँ तक कि मुक्तिनाथ का मंदिर भी इतने दुर्गम स्थान पर राणाओं ने ही बनवाया काठमांडू में वाग्मती नदी के किनारे मंदिरों कि श्रंखला हो अथवा घाटों की संरचना सभी राणाओं ने ही किया धर्म और मनुस्मृति के आधार पर न्याय हुआ करता था भारत आज़ादी के पश्चात एक समझौते में राजा को पूरी सत्ता मिली जिस हिंदुत्व के बल राजा धर्मावतार माना जाता था राज़वंश ने इस पर कोई विचार नहीं किया दूसरी तरफ ललितपुर के सरकारी हॉस्पिटल को चर्च को दे दिया जिससे नेपाल में मतांतरण शुरू हो गया देखते-देखते देश भर में सैकड़ों चर्च खड़े ही नहीं हुए बल्कि धर्मान्तरण जोरों से शुरू हो गया हिन्दू संस्कृति को खतरा उत्पन्न हो गया इतना ही नहीं राजा यह समझ नहीं पाया कि क्या हो रहा है ? दूसरी तरफ ''राजा वीरेन्द्र''की सपरिवार हत्या को माओवादियों ने भुनाया माओवादी आंदोलन (चर्च, मस्जिद और माओवािदयों का संयुक्त आंदोलन) शुरू हो गया राजा लोकतंत्रवादियों के साथ नहीं खड़े होने से नेपाल राज़तंत्र से लोकतान्त्रिक देश के रूप में परिणित हो गया लेकिन परिपक्व लोकतंत्र नहीं होने से वह अपने को बचा नहीं पा रहा है एक अच्छा शुभ लक्षण हिन्दूराष्ट्र के आंदोलन रूप में दिखाई दिया पुरे देश में मेची से महाकाली तक हिन्दू जन -मानस चाहे जनजाति हो,चाहे गिरी वासी हो चाहे पहाड़ी अथवा तराई वासी हो हिन्दू नाम पर एक हो गया लगा की देश खड़ा हो जायेगा लेकिन इसमे कुछ राज़वादी चहरे शामिल होने से कुछ शंका की गुंजायश हो गयी लेकिन इसमे लोकतंत्रवादियों को शंका नहीं होनी चाहिए क्योंकी सभी इस हिन्दू राष्ट्र के अंगभूत हैं .
         दुर्भाग्य कैसा है की विदेशी ताकतों को नेपाली पहचान नहीं पा रहा है विदेशी फंडिंग के आधार पर पुनः चर्च मस्जिद और वामपंथी इकठ्ठा हो गए हैं हिंदुत्व के आंदोलन के विरुद्ध कहीं लिम्बुवान, कहीं खंभुवन, मधेस पश्चिम के कुछ संगठन उग्र आंदोलन खड़ा कर रहे हैं, सरकार हिन्दू आंदोलनकारियों को बंदूख के बल दबाना चाहती है यहाँ तक की संतों में भी फूट डालने का प्रयास हो रहा है जहाँ आत्मानंद गिरी के नेतृत्व में संत हिंदुत्व आंदोलन में शामिल हैं वहीँ जो कमलनयना चार्य कभी राजा के साथ हुआ करते थे वे आज माओवादियों के साथ खड़े दिखाई देते हैं बड़ी ही दुर्भाग्य की स्थिति बनी हुई है आज समय की आवस्यकता है की सारा का सारा हिन्दू समाज नेपाल के लिए एक साथ खड़ा हो जिससे देश और संस्कृति बचाया जा सके नहीं तो माओवादियों के द्वारा खड़े किये हुए ये बिभिन्न जाितयों के आंदोलन देश बिखंडन के आंदोलन साबित होंगे जैसे रसिया खंड-खंड हो गया नेपाल को माओवादी उस तरफ बढ़ाना चाहते हैं समय की पुकार है हिन्दू समाज अपने कर्तब्य को समझे सभी मत-भेदों को भूल देश बचाने हेतु आगे आये.      

ऐतरेय ब्राह्मण -----------!

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ऐतरेय  ब्राह्मण
'ऐतरेय ब्राह्मण'ऋग्वेदके शाकल शाखाके सम्बद्व है। इसमें 8 खण्ड, 40 अध्याय तथा 285 कण्डिकाएं हैं। इसकी रचना 'महिदास ऐतरेय'द्वारा की गई थी, जिस पर सायणचार्यने अपना भाष्य लिखा है। इस ग्रन्थ से यह पता चलता है कि उस समय पूर्व में विदेह जाति का राज्य था जबकि पश्चिम में नीच्य और अपाच्य राज्य थे। उत्तर में कुरू और उत्तर मद्र का तथा दक्षिण में भोज्य राज्य थां। ऐतरेय ब्राह्मण में राज्याभिषेक के नियम दिये गये हैं। इसके अन्तिम भाग में पुरोहितका विशेष महत्त्व निरूपित किया गया है।
ॠक् साहित्य में दो ब्राह्मण ग्रन्थ हैं। पहले का नाम ऐतरेय ब्राह्मण तथा दूसरे का शाख्ङायन अथवा कौषीतकि ब्राह्मणहै। दोनों ग्रन्थों का अत्यन्त घनिष्ठ सम्बन्ध है, यत्र-तत्र एक ही विषय की व्याख्या की गयी है, किन्तु एक ब्राह्मण में दूसरे ब्राह्मण में विपरीत अर्थ प्रकट किया गया है। कौषीतकि ब्राह्मण में जिस अच्छे ढंग से विषयों की व्याख्या की गयी है उस ढंग से ऐतरेय ब्राह्मण में नहीं है। ऐतरेय ब्राह्मण के पिछले दस अध्यायों में जिन विषयों की व्याख्या की गयी है वे कौषीतकि में नहीं हैं, किन्तु इस अभाव को शाख्ङायन सूत्रों में पूरा किया गया है। आजकल जो ऐतरेय ब्राह्मण उपलब्ध है उसमें कुल चालीस अध्याय हैं। इनका आठ पंजिकाओं में विभाग हुआ है। शाख्ङायन ब्राह्मण में तीस अध्याय हैं।

                                                                                   विषय सूची 

ऐतरेय ब्राह्मण का प्रवचन कर्ता

पारम्परिक दृष्टि से ऐतरेय ब्राह्मण के प्रवचनकर्ता ॠषि महिदास ऐतरेय हैं। षड्गुरुशिष्य ने महिदास को किसी याज्ञवल्क्यनामक ब्राह्मण की इतरा (द्वितीया) नाम्नी भार्या का पुत्र बतलाया है।[1]
ऐतरेयारण्यक के भाष्य में षड्गुरुशिष्य ने इस नाम की व्युत्पत्ति भी दी है।[2]सायणने भी अपने भाष्य के उपोद्घात में इसी प्रकार की आख्यायिका दी है, जिसके अनुसार किसी महर्षि की अनेक पत्नियों में से एक का का नाम 'इतरा'था। महिदास उसी के पुत्र थे। पिता की उपेक्षा से खिन्न होकर महिदास ने अपनी कुलदेवता भूमि की उपासना की, जिसकी अनुकम्पा से उन्होंने ऐतरेय ब्राह्मण के साथ ही ऐतरेयारण्यक का भी साक्षात्कार किया।[3]भट्टभास्कर के अनुसार ऐतरेय के पिता का नाम ही ॠषि इतर था।[4]
  • स्कन्द पुराणमें प्राप्त आख्यान के अनुसार ऐतरेय के पिता हारीत ॠषि के वंश में उत्पन्न ॠषि माण्डूकि थे।[5]
  • छान्दोग्य उपनिषद[6]के अनुसार महिदास को 116 वर्ष की आयु प्राप्त हुई। शांखायन गृह्यसूत्र[7]में भी इनके नाम का 'ऐतरेय'और 'महैतरेय'रूपों के उल्लेख हैं।
कतिपथ पाश्चात्त्य मनीषियों ने अवेस्तामें 'ॠत्विक्'के अर्थ में प्रयुक्त 'अथ्रेय'शब्द से 'ऐतरेय'का साम्य स्थापित करने की चेष्टा की है। इस साम्य के सिद्ध हो जाने पर 'ऐतरेय'की स्थिति भारोपीयकालिक हो जाती है। हॉग और खोन्दा सदृश पाश्चात्त्य विद्वानों की धारणा है कि सम्पूर्ण ऐतरेय ब्राह्मण किसी एक व्यक्ति अथवा काल की रचना नहीं है। अधिक से अधिक महिदास को ऐतरेय ब्राह्मण के वर्तमान पाठ का सम्पादक माना जा सकता है।[8]

ऐतरेय-ब्राह्मण का विभाग, चयनक्रम और प्रतिपाद्य

सम्पूर्ण ऐतरेय ब्राह्मण में 40 अध्याय हैं। प्रत्येक पाँच अध्यायों को मिलाकर एक पंचिका निष्पन्न हो जाती है जिनकी कुल संख्या आठ है। अध्याय का अवान्तर विभाजन खण्डों में है, जिनकी संख्या प्रत्येक अध्याय में पृथक्-पृथक् है। समस्त चालीस अध्यायों में कुल 285 खण्ड हैं। ऋग्वेदकी प्रसिद्धि होतृवेद के रूप में है, इसलिए उससे सम्बद्ध इस ब्राह्मण ग्रन्थ में सोमयागों के हौत्रपक्ष की विशद मीमांसा की गई है। होतृमण्डल में, जिनकी ‘होत्रक’ के नाम से प्रसिद्धि है, सात ॠत्विक होते हैं-
  • होता,
  • मैत्रावरुण,
  • ब्राह्मणाच्छंसी,
  • नेष्टा,
  • पोता,
  • अच्छावाक और
  • आग्नीघ्र।
ये सभी सोमयागों के तीनों सवनों में ॠङ्मन्त्रों से 'याज्या'[9]का सम्पादन करते हैं। इनके अतिरिक्त पुरोनुवाक्याएं होती हैं, जिनका पाठ होम से पहले होता है। होता, मैत्रावरुण, ब्राह्मणाच्छंसी और अच्छावाक- ये आज्य, प्रउग प्रभृति शस्त्रों[10]का शंसन करते हैं। इन्हीं का मुख्यता प्रतिपादन इस ब्राह्मण ग्रन्थ में है। प्रसंग वश कतिपय अन्य कृत्यों का निरूपण भी हुआ है। होता के द्वारा पठनीय प्रमुख शस्त्र ये हैं-
  • आज्य शस्त्र,
  • प्रउग शस्त्र,
  • मरुत्वतीय शस्त्र,
  • निष्कैवल्य शस्त्र,
  • वैश्वदेव शस्त्र,
  • आग्निमारुत शस्त्र,
  • षोडशी शस्त्र,
  • पर्याय शस्त्र और
  • आश्विन शस्त्र आदि।
याज्या और पुरोऽनुवाक्या को छोड़कर अन्य शस्त्र प्राय: तृच होते हैं जिनमें पहली और अन्तिम (उत्तमा) ॠचा का पाठ तीन-तीन बार होता है। 'उत्तमा'ॠचा को ही 'परिधानीया'भी कहते हैं। पहली ॠचा का ही पारिभाषिक नाम 'प्रतिपद'भी है। इन्हीं के औचित्य का विवेचन वस्तुत: ऐतरेय ब्राह्मणकार का प्रमुख उद्देश्य है।
अग्निष्टोम समस्त सोमयागों का प्रकृतिभूत है, एतएव इसका सर्वप्रथम विधान किया गया है, जो पहली पंचिका से लेकर तीसरी पंचिका के पाँचवें खण्ड तक है। यह एक दिन का प्रयोग है सुत्यादिन की दृष्टि से सामान्यत: इसके अनुष्ठान में कुल पाँच दिन लगते हैं। इसके अनन्तर अग्निष्टोम की विकृतियों उक्थ्य, क्रतु, षोडशी और अतिरात्र का वर्णन चतुर्थ पंचिका के द्वितीय अध्याय के पंचम खण्ड तक है। इसके पश्चात सत्रयागों का विवरण है, जो ऐतरेय ब्राह्मण में ताण्ड्यादि अन्य ब्राह्मणों की अपेक्षा कुछ कम विस्तार से है। सत्रयागों में ‘गवामयन’ का चतुर्थ पंचिकागत दूसरे अध्याय के षष्ठ खण्ड से तीसरे अध्यायान्तर्गत अष्टम खण्ड तक निरूपण है। 'अङिगरसामयन'और 'आदित्यानामयन'नामक सत्रयाग भी इसी मध्य आ गये हैं। पाँचवीं पंचिका में विभिन्न द्वादशाह संज्ञक सोमयागों का निरूपण है। इसी पंचिका में अग्निहोत्र भी वर्णित है। छठी पंचिका में सोमयागों से सम्बद्ध प्रकीर्ण विषयों का विवेचन है। इसी पंचिका के चतुर्थ और पंचम अध्यायों में बालखिल्यादि सूक्तों की विशद प्ररोचना की गई है, जिनकी गणना खिलों के अन्तर्गत की जाती है। सप्तम पंचिका का प्रारम्भ यद्यपि पशु-अंगों की विभक्ति-प्रक्रिया के विवरण के साथ होता है, किन्तु इसके दूसरे अध्याय में अग्निहोत्री के लिए विभिन्न प्रायश्चित्तों, तीसरे में शुन:-शेप का सुप्रसिद्ध उपाख्यान और चतुर्थ अध्याय में राजसूययाग के प्रारम्भिक कृत्यों का विवरण है। आठवीं पंचिका के प्रथम दो अध्यायों में राजसूययाग का ही निरूपण है, किन्तु अन्तिम तीन अध्याय सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण विवरण-ऐन्द्रमहभिषेक, पुरोहितकी महत्ता तथा ब्रह्मपरिमर[11]का प्रस्तावक है। 'ब्रह्म'का अर्थ यहाँ वायु है। इस वायु के चारों ओर विद्युत, वृष्टि, चन्द्रमा, आदित्यऔर अग्निप्रभृति का अन्तर्भाव मरण-प्रकार ही ‘परिमर’ है। यज्ञ की सामान्य प्रक्रिया से हटकर सोचने पर यह कोई विलक्षण वैज्ञानिक कृत्य प्रतीत होता है।
इनमें से 30 अध्यायों तक प्राच्य और प्रतीच्य उभयवुध विद्वानों के मध्य कोई मतभेद नहीं है। यह भाग निर्विवाद रूप से ऐतरेय ब्राह्मण का प्राचीनतम भाग है। इसमें भी प्रथम पाँच अध्याय तैत्तिरीय ब्राह्मणसे भी पूर्ववर्त्ती माने जा सकते हैं।[12]कीथ की इस धारणा के विपरीत विचार हार्श (V.G.L.Horch) का है, जो तैत्तिरीय की अपेक्षा इन्हें परवर्ती मानते हैं।[13]कौषीतकि ब्राह्मणके साथ ऐतरेय की तुलनात्मक विवेचना करने के अनन्तर पाश्चात्य विद्वानों का विचार है कि सातवीं और आठवीं पंचिकाएं[14]परवर्ती हैं। इस सन्दर्भ में प्रदत्त तर्क ये हैं:-
  • कौषीतकि ब्राह्मण में मात्र 30 अध्याय हैं- जबकी दोनों ही ॠग्वेदीय ब्राह्मणों का वर्ण्यविषय एक ही सोमयाग है।
  • राजसूययाग में राजा का यागगत पेय सोम नहीं है, जबकि ऐतरेय ब्राह्मण के मुख्य विषय सोमयाग के अन्तर्गत पेयद्रव्य सोम है।
  • ऐतरेय ब्राह्मण की सप्तम पंचिका का आरम्भ 'अथात:'[15]से हुआ है, जो परवर्ती सूत्र-शैली प्रतीत होती है।
उपर्युक्त तर्कों के उत्तर में यहाँ केवल पाणिनि का साक्ष्य ही पर्याप्त है, जिन्होंने ऐतरेय ब्राह्मण के 40 अध्यायात्मक स्वरूप का संकेत से उल्लेख किया है। वे ऋग्वेद के दूसरे ब्राह्मण कौषीतकि के 30 अध्यायात्मक स्वरूप से भी परिचित थे।[16]वस्तुत: उपर्युक्त शंकाओं[17]का कारण ऐतरेय ब्राह्मण की विवेचन-शैली है, जो विषय को संश्लिष्ट और संहितरूप में न प्रस्तुत कर कुछ फैले-फैले रूप में निरूपित करती है। वास्तव में श्रौतसूत्रों के सदृश समवेत और संहितरूप में विषय-निरूपण की अपेक्षा ब्राह्मण ग्रन्थों से नहीं की जा सकती। यह सुनिश्चित है कि ऐतरेय ब्राह्मण पाणिनि के काल तक अपने वर्तमान स्वरूप को प्राप्त कर चुका था। मूलवेद[18]के अस्तित्व की बात भी उठाई है, किन्तु प्रा. खोंदा जैसे मनीषियों ने उससे असाहमत्य ही प्रकट किया है।[19]

ऐतरेय ब्राह्मण की व्याख्या-सम्पत्ति

इस पर चार प्राचीन भाष्यों का अस्तित्व बतलाया जाता है-
  • गोविन्दस्वामी,
  • भट्टभास्कर,
  • षड्गुरुशिष्य और
  • सायणाचार्य के भाष्य।
इनमें से अभी तक केवल अन्तिम दो का प्रकाशन हुआ है। उनमें भी अध्ययन-अध्यापन का आधार सामान्यतया सायणभाष्य ही है, जिनमें होत्रपक्ष की सभी ज्ञातव्य विशेषताओं का समावेश है।

ऐतरेय ब्राह्मण की रूप-समृद्धि

किसी कृत्यविशेष में विनियोजन मन्त्र के देवता, छन्दस इत्यादि के औचित्य-निरूपण के सन्दर्भ में ऐतरेयकार अन्तिम बिन्दु तक ध्यान रखता है। इसे वह अपनी पारिभाषिक शब्दावली में ‘रूप-समृद्धि’ की आख्या देता है- एतद्वै यज्ञस्य समृद्वं यद्रूप-समृद्वं यत्कर्म क्रियामाणं ॠगभिवदति।[20]

ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विवरण

ऐतरेय ब्राह्मण में मध्य प्रदेश का विशेष आदर पूर्वक उल्लेख किया गया है- 'ध्रुवायां मध्यमायां प्रतिष्ठायां दिशि'।[21]पं. सत्यव्रत सामश्रमी के अनुसार इस मध्य प्रदेश में कुरु, पंचाल, शिवि और सौवीर संज्ञक प्रदेश सम्मिलित थे।[22]महिदास का अपना निवास-स्थान भी इरावती नदी के समीपस्थ किसी जनपद में था।[23]ऐतरेय ब्राह्मण[24]के अनुसार उस समय भारतके पूर्व में विदेह आदि जातियों का राज्य था। दक्षिण में भोजराज्य, पश्चिम में नीच्य और अपाच्य का राज्य, उत्तर में उत्तरकुरुओं और उत्तर मद्र का राज्य तथा मध्य भाग में कुरु-पंचाल राज्य थे।
ऐन्द्र-महाभिषेक के प्रसंग में, अन्तिम तीन अध्यायों में जिन ऐतिहासिक व्यक्तियों के नाम आये हैं, वे हैं- परीक्षित-पुत्र जनमेजय, मनु-पुत्र शर्यात, उग्रसेन-पुत्र युधां श्रौष्टि, अविक्षित-पुत्र मरूत्तम, सुदास पैजवन, शतानीक और दुष्यन्त-पुत्र भरत। भरत की विशेष प्रशंसा करते हुए कहा गया है कि उसके पराक्रम की समानता कोई भी नहीं कर पाया।
महाकर्म भरतस्य न पूर्वे नापरे जना:।
दिवं मर्त्य इव हस्ताभ्यां नोदापु: पञ्च मानवा:॥[25]
इस भरत के पुरोहितथे ममतापुत्र दीर्घतमा

पुरोहित का गौरव

ऐतरेय ब्राह्मण के अन्तिम अध्याय में पुरोहितका विशेष महत्त्व निरूपित है। राजा को पुरोहित की नियुक्ति अवश्य करनी चाहिए, क्योंकि वह आहवनीयाग्नितुल्य होता है। पुरोहित वस्तुत: प्रजा का प्रतिनिधि है, जो राजा से प्रतिज्ञा कराता है कि वह अपनी प्रजा से कभी द्रोह नहीं करेगा।

आचार-दर्शन

ऐतरेय ब्राह्मण में नैतिक मूल्यों और उदात्त आचार-व्यवहार के सिद्धान्तों पर विशेष बल दिया गया है। प्रथम अध्याय के षष्ठ खण्ड में कहा गया है कि दीक्षित यजमान को सत्य ही बोलना चाहिए[26]इसी प्रकार के अन्य वचन हैं- जो अहंकार से युक्त होकर बोली जाती है, वह राक्षसी वाणी है।[27]
शुन:शेप से सम्बद्ध आख्यान के प्रसंग में कर्मनिष्ठ जीवन और पुरुषार्थ-साधना का महत्त्व बड़े ही काव्यात्मक ढंग से बतलाया गया है। कहा गया है कि बिना थके हुए श्री नहीं मिलती; जो विचरता है, उसके पैर पुष्पयुक्त होते हैं, उसकी आत्मा फल को उगाती और काटती है। भ्रमण के श्रम से उसकी समस्त पापराशि नष्ट हो जाती है। बैठे-ठाले व्यक्ति का भाग भी बैठ जाता है, सोते हुए का सो जाता है और चलते हुए का चलता रहता है। कलि युगका अर्थ है मनुष्य की सुप्तावस्था, जब वह जंभाई लेता है तब द्वापर की स्थिति में होता है, खड़े होने पर त्रेता और कर्मरत होने पर सत युगकी अवस्था में आ जाता है। चलते हुए ही मनुष्य फल प्राप्त करता है। सूर्यके श्रम को देखो, जो चलते हुए कभी आलस्य नहीं करता-
कलि: सयानो भवति संजिहानस्तु द्वापर:।
उत्तिष्ठंस्त्रेता भवति कृतं सम्पद्यते चरंश्चरैवेति॥
चरन्वै मधु विन्दति चरन्स्वादुमुदुम्बरम्।
सूर्यस्य पश्य श्रेमाणं यो न तन्द्रयते चरंश्चरैवेति॥[28]

देवताविषयक विवरण

ऐतरेय ब्राह्मण में कुल देवता 33 माने गए हैं- 'त्रयस्त्रिंशद् वै देवा:'। इनमें अग्निप्रथम देवता है और विष्णुपरम देवता। इन्हीं के मध्य शेष सबका समावेश हो जाता है-[29]यहीं से महत्ता-प्राप्त विष्णु आगे पुराणों में सर्वाधिक वेशिष्ट्यसम्पन्न देवता बन गए। देवों के मध्य इन्द्रअत्यधिक ओजस्वी, बलशाली और दूर तक पार कराने वाले देवता हैं-[30]देवताओं के सामान्यरूप से चार गुण हैं-
  • देवता सत्य से युक्त होते हैं,
  • वे परोक्षप्रिय होते हैं,
  • वे एक दूसरे के घर में रहते और
  • वे मर्त्यों को अमरता प्रदान करते हैं।[31]

शुन:-शेप-आख्यान

ऐतरेय ब्राह्मण में आख्यानों की विशाल थाती संकलित है। इनका प्रयोजन याग से सम्बद्ध देवता और उनके शस्त्रों (स्तुतियों) के छन्दों एवं अन्य उपादानों का कथात्मक ढंग से औचित्य-निरूपण है। इन आख्यानों में शुन:शेप का आख्यान, जिसे हरिश्चन्द्रोपाख्यान भी कहा जाता है, समाजशास्त्र, नेतृत्वशास्त्र एवं धर्मशास्त्र की दृष्टि से विशेष महत्त्वपूर्ण है। यह 33वें अध्याय में समाविष्ट है। राज्याभिषेक के समय यह राजा को सुनाया जाता था। संक्षिप्त रूप में आख्यान इस प्रकार है: इक्ष्वाकुवंशज राजा हरिश्चन्द्रपुत्ररहित थे। वरुणकी उपासना और उनकी प्रसन्नता तथा इस शर्त पर राजा को रोहित नामक पुत्र की प्राप्ति हुई कि वे उसे वरुण को समर्पित कर देंगे; बाद में वे उसे समर्पित करन्र से टालते रहे, जिसके फलस्वरूप वरुण के कोप से वे रोगग्रस्त हो गये। अन्त में राजा ने अजीगर्त ॠषि के पुत्र शुन:-शेप को ख़रीद कर उसकी बलि देने की व्यवस्था की। इस यज्ञ में विश्वामित्रऔर जमदग्नि ॠत्विक् थे। शुन:-शेप की बलि के लिए इनमें से किसी के भी तैयार न होने पर अन्त में पुन: अजीगर्त्त ही लोभवश उस काम के लिये भी तैयार हो गये। बाद में विभिन्न देवी-देवताओं कि स्तुति से शुन:-शेप बन्धन-मुक्त हो गये। लोभी पिता का उन्होंने परित्याग कर दिया और विश्वामित्र ने उन्हें पुत्ररूप में स्वीकार कर लिया। शुन:-शेप का नया नामकरण हुआ देवरात विश्वामित्र। इस आख्यायिका के चार प्रयोजन आपातत: प्रतीत होते हैं-
  • वैदिक मन्त्रों की शक्ति और सामार्थ्य का अर्थवाद के रूप में प्रतिपादन, जिनकी सहायता से व्यक्ति वध और बन्धन से भी मुक्त हो सकता है।
  • यज्ञ या किसी भी धार्मिक कृत्य में नर-बलि जैसे घृणित कृत्य की भर्त्सना सम्भव है, बहुत आदिम-प्राकृत-काल में, जब यज्ञ-संस्था विधिवत गठित न हो पाई हो, नर-बलि की छिटपुट घटनाओं की यदा-कदा आवृत्ति हो जाती हो। ऐतरेय ब्राह्मण ने प्रकृत प्रसंग के माध्यम से इसे अमानवीय घोषित कर दिया है।
  • मानव-हृदय की, ज्ञानी होने पर भी लोभमयी प्रवृति का निदर्शन, जिसके उदाहरण ॠषि अजीगर्त हैं।
  • राज-सत्ता द्वारा निजी स्वार्थ के लिए प्रजा का प्रलोभनात्मक उत्पीड़न।
इस आख्यायिका के हृदयावर्जक अंश दो ही हैं-
  • राजा हरिश्चन्द्र के द्वारा प्रारम्भ में पुत्र-लालसा की गाथाओं के माध्यम से मार्मिक अभिव्यक्ति।
  • ‘चरैवेति’ की प्रेरणामयी गाथाएँ।

शैलीगत एवं भाषागत सौष्ठव

ऐतरेय ब्राह्मण में रूपकात्मक और प्रतीकात्मक शैली का आश्रय लिया गया है, जो इसकी अभिव्यक्तिगत सप्राणता में अभिवृद्धि कर देती है। स्त्री-पुरुष के मिथुनभाव के प्रतीक सर्वाधिक हैं। उदाहरण के लिए वाणी और मन देवमिथुन है[32]घृतपक्व चरु में घृत स्त्री-अंश है और तण्डुल पुरुषांश।[33]दीक्षणीया इष्टि में दीक्षित यजमान के समस्त संस्कारगर्भगत शिशु की तरह करने का विधान भी वस्तुत: प्रतीकात्मक ही है। कृत्य-विधान के सन्दर्भ में कहीं-कहीं बड़े सुन्दर लौकिक उदाहरण दिये गये हैं, यथा एकाह और अहीन यागों के कृत्यों से याग का समापन इसलिए करना चाहिए, क्योंकि दूर की यात्रा करने वाले लक्ष्य पर पहुँचकर बैलों को बदल देते हैं।
38वें अध्याय में, ऐन्द्रमहाभिषेक के प्रसंग में मन्त्रों से निर्मित आसन्दी का सुन्दर रूपक प्राप्त होता है, जो इस प्रकार है- इस आसन्दी के अगले दो पाये बृहत् और रथन्तरसामों से तथा पिछले दोनों पाये वैरूप और वैराज सामों से निर्मित हैं। ऊपर के पट्टे का कार्य करते है शाक्वर और रैवत साम। नौधस और कालेय साम पार्श्व फलक स्थानीय है। इस आसन्दी का ताना ॠचाओं से, बाना सामों से तथा मध्यभाग यजुर्षों से निर्मित है। इसका आस्तरण है यश का तथा उपधान श्री का। सवितृ, बृहस्पति और पूषा प्रभृति विभिन्न देवों ने इसके फलकों को सहारा दे रखा है। समस्त छन्दों और तदभिमानी देवों से यह आसन्दी परिवेष्टित है। अभिप्राय यह है कि बहुविध उपमाओं और रूपकों के आलम्बन से विषय-निरूपण अत्यन्त सुग्राह्य हो उठा है। ऐतरेय ब्राह्मण की रचना ब्रह्मवादियों के द्वारा मौखिकरूप में व्यवहृत यज्ञ विवेचनात्मक सरल शब्दावली में हुई है जैसा कि प्रोफेसर खोंदा ने अभिमत व्यक्त किया है।[34]प्रोफेसर कीथ ने अपनी भूमिका में इसकी रूप-रचना, सन्धि और समासगत स्थिति का विशद विश्लेषण किया है।

वैज्ञानिक तथ्यों का समावेश

ऐतरेय-ब्राह्मण में अनेक महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक सूचनाएं संकलित हैं, उदाहरण के लिए 30वें अध्याय में, पृथ्वीके प्रारम्भ में गर्मरूप का विवरण प्राप्त होता है- आदित्यों ने अंगिरसों को दक्षिणा में पृथ्वी दी। उन्होंने उसे तपा डाला, तब पृथ्वी सिंहिनी होकर मुँह खोलकर आदमियों को खाने के लिए दौड़ी। पृथ्वी की इस जलती हुई स्थिति में उसमें उच्चावच गर्त बन गए।

ऐतरेय ब्राह्मण के उपलब्ध संस्करण

अद्यावधि अएतरेय-ब्राह्मण के (भाष्य, अनुवाद या वृत्तिसहित अथवा मूलमात्र) जो संस्करण प्रकाशित हुए हैं, उनका विवरण निम्नवत् है-
  • 1863 ई. में अंग्रेज़ी अनुवाद सहित मार्टिन हॉग के द्वारा सम्पादित और बम्बई से मुद्रित संस्करण, दो भागों में।
  • थियोडार आउफ्रेख्ट के द्वारा 1879 में सायण-भाष्यांशों के साथ बोन से प्रकाशित संस्करण्।
  • 1895 से 1906 ई. के मध्य सत्यव्र्त सामश्रमी के द्वारा कलकत्ता से सायण-भाष्यसहित चार भागों में प्रकाशित संस्करण्।
  • ए.बी.कीथ के द्वारा अंग्रेज़ी में अनूदित, 1920 ई. में कैम्ब्रिज से (तथा 1969 ई. में दिल्ली से पुनर्मुद्रित) प्रकाशित संस्करण्।
  • 1925 ई. में निर्णयसागर से मूलमात्र प्रकाशित जिसका भारतसरकार ने अभी-अभी पुनर्मुद्रण कराया है।
  • 1950 ई. में गंगा प्रसाद उपाध्याय का हिन्दी अनुवाद मात्र हिन्दी-साहित्य सम्मेलन प्रयागसे प्रकाशित।
  • 1980 /इ. में सायण-भाष्य और हिन्दी अनुवाद-सहित सुधाकर मालवीय के द्वारा सम्पादित संस्करण, वाराणसीसे प्रकाशितअ।
  • अनन्तकृष्ण शास्त्री के द्वारा षड्गुरुशिष्य-कृत सुखप्रदा-वृत्तिसहित, तीन भागों में त्रिवेन्द्रम से 1942 से 52 ई. के मध्य प्रकाशित संस्करण्।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
  1. 'महिदासैतरैयर्षिसन्दृष्टं ब्राह्मणं तु यत्। आसीद् विप्रो यज्ञवल्को द्विभार्यस्तस्य द्वितीयामितरेति चाहु:।'ऐतरेय ब्राह्मण, सुखप्रदावृत्ति
  2. इतराख्यस्य माताभूत् स्त्रीभ्यो ढक्यैतरेयगी:। ऐतरेयारण्यक, भाष्यभूमिका
  3. ऐतरेय ब्राह्मण सायण-भाष्य, पृष्ठ 8,(आनन्दाश्रम
  4. इतरस्य ॠषेरपत्यमैतरैय:। शुभ्रादिभ्यश्य ढक्।
  5. अस्मिन्नैव मम स्थाने हारीतस्यान्वयेऽभवत्। माण्डूकिरिति विप्राग्र्यो वेदवेदाङगपारग:॥ तस्यासीदितरानाम भार्या साध्वी गुणैर्युता। तस्यामुत्पद्यतसुतस्त्वैतरेय इति स्मृत:॥ स्कन्द पुराण, 1.2.42.26-30
  6. छान्दोग्य उपनिषद 3.16.7
  7. शांखायन गृह्यसूत्र 4.10.3
  8. जे. खोन्दा, हिस्ट्री इण्डियन लिटरेचर वे.लि., भाग 21, पृ. 344
  9. ठीक आहुति-सम्प्रदान के समय पठित मन्त्र
  10. अगीतमन्त्र-साध्य स्तुति
  11. शत्रुक्षयार्थक प्रयोग
  12. कीथ, ऋग्वेद ब्राह्मण, भूमिका
  13. वी.जी.एल.हार्श, डी वेदिशे गाथा उण्ड श्लोक लितरातुर
  14. अन्तिम 10 अध्याय
  15. अथात: पशोर्विभक्तिस्तस्य विभागं वक्ष्याम:
  16. अष्टाध्यायी 5.1.62
  17. जिनमें षष्ठ पंचिका को परिशिष्ट मानने की धारणा भी है, क्योंकि इसमें स्थान-स्थान पर पुनरुक्ति है
  18. भारोपीय काल के वैदिक संहिता-स्वरूप, जिसको जर्मन भाषा में ‘UR-Brahmana
  19. खोन्दा, हिस्ट्री आफ इण्डियन लिटरेचर, वे.लि., भाग 1, पृ. 360
  20. ऐतरेय ब्राह्मण 3.2
  21. ऐतरेय ब्राह्मण 8.4
  22. ऐतरेयालोचन, कलकत्ता, 1906 पृष्ठ 42
  23. ऐतरेयालोचन, कलकत्ता, 1906, पृष्ठ 71
  24. ऐतरेय ब्राह्मण (8.3.2
  25. ऐतरेय ब्राह्मण 8.4.9
  26. 'ॠतं वाव दीक्षा सत्यं दीक्षा तस्माद् दीक्षितेन सत्यमेव वदितव्यम्'।
  27. 'विदुषा सत्यमेव वदितव्यम्'(5.2.9)। 'यां वै दृप्तो वदति, यामुन्मत्त: सा वै राक्षसी वाक्'(2.1)।
  28. ऐतरेय ब्राह्मण, 33.1
  29. 'अग्निर्वै देवानामवमो विष्णु: परमस्तदन्तरेण अन्या: सर्वा: देवता:'।
  30. 'स वै देवानामोजिष्ठो बलिष्ठ: सहिष्ठ: सत्तम: पारयिष्णुतम:'(7.16)।
  31. ऐतरेय ब्राह्मण (1.1.6; 3.3.9; 5.2.4; 6.3.4
  32. ‘वाक्च वै मनश्च देवानां मिथुनम्’(24.4) ।
  33. ऐतरेय ब्राह्मण 1.1
  34. खोन्दा, हिस्ट्री इण्डियन लिटरेचर:वे.लि., भाग 1, पृ.410

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श्रुतियाँ


'गद्दी जाती'-- 'यादव जाती' (हिन्दू) की आठवी कूरी है.

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      Image result for गद्दी समाज   सामान्यतया विश्व में जो भी जातियां हैं अथवा जिन्हे हम जन जाती कहते हैं सभी का मूलश्रोत भारत और हिंदुत्व के इर्द गिर्द ही है भारत हज़ार वर्षों के संघर्ष के कारन जो वैदिक धर्मावलम्बी जिन्हे हम आर्य के नाते जानते हैं सब कुछ छिन्न-भिन्न होते दिखाई देता है पश्चिम से लगातार कबीलाई लुटेरों के हमलों ने हमारी संस्कृति ही नहीं धर्म को भी प्रभावित किया हिन्दू समाज ने अपने धर्म को बचाने हेतु कुछ नियम बनाये आज वही नियम हमारे लिए भारी पड़ रहा है.
               गद्दी जाती को जनजाति कहना उन पर अत्याचार करना होगा ये विशुद्ध ''अहीर''यानी यादव जाती की ही एक कुरी हैं जैसा ऊपर वर्णन किया है की हज़ार के संघर्ष के कारन सब कुछ बिखर गया उसी में अंग्रेजों ने तमाम जाती जनजाति का मनगढंत वर्णन किया, भारत में कोई आदि वासी नहीं जो शहर में रहता है वह शहर -वासी, गांव में रहने वाला गांव-वासी वन में रहने वाला वनवासी जेकिन वामपंथी और अंग्रेज इतिहास कारों ने अपने स्वार्थ हेतु मनगढंत बातें लिखी जो सत्य नहीं है गद्दी जाती यह भगवन बलराम के सुपुत्र ''गदाधर''के वंशज होने के कारन वे गद्दी कहलाये नेपाल के काठमांडू में २०११ के एक यादव सम्मलेन में यह स्वीकार कर प्रस्ताव पारित किया और बताया की ये यादव की आठवीं कुरी है.
              गद्दी हिन्दू मतावलम्बी होते हैं कुछ स्थानो पर मुल्ला -मौलबियों के भ्रम जाल में फंस कर कुछ इस्लामी परंपरा जैसा व्यवहार भी करते हैं, ये 'शिव और माँ पार्वती'के अनेक रूपों (शक्ति) के उपासक हैं अपने स्वस्थ और धन सम्पदा हेतु शक्ति की पूजा करते हैं इनका विस्वास है की प्रेत आत्माओं के कोप के कारन बिभिन्न प्रकार की बीमारी, गर्भपात, पशुओं में महामारी इत्यादि इस कारन उसके शांति करने हेतु भेड़-बकरियों की बलि देकर प्रेत आत्माओं को प्रसन्न करते हैं.
            ये लोग जादू-टोना ओझा इत्यादि में भी आस्था रखते हैं नवरात्री में शक्ति अथवा देवी की पूजा बड़ी धूम-धाम से करते हैं यह उत्सव वर्ष में दो बार मनाया जाता है एक चैत्र नवरात्री दूसरा दशहरा में, अंतिम दिन बलि देने की प्रथा है धीरे-धीरे पशु बलि के स्थान पर मेवा-मिष्ठान, पूड़ी-सब्जी चढ़ाया जाता है बिहार का सबसे पवित्र पर्व ''छठपर्व''परंपरागत बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है हिन्दू धर्म के साथ-साथ ओझा गुनी इत्यादि का भी आदर सम्मान किया जाता है ध्यान देने योग्य बात है की यह सब सम्पूर्ण हिन्दू समाज में होता है सभी जातियों में ओझा गुणी का सामान आदर है नवरात्री में पूजा हिन्दू समाज के सभी वर्गों में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है .
              गद्दी उत्तर प्रदेश के लखनऊ इलाहबाद गंगा जी के किनारे पाये जाते हैं कुशीनगर और बिहार के पश्चिम चंपारण, गोपालगंज तथा नेपाल में भी हैं इस समय इन पर सूफी मुल्ला मौलबी लगे हुए हैं गंडक के दोनों तरफ इनका धर्म खतरे पड़ा हुआ है इन्हे मुस्लमान बनाये जाने की साजिस की जा रही है.
              भारत में आरक्षण हिन्दू समाज के लिए है क्यों की ईसाई तो बड़े ही अगड़े हुए हैं वहीँ मुसलमान यह कहते नहीं थकते की हमने तो भारत पर सात सौ वर्ष शासन किया तो इन्हे क्यों आरक्षण चाहिए-? वास्तविकता ये हिन्दू जाती इन्हे आरक्षण मिलाना ही चाहिए लेकिन प्रश्न यह है की जब कुछ लोग इन्हे साजिस के तहत मुसलमान बताने का प्रयास करते हैं तो 'गद्दियों'का नुकसान हो जाता है आज समय की आवस्यकता है की ये खुलकर यादवों के साथ खड़े हों और इन्हे बराबर की भागीदारी मिले बीजेपी के एक बड़े नेता ने कहा की यदि ये समाज अपने को हिन्दू कहकर सामने आता है तो इसे अति पिछड़ा में घोषित करायेगे जिससे गद्दियों का पिछड़ापन दूर हो जायेगा. .                   

नेपाल मे अराजकता के अपराधी कौन ---!

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 नेपाल में हिंसा-हत्या के मूल अपराधी माओवादी----!
        आर्यावर्त कभी भारत वर्ष के बृहत्तर भाग में बिभिन्न राजे महराजे हुआ करते थे देश को एक सूत्र में बढ़ने के लिए चक्रवर्तियों की ब्यवस्था हुआ कराती थी नेपाल एकीकरण महाराजा पृथ्बी नारायण शाह ने की १०४ वर्ष राणाओं ने श्री तीन की उपाधि हासिल कर सेना और सत्ता दोनों पर कब्ज़ा कर शासन अपने हाथ में ले लिया, जब भारत आज़ाद हुआ तो एक समझौते के तहत पुनः राजा त्रिभुवन नारायण शाह के नेतृत्व में सत्ता आई, राजा त्रिभुवन के पश्चात दरबार में एक खेल शुरू हुआ जिसमे मूल नेपालियों के अतिरिक्त भूटान, सिक्किम, नार्थ ईस्ट इत्यादि से जिनकी कोई पहचान नेपाली नहीं लेकिन उनका चेहरा नेपाली था मूल सत्ता यानी दरबार में उनको प्रभावी किया गया, जलियावाला कांड, लखनऊ लूट नेपाली सेना के द्वारा हुआ था अंग्रेजों ने उसके बदले ''नया मुलुक'' (बांके, बर्दिया, कंचनपुर, कैलाली) नेपाल को दिया सुगौली संधि के तहत पर्सा जिला से लेकर झापा जिला तक नेपाल को दिया इसका मतलब क्या था ? जमींन  लेंगे तो वहां की जनता भी तो लेना पड़ेगा ऐसा नहीं हो सकता की जमींन लेंगे जनता को भगा देंगे !
            यह देश आंदोलनों का देश होकर रह गया है अदूरदर्शी नेतृत्व के कारन विदेशी कुचक्रों में नेपाल देश फंस गया, राणाओं को सत्ता से हटाने हेतु वी.पी कोइराला के नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के साथ नेपाल स्वतंत्रता यानी राजा पूर्ण सत्ता में आया (राणा शासन यानी अंग्रेजों का शासन) इसका आंदोलन शुरू हुआ जब भारत आज़ाद हुआ, साथ में १९५० की संधि हुई जिसमे नेपाल आज़ाद यानी राजा की सत्ता की वापसी, एक दूसरा जन आंदोलन हुआ जिसमे राजा बिरेन्द्र थे जिसमे नेपाली जनता का कितना बिरोध था एक जो नारा दिया जा रहा था उससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है नेपालियों ने नारा लगाया ''हाम्रो रानी कस्तो हो, रंडी जस्तो हो''इस प्रकार का नारा दिया हम समझ सकते हैं की किस प्रकार राजा का बिरोध जनता में रहा होगा उसी जन आंदोलन पका परिणाम नेपाल में लोकतंत्र आया जिसमे राजा और लोकतंत्र दोनों को मिश्रित सम्मान (संविधान मल्टीपार्टी डेमोक्रेसी विथ मोनार्की) लेकिन यह भी बहुत दिन नहीं चल सका १९९९ में चीन के प्रश्रय से माओवादियों ने हिंसा, हत्या का जन आंदोलन शुरू किया गिरजा प्रसाद कोइराला प्रधानमंत्री थे उनको राजा बिरेन्द्र ने सेना का उपयोग माओवादियों के बिरुद्ध लड़ने के लिए नहीं करने दिया राजा ने गिरजा बाबू से कहा ''नेपाली -नेपाली को मार्दै न''तब गिरजा बाबू ने सशत्र प्रहरी दल का गठन किया सन २००० में नेपाली जनता के लोकप्रिय राजा बिरेन्द्र की सपरिवार हत्या हो गयी नेपाल की पूरी जनता में आज भी यह भ्रम है की ये हत्या राजा ज्ञानेन्द्र ने करायी जबकि आरोप ''यूवराज दीपेन्द्र''के ऊपर लगा युवराज अपनी माँ से अत्यधिक प्रेम करते थे वे नेपाल में सर्वाधिक लोकप्रिय थे आज भी नेपाली जनता इस आरोप मानने को तैयार नहीं है ।
            एक समझौते में लोकतंत्रवादी और मावोवादी एक हो गए सहमति के आधार पर एक बार फिर गिरजा बाबू प्रधानमंत्री बने माओवादी आंदोलन समाप्त हुआ तत्कालीन संविधान स्थगित कर दिया गया राजा को सत्ता से हाथ धोना पड़ा, लगा कि नेपाल में शांति आ जाएगी लेकिन नेपाली जनता की आस पूरी नहीं हुई २००७ में संविधान सभा का चुनाव हुआ ६०० सदस्यों की सभा चुनी गयी लेकिन नेताओं की नियति ठीक नहीं थी संविधान नहीं बना दूसरा चुनाव हुआ फिर वही 'ढाख के तीन पात'माओवादियों ने जाती के आधार पर जन आंदोलन खड़ा किया था उन्हें अलग- अलग प्रदेश देने की बात कही जब सत्ता में आये तो कुछ नहीं किया जनता को लगा की हमें ठगा गया अब जातीय आधार पर प्रदेश नहीं देना चाहते। 
          एक शुभ लक्षण दिखाई दिया नेपाल की एकता का एक ही सूत्र है वह है हिंदुत्व, पुरे देश में हिन्दू राष्ट्र की मांग को लेकर एक बड़ा आंदोलन खड़ा हुआ हिंदुत्व के अंदर तराई, मधेश, थरुवान, लिंभुआवन, खंभुवन तथा पहाड़ी सभी समाहित हो जाते हैं हिन्दुत्व मे नेपाल की एकता, अखंडता सुनिश्चित हो जाती है लेकिन यह बात विदेशी मिशनरियों को पच नहीं पा रहा है उन्होंने सभी जातियों को योजना वद्ध तरीके से आंदोलित कर दिया इस समय नेपाल विदेशी षडयन्त्रों का शिकार हो गया है।  
          एक दूसरा जन आंदोलन जो नेपाली सरकार और नेताओं के अविस्वास के कारन हो रहा है मधेश की मांग समग्र मधेश एक प्रदेश या गंडक के पश्चिम थारु प्रदेश गंडक के पूरब तराई प्रदेश एक मधेश दो प्रदेश जिसमे कोई बुराई नहीं है मधेसी, थारु सहित सभी नेपाली ही हैं उन्हें गोली- बन्दुक से दबाया नहीं जा सकता माओवादी आंदोलन से वे लड़ना जरूर सीख गए हैं टीकापुर में २१ पुलिस सहित कई लोगो की हत्या अभी तक देश भर में मरने वालों की संख्या तीन अंक पार कर चुकी है थारुओं पर अनायास ही पुलिस ने कार्यवाही किया थारु कितना सीधा होता है आखिर कौन सा कारन था की उनको पुलिस पर हमला करना पड़ा, भैरहवा में पहाड़ियों ने मधेशीयों पर हमला किया क्या मधेसी नेपाली नहीं है ? और फिर मधेसी इकठ्ठा न होने पाये कर्फु लगा दिया गया इसका मतलब क्या है ? कहीं ऐसा तो नहीं कि पुलिस का विस्वास ख़त्म हो रहा कोई साजिस तो नहीं कि मधेसी उन्हें अपना शत्रु मानना शुरू कर दे, सप्तरी, रुपन्देही मे एक-एक मधेसी मारे गए हैं पुलिस द्वारा गोली चलाए जाने पर 200 से अधिक लोग घायल हैं आप गोली बंदूक द्वारा आंदोलन को दबा नहीं सकते, मधेसियों, थारुओं को उनका उन्हें अधिकार मिलना ही चाहिए अब किसी को गुलाम बनाकर रखना संभव नहीं है पहाड़ में तीन और मधेश में दो राज्य बनाकर इस समस्या का समाधान कर सकते हैं इक्षा शक्ति की आवस्यकता है। 
            नेताओं को अपनी ज़िम्मेदारी समझ आगे बढ़ कर मधेस, तराई, पहाड़ तथा थारुओं का विसवास जीतना चाहिए मधेसी नेता अपने विस्वास खो चुके हैं उन्होने तराई की जनता को धोखा के अतिरिक्त कुछ नहीं दिया है इस कारण स्थिति और भयावह हो गयी है आंदोलन मे नेता से आगे जनता हो गयी है कुछ नवजवानों के हाथ मे आंदोलन का नेतृत्व आ गया है हो सकता है कि आंदोलन मे विदेशी हाथ हो इससे इंकार नहीं किया जा सकता लेकिन मधेश के साथ न्याय होना चाहिए उन्हे पहाड़ियों के बराबर का अधिकार मिलना ही चाहिए नहीं तो आंदोलन तो किसी तरह समाप्त हो सकता है लेकिन यदि समस्या का समाधान ठीक प्रकार से नहीं हुआ तो यह कठिनाई हमेसा के लिए बनी रहेगी।   
           एक ही बिकल्प ''लोकतान्त्रिक हिन्दू राष्ट्र''जिसमे सभी जातियों के साथ कोई भेद-भाव नहीं तराई, मधेश, पहाड़ी, थारु, राई, लिम्बु, सवर्ण और अवर्ण सब हिन्दू सभी नेपाली, वास्तविकता तो यह है कि नेपाल में कोई प्रांतीय ब्यवस्था होना ही नहीं चाहिए छोटा देश है, लेकिन माओवादी देशद्रोही होते हैं यह बात नेपाली जनता समझ ही नहीं पायी और फंस गयी आज जो भी आंदोलन में हिंसा- हत्या हो रहा है उसके जिम्मेदार केवल और केवल माओवादी ही है उन्हें इसकी सजा मिलनी ही चाहिए वे नेपाल में अराजकता फ़ैलाने के सर्व प्रथम अपराधी हैं .   

विदेशी षडयंत्र, राजनेताओं के स्वार्थ का शिकार ''नेपाल''

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नेपाल विदेशी षड्यंत्र तथा राजनेताओं के स्वार्थ का शिकार---!

         नेपाल सार्वभौम सत्ता संपन्न देश भारत का सीमा देश है वास्तविकता यह है की भारत- नेपाल एक राष्ट्र दो देश है दोनों देशों की संस्कृति बोली भाषा धर्म सब कुछ एक है दोनों की मानवीय मान्यताएं भी एक हैं आज के हज़ारों वर्ष जब सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य चक्रवर्ती सम्राट हुआ करते थे उस समय यह भाग आर्यावर्त का एक अंग हुआ करता था पुराणों के अनुसार हिमालय भारत के बीचो-बीच स्थित था यानि तिब्बत कभी भारत का अंग हुआ करता था भारत के प्रख्यात समाजवादी नेता डॉ राममनोहर लोहिया कहते थे कोई उपासक अपने भगवन की कल्पना जहाँ वह रहता है वहीं का करता है इस नाते यदि हिन्दू समाज भगवन शंकर का निवास स्थान ''कैलाश-मानसरोवर''मानता है तो इससे यह सिद्ध होता है की तिब्बत भारत का हिस्सा हुआ करता था, नेपाल के प्रथम शासक अथवा संस्थापक भगवन कृष्णा थे उन्होंने काठमांडू की घाटी को रहने लायक बनाया भगवान पशुपतिनाथ की स्थापना भी उन्ही ने किया, आज के २५०० वर्ष पूर्व आदि जगतगुरु शंकराचार्य ने पुनर्प्रतिष्ठा कर पूजा -अर्चना की ब्यवस्था भी किया जिसमे दक्षिण से पुजारी आया जनकपुर से मैथिल ब्राह्मण अन्य पूजा के लिए लाए गए जो आज भी वहां मौजूद हैं। 
          नेपाल व भारत में जबसे चक्रवर्ती सम्राट की ब्यवस्था समाप्त हुई बिभिन्न राजे-रजवाड़े खड़े हो गए नेपाल में भी कोई ४६ रियासत हो गई मेवाड़ महारानी पद्मनी के जौहर के समय रावल कुम्भकरण ने नेपाल में राजसत्ता स्थापित की फिर कभी लिक्षवि वंश कभी वर्मन वंश का शासन हुआ और गुरु गोरखनाथ के आशीर्वाद से महाराजा पृथ्बी नारायण शाह ने पुनः नेपाल का एकीकरण किया तब से आज तक इस राजवंश का शासन चल रहा है, १८१५-१६ में 'ब्रिटिश भारत'और नेपाल में एक संधि हुई जिसमे वीरगंज से पूरब का भाग (बारा, पर्सा, रौतहट, धनुषा, सप्तरी, सिराहा जलेसर मोरङ) नेपाल को दिया और दार्जलिंग का भाग भारत में मिला लिया जिसे हम सुगौली संधि भी कहते हैं, १८४६ में अंग्रेजों के षड़यंत्र से नेपाल के राजा को काशी तीर्थयात्रा के दौरान गिरफ्तार कर लिया गया और उसी समय जंगबहादुर राणा श्री तीन की उपाधि ग्रहणकर प्रधानमंत्री और सेनापति स्वयं नियुक्त हो गए राजा स्वाभाविक रूप से गुलाम हो गया सब कुछ राणाओं की ही चलती थी, १८५७ से पहले अथवा उसी समय भारत के पंजाब में जलियावाला कांड हुआ जिसमे हज़ारों भारत आज़ादी के क्रन्तिकारी मारे गए, लखनऊ लूट हुई यह सब नेपाली शाही सेना ने किआ जिसका नेतृत्व जंगबहादुर राणा ने किया था अंग्रेज प्रसंद होकर 'बांके, बर्दिया, कंचनपुर, कैलाली'को नेपाल को दे दिया जिसे आज भी नया मुलुक कहते हैं, जब भारत आज़ाद हुआ तब १९५० में भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के हस्ताक्षेप से एक संधि के तहत राजवंश पुनः सत्ता में आया और महाराजा त्रिभुवन गद्दी पर बैठे नेपाल में चुनाव हुवा जिसमे वी.पी कोइराला पूर्ण बहुमत के साथ प्रधानमंत्री हुए उनके भारत से अच्छे सम्बन्ध थे यह बात राजा महेंद्र को अखरती थी उन्होंने योजनावद्ध तरीके से नेपाली कम्युनिष्ट पार्टी की स्थापना करायी वे चाहते थे भारत और चीन दोनों का संतुलन बनाया रखा जाय वे वामपंथी राजनीति को समझ नहीं पाये धीरे-धीरे दरबार में कम्युनिष्टों का प्रभाव बढ़ने लगा और नेपाली कमनिष्टों को 'रॉयल कम्युनिष्ट'कहा जाने लगा दरबारी और कम्युनिष्टों मे कोई भेद नहीं रह गया, १९५५ में स्विट्जर लैंड में राजा त्रिभुवन की मृत्यु हो गयी राजा महेंद्र का राजतिलक हुआ राजा हुए नेपाल और चीन के सम्बन्ध मधुर होने लगे राज़ा महेंद्र को हीन भावना ग्रंथि के कारण भारत और हिन्दुत्व दोनों से दूरी रखने लगे जिससे दुनिया भारत से अलग पहचान बनी रहे, राज़ा महेंद्र ने दो मंत्रियों (भोला झ जनकपुर, साने बाबू सुनसरी) को लगाया कि भारतीय सीमा पर मुसलमानों को बसाया जाय वे भली प्रकार जानते थे कि भारत का प्रथम शत्रु मुसलमान होता है, लेकिन उन्होने यह समझने मे भूल की कि मुसलमान सभी हिंदुओं को अपना शत्रु समझता है आज भारत-नेपाल सीमा पर आईएसआई, मखतब, मदरसों की बाढ़ सी आ गयी है जो नेपाल भारत दोनों के लिए सिर दर्द बना हुआ है यह नेपाल के स्वस्थ्य के लिए अच्छा नहीं हुआ । 
          १९६० में प्रधानमंत्री वीपी कोइराला का चीन में प्रवास हुआ उनके साथ एक बरिष्ठ सहयोगी भी गए थे उस समय नेपाल की सीमा हिमालय के उत्तर 'तिगणी नदी'तक था ज्ञातब्य हो की यह नदी हिमालाय के १६ किमी उत्तर बहती थी चीन के राष्ट्रपति ने वीपी कोइराला से कहा की आधा हिमालय सहित उत्तर का भाग चीन का है जितना चाहो धन ले सकते हो वीपी ने धन लेने से मन कर दिया कहा की मै तो चुना हुआ प्रधानमंत्री हूँ मुझे नेपाली जनता जिंदा नहीं छोड़ेगी और वे वापस आ गए कुछ दिन वाद 'टुडिखेल मैदान'में कांग्रेस पार्टी के एक कार्यक्रम से वीपी को गिरफ्तार कर लिया गया कहते हैं की बहुत कम रूपया लेकर राजा महेंद्र ने चीन को आधा हिमालय सहित टिगड़ी नदी तक का भाग चीन को दे दिया जबानी यह शर्त की चीन हमेसा ''मोनार्की''को समर्थन करता रहेगा, १९७१ में पाकिस्तान भारत का युद्ध जिसमे ''बंगलादेश''का निर्माण हुआ 'राजा महेंद्र'भरतपुर जंगल में शिकार हेतु गए थे यह सुनकर की पाकिस्तान युद्ध हार गया एक नया देश बन गया उनका हार्ट अटैक हो गया, राजा बिरेन्द्र नेपाल की गद्दी पर बैठे वे बड़े अच्छे लोकप्रिय राजा थे लेकिन दरबार की नीतियों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ १९९० में लोकतंत्र के लिए जन आंदोलन हुआ मोनार्की के बिरुद्ध नेपाली जनता खडी हो गयी बहुदलीय प्रजातंत्र की स्थापना हुई, राजा तो बिरेन्द्र थे लेकिन सेना पर पकड़ ज्ञानेन्द्र की थी नेपाल का स्वाभाव आंदोलन का है प्रत्येक दस से पंद्रह साल में आंदोलन लोकतांत्रिक नेताओं के प्रति अविस्वास के कारन १९९६-९७ माओवादी हिंसक जनांदोलन शुरू हो गया लोगो का मत है को कहीं न कहीं राजा ज्ञानेन्द्र का समर्थन था 2001 में राजा बिरेन्द्र की हत्या राजा ज्ञानेन्द्र राजा हुए जिसका लाभ उठाकर माओवादियों हिंसा हत्या का तांडव मचा दिया, राजा ज्ञानेन्द्र को दिल्ली ने यह समझने का प्रयास किया की वे और लोकतंत्रवादी एक हो जाय लेकिन राजा के गले यह बात नहीं उतरी इस कारन माओवादी और लोकतंत्रवादी एक हो गए परिणाम 'मोनार्की'समाप्त हो गयी राजा ज्ञानेन्द्र सभी अधिकारों से मुक्त हो गए २००८ में नेपाल 'धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र'घोषित हुआ। 
            माओवादी सत्ता में आये नेपाली जनता को इनसे बड़ी उम्मीद थी लेकिन माओवादियों के जो भी ब्यूरो के सदस्य थे सभी रातो-रात करोङपति हो गए, तराई के आंदोलन पर कब्ज़ा करने वाले उपेन्द्र यादव ने भी कहा की मैं तो माओवादी ही हूँ तराई की जनता भी अपने को ठगा महसूस करने लगी, हिंसा- हत्या का दौर थम तो गया लेकिन जनता को कुछ नहीं मिला, केवल नेता चाहे तराई के चाहे पहाड़ के हो अथवा राजा, किसी ने नेपाल देश, नेपाली संस्कृति व धर्मकी चिनता नहीं की, वर्तमान का जातीय आंदोलन केवल इसलिए है की कहीं हिन्दू राष्ट्र न घोषित हो जाय या देश एक न हो जाय इन्हे नेपाली एकता और देश की एकता से खतरा है आखिर किसको है इससे खतरा ? तो विदेशी मिशनरियों को ही खतरा हो सकता है वे इस समय अत्यधिक सक्रिय हैं। 
          नेपाल की वास्तविकता यह है की चाहे राजा हों या नेता सभी नेपाली जनता की निगाह में अविस्वस्नीय हो गए हैं आखिर राजा महेंद्र ने ही 'आधा हिमालय सहित तिगड़ी नदी'तक का भूभाग चीन को दे दिया यह तो कोई देश भक्ति नहीं राजा बिरेन्द्र ने भी एक बड़ा भूभाग चीन को दे दिया यह भी कोई देश भक्ति नहीं है माओवादियों ने देश के आधारभूत ढ़ाचा को नष्ट किया, हज़ारों सैनिको की हत्या की, सरकारी हॉस्पिटल, स्कुल और सरकारी संस्थानों को नष्ट करना कोई देश भक्ति का काम तो नहीं है जातीय नाम पर देश बिखंडन करना  सभी जातियों को स्वायत्तता के नाम पर देश बिरुद्ध करना, आज जो लोकतान्त्रिक दाल सत्ता में हैं वास्तविकता यह है की नेता उस योग्य नहीं की वे देश सम्हाल सके जनता को आस्वस्त कर सकें जनता को लगता है की इस प्रकार प्रांतीय ब्यवहार से हमारा कोई लाभ नहीं आखिर क्यों चाहिए प्रान्त ! यदि प्रान्त चाहिए तो उसकी स्वस्थ रचना बनानी चाहिए जिसपर जनता विस्वास कर सके। 
          आंदोलन ही आंदोलन आखिर क्यों वास्तविकता यह है की नेपाल में जब भी देश की एकता हिंदुत्व की एकता का आंदोलन शुरू होता है तो विदेशियों का दर्द शुरू हो जाता है आंदोलन इसमे है आखिर हिन्दू का भाव मजबूत होगा तो भारत नेपाल की एकता मजबूत होगी लेकिन इससे किसको कष्ट है ! तो ध्यान देने योग्य बात है कि नेपाल में २2-२५ देशों कि एम्बेशी का क्या काम है वे क्या करतीं हैं वे सबके सब नेपाल में रहकर भारत पर निगाह रखने का काम करती हैं वे बिभिन्न प्रकार के बिखण्डनवादी आंदोलन को बढ़ावा देने का काम करती हैं, कहते हैं कि ''लाठी मरने से पानी नहीं फटता''नेपाल और भारत दो देश होते हुए दोनों कि आत्मा एक है इसी से कष्ट था दरबार को, माओवादी को और बिभिन्न राज दूतावासों को हिन्दू संगठन से इनका पेट दर्द कर रहा है एक बार पुनः दरबारी लेखक माओवादी पत्रकार सक्रिय हैं वे समझ नहीं प् रहे हैं कि भारत बिरोध करते-करते हिन्दू बिरोध हो जा रहा है जो नेपाली अस्मिता का बिरोध हो जा रहा है यह समझने कि आवस्यकता है ईश्वर ने हमें एक बनाया है आप अलग नहीं कर सकते।     
             
    

भारत को स्मार्ट सिटी नहीं स्मार्ट (वैदिक) गांव की आवस्यकता -------!

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 स्मार्ट सिटी नहीं (वैदिक) स्मार्ट गाँव --------!
           भारत गावों का देश है यहाँ हमारे ऋषियों- मुनियों ने बड़ी ही शोध करके गावों की रचना की है हमारे देश में किसी ऐसे राजा का नाम नहीं जिसने कुछ नहीं किया बल्कि संतों और साधकों को याद करने वाला देश है भारत यहाँ राजा पृथु, राजा जनक जैसे राजा हुए जिन्होंने गाव नगरों की रचना की जिन्होंने हमें कृषि करना सिखाया गाय हमारी माता है यह जन -जन में आस्था ब्याप्त हो गयी। 
        हमारे महापुरुषों ने एक ऐसी संरचना खड़ी की जहाँ प्रत्येक गांव स्वायत्तशासी और स्वावलम्बी हुआ कहीं कुछ बाहर से मगाना नहीं पड़ता था ऐसी ब्यवस्था बनायीं थी इसी कारण भारत चक्रवर्तियों का देश कहलाता था जिसे 'सोने की चिड़िया'कहा जाता था, हमारे गांव में कोई बेरोजगार नहीं था एक परिवार में जो खेती होती थी उसमे सब्जी से लेकर अपने उपयोग का सभी सामान अपने खेत में पैदा करता था बाहर पर केवल नमक अथवा मिटटी का तेल की ही निर्भरता रहती थी, कभी-कभी बिना मिटटी तेल के भी काम चलता था, प्रत्येक गांव में गुरुकुल, गांव को संगठित, संस्कारित रखने वाला पुरोहित, नाई, धोबी, बढ़ई, कोहर और लोहार गांव का खेती करने वाला किसान किसी भी वर्ण का होता फसल होने पर वर्ष में दो बार अपने उपज का एक हिस्सा इन्हे (परजा-पौनी) को देता था जिसके बदले वह वर्ष भर लोहार लोहे काम, बढ़इ लकड़ी का काम, कोहर मिट्टी का काम ऐसे त्यो-त्योहारों पर वर्ष भर संबंध संपर्क बना रहता था समाज की ऐसी वैदिक कालीन ब्यवस्था बनी थी यानी खेती के उपज का दशांश समाज को देना होता था सभी रोजगार युक्त कोई बेरोजगार नहीं इस प्रकार पूरा गांव संगठित होता था।
         क्या हम राजा पृथु, राजा जनक अथवा महराज भरत के इन गाओं की संरचना को भुला देना चाहते हैं ? जहाँ वेदों के गान गुरुकुलों में होते थी जिससे भारत की आत्मा पहचानी जाती थी, हम शहर के बिरोधी नहीं लेकिन क्या हम देश की ७५% जनसँख्या जो गांव में रहती है उसकी उपेक्षा कर सकते हैं ? क्या हम गांवों को समाप्त करना चाहते हैं अथवा हमारी संस्कृति जिसे ऋषियों महर्षियों ने गांव आधारित बनाया उसका शहरी करण कर समाप्त करना चाहते हैं ? क्या हम भारत को अमेरिका बनाना चाहते हैं ? यह कोरी कल्पना है! हम नहीं चाहते कि भारत से गांव समाप्त किये जांय, आज आवस्यकता है कि गुरुकुलों को आधुनिक बनाकर प्रत्येक गांव को सुबिधा युक्त किया जाय जब अच्छी शिक्षा, बिजली और पानी गांव में होगा कोई गांव वाला शहर की तरफ मुख नहीं करेगा इसलिए प्रत्येक गांव को सुबिधा युक्त बनाया जाय प्रत्येक गांव में संस्कृत की शिक्षा अनिवार्य किया जाय जिससे हम अपनी अमूल्य धरोहर को पढ़ सके अत्याधुनिक गुरुकुल, मंदिर, तालाब गौशाला, धर्मशाला, चारागाह, स्वयं सहायता समूह द्वारा बैंकिंग और चिकित्सालय युक्त कर स्मार्ट सिटी नहीं तो उत्कृष्ट गांव बनाया जाय जिसमे कोई बेरोजगार नहीं होगा।
         आज देश के कई प्रांत गाँव विहीन हो गए हैं गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा ऐसे तमाम प्रान्तों से गाँव समाप्त हो रहे हैं इस कारण इसलिए यहाँ उदारता समाप्त हो रही है गाँव के रिश्ते समाप्त हो रहे हैं, हमारे पूर्वजों ने जिस संस्कृति का निर्माण किया जिसमे परिवार संस्था प्रमुख है जहाँ भाई- बहन, चाचा- चाची, मामा- मामी, फुवा-फूफा, मौसी-मौसा, ऐसे हमने गांव की सभी लड़कियों को बहन माताओं को चाची हमने जाती का विचार नहीं किया ये रिश्ते हमारी जातियों से ऊपर थे कोई भी चाहे जिस जाती का था वह उसके गांव की लड़की जिस गांव में ब्याही है पानी नहीं पीता था हमारा समाज इन अनुठों रिश्तों से बधा हुआ था, क्या हम इन रिश्तों की कल्पना स्मार्ट सिटी में कर सकते हैं हमें लगता है नहीं गांव से शहर जाते-जाते सारे रिश्ते तार -तार हो जाते हैं भारतीयता से दूर होते जाते हैं, क्या हम अपने समाज को जानवरों की भाति बनाना चाहते हैं नहीं हमारे पूर्वजों जो जो थाती, वैभवशाली परंपरा, संस्कृति हमें दी है उसे हम संजो-सम्हाल कर और उत्कृष्ट बनाएंगे जहाँ रिश्ते होंगे मानवता होगी जिसमे केवल मनुष्य ही नहीं जीव-जंतु, पशु-पक्षी और पर्यावरण सभी की चिंता सब-कुछ अपने-आप समृद्ध समाज का निर्माण होगा।       

नासिक कुम्भ राष्ट्रीय एकता का महामंत्र---!

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Image result for नासिक कुम्भ मेला 2015कुम्भ केवल आध्यात्मिक नहीं राष्ट्रीय महत्व का भी है --!
आज १२ सितम्बर को नासिक कुम्भ में आने का सौभाग्य प्राप्त हुआ लाखों लोग बिना किसी सुबिधा खोजे अपना सीधा-भूका बंधे चले आ रहे हैं आखिर इसके लिए कौन सा विज्ञापन अथवा प्रचार होता है ! जिस कारण कुम्भ में लाखों ही नहीं करोणों हिन्दू जन- मानस इकठ्ठा होता है साधु-संतों के अखाड़ों तथा तमाम समाज सेवी बड़े-बड़े पंडाल लगा तीर्थ यात्रियों हेतु रहने भोजन की ब्यवस्था में लगे रहते हैं देश का कोई भी ऐसा संत, आचार्य, जगतगुरु अथवा महामण्डलेस्वर, शंकराचार्य नहीं है जो इस कुम्भ में न आये, यहाँ दान देना सौभाग्य का विषय माना जाता है यह मेला जब 'गुरु- सिंह राशि होता है सूर्य और चन्द्र राशि'मे हों तब नाशिक मे कुम्भ का आयोजन किया जाता है यह कुम्भ 'गोदावरी- गंगा'के किनारे 'तिरम्बकेश्वर' 25 किमी तक विशाल क्षेत्र में फैला रहता है, ययहां 'शैव मत'तिरम्बकेश्वर तथा 'वैष्णव'नासिक में ऐसे दोनों के अलग-अलग समागम होता है लेकिन विहिप व धर्मजागरण के प्रयासों से संत सम्मेलनों में सभी मत एक साथ आते हैं विचार विमर्श करते हैं, यह विश्व भर के हिंदुओं का सबसे बड़ा पर्व रहता है । 
कुम्भ क्यों-----!
पौराणिक कथा है की क्षीर सागर में समुद्र मंथन हुआ था जिसमे 'विष और अमृत'दोनों निकला था ये 'क्षीर सागर'गंडक नदी के पूर्व वैशाली व गंगाजी के उत्तर में था यहीं पर समुद्र मंथन हुआ था आज का उत्तर बिहार व हिमालय ही वह स्थान है जिसका प्रमाण के रूप में बिहार के बांका जिला में 'मंदार पर्वत'खड़ा है जिसको लेकर मंथन हुआ था आज भी उसमे सर्प की घिरारी पड़ी हुई है, यहीं पर वासुकीनाथ भी स्थित हैं नारायणी नदी इसका प्रमाण है अमृत घड़े को लेकर देवराज इन्द्र जब निकले तो जहाँ-जहाँ अमृत छलक  वहां-वहां कुम्भ लगता है ये स्थान हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक है प्रत्येक बारह वर्ष पर कुम्भ और प्रत्येक छह वर्ष पर अर्ध कुम्भ लगता है इस वर्ष नासिक का कुम्भ है जिसमे भारतीय मत, पंथ, विचार, परंपरा के सभी मुखिया इकठ्ठा होते हैं भारतीय समाज को कैसे संस्कारित करना है हिन्दू हित, राष्ट्र हित, राष्ट्रीय एकता के लिए क्या- क्या करना सब कुछ तय होता था भारत की नगर, ग्राम ब्यवस्था, परिवार ब्यवस्था, समरसता सभी विषयों पर चिंतन होता था वास्तव में यही कुम्भ है।
यह समरसता का पर्व है ---!
सम्पूर्ण भारत वर्ष ही नहीं पुरे विश्व का हिन्दू समाज बिना किसी भेद-भाव के कुम्भ में आता है कोई किसी की जाती, मत, पंथ, भाषा नहीं पूछता सभी एक दूसरे की सुबिधा का ध्यान रखते हैं सभी एक दूसरे की सेवा में अपने मुक्ति का मार्ग खोजते हैं सभी संतों के पंडालों में आध्यात्मिक चर्चा ही नहीं तो राष्ट्रीयता देश भक्ति का प्रबल प्रवचन होता है लगता है की देश भक्तों का मेला लगा हुआ है कोई भी तीर्थ यात्री किसी भी सरकार से किसी प्रकार की अपेक्षा नहीं रखता वह अपने खर्चे आता है किसी का वह कुछ नहीं लेना चाहता भक्तिमय वातावरण में रहता है सबके अंदर ईश्वर का ही दर्शन करता है।
राष्ट्रीय एकता का पर्व-----!
भारत के कोने-कोने से सभी पंथों के जगत गुरु शंकराचार्य, रामनुजाचार्य, रामानंदाचार्य, बल्लभाचार्य, गोरक्ष परंपरा, कबीर, नानक, रबिदास, आर्य समाज, रामकृष्ण मिशन, गायत्री परिवार, गौरिया मठ, वारकरी मत, स्वामिनारायण ऐसे सभी मत-पंथ यहां इकठ्ठा होते है, शास्त्रार्थ की परंपरा रहती है शास्त्रार्थ के द्वारा अपने- अपने मत की श्रेष्ठता सिद्ध की जाती है, यह वास्तव में भारत का राष्ट्रीय कुम्भ होता है जो इस कुम्भ में शामिल होता है वे सभी भारतीय मत को पुष्ट करते हैं, लेकिन आज भी दुर्भाग्य का विषय है की कुछ मत पंथ कुम्भ में शामिल नहीं होते आखिर वे कब-तक अभारतीय बने रहेंगे इस्लाम और ईसाई मत के लोग कुम्भ में आने को तैयार नहीं वे अपना मत भारतीय मत में शामिल नहीं करना चाहते ये कब -तक यदि उन्हें भारत स्वीकार है तो उन्हें भारतीय परंपरा को स्वीकार करना होगा उन्हें इस राष्ट्रीय कुम्भ में शामिल हो सिक्ख, बौद्ध और जैन परंपरा के सामान राष्ट्रीयता का अंग बनाना चाहिए।
कुम्भ का अद्भुत दृश्य-----!
आज प्रातः ४ बजे के पहले से ही संतों अखाड़ों के महंतों जगत गुरुओं तथा महामण्डलेस्वरों का अपने-अपने शिष्यों के साथ सवारियां निकल रही थी जैसे राजे- महाराजाओं की सवारी निकल रही हो, अद्भुत छटा है जैसे साक्षात 'देवराज इन्द्र'उतर आये हों सभी 'गोदावरी गंगा'के 'राम कुण्ड'की तरफ बढ़ रहे हैं, आज भारत के इस राष्ट्रीय एकात्मता के महाकुम्भ में लाखों श्रद्धालु स्नान करने वाले हैं ''धर्म''भारत की आत्मा है यदि भारत को जगाना होगा तो धर्म को जगाना होगा हमारे पूर्वजों ने इन्हीं परम्पराओं द्वारा भारत को बार-बार जगाने का प्रयास किया, आज हम लाखों करोणों की संख्या में इस समरसता- राष्ट्रीयता के महाकुम्भ में डुबकी लगा रहे हैं, हरिद्वार के कुम्भ में सात करोड़, प्रयाग में नौ करोड़ श्रद्धालुओं ने स्नान किया, लेकिन वह दिन कब आएगा जब इस्लाम और ईसाई मतावलम्बी भी इस महाकुम्भ के अंग होंगे ! कब वे अरब और रोम की राष्ट्रीयता से पलड़ा झाडेंगे, आज राष्ट्रीयता का महान युग है जिसमे हम इन मतावलम्बियों को अछूत न समझे लेकिन यह कब होगा जब वे अपने को मलेक्ष-पन से मुक्ति पाएंगे ये मुक्ति भी कब मिलने वाली है जब वे इस महाकुम्भ के अंग होंगे------!   
     

नेपाल के सभी लोग भारत वंशी-------!

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            नेपाल देश स्वाभाविक आर्यावर्त का ही एक हिस्सा है भारतवर्ष में जो सोलह जनपद थे उसमे से एक जनपद था स्वाभाविक ही है की सभी लोगो का पूरे भारतवर्ष में राजनयिक तथा धार्मिक दृष्टि से तीरथ यात्रा हेतु चारो धाम, द्वादश ज्योतिर्लिंग दर्शन हेतु आना जाना था और आज भी परंपरा कायम है बिना पशुपति नाथ दर्शन के द्वादश ज्योतिर्लिंग के दर्शन का पुण्य नहीं मिलता इसी प्रकार बिना मुक्तिनाथ दर्शन के चारो धाम का पुण्य प्राप्त नहीं होता यह सब हमारे पूर्वजों ने आदि शंकराचार्य ने हम धार्मिक दृष्टि व राष्ट्रीय दृष्टि से एक हैं यह ब्यवस्था बनायीं, कहते हैं की भगवन श्री कृष्णा ने प्रथम काठमांडो नगर को बसाया उन्होंने ही भगवन पशुपतिनाथ की स्थापना की.
           हम सभी को ज्ञात है नेपाल पहाड़ व जंगल प्रदेश था धीरे-धीरे यहाँ जन- जीवन आया इतिहास बताता है कि जिस समय महाराजा पृथ्बीराज चौहान और कन्नौज का पतन हुआ उस समय जो राजस्थान से पलायन हुआ प्रथम नेपाल में आने वाले प्रथम राजपूत, कनौजिया ब्राह्मण और थारु थे दूसरी बार जब महारानी पद्मिनी जौहर हुआ उस समय रावल कुम्भकरण जो रावल रतन सिंह के भाई थे यहाँ आकर राज्य स्थापित किया जिसकी वर्तमान राज़वंश की ४४वीं पीढ़ी है, दूसरी बार भी थारु और कनौजिया ब्राह्मण आये, एक बार और भारत में बिप्लव हुआ तब भी पलायन हुआ पानीपत के तीसरे युद्ध जिसमें मराठों की पराजय हुई हम सभी को ज्ञात है की मराठे अजेय थे, वे चले थे युद्ध जितने के पश्चात हरिद्वार स्नान करेंगे काशी दर्शन कर प्रयाग संगम स्नान कर वापस जायेगे लेकिन बिधि ने कुछ और ही लिखा था पराजय के पश्चात मराठे हिमालय गए आज वे नेपाल और उत्तराखंड में हैं इसी कारन नेपाल के पहाड़ में कहीं भी नाउ, धोबी इत्यादि जातियां नहीं पायी जातीं इस प्रकार पहाड़ में जो भी ब्राह्मण है या तो कनौजिया या मराठी ब्राह्मण पाये जाते हैं राजपूत भी राजस्थान और महाराष्ट्र के पाये जाते हैं, अधिक जानकारी हेतु अपना 'डीएनए'टेष्ट कराना चाहिए .
           इस कारन यह कहना कठिन है कि केवल तराई के लोग ही भारतीय मूल के हैं पहाड़ और तराई सभी लोग भारतीय हैं, आर्य हैं, सभी का खून एक है कोई थोड़ा पहले आया, कोई थोड़ा देर से नेपाल गया बस इतना ही अंतर है, नेपाल की असली समस्या क्या है ! सभी अपने को असली नेपाली सिद्ध करने के लिए भारत का बिरोध यह क्रम राजा महेंद्र ने शुरू किया था भारत बिरोध नेपाली राष्ट्रीयता बन गयी उन्होंने ही वामपंथियों की स्थापना करायी दरबार से बेतन देकर कम्युनिस्ट पार्टी को बढ़ाने का काम किया इसी कारण नेपाली कम्युनिष्टों को रॉयल कम्युनिष्ट कहा जाता है, आज नेपाल की यह सबसे समस्या है! कौन कितना बड़ा देश भक्त है यह साबित करने के लिए उसे उतना ही भारत बिरोध करना पड़ता है इससे तो भारत की हानी कम नेपाल का नुकसान अधिक है यह विचार नेपालियों को करना चाहिए .
        आज भी नेपाल के अंतर्मन में हिन्दू धारा बह रही है तराई पहाड़ जनजाति सभी हिंदुत्व के कारण एक है हिंसा हत्या को छोड़कर मधेशीयों के साथ दोहरा ब्यवहार बंद करना चाहिए क्योंकि सभी के पूर्वज, संस्कृति, महापुरुष, त्यौहार, पर्व और तीर्थ सब कुछ एक है यही सबको जोड़ता है यही नेपाल की राष्ट्रीयता भी है हमें लगता है की नेपाल के पास यही एक रास्ता है न कि गोली बन्दुक !          

अकबर और मीना बाजार

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             भारत में देश व संस्कृति बिरोधी इतिहासकारों की कमी नहीं रही है कोई अंग्रेज भक्त (चर्च+इस्लाम) इतिहासकार, कुछ प्रगतशील सेकुलर इतिहासकार, कोई वामपंथी इतिहासकार ऐसे अनेक प्रकार के देशद्रोही इतिहासकार हैं जो  भारत भारतीयता से कोई मतलब न रखते हुए इस संस्कृति के बिरोध में ही अपनी मर्यादा समझते हैं, जब देश में शंघर्ष काल था हमारे क्रन्तिकारियो को विजय श्री मिलने ही वाली थी कि हमारे राष्ट्रवादी इतिहासकार कोई भागवत दत्त होंगे, कोई के.एम. मुंशी रहे होंगे, सत्यकेतु विद्यालंकार जैसे राष्ट्रवादी इतिहासकार भी थे जिन्होंने देश का सच्चा इतिहास लिखा 'भारत का बृहत्तर इतिहास', वैदिक वांग्मय का इतिहास रामायण महाभारत आधारित इतिहास लिखे गए थे दुर्भाग्य ऐसा था कि देश का प्रधानमंत्री गैर भारतीय होने से वामपंथियों द्वारा रचित इतिहास लिखा गया वही पाठ्यक्रम में लागु हुआ, जो अकबर केवल २०० से ४०० वर्ग किमी का शासक था उसे पुरे भारत का शासक बता दिया गया जिस मेवाड़ का शासन अफगानिस्तान से लेकर मालवा तक था उसे इतिहास ने स्थान नहीं दिया और अकबर को महान बताया गया यदि अकबर महान था तो महाराणा क्या थे ? क्या प्रत्येक भारतियों के घरों में अकबर का चित्र लगता है नहीं भारतीहृदय स्थल पर तो महाराणा प्रताप ही महान हैं वे ही प्रत्येक भारतीय के घरों में दिलों में वसते हैं। 
         एक मेरे मित्र ने मुझसे पूछा कि अपने एक फोटो फेसबुक पर लगाया है जिसमे एक राजपूतानी किरण देवी अकबर के सीने पर चढ़ी हुई है इसका मतलब क्या है मै उसे ही बताना चाहता हू बाबर नामा अथवा अकबर नामा कोई इतिहास नहीं यह तो उनकी प्रसंसा के भाड़वा गीत के अतिरिक्त कुछ भी नहीं, अकबर कितना कमीना था इसका अंदाजा इससे आप लगा सकते है कि वह अपने राजधानी में 'मीना बाजार'लगवाता था जिस मीना बाजार में केवल हिन्दू लड़कियां ही जाती थी अकबर महिला वेश में उस बाजार में जाता था किसी न किसी हिन्दू क्षत्राणी को अपने हरम का शिकार बनाता था एक दिन एक क्षत्राणी किरण देवी जो अकबर के दरबारी कि पत्नी थी शिकार बानी जब उसे अपने हरम में ले गया तो उस क्षत्राणी उसके छाती पर सवार हो कटार निकाल ली अकबर को ऐसे उम्मीद नहीं थी वह निश्चिन्त था जब रानी सीने पर हमला किया तो अकबर ने क्षमा मांगी और फिर कभी मीना बाजार न लगवाने कि कसम खायी इसलिए वह महान कैसे हो सकता है वह तो कमीना था नकि महान। 
 मा अटल जी की एक कबिता है ----------!
     बाबर के पुत्रों से पूछो क्या याद तुम्हें मीना बाज़ार--------!    

गो माता, भारतीय संस्कृति और सेकुलर नेता---!

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भारत में कन्याकुमारी से कश्मीर और अटक से कटक तक में एक ही नारा है--!
गाय हमारी माता है, देश -धर्म का नेता है-----!
            गाय से हमारा नाता क्या है क्या विशेषता है इसमे पूरा देश बिना के वैतरणी यानी मोक्ष की कल्पना क्यों नहीं करता ! जब -तक  हम यह नहीं समझगे तब -तक भारतीय चिंतन भारतीय राष्ट्र और भारत समझ मे नहीं आयेगा, महाभारत सहित वैदिक ग्रन्थों मे उद्धहरण है की इस धरती के प्रथम राज़ा वेन थे एक समय आया वे अत्याचारी हो गए ऋषियों के समझाने पर न माने ऋषियों ने कुशा से उनकी हत्या कर दी फिर ऋषियों को लगा की बिना राजा के धरती का शासन कैसे चलेगा ऋषियों ने उनकी शरीर का मंथन किया उनके दायें भाग से एक काला पुरुष आया वह जल क्षत्रिय हुआ जिसे आज हम मल्लाह केवट इत्यादि कहते है, बाएँ अंग से एक गोरा चिट्टा पुरुष आया जो राजा बनाने योग्य था जो महाराजा पृथु के नाम से प्रसिद्ध हुआ वे धरती के प्रथम राज़ा थे जिनहोने अपनी प्रजा के सुखी- संपन्नता हेतु सपथ ग्रहण किया।
           एक बार धरती पर अकाल पड़ा राजा पृथु को लगा की अपने जनता की रक्षा कैसे करे उसने धनुष-बाण उठाया की मै धरती को ही नष्ट कर दूंगा तब-तक धरती गाय का स्वरूप धारण कर राजा के सामने आ गयी राजा ने उसका पीछा किया गाय ने राजा से कहा हे राजन मै पालन करुगी आपके जनता की, मेरे बछड़े से खेत की जुताई होगी दूध-दहि से पकवान बनेगा चुकि धरती ने गाय का रूप धारण किया था इसी कारण राजा ने उसे अपनी पुत्री माना तब से इस धरती का नाम पृथबी पड़ा और गाय को समाज माँ के रूप मे देखने लगा।
           ऋग्वेद मे गाय को बार-बार अघन्या-अवध्या कहा गया है, इन्द्र स्वयं अघन्या के स्वामी हैं इन्द्र गायों के रक्षक हैं ऋग्वेद मे कहा गया है की गायें ही इन्द्र हैं ''इमा या गावः स जनास इन्द्र'', कहते हैं की शत्रु भी इन्हे शस्त्र से इन्हे हानी नहीं पहुचा सकते, गाय ''सहस्त्रधारा पायसा'''है, सहस्त्रधाराओं मे दूध देती हैं, गाय का दूध दुर्बुद्धि दूर करती है -''गोमिष्टरेमंतीन दुरेवाम'', 'अथर्वेद मे कहा गया है कि जिस देश मे गाय परेशान होती है उस राष्ट्र का तेज शून्य हो जाता है,वहाँ वीर जन्म नहीं लेते, गाय को पीड़ित करना क्रूरता है राज़ा से अनुरोध है कि गाय त्रिसकृत न किया जाय'। आज के पाँच हज़ार वर्ष पहले भगवान श्रीकृष्ण ने गाय को माता मानकर गोपालक बने आज भी पूरा भारतीय समाज उन्हे 'गोपाल'के नाम से जानता है, महात्मा गांधी ने कहा की यदि एक दिन के लिए भी मुझे सत्ता मिल जाय तो मै पूर्ण गो बध बंद कर दूंगा, संविधान निर्माण के समय डॉ भीमराव अंबेडकर ने संविधान मे गोरक्षा हेतु संविधान की धारा का निर्माण किया, भारत गौ, गंगा,और गायत्री के नाते जाना जाता है और यही हमारी पहचान है, स्वतंत्र भारत मे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंद्रा गांधी के समय पूज्य शंकरचार्यों, करपात्री जी महराज, प्रयाग के पूज्य प्रभुदत्त ब्रांहचारी जी महराज एवं संघ के प पू श्री गुरु जी के नेतृत्व मे गोरक्षा हेतु बहुत बड़ा देश ब्यापी आंदोलन चला, समय-समय पर गोरक्षा हेतु आंदोलन चलते रहे हैं भारत मे हमेशा गो मांस पर प्रतिबंध रहा है ।
        भारत के सेकुलर नेता क्या चाहते हैं वे भारत से भारतीयता को समाप्त करना चाहते हैं इसी कारण समय -समय पर वे लोग गो मांस की डिमांड करते हैं, जब देश आज़ाद हुआ तो कांग्रेस और वामपंथियों मे एक समझौता हुआ सत्ता कांग्रेस के पास बौद्धिक संस्थान वामपंथियों के पास 1951 से यह सम्झौता चला आ रहा है बौद्धिक संस्थान ने संस्कृत को मृत भाषा घोषित करने का काम किया बार-बार वीफ को लेकर हँगामा इतना ही नहीं अभिब्यक्ति के नामपर हिन्दू देवि-देवताओं का अपमान कर हिंदुओं को सारे-आम अपमानित करना स्वभाव बन गया है, मैक्समूलर जैसे अर्ध ज्ञानियों की पुस्तकों जो हिन्दू बिरोधी लिखी गयी हैं उसे आधार बनाने का प्रयास किया जाता है, स्वामी दयानन्द सरस्वती मैक्समूलर के बारे मे कहते थे जैसे 'अन्धो मे कनवा राजा'जहां कोई संस्कृत नहीं जनता वहीं का विद्वान मैक्समूलर बन सकता है न कि भारतीय वांगमय का, वामपंथी ही नहीं सेकुलरिष्ट भी 'सजनी हमहू राजकुमार'बनाने लगे, चाहे लालू प्रसाद यादव हों या रघुवंश ये कौन सा वेद पढे हुए हैं ये संस्कृति का एक शब्द का शुद्ध उच्चारण नहीं कर सकते ''वेद''पढ़ने को कौन कहे ! सेकुलरिष्ट नेताओ का उद्देस्य हमारे ऋषियों-मुनियों को गोमांस भक्षी बता हिन्दू समाज और भारत का अपमान करने के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं, वामपंथी और सेकुलर यदि यह समझते हों कि ऐसा करने से वे भारत का सारे आम अपमान कराते रहेगे और हिन्दू समाज चुप रहेगा यह संभव नहीं ऋग्वेद मे लिखा है कि जो गाय का बध करता है उसका उसी प्रकार बध कर देना चाहिए, वेद ईश्वर प्रदत्त ग्रंथ है अपौरुषेय है, वह ईश्वर की आज्ञा है, अंत मे हिन्दू समाज को स्वयं इस विषय पर विचार पूर्बक निर्णय करना होगा।                             

बीजेपी कहाँ हारी है, हारे तो उसके नेता हैं ------!

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चुनाव और बीजेपी -------!
         चुनाव समाप्त हो गया अब समीक्षा की घडी है
सभी अपने -अपने प्रकार से समालोचना कर रहे हैं लेकिन आलोचना स्वस्थ होनी चाहिए नीतीश कुमार तो जुलाई से ही चुनाव लड़ रहे हैं विद्यालयों में ड्रेस, सायकिल, व अन्य सामानों की नकद भुगतान किया गया, जब सुखा पड़ा तो नीतीश ने सभी बैंकों द्वारा सभी पीड़ित किसानोंको नकद भुगतान कराया उन्होंने महिलाओं को ३३% आरक्षण की घोषणा की वे बड़ी मीठी जुबान से सबको सम्मोहित करते रहे कभी भी जुबान को ख़राब नहीं किया। 
        उलटे बीजेपी ने क्या किया उसके भी कार्य की समीक्षा करनी होगी ! बीजेपी के १८ महीने की सरकार की समीक्षा से ध्यान में आता है की ठीक चुनाव के समय रेलवे ने प्लेट फार्म टिकट की कीमत २० रु. कर दी देश में गरीब को २० रु भारी पड़ता है, हम पहले से कहते आ रहे हैं की ब्यूरोकेट केंद्र सरकार को पचा नहीं पा रहे हैं, ठीक चुनाव के समय सोनपुर, हाजीपुर व समस्तीपुर में स्टेसनों के मंदिरों को तोडा जाना परंपरा से होती हुई दुर्गा पूजा को बंद कराना, क्या केंद्र सरकार चुनाव ऐसे ही जितना चाहती थी'बीएसएनएल'से काल होना कितना कठिन है सभी को पता है मंत्री क्या करते हैं कुछ पता नहीं चलता, प्रसार भारती में जब बीजेपी की सत्ता आई तो कोई बीजेपी व संघ वाला नहीं मिला तो स्थान-स्थान पर उन्ही वामपंथियों को ही स्थान दिया गया मुजफ्फरपुर व पटना संघ कार्यालय को पता ही नहीं है की जिनकी नियुक्ति हुई है वे कौन लोग हैं ? कहाँ से आए हैं ! क्या इसी प्रकार केंद्र सरकार के मंत्री चुनाव जीतना चाहते थे ! महगाई चरम पर हैं प्याज, दाल की कीमत घटाई नहीं जा सकती थी १९७७ में मोरारजी देसाई ने कैसे महगाई पर लगाम लगायी थी,  डिजटल इंडिया, मेकिंग इंडिया, बुलेट ट्रैन, स्मार्ट सिटी कौन जानता है बिहार में, बिहार में तो रोजगार चाहिए, रोटी चाहिए, बाढ़, सुखाका हर्जाना चाहिए लेकिन केंद्र के मंत्रियों को कोई होस है ! उनके विभाग में क्या हो रहा है उन्हें खुद पता नहीं !
         जिस अरुण जेटली ने चुनाव हारने, केंद्र में मंत्री बनने के पश्चात दिल्ली  को हराने का श्रेय उन्ही को जाता है असल में वही बिहार के वरिष्ठ सलाहकार हैं उनके सिपहसालारों ने बिहार को ढहा दिया यह बात बीजेपी को समझ में नहीं आती, आरोप प्रत्यारोप का दौर जारी है कोई कहता है की आरएसएस के सरसंघचालक के बयान से बीजेपी हार गयी उनका बयान कब आया किसी को मालूम है ! उनका बयान दूसरे चरण के चुनाव के पश्चात आया तो प्रथम चरण में भागलपुर, समस्तीपुर, बेगुसराय, दूसरे चरण में औरंगाबाद, रोहतास इत्यादि जिले आते हैं क्या बीजेपी इन क्षेत्रों में जीती है! समस्तीपुर और बेगुसराय में तो खाता ही नहीं खुला क्या इस पर बीजेपी विचार करेगी इसलिए यह कहना की संघ के सरसंघचालक के बयान का चुनाव पर असर पड़ा बिलकुल गलत है, समीक्षा तो होनी चाहिए की रीढ़ विहीन नेताओं की जिसने आधार वाले नेताओं को पार्टी से दरकिनार कर दिया कौन जनता है ! बिहार बीजेपी नेतृत्व को क्या ये नीतीश और लालू का मुकाबला करेंगे! प्रान्त नेतृत्व के कारन चुनाव बीजेपी हारी इसकी समीक्षा होनी चाहिए और तत्काल इन्हे स्थिपा दे देना चाहिए इसीमें इनका और पार्टी का भला है लेकिन दुर्भाग्य कैसा कोई स्थिपा देने को तैयार नहीं--!
          जहाँ तक वोट का प्रशन है तो बीजेपी का वोट प्रतिशत बढ़ा है और लालू, नीतीश, कांग्रेस के वोट का प्रतिशत घटा है २०१० में बीजेपी का प्रतिशत १८ था इसबार २५ है, २०१४ के लोक सभा के चुनाव में बीजेपी गठबंधन को ३९% वोट मिला था अभी गठबंधन को ३४% मत मिला है यह कहना की पिछड़े और दलितों ने बीजेपी को मत नहीं दिया यह गलत है ब्यापारी सवर्ण सब मिलकर लगभग १६% होता है तो यह मत कहाँ से आया वास्तव में बीजेपी को सभी जातियों का मत मिलता है, बीजेपी हिंदुत्व का धार देने में असफल रही बार -बार कहने पर भी 'गोरक्षपीठाधीस्वर योगी आदित्यनाथ'को चुनाव में नहीं बुलाना यह पार्टी पर भारी पड़ा पार्टी सेकुलर बनने के चक्कर में पराजित हो गयी, पार्टी ने बहुत ब्यापक प्रबंध किया लेकिन प्रान्त के प्रबंधन ने पार्टी को पराजित कर दिया कभी भी कोई कार्यक्रम को ठीक से नहीं होने दिया सूचना यहाँ तक है की जो नेता मुख्यमंत्री के दावेदार हो सकते थे उन सभी को हराने हेतु एक वरिष्ठ नेता ने लम्बी फंडिंग की यानी बीजेपी ने बीजेपी को हराने का काम किया, संघ के प्रबंधकों के बार-बार कहने पर भी बीजेपी नेता अनाप -सनाप बोलते रहे, हार की समीक्षा होनी चाहिए लेकिन स्वस्थ होनी चाहिए!                   

क्या बीजेपी अपनी गलतियों को स्वीकार करने को तैयार है -----?

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क्या बीजेपी अपनी गलतियों को स्वीकार करने को तैयार है---!
            बिहार का चुनाव पुरे देश ही नहीं बल्कि विश्व में चर्चा का विषय बना हुआ है जैसा की प्रत्येक चुनाव के पश्चात नए विकल्प का सपना देखना सेकुलरों का स्वाभाव बन गया है उन्हें लगता है की बिहार ही पूरा देश है उन्हें यह पता नहीं की लोग पुनः लालू यादव से भयाक्रांत हो गए हैं एक बार फिर कुख्यात आतंकवादी सहाबुद्दीन से मिलने वालों की संख्या बढ़ी है, नितीश कुछ भी कहें आये दिन हिंसा हत्या का दौर शुरू हो गया है, अपहरण का उद्द्योग पुनः सिर पर चढ़कर बोलने लगा है, जो बिहारी एक बार पटना, मुजफ्फरपुर अथवा अन्य शहरों में अपने कामों के लेकर लौट आये थे वे पुनः बिहार से बाहर से जाने का बिकल्प खोज रहे हैं नितीश कुमार जिस कानून के राज्य की बात कर रहे हैं कहीं हिंसा, हत्या और अपहरण को क़ानूनी दर्ज तो नहीं देने वाले हैं, सीमांचल में खुशियों का दौर जारी है अब गो हत्या खुलेआम होगी कोई शिकायत करने की हम्मत नहीं करेगा, अब गरीब, वनबासियों की बहन बेटियों का खुलेआम मुस्लिम गुंडे अपहरण करेंगे, अल्पसंख्यक हिन्दुओं का जीना दूभर होगा जो थोड़ा सम्पन्न होंगे वे तो भागकर कहीं चले जायेगे लेकिन गरीब कहाँ जायेगे, वे अपनी बहन-बेटियों की इज्जत लूटते देखने को मजबूर होगे, यह क्षेत्र पाकिस्तान न होते हुए भी पाकिस्तान जैसा ही है । 
         लेकिन इसमे गलती किसकी है कौन ठेकेदार है हिन्दुओं के सुरक्षा की, आखिर हिन्दू किससे उम्मीद बांधे बैठा है, तो ध्यान में आता है की बीजेपी इसकी ठेकेदार है जो हमेसा राष्ट्रवाद की बात करती है जिससे विश्व भर के हिन्दुओं को बहुत उम्मीद भी है भारत के प्रधानमंत्री वर्तमान भारत और हिन्दू समाज के उम्मीद की एक किरण हैं, फिर ये चूक कहाँ और कैसे हुई ! कैसे बिहार में हिंदुत्व अपमानित हुआ जहाँ प्रधानमंत्री की सभा में लाखों लोग आते थे, इतना संसाधन, इतने कार्यकर्ता, इतना बड़ा संगठन आखिर बीजेपी पराजित क्यों हुई ?  
         ध्यान में आता है कि बीजेपी वोट लेते समय तो हिंदुत्व का राग अलापती है ३७० की बात करती है हिन्दुओं का वोट तो चाहती है लेकिन जब इसके नेता देवघर जाते हैं तो कार्यकर्ताओं के आग्रह करने पर भी वे भगवान के दर्शन नहीं करते तब कार्यकर्ता का मन कैसा होता है, कूड़े दान में पड़ा हुआ भागलपुर दंगे की फाइल पुनः निकलवाकर जिन्होंने हिन्दू समाज को बचाया था उन्हें मुकदमे में फंसा, जगह -जगह भाषण देना की मैंने सजा दिलाई भागलपुर लोकसभा भी हारे और विधान सभा भी, अररिया में पशु बधशाला कौन खुलवाया, कौन अपने कार्यकर्ताओं से कहा की जैसे मछली आपके लिए तरकारी वैसे ही मुसलमानों के लिए गाय भी तरकारी है गाय और मछली की बराबरी की जाती है क्या उन्हे हम चिन्हित करेगे, अलीगढ मुस्लिम विश्व विद्यालय खुलवाने में किसकी भूमिका है वह कौन नेता जो संगठन और पार्टी से अपने-आप को बड़ा समझता है, कौन हैं वे लोग जो संघ विचार के साथ बलात्कार कर रहे हैं ! इसका जिम्मेदार कौन है क्या संगठन अथवा पार्टी इस पर विचार करेगी ?
         आखिर बीजेपी को क्यों वोट चाहिए --! जिसके पास खाने को कुछ नहीं, रहने को घर नहीं, सूखे में फसल नहीं उसे स्मार्ट सिटी, बुलेट ट्रेन, डिजटल इंडिया, और मेकिंग इंडिया से क्या मतलब ? बिहार में सुखा पड़ा बीजेपी की केंद्र सरकार ने क्या किया क्यों चाहिए वोट ! दूर संचार विभाग तथा बीएसएनएल से सभी ऊब गए हैं बात नहीं हो सकती यहाँ चर्चा का विषय रहता है कि मंत्री ने प्राइवेट कंपनियों से घुस लेकर बीएसएनएल की सर्विस ख़राब कर रखी है, रेल मंत्रालय तो लगता है की भारत का हो न ठीक चुनाव के समय प्लेटफार्म टिकट २० रु हो गया, टिकट वापसी कितनी महगी ही गयी है क्या इसकी कल्पना है किसी को ? चुनाव हराने के लिए तो केवल कृषि, बीएसएनएल और रेल मंत्रालय ही पर्याप्त है और भारत के सबसे योग्य नेता जो चुनाव हारने और हराने के पश्चात भी मंत्री है लोगों का कहना है की वे ही सरकार चलाते हैं वे अटल बिहारी के प्रमोद महाजन हैं, जब तक बीजेपी को समाप्त नहीं कर लगे तब-तक दम नहीं लेंगे, वे फाइव स्टार कल्चर बीजेपी बनाने में लगे हुए हैं लेकिन क्या देश इसे स्वीकार करेगा !
         हमें लगता है बीजेपी में जमीनी नेताओं की कमी है अथवा उनकी कोई सुनता ही नहीं वे सब के सब अप्रासंगिक हो गए हैं बीजेपी को अपने स्थानीय कार्यकर्ताओं पर विस्वास नहीं रहा बाहर से कार्यकर्ता बुलाना स्थानीय कार्यकर्ताओं को उपेक्षित करना बिहार में पहली बार कार्यकर्तों को लगा की अब वे कार्यकर्ता नहीं बल्कि एक नौकर की भूमिका में है, क्या बीजेपी निर्णय करने का साहस दिखा पायेगी, जनाधार वाले नेताओं की पुंछ होगी यदि इन सब विषयों पर विचार नहीं होगा, तो पार्टी कांग्रेस के रास्ते पर बढ़ चली है जहाँ जीत का श्रेय तो सोनिया-राहुल को हार कि जिम्मेदारी सामूहिक होती है, ----विचारणीय है बीजेपी नेतृत्व के लिए-!              

नेपाल समस्या का जिम्मेदार कौन----?

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नेपाल-----
एक कहावत है -बाढई पूत पिता के धर्मा, खेती उपजय अपने कर्मा--------!
        चाहे कोई देश हो अथवा राष्ट्र या परिवार सभी पर यह बात लागू होती है जिस देश की नीव गलत तरीके से पड़ गयी हो उसे सम्हलना बड़ा ही कठिन होता है, नेपाल की शुद्ध यही हाल है 1950 मे भारत के साथ ही यदि कहा जाय कि नेपाल भी आज़ाद हुआ तो कोई अति-सयोक्ति नहीं होगा, भारत, नेपाली कांग्रेस और श्री3 चंद शमशेर के समझौते मे नेपाल मे राजा स्वीकार किया गया राणाओं का शासन समाप्त हुआ राजा और नेपाली कांग्रेस का संयुक्त शासन हुआ ''मोनार्की विद मल्टी पार्टी डेमोक्रेसी''चाइना के इशारे पर राजा ने वीपी कोइराला को गिरफ्तार कर लोकतन्त्र को समाप्त कर सत्ता पर स्वयं कब्जा कर लिया, राजा महेंद्र ने सत्ता प्राप्ति के पश्चात हिन्दुत्व के नाम पर भारत का विरोध करना शुरू किया उनको लगता था कि नेपाली कांग्रेस भारत के पक्ष कि पार्टी है वे 'चाइना'पक्ष कि पार्टी चाहते थे उन्होने कम्युनिष्ट पार्टी का गठन कराया उसका दरवार से पूरा खर्चा वहाँ करते थे।
 वामपंथ का उदय ---------
       जैसा ऊपर बताया कि राजा महेंद्र ने हिन्दू राष्ट्र के नाम पर भारतियों को ब्लेक मेल करना, राजा महेंद्र को लगा कि नेपाली कांग्रेस लोकतान्त्रिक है जिसका झुकाव भारत के साथ स्वाभाविक रहता है उन्होने वैलेंस बनाने के लिए माओवादी पार्टी का गठन कराया उसके प्रशिक्षण कि ब्यवस्था भी कराया चीन के इशारे पर भारतीय वामपंथियों ने दरभंगा, गोरखपुर,काशी जैसे स्थानो पर उनका साथ दिया राजा को यह समझ मे नहीं आया कि जो अपना बंश बदल देता है वह किसी का नहीं होता जो राम, कृष्ण के वंशज से बादल माओचेचुंग के वंश मे गए वे देश और हिन्दू समाज के हितैसी कैसे हो सकते हैं इतना ही नहीं दरबार मे उन्हीं की जागीर लगती थी जो वामपंथी प्रशिक्षण प्राप्त हुआ करते थे, इसलिए नेपाली कम्युनिष्टों को रायल कम्युनिष्ट कहा जाता है राजा ने अपना जड़ स्वयं नष्ट किया, वामपंथियों द्वारा भारत का विरोध करवाना, इतना ही नहीं भारतीय सीमा पर मुस्लिम आवादी को बसाना, क्योंकि वे अच्छी प्रकार जानते थे कि भारत का सबसे बड़ा शत्रु मुसलमान ही है, वे भारत बिरोधी हिन्दू खड़ा करना चाहते थे उन्हे यह नहीं पता था कि भारत बिरोधी हिन्दू हो ही नहीं सकता इसका परिणाम हुआ कि भारत बिरोध धीरे-धीरे हिन्दू बिरोध के रूप मे सामने आया और ईसाई मिशनरियों ने पूरे नेपाल मे अपना जाल फैला दिया धर्मांतरण, मखतब, मदरसों की भरमार हो गयी यह सब भारत के बिरोध मे तो गया ही लेकिन नेपाल भी उस बिरोध से अछूता नहीं रहा और उसका परिणाम मोनार्की समाप्त हो गयी, यदि इन सब दुर्दसाओं का एक कोई जिम्मेदार है तो वह केवल और केवल राजा महेंद्र !
24 विदेशी एम्बेसियों का नेपाल मे क्या काम-----? 
             चर्च के द्वारा बहुत से ईसाई देशों ने योजना वद्ध तरीके से हिन्दू राष्ट्र नेपाल को ईसाई चरागाह बनाने हेतु दूतावासों का निर्माण काठमांडों मे कारण का प्रयास किया गया, तत्कालीन राजा को विस्वास मे लेकर दूतावासों ने चर्च प्रायोजित षड्यंत्र शुरू किया देखते ही देखते नेपाल के पहाड़ी जिलों मे सैकड़ों चर्च खड़े कर दिये धर्मांतरण का कुचक्र शुरू किया, दूसरी तरफ इस्लामिक षण्यंत्र का शिकार हुआ नेपाल पेट्रोल, रोजगार के चक्कर मे एक स्वतंत्र स्वाभिमानी राष्ट्र दिखने के लिए तमाम इस्लामिक देशों के दूतावासों को खुलवाया इस प्रकार योजना पूर्वक लगभग 24 दूतावास खोले गए जो न तो नेपाल के हित मे हुआ न ही भारत के हित मे लेकिन चर्च और इस्लामिक मदरसे, मस्जिद दोनों नेपाल के हिन्दुत्व और राष्ट्रियता को समाप्त करने मे लग गए एक तरफ भारत सीमा पर इस्लामिक मदरसे- मस्जिदों की भरमार तो दूसरी तरफ चर्च द्वारा पहाड़ मे धर्मांतरण, यह नेपाल ही नहीं भारत के लिए भी खतरनाक सिद्ध हुआ, दोनों ताकते दोनों हिन्दू देशों मे तकरार पैदा करने मे सफल दिखाई देते हैं वास्तविकता यह है की उनका लक्ष्य नेपाल कम भारत अधिक है उनके पास कोई काम नहीं उनका तो काम केवल भारत के विरोध मे षणयंत्र करना ही है और वे सफल भी हो रहे हैं।        
         नेपाल की वास्तविकता यह है की राज़ा महेंद्र, चर्च, इस्लामिक षणयंत्रों के शिकार हुए और भारत विरोधी राष्ट्रवाद खड़ा करने मे सफल होने लगे, वे जाने-अनजाने चीन के जाल मे फंस गए और अनजाने मे चीन से नेपाल विरोधी समझौता कर बैठे वे हिन्दुत्व तो चाहते थे लेकिन भारत विरोधी, सायद उन्हे यह ज्ञात नहीं था की भारत विरोधी हिन्दू हो ही नहीं सकता और भारत बिरोध करते-करते नेपाल हिन्दू बिरोधी होने लगा, जिससे नेपाल पहाड़ी, मधेसी समस्या का जन्म हो गया जो आज नेपाल के लिए जीवन मरण का प्रश्न बनाकर खड़ा हो गया है!
आज का मधेसी आंदोलन-------!    
        नेपाल मे मधेसी कौन है इसपर विचार करना होगा अंग्रेजों ने 1862-63 मे विरगंज से झापा तक की भूमि दर्जालिंग के बदले मे दे दिया जिसे सुगौली संधि कहते हैं, इसी प्रकार गोरखाली सेना (भाड़े के सैनिक) द्वारा जलिया वाला कांड, लखनऊ लूट के बदले बाँके, बरदीया, कंचन पुर, कैलाली जिसे आज भी नया मुलुक कहा जाता है, जमीन आप लेंगे तो वहाँ की जनता को भी लेना पड़ेगा ऐसा नहीं होगा कि जमीन आपकी जनता जमीन से बाहर, वास्तविकता यह है की मूलतः मधेसी और पहाड़ की जनजाति ( राई, लिम्बू, गुरुङ इत्यादि) ही असली नेपाली है, नेपाल के पहाड़ी ब्रहमन और ठकुरी ये दोनों भारत से समय-समय पर भागकर नेपाल गए हैं आज नेपाल की असली समस्या की जड़ मे यही हैं ये अपने को असली नेपाली साबित करने के चक्कर मे भारत बिरोध कर रहे हैं ये नेपाली जनजाति तथा मधेसियों को अपने अधिकारों से वंचित करना चाहते हैं, लेकिन जिस रास्ते पर मधेस चल पड़ा है यदि जल्द समाधान नहीं हुआ तो उसका परिणाम अच्छा नहीं होगा शायद विश्व मे इतना बड़ा लंबे समय तक कोई आंदोलन चला हो इसलिए विश्व समुदाय को इस पर ध्यान देकर मधेसियों के अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए।         
        नेपाल को हीन भावना से ऊपर उठाना होगा मधेसी आंदोलन को भारतीय कहना मधेसियों का अपमान करना है मधेसी समस्या के लिए वार्ता न करना यह बुद्धि हीनता का परिचय देना है, मधेसियों से वार्ता करना यानि भारत के सामने घुटने टेकने जैसा है ऐसा महसूस करना नेपाली सरकार की हिन भावना ही दरसाती है, चार महीने की मधेसियों के ''नाका वंदी''को भारत सरकार पर आरोप लगाना भारत के साथ तकरार बढ़ाने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं, भारत तो नेपाल का सहयोगी देश है हमेसा बिपत्ती मे नेपाल के साथ खड़ा दिखाई दिया दूसरी तरफ नेपाल द्वारा धोखा ही धोखा, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का कभी समर्थन नहीं देना क्या दर्शाता है ? नेपाल को अपने बारे मे ठीक से विचार कर समस्या का समाधान करना चाहिए॥      

भारतीय स्वतन्त्रता की अभिब्यक्ति है 6 दिसंबर ----------!

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भारतीय स्वतन्त्रता की अभिब्यक्ति का परिणाम है 6 दिसंबर ---!
       अयोध्या- अयोध्या और अयोध्या लगातार चर्चा का विषय बना हुआ है बने भी न क्यों ! आखिर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की जन्म भूमि जो है, विगत हज़ार वर्ष देश के संघर्ष काल मे हमने बहुत से स्वाभिमान को नष्ट किया, आततायी इस्लाम मतावलंबियों को समझने मे हमने भारी भूल की और आज भी कर रहे हैं हमारे राजा -महाराजा उन्हे इस्लाम आतंकी प्रचारक न समझ राजा समझने की भूल की वे केवल लुटेरे ही न थे बल्कि इस दुराचारी धर्म के प्रचारक भी थे जिसे हिन्दू समाज ब्याभिचार समझता है वही इस्लाम है, हमारे पूर्बज़ समझ नहीं सके वे उनके साथ राजा जैसा ब्यवहार करने लगे वे उनके साथ मनुष्यों जैसा ब्यावहार करने के कारण देश लंबे समय तक या तो संघर्ष शील रहा अथवा कुछ स्थानों पर गुलामी भी झेला लेकिन हिन्दू समाज ने कभी इस्लाम का सासन स्वीकार नहीं किया ।
         वे लुटेरे थे अरबों के कबीलों मे कोई राजा नहीं होते थे बल्कि लुटेरों का गिरोह हुआ करता था खाने- पीने को कुछ नहीं लूटना ही मुख्य धंधा, जिसके पास 200 घुड़सवार होता वह सरदार होता वे इस्लामी खलीफा के आदेश पर भारत मे लूटने हेतु आ जाता सातवीं शताब्दी मे इन गिरोहों का आना शुरू हो गया, आज भी वामपंथी, सेकुलर इतिहासकार यह कहते नहीं थकते की भारत हज़ार वर्ष गुलाम रहा उन्हे यह नहीं पता की जिस देश मे इस्लाम का शासन 50- 100 वर्ष रहा वहाँ एक भी अन्य मतावलंबी नहीं बचा वहाँ की संस्कृतियाँ समाप्त हो गईं कुछ भी नहीं बचा, इस नाते यह कहना की भारत गुलाम था यह विल्कुल गलत है हाँ आक्रमणकारियों ने केवल लूट-पाट ही नहीं की बल्कि धर्म परिवर्तन भी किया वे केवल लुटेरे ही नहीं इस्लाम के प्रचारक भी थे आज के मुसलमान कौन हैं ? वास्तविकता यह है की ये सबके सब बलात्कारियों की संताने ही हैं, इस सबको चाहिए की प्रशचितकर पुनः हिन्दू धर्म मे वापस आ जाय यह समय की पुकार है।
         अब देश आज़ाद है जो भी कुछ हुआ और प्रचारित किया गया की हम आज़ाद हो गए है, तो जैसे सरदार पटेल ने आज़ादी के प्रतीक सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कराया तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र बाबू ने नेहरू के मना करने के बावजूद उसका उदघाटन किया, उसी प्रकार आयोद्धा श्री राम मंदिर का भी जीर्णोद्धार होना चाहिए था किन्ही कारणों से यह नहीं हो सका, यदि सरदार पटेल जिंदा रहते तो शायद इसके लिए कोई आंदोलन नहीं करना पड़ता बल्कि यह सरकार स्वयं करती, हिन्दू समाज ने पचासों वर्ष इंतजार किया जब भारत सरकारें अधिक सेकुलर होने लगीं तो हिन्दू समाज को अपने स्वत्व का अनुभव हुआ की आज भारत आज़ाद है और वह दिन आया जिसका सैकड़ों वर्षो से इंतजार था जिसके लिए लाखों हिंदुओं ने आहुति दी थी जो स्वप्न नहीं था जिसे हमने अपनी आखो से देखा कि लाखों संख्या मे कारसेवक इकट्ठा होकर 6 दिसंबर 1992 पुराने बाबरी ढ़ाचे को ध्वस्त कर रामलला को स्थापित कर दिया, सारे विश्व के हिन्दुओ के लिए यह परम सौभाग्य का दिन था वास्तव मे यह स्वतन्त्रता की अभिब्यक्ति के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं था। 
          आज जहां सारा विश्व अपने जड़ों को खोज रहा है वहीं कुछ पुरातन पंथी उससे भाग रहे हैं बिना राम अथवा कृष्ण के हम भारत की कल्पना नहीं कर सकते, जहां सारे विश्व के कई इस्लामिक देशों मे मस्जिदों को तोड़कर सड़कें बनायीं जा रही है, कई देशों मे बुर्का पर प्रतिबंध, नमाज पर प्रतिबंध, दाढ़ी रखने पर प्रतिबंध, मस्जिदों को बनाने पर प्रतिबध, रोज़ा रखने पर प्रतिबंध अन्य इस्लामिक क्रिया कलापों पर प्रतिबंध लग रहा है चीन ने तो इस्लामिक नाम रखने पर प्रतिबंध लगा दिया है, पेरिस ने दो सौ मस्जिदों को तोड़ने का आदेश दे दिया है, वहीं जिसके बिना हम भारत की कल्पना नहीं कर सकते उनके जन्मभूमि पर मंदिर बनाने हेतु हिन्दू समाज को आंदोलन करना पड़ता है अदालत जाना पड़ता है, कुछ सेकुलर नेता यह कहते नहीं थकते की भारत सबका है लेकिन यह वे भूल जाते हैं की भारत उनका है जो भारत के महापुरुषों, तीर्थों, नदियों, पहाड़ों तथा भारतीय मान बिन्दुओं का सम्मान करते है, जो रामजन्मभूमि मंदिर बनाने का बिरोध करते हैं उन पर भारतीय होने पर शंका उत्पन्न होती है, भारत केवल और केवल हिंदुओं का ही है अन्य समाज के लोग इसमे रहते है यह हमारी सहिष्णुता की पराकाष्ठा ही है उनको रहने का अधिकार है लेकिन हिन्दू बिरोध के आधार पर  नहीं, की हिन्दू जिसे महतारी (माँ) मानता है उसे वे तरकारी समझें, इसलिए ढांचे को गिराना हिन्दू स्वाभिमान का परिचायक है, वैसे देश मे दो धाराओं का होना स्वाभाविक है एक राणा प्रताप, क्षत्रपति शिवाजी, गुरु गोविंद सिंह, दयानन्द तथा विबेकानंद दूसरा मानसिंह, जयचंद और नेहरू जैसों का, इसलिए मंदिर तो बनेगा ही इसमे कोई बहस की गुंजाईस नहीं है।          
       आज समय की आवस्यकता है हिन्दू समाज खड़ा हो और केवल अयोध्या, माथुरा और काशी ही नहीं बहुत सारे सड़क जो विदेसियों के नाम पर है उसे बदलना भारत -भारत की तरह लगे जहां गौ, गंगा, गायत्री का सम्मान हो ऐसे भारतीय मानबिन्दुओं की रक्षा हो सके ऐसा हमे भारत बनाना है वास्तविक आज़ादी की तरफ हमे बढ़ाना है। क्योंकि आज़ादी अभी अधूरी है ! 

आखिर ये चुप्पी क्यों-? सेकुलर का मतलब कहीं इस्लामीकरण तो नहीं ----!

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           आफ्टर कमलेश तिवारी की घटनाओं पर चुप्पी क्यों--?
           आज प्रभात खबर दैनिक में एक लेख पढ़ रहा था जिसमे लिखा था की जब नेहरू सत्ता में आये तो ''उन्होंने तथा-कथित बुद्धिजीवी यानी वामपंथियों को बौद्धिक संस्थानों में भर्ती कर भारत को समाजवाद के तरफ मोड़ने का काम किया"इन वामपंथियों ने भारत के विचारों का भरपूर मजाक उड़ाया उन्होंने यह बताने का प्रयास किया की जैसे भारत कोई पुरातन संस्कृति का देश ही नहीं एक राष्ट्र तो कभी रहा ही नहीं हम तो बड़े पिछड़े थे, कुछ आता ही नहीं था हिन्दू धर्म कोई धर्म ही नहीं वैदिक सभ्यता कुछ थी ही नहीं भारत का कोई अपना कोई विचार ही नहीं था, हम तो हमेसा आपस में लड़ते रहते थे हाँ अंग्रेज जब आये तब हमने जीना सीखा, कपड़ा पहनना सीखा, तब हम एक राष्ट्र हुए ऐसी अनर्गल बातें पं नेहरू ने इन वामपंथियों द्वारा हम भारत वासियों को सिखाने का प्रयत्न किया, इसके पीछे नेहरू की एक चाल थी की प्रत्येक भारतीयों के मन में हींन भावना की ग्रंथि हो जाय, वास्तविकता यह है की नेहरू कोई विद्वान नहीं थे वे ब्रिटिश द्वारा स्थापित ब्यक्ति थे इस कारन भारत के वैदिक मूल्यों को नष्ट करना चाहते थे, चुकी नेहरु इस्लाम मतावलम्बी थे इस कारन वे सेकुलर के नाम पर इस देश का इस्लामीकरण करना चाहते थे जिस काम को बर्बर गजनी, गोरी और मुग़ल नहीं कर पाये वे उसे लोकतंत्र को माध्यम बना करना चाहते थे.
       आज उसका दुष्परिणाम दिखाई दे रहा है जब देश के अंदर राष्ट्रवाद हुंकार भर रहा हो तब इन बामपंथियों का दर्द बढ़ रहा है अब भारत वासी अपने को ठगा महसूस कर रहे हैं जब उन्हें लग रहा है की ये उनके देश में क्या हो रहा है जिसे हम महतारी कहते हैं उसे मारकर खाने वाले पुरस्कृत हो रहे हैं, भारत की आत्मा का अपमान हो रहा है, पहली बार एक भारतीय प्रधानमंत्री हुआ जिसने सारे विश्व को बताया की भारत हिन्दू देश है ये भारत विरोधियों को पच नहीं रहा, एक "चरखी दादरी"की घटना होती है बिना किसी जाँच के पुरे देश के तथाकथित बुद्धिजीवी पुरस्कार वापस करने लगते हैं, जिसने गाय को मारकर खाया जिसकी गाय थी उसे मारा भी वह हॉस्पिटल में गांव वालों को जब पता चला तो उन्होंने उस गाय मारने वाले को मारा इसकी जाँच क्यों नहीं-! जिस यादव की गाय थी उसकी कौन सुनेगा ! उसका यही दोष है की वह हिन्दू है, सारे सेकुलर देश को सिर पर उठा लिए जैसे कोई बड़ी बात हो गयी हो देश बिरोधी-बुद्दि जीवी, फ़िल्मकार, हीरो सभी एक साथ !           
              हिन्दू महासभा के नेता कमलेश तिवारी के बयांन के पश्चात इतना हंगामा क्यों ! जब जाकिर नाईक, ओबैसी जैसे तमाम मुल्ले हिन्दू धर्म के देवताओं के बारे में आये दिन गाली देते रहते हैं तो हंगामा क्यों नहीं ? आखिर कमलेश तिवारी ने गलत क्या कहा आज देश के सामने आना चाहिए विश्व के अनेक देश अमेरिका, इंग्लैण्ड,  फ़्रांस, जर्मनी और इस्रायल जैसे अनेक देश हदीस और कुरान का पर्दा फास कर रहे है तो भारत में क्यों नहीं होना चाहिए ! आज 'रंगीला रसूल'और तमाम 'वेव साइट'मौजूद है जिसमे मुहम्मद की जीवनी उपलब्ध है सबको पढनी चाहिए मुसलमानों को चाहिए की हंगामा नहीं करे, नहीं तो उसका परिणाम भी वे जानते हैं कोई मुलायम, कोई लालू, कोई नितीश या ममता उनको बचा नहीं सकती ! म्यांमार में अपनी स्थिति देखनी चाहिए फ़्रांस, जर्मनी तथा चीन में तो मुसलमानों को इस्लामिक  नाम भी रखने की छूट नहीं है, आप मजबूर मत करिये की भारत उस तरफ बढे-! जब कमलेश तिवारी को जेल में बंद कर दिया गया (बिना किसी अपराध के ), तो किसने इन्हे हमले की अनुमति दी नीतीश के गृह जनपद में सबसे पहले 13 दिसंबर को नालंदा में जुलुस निकालकर मंदिर पर हमला पुजारी को पीटा, कटिहार के बारसोई में दिसंबर के दूसरे सप्ताह मे पचास हज़ार की भीड़ ने हिन्दुओ को मारा पीटा दुकाने को लूटा उनका मनोबल बढ़ता गया, सीमांचल बंगाल के मालदा में 3 जनवरी को ढाई लाख की भीड़ ने हिन्दू दुकानों को लूटा हिन्दुओ को मारा- पीटा, सैकड़ों वाहनों को तोड़-फोड़ किया जलाया ही नहीं बल्कि पुलिस थाने को भी शिकार बनाया पुलिस भागकर जान बचाई, पूर्णिया के बयासी में 7 जनवरी को 3५ हज़ार की भीड़ ने एक विधायक के नेतृत्व में हंगामा किया थाने में तोड़-फोड़ किया जगह-जगह पुलिस जान बचाकर भागी, इस सीमांचल में हिन्दू भय-भीत है मालदा में अभी तक हिन्दू दुकाने नहीं खोल पाये है वे अब पलायन करना चाहते हैं कोई पुलिस उन्हें बचाने नहीं जा रही पूर्णिया, किशन गंज, अररिया और कटिहार का हिन्दू भय भीत है यहाँ से हिन्दू पलायन कर रहा है यह क्षेत्र अब कश्मीर के रास्ते है.
         इतना होने पर मिडिया, सेकुलरिष्टों, तथा-कथित बुद्धि जीवियों और राजनैतिक पार्टियों को भी कुछ दिखाई नहीं दे रहा है क्योंकि ये शांति प्रिय सेकुलर लोगो का शांति प्रिय कार्यक्रम था "चरखी दादरी"की छोटी सी घटना अंतर्राष्ट्रीय हो जाती है, लेकिन इन घटनाओं की कोई चर्चा नहीं होती आखिर क्यों इसका संकेत क्या है क्या हिन्दू निरीह है क्या इस देश का कोई मालिक नहीं है ! क्या इस देश में कोई सरकार नहीं है ! घटना केवल मालदा की ही नहीं है इंदौर, भोपाल, बंगलौर, पटना, नालंदा, बायसी और बारसोई जैसे देश के बिभिन्न भागों में ये हुआ है, इसका संकेत क्या है ! क्या हिन्दू समाज की रक्षा हेतु अपने- आप खड़ा होना पड़ेगा ? इन घटनाओं को जिस तरह लुका- छिपाकर कवर किया गया है, उस पर कहीं गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं देश के एक बड़े हिस्से को इस घटना की सूचना तक नहीं है, तो देश में कोई सरकार है भी या नहीं ! यदि है तो केंद्र सरकार का संचार मंत्रालय क्या कर रहा है यह भी प्रश्नहै--! देश को इन घटनाओं के जानकारी का अधिकार है जिसकी जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है, मिडिया- चाहे प्रिंट मिडिया हो अथवा इलेक्ट्रानिक मिडिया ये जिम्मेदारी से भाग नहीं सकते, नहीं तो इनकी निष्ठां पर सवाल उठाना लाजिमी है.
हिन्दू समाज के मन में एक प्रश्न खड़ा हो रहा है -----!
कि सेकुलर के रास्ते कहीं भारत का इस्लामीकरण तो नहीं ! 
धीरे-धीरे सीमांचल का कश्मीरी करण तो नहीं--!     
ये क्या हो रहा है जिसे हम मूक दर्शक बन देख रहे हैं !
हमने अफगानिस्तान दिया, पाकिस्तान दिया कश्मीर उस रास्ते पर है !
अब हम क्या-क्या कौन-कौनसा भाग देते रहेंगे !
हिन्दू समाज ही इस देश का मालिक है वही इसकी रक्षा करेगा !
मुसलमानों की कोई राष्ट्रीयता नहीं --!
जो राष्ट्रीयता में विस्वास करेंगे वह इस्लाम बिरोधी माना जायेगा !

वेद, अपौरुषेय -- सब सत्य विद्यायों का ग्रंथ है --।

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  वेद अपौरुषेय और सत्य विद्यायों का ग्रंथ है ---।
              ईश्वर ने जब शृष्टि निर्माण करने का विचार किया होगा तो मानव समाज को शिक्षित,संस्कारित करने हेतु उसने पृथ्बी पर वेद यानि सत्य विद्या की पुस्तक मानव मात्र के लिए भेजा वेद को श्रुती भी कहा जाता है क्योंकि यह परम्परा से आया हुआ ज्ञान है आचार्य गुरुकुल के विद्यार्थियों को कंठस्थ कराते थे लिखा नहीं जाता था परंपरागत शिष्य के पास आता था इसलिए चुकी श्रुती के आधार होने के कारण वेद को श्रुती भी कहते हैं, सबसे पहले वेद भगवान ब्रम्हा जी के कंठ मे आया इसलिए ब्रम्हा जी को शृष्टि का नियंता कहा जाता है ब्रम्हा जी के चार मुखों का वर्णन यानि चारों वेदों का ज्ञान- ऋग्वेद, अथर्वेद, शामवेद, यजुर्वेद तथा प्रत्येक के अपने अपने ब्राह्मण ग्रंथ है एतरेय ब्राह्मण, शतपथ ब्राह्मण, गोपथ ब्राह्मण ऐसे अनेक शाखाएँ हैं स्वामी दयानन्द सरस्वती कहते हैं की ब्राह्मण ग्रंथ ही हमारे इतिहास हैं, ब्रम्हा जी ने अपने चार शिष्य अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा को प्रथम ज्ञान दिया इन ऋषियों ने ऋषि अगस्त, लोपा मुद्रा, वशिष्ठ, विश्वामित्र, जमदग्नि, परशुराम जैसे ऋषियों द्वारा सरस्वती नदी के किनारे किनारे आर्यावर्त मे गुरुकुलों को खोलकर मानव मात्र को शिक्षा देना शुरू किया, धीरे- धीरे विकाश के क्रम मे वेदों को समझने के लिए निघंटु ग्रंथ का निर्माण किया गया स्वामी दयानन्द जी ने तो ऋग्वेद भाष्य भूमिका लिखकर वेदों को समझने हेतु अच्छा प्रयास किया, वेदों का ज्ञान मानव समाज के भीतर इस प्रकार उसका संस्कार पड़ा की हजारों लाखों वर्ष ही नहीं करोणों वर्ष बीत जाने के पश्चात भी वैदिक संस्कार आज भी हिन्दू समाज के अंदर मौजूद है आज जो भी हम घर परिवार मे करते हैं सब वैदिक ही है इसी कारण कहा जाता है कि 'हमारे प्रथम गुरु हमारे माता पिता ही है'अतीथि देवो भव का भाव हमारा संस्कार बन सा गया है बड़ों का आदर करना व परिवार ब्यवस्था प्रत्येक प्राणी मात्र के अंदर वही आत्मा है यह विसवास, जीव-जन्तु, पशु-पक्षी सभी की चिंता इतना ही नहीं तो पेड़ -पौधे तक की चिंता पीपल का बृक्ष नहीं काटना हमे चौबीसों घंटे प्राण वायु देता है तुलसी नहीं नष्ट करना औषधि है ऐसा विचार ज्ञान वेदों द्वारा ही है । 
          कुछ विद्या विहीन कहते हैं कि वेद मे तो ऋषियों के नाम लिखा है वास्तविकता यह है वे रिचाओं के रचयिता नहीं वे मंत्रद्रष्टा थे जैसे हिन्दू समाज व भारत वर्ष मे बारह महीने, बारह राशियाँ तथा नक्षत्रों का वर्णन है तो ये कल्पना न होकर हमारे ऋषियों ने उस समय के अक्षांश व देशांतर को देखा कि ब्रांहाँड मे ये कौन सा प्रकार का आकार उभर रहा है जैसे ब्रांहांड मे जब ऋषियों ने मछली का आकार देखा तो उस समय पैदा होने वाले वच्चे की राशि मीन हो गया इसी प्रकार सारे नक्षत्र, राशियां अथवा महिना तय किए गए यह सब वैदिक अथवा वैज्ञानिक है, जैसे बहुत से लोग मानते हैं की विश्वामित्र ने ही गायत्री मंत्र की रचना की वास्तविकता कुछ और है वे इसके रचनाकर नहीं बल्कि वे मंत्रद्रष्टा थे उन्होने गायत्री मंत्र की साधना करते -करते जब तपश्चर्या मे लीन हो गए तो देखा ब्रहाँड के संघर्षण मे जो आवाज़ हो रही है वह क्या है उन्होने सुना "ओम भूर्भूवः स्वः तत्स वितुर्वरेणय भर्गों देवस्य धीमहि धियों यो नः प्रचोदयात"तो विश्वामित्र मंत्र के रचनाकर न होकर वे मंत्रद्रष्टा थे।            
          गीता को भी वेदों का सार कहा जाता है भगवान श्रीक़ृष्ण के श्री मुख से निकली हुई श्री गीताजी यानी वेद अपौरुषेय ईश्वर का दिया हुआ ज्ञान मानव कल्याण हेतु गीता भगवान के श्री मुख जिसमे उन्होने कहा "माँ मेकम शरण ब्रज"'तुम चिंता मत करो मेरी शरण मे आओ मै तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूंगा'सम्पूर्ण विश्व मे भगवान कृष्ण के अलावा कौन कह सकता है इसी कारण जैसे वेद ईश्वर प्रदत्त है उसी प्रकार श्रीगीता जी भी भगवान के श्री मुख से निकली हुई उनकी वाणी है यानी वेदों का सार ही है।   

हिन्दुओ सावधान ---! सीमांचल के कश्मीर बनाये जाने का खतरा------!

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सीमांचल कश्मीर बनने को तैयार----!
          भारत की आत्मा धर्म है धर्म केवल सनातन हिन्दू धर्म ही धर्म की परिभाषा मे आता है इस धर्म संस्कृति ने सारे विश्व को मानवता का उपदेश दिया जिसने 'कृणवंतों विश्वमार्यम'हम सारे जगत को श्रेष्ठ बनाएगे, हमने 'सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामया'सभी सुखी हों सभी निरोगित हों इस समाज ने अपने को इस चरित्र मे ढाला, जिसने एक सनातन राष्ट्र का निर्माण किया 'वयं राष्ट्र जाग्रयाम पुरोहिता' (ऋग्वेद) जिसे हम हिन्दू राष्ट्र भी कहते हैं लेकिन जब किसी देश की मूल बहुसंख्यक जनसंख्या घटनी शुरू होती है तो वहाँ की संस्कृति समाप्त होती है तब राष्ट्रियता पर संकट आता है आज भारत इसी रास्ते से गुजर रहा है जो चिंतनीय ही नहीं विचारणीय भी है ।
         लेकिन आज यहाँ की मानवता खतरे मे है कुछ विशेषज्ञों का कहना है की यदि भारतीय संस्कृति समाप्त हुई तो विश्व की मानवता समाप्त हो जाएगी, कभी हिमालय भारत वर्ष के बीच मे हुआ करता था अब अप समझ सकते हैं की भारतवर्ष कितना विशाल क्षेत्रफल का था कभी महाराजा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य का शासन अरब देश तक था, सम्राट चन्द्रगुप्त, बिन्दुसार और पुष्यमित्र शुंग का शासन तिब्बत से श्रीलंका इन्डोनेशिया तक अरब देश से ब्रांहादेश तक था लेकिन भारत क्यों छोटा हुआ जहां जहां भारतीय संस्कृति यानि हिन्दू घटता गया भारत काटता गया यह समझना जरुरी है की अकबर के जो नवरत्न थे सभी को इस्लाम स्वीकार करना पड़ा था जिसको सेकुलर कहते हैं इसीलिए जब गांधी जी ने अली बंधुओं से यह पूछा की हिन्दू मुस्लिम एकता कैसे संभव है तो अली बंधुओं ने बताया की जिस दिन सभी हिन्दू इस्लाम स्वीकार कर लेगे तभी एकता संभव है आज के सेकुलर नेता इसी रास्ते पर हैं, देश बिभाजन के पश्चात 1951 की जनगणना से 2011 की जनगणना मे प्रत्येक वर्ष एक प्रतिशत हिन्दू घटता गया है 1951 मे हिंदुओं की संख्या 75% थी जो आज यह घटकर 79.80% रह गयी है ।
बढ़ती मुस्लिम जनसंख्या के खतरे ------!
         भारतीय खंड मे 1881 से लेकर आज तक 13 वार जनगणना हुई है प्रत्येक वर्ष हिन्दू (हिन्दू, बौद्ध, सिक्ख, जैन) जनसंख्या एक प्रतिशत घटी है, 1881 से 2011 तक हिन्दू 13% घटा है, जिन जिलों मे हिन्दू संख्या घटी है वहीं क्षेत्र विभाजित होकर 1947 मे पाकिस्तान मे चला गया 47 मे मुस्लिम 24% थे जिन्हे 30% भूभाग दिया गया, 1947 मे मुस्लिम 9% थे आज के भारत मे 14.5% मुस्लिम जनसंख्या हो गयी है ।
           मै बिहार की चर्चा चाहता हूँ जहां बंग्लादेशी घुसपैठियों की बाढ़ सी आ गयी है जनसंख्या का संतुलन बिगड़ रहा है कहीं-कहीं तो 'बृहत्तर बंग्लादेश'की बात होने लगी है और कहीं-कहीं इस क्षेत्र को कश्मीर कहने लगे हैं, जहां किशनगंज मे मुसलमानों की संख्या 68%, अररिया मे 43%, पूर्णिया मे 39% और कटिहार मे 45% हो गयी है वहीं झारखंड के साहब गंज मे 35% और पाकुड़ की 36% है नेपाल की सीमा से जुड़ा हुआ जो इलाका है जैसे सितमढ़ी 22%, दरभंगा की 23%और चंपारण मे 22% हो गयी है, बिहार का सीमांचल की हालत ठीक नहीं है इस क्षेत्र मे लगता ही नहीं की ये भारत का हिसा है।
           कटिहार जिला का वारसोई के बगल 'तलवा'नाम के गाँव पर ईद की नमाज के पश्चात पाँच हज़ार मुसलमानों ने गाँव को जलाया, लूटा, हिंसा किया पुलिस को भी पीटा कोई कार्यवाही नहीं हो पायी, किसंगंज, अररिया, पूर्णिया और कटिहार के देहाती क्षेत्रों मे हिन्दुओ का रहना अपनी इज्जत बचाना मुसकिल सा हो गया है हिंदुओं की बहन-बेटियाँ सुरक्षित नहीं है सभी हिंदुओं को अपने घर मे 'बधना'रखना पड़ता है सभी को 'लूँगी'पहनना पड़ता है इतना ही नहीं जब गरीब हिन्दू मर जाता है तो मुस्लिम गुंडे उसे जलाने नहीं देते लगता ही नहीं की ये भारत का हिस्सा है, अररिया, पूर्णिया और मधेपुरा जिले के संगम (वार्डर) पर एक चकमका गाँव है जो बहुत बड़ा है अभी 6 महीने किसी कारण बस पुलिस को छापा मारना पड़ा जो पुलिस को भारी पड़ा पुलिस बैन पर हमला हो गया सारे हथियार छीने लिए बुरी तरह पुलिस की पिटाई हुई अधमरा करके छोड़ा किसी तरह रायफल तो वापस कर दिया अभी तक राइफल की मैगजीन आज भी नहीं दिया कोई कार्य वही नहीं आखिर नितीश सरकार सेकुलर (इस्लामिक) हैं न, इसका आम हिन्दू जनमानस पर क्या प्रभाव पड़ेगा--? इतना ही नहीं कटिहार जिले के बलरामपुर प्रखण्ड का 'ताला-सोना'गाँव जो घनी मुस्लिम आवादी क्षेत्र मे पड़ता है उस गाँव की महिलाओं को रखैल बनाकर रखा है किसी भी हिन्दू लड़की का बिवाह नहीं होने देते चारो तरफ के मुस्लिम गुंडे जिस घर की औरत को जब चाहते हैं उठा लेते हैं कोई कुछ नहीं बोल सकता परंपरा सी बन गयी है, किसंगंज के कोचधामन की हालत तो और बदतर है इन क्षेत्रों मे कोई भी मुसलमान अपने को हिन्दू लड़कियों पर अपना अधिकार समझता है।
           सीमांचल मे राज्यपाल द्वारा एक अध्यादेश जारी है की शुक्रवार को आधे दिन अवकाश रहेगा सभी विद्यालयों मे प्रार्थना नहीं होती राष्ट्र गान और गीत भी नहीं होती यहाँ की हालत बद से बदतर है यह हिस्सा भविष्य का कश्मीर बनाने को तैयार है हिन्दू पलायन करने को मजबूर हो रहा है बीजेपी ने भी आग मे घी डालने का काम कर रही है चाहे अलीगढ़ विवि का मामला हो चाहे पशु बध शाला का इतना ही नहीं कोचधामन मे बीजेपी ने एक बंगलादेशी को विधान सभा का टिकट दिया अब हिन्दू क्या करे यह विचारणीय है-? यह क्षेत्र बचेगा की नहीं ---- हिन्दू समाज को जगाना ही एक उपचार है और कुछ भी नहीं----हिन्दू समाज को अपने देश की रक्षा स्वयं करनी होगी उसे खड़ा होकर संघर्ष करना होगा महर्षि दयानन्द सरस्वती ने उन्नीसवीं शताब्दी मे ही कहा था ''भारत केवल भारतियों''का यह बात हमे ध्यान रखना होगा-!                       

जेएनयू जैसे संस्थानों पर विचार करने का समय-------!

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जेएनयू की उपलब्धियों पर विचार का समय---!
           अब समया आ गया है कि देश और राष्ट्र के हित मे विचार धाराओं पर बहस होनी चाहिए बंहस इस पर भी होनी चाहिए कि ''देदी आज़ादी हमे खड्ग विना ढाल''क्या यह हमारे हजारों क्रांतिकारियों का अपमान नहीं ! यदि आज़ादी विना संघर्ष के मिला तो 'भगत सिंह, चन्द्रशेखर आज़ाद, विस्मिल'जैसे हजारों को अपनी कुर्बानी क्यों देनी पड़ी जालिया वाला बाग का क्या होगा आज़ाद हिन्द फौज के हजारों सैनिकों के बलिदान के बारे मे सोचना होगा क्या इस प्रकार के प्रचार इन देश आज़ादी के दीवानों का अपमान नहीं है वास्तव मे यह सब भारत के प्रथम प्रधानमंत्री 'जवाहरलाल नेहरू'ने किया वास्तविकता यह है कि नेहरू स्वयं अहिन्दु- अराष्ट्रीय थे उन्होने देश बिरोधी विचार को बढ़ावा देने का काम किया जिन लोगों ने नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को ताजो का कुत्ता कहा उसी वामपंथी विचार को बढ़ावा दिया, इस कारण नेहरू नाम का संस्थान द्वारा कभी भी देश हित अथवा राष्ट्र हित की कल्पना करना अपने-आप को धोखा देना होगा  ।
           नेहरू जी के जाने के पश्चात श्रीमती इंद्रा गांधी ने 1969 मे जेएनयू कि स्थापना की नेहरू जी चाहते थे की विश्वविद्यालय मानवता के होना चाहिए जहां सहिष्णुता, विवेक, साहसिक विचारों और सत्य की खोज हो, यदि विश्वविद्यालय अपने सम्यक दायित्यों का निर्वाहन करते हैं तभी वे राष्ट्र और जनता के साथ हैं क्या जेएनयू नेहरू के अपेक्षाओं को पूरा कर रहा है, लगता है 'जथा नामे तथा गुणे'वाली कहानी चरितार्थ हुई जिसमे तथा कथित बुद्धिजीवी नाम पर इस संस्थान मे खोज-खोज कर वामपंथियों को भर्ती किया गया प्रारम्भ से देश का यह वामपंथी ट्रेनिंग सेंटर वन सा गया जहां 'जेएनयू'के प्रथम अध्यक्ष प्रकाश करात चुने गए तबसे आज तक वहाँ वामपंथियों का ही वर्चस्व कायम है 'जेएनयू वामपंथियों'के गिरफ्त मे आ गया वहाँ किसी भी अन्य विचार धारा को ये पनपने नहीं देते वहाँ इस प्रकार की ब्यवस्था है की कोई भी गैर वामपंथी प्रोफेसर की नियुक्ति नहीं हो सकती यदि हुई भी तो उसे 'आरएसएस'का कहकर हँगामा खड़ा करना जैसे यह देश कम्यूनिष्टों का हो बुद्धिजीवी केवल वामपंथी ही होते हैं एक ऐसा वातावरण खड़ा करना यहाँ के चरित्र मे आ गया है किसी भी अन्य विचार धारा इन्हे स्वीकार नहीं क्या यह असाहिशुणता नहीं ?
           जेएनयू मे एक अजीव प्रकार की राजनीति शुरू हो गयी वामपंथी और इस्लामिक क्षत्र संगठनों का गठजोड़ हुआ और देश बिरोध गतिविधियां शुरू हो गयी विचार धारा इतना प्रबल हो जय की अपनी पार्टी और संगठन के लोग आतंकी गुटों या राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के समर्थन मे आ जाय, फिर भी हम उनका समर्थन करे ? अगर लोकतन्त्र और देश नहीं बचेगा तो विरोध और आलोचना जैसे अप्रतिम अधिकारों का क्या होगा --??
जेएनयू ने देश को क्या दिया-----?
          इस विषय पर हमे विचार करना होगा देश की जनता की गाढ़ी कमाई पर चलने वाले इस जेएनयू का देश के लिए क्या योगदान है ? इस विश्वविद्यालय ने कितने वैज्ञानिक दिये, क्या कोई राष्ट्र वादी नेता पैदा किया, अच्छे पत्रकार दिये तो खोजते रहिए --! वास्तविकता यह है की जेएनयू ने देश को राष्ट्र विरोधी गतिविधियों का केंद्र दिया, देश विरोधी पत्रकार, भारत की बर्बादी तक जंग करेगे, कश्मीर की आज़ादी तक करेगे, भारत के हज़ार टुकड़ों करने वालों को दिया भारतीय संस्कृति बिरोध का अड्डा, प्रगतिशीलता के नाम पर वहाँ के क्षात्रों को ब्यभिचारी, अनाचारी बनाना वामपंथ विचार का हिस्सा, कैंपस मे वुद्धिजीवी व स्वच्छंद विचार के नाम पर ऐयासी व ड्रग्स का चरागाह बनाना, आतंकियों के समर्थक खड़ा करना देश भर मे माओवादी आतंकी बना देश भर मे भेजना राष्ट्रीय चरित्र का मखौल उड़ाना, लगता है की जेएनयू कैंपस देश का हिस्सा मे हो ही न! यही जेएनयू की उपलब्धि है, उमर खालिद को यह कोई पहली बार राष्ट्र विरोधी गतिविधि नहीं है 2010 मे छत्तीसगढ़ के दांतेवाड़ा मे सीआरपीएफ़ के जवानों की हत्या पर डीएसयू के क्षात्रों ने जश्न मनाया था आतंकी अफजल गुरु के फांसी के समय भी जेएनयू कैंपस मे मातम मनाया गया था, वास्तविकता यह है की जेएनयू असामाजिक तत्वों का अड्डा बना हुआ है जहां राष्ट्र विरोधी गतिविधियां बराबर होती रहती हैं आज यह देश के सामने आ चुका है।
        समय आ गया है की 'जेएनयू'की पूरी जांच होनी चाहिए उनके प्रोफेसर क्षात्र नेता कहाँ कीसके संबंध है देश को जानना चाहिए, जो नेता इन क्षात्रों के समर्थन मे आ रहे हैं उनके राष्ट्र बिरोधी कृत्यों पर मुकदमा चलना चाहिए आखिर इन सबको किसने यह अधिकार दिया की जो राष्ट्र बिरोधी, देश बिरोधी नारे लगाए देश बिरोधी कृत्य मे सामील हो उनका राजनेता समर्थन करे ये नेता भी शक के घेरे आ गए हैं या तो जेएनयू  को बंद करना चाहिए या तत्काल प्रभाव से अमूलचुल परिवर्तन करना चाहिए पूरे के पूरे वामपंथी तो राष्ट्र विरोधी हैं ही उनका सारा ऐजंडा सिर्फ मोदी सरकार के प्रति प्रतिक्रियावादी बनकर रह गया है, आप राहुल गांधी को अलग नहीं रख सकते जिनहे राष्ट्र क्या है देश क्या है का कोई समझ नहीं, चाणक्य ने कहा था की विदेशी माँ के पुत्र को देश को बागडोर देना खतरनाक हो सकता है यानि नहीं देना चाहिए, इस कारण इन सबकी आंच होनी चाहिए कैंपस केवल शिक्षा का केंद्र होना चाहिए नहीं तो यह शिक्षा का केंद्र न होकर समाप्त होते हुए वामपंथी राजनीति का केंद्र व आतंकवादियों की नर्सरी मात्र रह जाएगी-!
          इन्हे इस बात का एहसास होना चाहिए कि इस गैर जिम्मेदाराना राजनीति से जनता मे गुस्सा है और इसका खामियाजा जेएनयू के आम क्षात्रों को भुगतना पड़ेगा, उन्हे यह समझना होगा कि यह मामला सरकार का नहीं बल्कि देश का है जिसकी संप्रभुता और अखंडता पर अभिब्यक्ति कि आज़ादी के नाम पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं, यह न तो संविधान सम्मत है और न ही देश कि जनता को स्वीकार, सरकार को चाहिए कि ऐसी घटना को सख्ती से रोके।          

जेएनयू वामपंथ (आतंकवाद) का मदरसा मात्र अथवा शिक्षा का केंद्र ---!

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            आज एक नया नारा लेकर वामपंथी मैदान में आये हैं जैसे जब दीपक को बुझाना होता है तो वह भभकता है नारा है अथवा कार्यक्रम कहिये
''मै JNU बोल रहा हूँ'"-------!
JNU क्या बोल रहा है-- 
तेरे कातिल जिन्दा हैं अफजल हम शर्मिंदा हैं !
तेरे कातिल जिन्दा हैं याकूब हम शर्मिंदा हैं--!
भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी जंग रहेगी --!
हमें चाहिए आज़ादी- कश्मीर की आज़ादी तक जंग जारी रहेगी 
हमें चाहिए आज़ादी -भारत की बर्बादी तक जंग जारी रहेगी 
भारत तेरे टुकड़े होंगे -इंसा अल्ला -इसा अल्ला---! वास्तविक jnu यही है जो नासमझ हैं वे इसे शिक्षा मंदिर भी कह सकते हैं लेकिन कोई भी विवि देशद्रोही कृत्य पर उतर जाय तो आप क्या कहेंगे ?
            वास्तविकता यह है जहां सारे विश्व मे वामपंथ मृत्यु साइया पर पड़ा हुआ है वहीं भारत की राजधानी के एक विवि. जेएनयू जो भारत के अच्छे विश्व विद्यालय मे से एक है लेकिन इस जेएनयू मे हमेसा राष्ट्र विरोधी गति-विधियों का केंद्र चर्चा मे रहता है जेएनयू शिक्षालय न होकर बामपंथालय बनकर रह गया यह प्रतिष्ठित विश्व विद्यालय देश के लिए कोई महत्व पूर्ण उपलब्धि न दे सका, यह नहीं कहा जा सकता की कोई राजनेता, वैज्ञानिक अथवा और किसी क्षेत्र कोई उपलब्धि कुछ पता नहीं हाँ जेएनयू का योगदान है जहां हमेशा संदेह के घेरे मे रहे वामपंथ जो इस समय अपनी प्रासंगिकता खो चुका है वह जेएनयू को अपना ट्रेनिंग सेंटर बनाया हुआ है यहाँ से प्रशिक्षित माओवादी मध्य प्रदेश, छत्तिस गढ़, बिहार, आंध्रा व नार्थईस्ट मे माओवादी आतंकीवादी देश भर मे फैले हुए हैं जिंनका काम लेवी वसूलना, हत्या- हिंसा और किसी भी सरकार को अस्थिर करन तथा सेकुलर पत्रकार जो दिन भर भारत को कोसने गाली देने, हिन्दू देवी देवताओं को गाली देने मे लगा देते हैं इसकी वास्तविकता यही है की डूबते हुए बामपंथ की प्रयोग शाला या मार्क्सवादी मदरसा के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं ।
          आज जेएनयू की बहस ने देश को दो विचार धारा मे बाँट दिया है एक राष्ट्रवाद तो दूसरा आतंकी याकूब मैनन, मकबूल बट, अफजल के पक्ष का आज सारी राजनैतिक पार्टियां दो खेमे है एक देश हित के लिए दूसरा देश द्रोह के लिए बटीं दिखाई देती हैं ऐसे ही पत्रकार समूह भी दिखाई दे रहे ये केवल दिल्ली मे हो रहा है ऐसा नहीं तो भारत के कोने कोने से अपनी-अपनी माँद से निकाल रहे हैं, ऊंची अच्छे शिक्षा के केंद्र हैं वहीं चुनौती है आज समय की अवस्यकता है की सरकार सभी शिक्षालयों की जांच करे, निर्दयता पूर्बक कठोर कार्यवाही होनी चाहिए और देश हित मे यदि ऐसे शिक्षा केंद्र को बंद करने से हिचकना नहीं चाहिए  . 
          क्या यह महज इत्तिफ़ाक़ महज है की हैदरावाद में रोहित बोमुला और उसके साथी और jnu में कन्हैया कुमार के साथियों को याकूब मेनन और मकबूल बट और अफजल जैसे आतंकवादी के प्रति इतनी सहानुभूति है की वे इनकी वारसी ऐसे मानते हैं जैसे वे स्वतंत्रता सेनानी हों यह इत्तिफ़ाक़ नहीं हो सकता इसके पीछे गहरी सोची समझी साजिस है यह दलितों अथवा मुसलमानों के अधिकारों की लड़ाई नहीं है यह देश तोड़ने का अभियान है , राजनितिक दलों, बुद्धिजीवीयों और आम लोगो को सोचना चाहिए किक्या अफजल और याकूब मेनन हमारे युवाओं के आदर्श बनेगे ? जिन लोगों को लग रहा है कि ऐसे क्षात्रों का समर्थन करके वे संघ परिवार के खिलाफ अपनी जंग जीत जायेंगे वे मुगालते में हैं देश बिरोधियों का साथ देकर आप क्या करना चाहते हैं--? इन देशद्रोहियों को ध्यान देना होगा अब देश जग रहा है सरकार नहीं जनता इसका जबाब देगी जनता के पैसे पर पलने वाले देशद्रोहियों की पहचान हो गयी है अभी तक की सरकारें इनके कुकृत्यों पर पर्दा डाले हुई थी जनता उन्हें भी माफ़ नहीं करेगी , भारतीय जनता अब मन बना चुकी है वह किसी भी प्रकार के आतंकवाद को बर्दास्त नहीं करेगी चाहे वह इस्लामिक हो अथवा मार्क्सवादी---! 
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